■ अनिरुद्ध दुबे
पंजाब दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सूरक्षा में हुई चूक पर पूरे राष्ट्र में बहस छिड़ी हुई है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इधर, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मीडिया से रूबरू होते हुए कहा कि “पंजाब से वापस आकर प्रधानमंत्री बयान देते हैं कि मैं सूरक्षित लौट आया। सवाल यह है कि क्या उनकी गाड़ी में पथराव हुआ था? क्या उन्हें काले झंडे दिखाए गए थे??” बहरहाल प्रधानमंत्री की सूरक्षा में चूक वाला मामला राष्ट्रपति के संज्ञान में आया है। भाजपा के कई बड़े नेता पंजाब में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रपति शासन की मांग करने वालों में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह भी हैं, जो कभी कांग्रेस का मजबूत स्तंभ हुआ करते थे। ऐसा कौन नेता होगा जिसे अपनी सूरक्षा की चिंता नहीं होती होगी। सन् 2008 की तरफ चलें, तब उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती थीं। उस दौर में वे बहुजन समाज पार्टी की सभा लेने छत्तीसगढ़ आई हुई थीं। चूंकि वह किसी प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं, अतः प्रोटोकॉल के तहत एयरपोर्ट से छत्तीसगढ़ पुलिस की गाड़ी मायावती की गाड़ी के साथ-साथ चल रही थी। बहन जी की गाड़ी जब वीआईपी रोड पर पहुंची वहां पहले से मौजूद समाजवादी पार्टी के कुछ नेता एवं कार्यकर्ता काले झंडे दिखाते हुए ‘मायावती वापस जाओ’ के नारे लगाने लगे। छत्तीसगढ़ में समाजवादी पार्टी का दायरा तब काफ़ी सीमित था और आज भी सीमित ही है, लेकिन भय तो भय होता है। इस विरोध प्रदर्शन को देख बहन जी बिफर पड़ीं। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था कि “छत्तीसगढ़ की सूरक्षा व्यवस्था पर मुझे ज़रा भी भरोसा नहीं।“ फिर बहन जी ने बिना देर लगाए तत्काल उत्तरप्रदेश के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) को फोन लगाया और उन्हें निर्देशित किया कि तत्काल रायपुर पहुंचकर सूरक्षा व्यवस्था अपने हाथों में लें। उत्तरप्रदेश डीजीपी ने वैसा ही किया। बिना देर किए विशेष विमान से वे रायपुर पहुंचे और बहन जी की सूरक्षा व्यवस्था अपने हाथों में ली।
कोरोना और कड़ाई
छत्तीसगढ़ में कोरोना फिर से क़हर बरपा रहा है। पूर्व के जो कठिन अनुभव रहे उससे सबक लेते हुए शासन एवं प्रशासन इस बार पहले से ही सतर्क था। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहले ही संकेत दे दिया था कि हम तीसरी लहर की तरफ बढ़ रहे हैं। उन्होंने साथ में यह भी कहा था कि समय रहते काफ़ी सावधानी बरतने की ज़रूरत है। बुधवार को छत्तीसगढ़ में ओमिक्रॉन का पहला केस चिन्हित भी हो गया। छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, ओड़िशा एवं मध्यप्रदेश में पहले ही ओमिक्रॉन की दस्तक़ हो चुकी थी। उसे ध्यान में रखते हुए जांजगीर-चाम्पा, रायगढ़ एवं कोरबा जैसे जिलों में न्यू इयर पर होने कार्यक्रमों पर कड़ाई की गई। जांजगीर चाम्पा कलेक्टर ने तो इस पर पूरी तरह रोक लगा दी थी। यह कदम पूरे प्रदेश में उठाने की ज़रूरत थी। 31 दिसंबर की रात को राजधानी रायपुर के तेलीबांधा चौक, महासमुन्द रोड एवं वीआईपी रोड का नज़ारा देखने लायक था। जिधर देखो न्यू इयर मनाने वालों की भीड़ नज़र आ रही थी। साफ लग रहा था आगे यह सब कुछ ख़तरनाक साबित हो सकता है। फिर 2 जनवरी को रविवार पड़ा। इस तरह कितने ही लोग 31 दिसंबर से 2 जनवरी तक नये साल का जश्न मनाते रहे और जोखिम बढ़ाते रहे। बेहतर होता कि 31 दिसंबर से 2 जनवरी तक न्यू इयर के नाम पर होने वाले किस भी तरह के जश्न पर रोक लगा दी गई होती। ऐसे अवसर पर लोग मनोरम स्थलों की तरफ भी भागते नज़र आते हैं। 31 से 2 तक छत्तीसगढ़ के सभी पर्यटन स्थलों पर पाबंदी तो लगाई ही जा सकती थी। आसार यही नज़र आ रहे हैं कि जनवरी और फरवरी ये दो महीने कोरोना के लिहाज़ से ख़तरनाक हो सकते हैं।
सेरीछेड़ी में कुछ होगा तभी मुर्दा नया रायपुर में आएगी जान
नया रायपुर को इतने दूर ले जाकर बसा दिया गया कि पुराने रायपुर में रहने वाले लोग पिछली भाजपा सरकार को आज तक लगातार कोसते आ रहे हैं। पुराने रायपुर के सेरीछेड़ी क्षेत्र से नया रायपुर के बीच क़रीब 18 किलोमीटर का इलाक़ा एकदम ख़ाली है। नई ख़बर यह है कि नवा रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) नये व पुराने रायपुर के बीच की दूरी मिटाने एक प्लान तैयार कर रहा है। इसके लिए सेरीछेड़ी क्षेत्र में 1 हजार एकड़ निजी जमीन अधिग्रहण करने की तैयारी है। वहां पर कई सेक्टरों वाली विशाल आवासीय कॉलोनी बनाई जाएगी। हर ज़रूरत की चीज़ लोगों को उपलब्ध हो सके इसके लिए वहां व्यावसायिक सेक्टर भी बनाए जाएंगे। वहां होटल-रेस्टॉरेंट से लेकर अस्पताल पेट्रोल पंप सब कुछ होगा। एनआरडीए की यह योजना मूर्त रूप ले पाई तो वास्तव में नया रायपुर के दिन फिरेंगे। अभी तो नया रायपुर सिर्फ मुर्दा शहर नज़र आता है। कांग्रेस सरकार का तीन साल का सफर तय हो चुका। यह सरकार भी पुराने रायपुर से नये रायपुर का पक्का कनेक्शन जोड़ने की दिशा में अब तक तो कुछ नहीं कर पाई है। अब एनआरडीए के बहाने कुछ हो जाए तो हो जाए।
सिद्धू के सपनों में बघेल व कमलनाथ
टीवी पर आने वाले कॉमेडी शो में बेमतलब के ठहाके लगाने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने न सिर्फ पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी बल्कि दिल्ली के बड़े कांग्रेस नेताओं के भी नाक में दम कर रखा है। पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब के तब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को चैन से बैठने नहीं दिया था। आज अमरिंदर कांग्रेस से बाहर हैं। ज़ल्द ही पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं और सिद्धू के कुछ ऐसे बयान आते जा रहे हैं जो कांग्रेस की सेहत के लिए कहीं से ठीक नहीं। दिल्ली से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सिद्धू चाह रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में पंजाब के भावी मुख्यमंत्री के रूप में उनका चेहरा सामने रखा जाए। ठीक उसी तरह जैसे छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव क्रमशः भूपेश बघेल एवं कमलनाथ का चेहरा सामने रखकर लड़ा गया था। अब सिद्धू को यह कौन समझाए कि छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश दोनों ही राज्यों में कांग्रेस विधानसभा चुनाव कोई भी चेहरा सामने रखकर नहीं लड़ी थी। यह सही है कि चुनाव के समय भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ एवं कमलनाथ मध्यप्रदेश में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। इन दोनों ही नेताओं की मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी कोई आसान नहीं रही थी। दिल्ली में काफ़ी कश्मकश के बाद ये दोनों नाम मुख्यमंत्री के लिए तय हो पाए थे। तब मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कमलनाथ एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया बराबर से नज़र आ रहे थे। वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के अलावा टी.एस. सिंहदेव एवं ताम्रध्वज साहू कतार में थे। यह अलग बात है कि लाटरी बघेल एवं कमलनाथ की खुली।
ऐसे भी मास्टर और मास्टरनी
छत्तीसगढ़ के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों की सरकारी स्कूलों के बीच-बीच में ऐसे किस्से पढ़ने व सुनने को मिल जाते हैं कि सोचना पड़ता है शिक्षा के स्तर पर हम कहां खड़े हैं? धमतरी जिले के पीपरछेड़ी (देमार) की प्रायमरी स्कूल में पिछले दिनों पालकों ने जमकर हंगामा मचाया। इन पालकों का आरोप था कि स्कूल की एक शिक्षिका को गुटखा खाने की लत है। स्कूल के समय में भी वह गुटखा चबाते रहती है। चलती क्लास के बीच वह किसी न किसी छात्र को गुटखा लाने भेजते रहती है। उस क्षेत्र के बीईओ स्कूल पहुंचकर काफी मशक्कत के बाद उग्र पालकों को शांत करा पाए। उल्लेखनीय है कि इसके पहले जशपुरनगर के कुनकुरी विकासखंड अंतर्गत ग्राम मटासी की स्कूल में पांचवीं की क्लास ले रहे एक शिक्षक किताब देखकर भी गलत पहाड़ा पढ़ा रहे थे। यह देखकर एक छात्र को हंसी आ गई। शिक्षक ने खुद की भूल को सुधारने के बजाए हंसने वाले छात्र को इस क़दर मारा कि उसकी पीठ पर जगह-जगह निशान पड़ गए थे। छात्र के माता-पिता ने शिक्षक के खिलाफ़ थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई। मामला इतना तूल पकड़ चुका था कि वहां के कलेक्टर रितेश अग्रवाल को जांच का आदेश देना पड़ा था।
बीरगांव की राजनीतिक चौसर पर नया दांव
बीरगांव नगर निगम में नंदलाल देवांगन ने महापौर एवं कृपाराम निषाद ने सभापति की कुर्सी संभाल ली। माना यही जा रहा है कि इन दोनों पदों के लिए ये दोनों नेता रायपुर ग्रामीण विधायक सत्यनारायण शर्मा एवं उनके सुपुत्र पंकज शर्मा की पहली पसंद थे। महापौर एवं सभापति पद के लिए दावा तो साहू समाज एवं सतनामी समाज की तरफ से भी आया था, लेकिन बड़े नेताओं को राजनीति की इस चौसर में देवांगन एवं निषाद पर दांव खेलना उपयुक्त लगा। बीरगांव की राजनीति में कभी डॉ. ओमप्रकाश देवांगन का अपना काफ़ी वज़न था और वे सत्यनारायण शर्मा खेमे के ही माने जाते थे। परिस्थितियां कुछ ऐसी बदलीं कि ओमप्रकाश ने कांग्रेस का साथ छोड़ जोगी कांग्रेस का दामन थाम लिया। जोगी कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों को जिताने ओमप्रकाश पूरी ताकत लगाए रहे। बीरगांव में जोगी कांग्रेस से 5 लोग पार्षद चुनाव जो जीते उनमें एवज देवांगन एवं उनकी पत्नी डिगेश्वरी देवांगन भी शामिल हैं और इन पति-पत्नी का राजनीति से रिश्ता कोई आज का नहीं बल्कि काफ़ी पुराना है। बीरगांव नगर निगम रायपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। माना यही जा रहा है कि शर्मा खेमे ने देवांगन को महापौर बनाकर जो जातिगत समीकरण बिठाया है वह एक तरह से 2023 के विधानसभा चुनाव की पूर्व तैयारी है।