कारवां (7 सितंबर 2025) ● बृजमोहन व चंद्राकर, दिल की बात लब पर आई… ● आख़िर पटवारी साहबों की सुनवाई कैसे न हो… ● ड्रग्स असली, चेहरे भी असली… ● फ़र्ज़ी पुलिस वाला… ● नगर निगम में 2 नेता प्रतिपक्ष…

■ अनिरुद्ध दुबे

“दिल की बात कहीं लब पे न आ जाए… हॅसते हॅसते आंख कहीं न भर आए…“

इन दिनों दो वीडियो जो सामने आए हैं उनमें दो बड़े नेताओं बृजमोहन अग्रवाल एवं अजय चंद्राकर के दिल की बात लब पर आती दिखी। दोनों पूर्व में मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में बृजमोहन अग्रवाल सांसद हैं तो अजय चंद्राकर विधायक। दोनों कुशल राजनीतिज्ञ माने जाते हैं। दोनों का संसदीय ज्ञान तगड़ा है, इसलिए कि दोनों कभी छत्तीसगढ़ सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी रहे हैं। हर किसी के मन में सवाल उभरा हुआ है कि ऐसा क्या कि दोनों मन की गहरी बात बोले जा रहे हैं। हाल ही में किसी मीडिया पर्सन व्दारा पूछे गए सवाल का ज़वाब देते हुए अजय चंद्राकर ने कहा कि “पार्टी चाहेगी उसी दिन मैं डेमेज़ होऊंगा… नहीं तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि कोई व्यक्ति डेमेज़ कर ले।“ अब बृजमोहन अग्रवाल पर आएं, किसी कार्यक्रम में पब्लिक के बीच से हुए किसी सवाल का ज़वाब देते हुए उन्होंने कहा कि “अपने 40-45 साल के राजनीतिक जीवन में मैंने किसी को नहीं छोड़ा। भले ही लोग मुझे छोड़कर चले गए। मैं मंत्री नहीं बना, तो छोड़कर चले गए। विपक्ष का विधायक बना, तो लोग छोड़कर चले गए। सबसे बड़ी चीज है, जो संबंधों को निभाना सीख लेगा, उसकी दुश्मनी कभी नहीं होगी। चुनावी राजनीति में सफलता का राज़ यह है कि मैंने संबंधों को निभाया है।“

बृजमोहन अग्रवाल व अजय चंद्राकर ने जो कुछ भी कहा, बात तो गहरी है। बृजमोहन, अजय एवं पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे की तिकड़ी अक्सर चर्चा में रहती आई है। फिर विधायक सुनील सोनी समेत पूर्व विधायक व्दय शिवरतन शर्मा एवं देवजी भाई पटेल को भी इस तिकड़ी के आसपास का ही माना जाता रहा है। अभी के राजनीतिक परिदृश्य पर थोड़ा बारीकी से नज़र दौड़ाएं तो बहुत सी चीजें अपने आप समझ आती चली जाएंगी।

आख़िर पटवारी साहबों

की सुनवाई कैसे न हो

किसी पटवारी को यूं ही गांव का कलेक्टर नहीं कहा जाता। ज़मीन संबंधी कोई मामला कहीं पर जाकर फंस जाए तो उसकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। ये तो हुई गांवों के पटवारियों की बात, शहर के पटवारियों की शान-ओ- शौक़त के सामने कई दूसरे डिपार्टमेंट के अफ़सरों की चमक फीकी पड़ जाए। इसी राजधानी रायपुर में ऐसे पटवारी भी कभी देखने मिले थे, जिनके घर के दरवाज़े पर सुबह 7 बजे से धन्ना सेठ खड़े मिल जाते। मसला ये कि पटवारी साहब उलझे हुए ज़मीन के मामले को कागज़ों पर पुख़्ता तौर बिठा दें, ताकि आगे के क़ारोबार का रास्ता खुल सके। इसी रायपुर से ऐसे भी पटवारी निकले, गले पर सोने का भारी भरकम लॉकेट, उंगलियों पर चमचमाती सोने की अंगूठियां उनके व्यक्तित्व पर चार चांद लगाती थीं। हुआ यह कि पिछले अगस्त महीने में नया रायपुर मंत्रालय से ख़बर निकलकर आई थी कि सरकार व्दारा रायपुर समेत राज्य भर के पटवारियों के दफ़्तर को सुविधायुक्त बनाने क़रीब 7 करोड़ 70 लाख के फंड को मंजूरी दी गई है। पटवारी दफ़्तरों में नया फर्नीचर होगा, नया कम्प्यूटर होगा। ज़रूरत पड़ेगी तो नये कमरे भी बनाए जाएंगे। इस फंड पर काम कब शुरु होगा यह तो नया रायपुर में बैठी नई सरकार ही जाने, बीच में आर्थिक समस्याएं गिनाते हुए पटवारी हड़ताल पर ज़रूर चले गए। जब पटवारी ही हड़ताल पर चले जाएं तो क्या शहर,  क्या गांव, पूरे प्रदेश में ज़मीन से जुड़े काम ठप्प हो जाते हैं। खुद राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा को हड़ताल को संज्ञान में लेना पड़ा। मंत्री जी ने पटवारी साहब लोगों को बुलाकर उनके मन की बात जाननी चाही तो यह मालूम हुआ कि उन्हें मात्र ढाई सौ रुपये स्टेशनरी भत्ता मिलता है जो कि ऊंट के मुंह पर जीरे से भी कम है। मंत्री जी ने थोड़ी उदारता दिखाई और कहा- “ठीक है, ढाई सौ में साढ़े आठ सौ रुपये और जोड़ लो।“ जब स्टेशनरी व्यय की राशि ढाई सौ से बढ़कर 1100 रुपये हुई तब कहीं जाकर पटवारी साहबों ने हड़ताल समाप्त की।

ड्रग्स असली, चेहरे

भी असली…

सत्तर के दशक में मशहूर जासूसी उपन्यास लेखक कर्नल रंजीत का ‘असली हीरे नकली चेहरे’ शीर्षक से एक जासूसी उपन्यास आया था। राजधानी रायपुर में ड्रग्स के धंधे में लगे रहे युवक-युवतियों की जिस तरह गिरफ़्तारियां हो रही हैं और जिस तरह एक के बाद एक परतें उधड़ती चली जा रही हैं उस पर भी जासूसी उपन्यास लिखा जा सकता है या फिर जासूसी वेब सीरीज़ या फ़िल्म बन सकती है। पिछले हफ़्ते के ‘कारवां’ कॉलम में इस कलमकार ने इशारा किया था कि किस तरह एक डिज़ाइनर युवती की नशे के क़ारोबार में संलग्नता है। कैसे पार्टियां रखकर नई पीढ़ी को हेरोइन, ब्राउन शूगर, स्मैक एवं एमडीएमए जैसे घातक नशे का सामान परोसा जा रहा है। पिछले हफ़्ते की यह कहानी अब और सनसनी पैदा करते हुए आगे जा चुकी है। अब एक नहीं दो युवतियां कानून के हत्थे पड़ चुकी हैं। अंदर की ख़बर रखने वाले बताते हैं कि दोनों युवतियों और इनके साथ पकड़े गए अन्य युवकों से पूछताछ में ऐसी-ऐसी जानकारियां सामने आ रही हैं, जो कि होश उड़ा दें। एक विधायक के बेटे की इन नशे के क़ारोबारियों से कनेक्शन रहने की चर्चा है। रायपुर और दुर्ग जिले के कुछ राजनीतिक परिवारों की औलादों के इनसे जुड़े रहने की बातें भीतर से आ रही हैं। कुछ आला अफ़सर एवं बड़े व्यापारियों की बिगड़ैल औलादें भी ड्रग्स के जाल से अछूती नहीं रही हैं। पिछले दो साल से प्रदेश में जिस शराब घोटाले व महादेव सट्टा ऐप की गूंज रही है, उन दोनों में संलग्न रहे लोगों से भी ड्रग माफ़ियाओं के कनेक्शन होने की बातें लगातार हो रही हैं। मुम्बई, दिल्ली और गोवा से ड्रग्स क़ारोबारियों के तार जुड़े रहने की बातें तो सामने आती रही थीं, लेकिन उससे और कई कदम आगे चलते हुए हरियाणा और पंजाब में जाल फैलाते हुए पाकिस्तान की सीमा तक ड्रग्स के ये कम उम्र सौदागर पहुंच गए। राजधानी रायपुर के कम भीड़ वाले इलाक़े में अय्याशी भरी रातों की पार्टियों में ड्रग्स की एक पुड़िया की कीमत 10 हज़ार रुपये से ऊपर रहे तो समझ सकते हैं बरबादी का आलम क्या रहा है…

फ़र्ज़ी पुलिस वाला

महानायक कहलाने वाले अमिताभ बच्चन की 1984 में एक फ़िल्म आई थी ‘इंक़लाब’, जिसमें कुछ भ्रष्ट नेता अपनी स्वार्थ लिप्सा को पूरा करने एक पढ़े-लिखे बेरोजगार युवक को थानेदार बना देते हैं। थानेदार बनने के बाद युवक अपनी ग़रीब बस्ती में “लो मैं बन गया थानेदार भैया अब डर काहे का… अब अपनी है सरकार रे भैया अब डर काहे का…” गीत गाते, नाचते नज़र आता है। फ़िल्म ‘इंक़लाब’ ने राजनीति व पुलिस महकमे के भीतर कितने छेद हैं उसे बेबाक़ी से उजागर किया था। लेकिन राजधानी रायपुर में पकड़े गए एक फ़र्ज़ी पुलिस वाले की कहानी फ़िल्म ‘इंक़लाब’ के उस पात्र से एकदम अलग हटकर है, जो सोचने पर मजबूर करती है। कोई ऐसा व्यक्ति जो पिछले क़रीब दस वर्षों से सिस्टम को धता बताते हुए फ़र्ज़ी पुलिस वाला बनकर घूम रहा हो, पैसों की उगाही कर रहा हो, विभाग के बड़े अफ़सरों के साथ घूम रहा हो और पुलिस महकमे में मोटी रकम लेकर मनपसंद थाने में ट्रांसफर करवा रहा हो, तो सवाल यह कि महकमे के बाकी लोग क्या सोए हुए थे! वो तो ड्रग्स मामले में इंटीरियर डिज़ाइनर नव्या मलिक की गिरफ़्तारी के बाद यह शिकारी उस समय ख़ुद शिकार हो गया जब उसने एक बड़े हॉटल क़ारोबारी को ज़बरिया ब्लेकमेल करने की कोशिश की। यह कहते हुए कि ड्रग्स मामले में पूछताछ करने पर नव्या ने तूम्हारा नाम बताया है। दिलचस्प बात यह कि उसी थाने की पुलिस ने इस फर्ज़ी आदमी की गिरफ़्तारी की, जहां यह पुलिस वाला बनकर बैठा करता था। यह कोई एक उसी थाने में नहीं बल्कि और भी थानों में बैठा करता था। पुलिस गाड़ी में बैठकर पेट्रोलिंग में निकला करता था। कभी-कभी बड़े पुलिस अफ़सरों के साथ उनकी गाड़ी में भी नज़र आया करता था। तभी तो रायपुर पुलिस कप्तान को कहना पड़ा कि “इस फ़र्ज़ी आदमी को हमारे विभाग के किन लोगों का संरक्षण था व किन लोगों के साथ घूमा करता था इसकी जांच कराई जा रही है।“

नगर निगम में

2 नेता प्रतिपक्ष

रायपुर नगर निगम में आज तारीख़ तक भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि वहां का नेता प्रतिपक्ष कौन है, संदीप साहू या आकाश तिवारी? नगर निगम में महापौर कक्ष के बाजू नेता प्रतिपक्ष वाले कक्ष के बाहर संदीप साहू के नाम की नेम प्लेट टंगी है। पिछले दिनों सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने नगर निगम के नेताओं व अफ़सरों की जो बैठक ली उसमें नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से संदीप साहू को ही आमंत्रित किया गया था। इधर, अख़बारों में आकाश तिवारी से जुड़ी ख़बरें जो सामने आती हैं, उनके नाम के आगे निगम नेता प्रतिपक्ष लिखा होता है।

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