● फ़िल्म समीक्षा- बलिदानी राजा गुरु बालकदासः अंधविश्वास और कुरीतियों के विरुद्ध संदेश… तीन सौ साल पुराना छत्तीसगढ़ हुआ जीवंत…

■ डॉ. ओम डहरिया

परम पूज्य गुरु घासीदास बाबा के मंझले पुत्र बलिदानी राजा वीर बालकदास पर बनी ऐतिहासिक बायोपिक छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘बलिदानी राजा गुरु बालकदास’  आपको 3 सौ साल पुराने छत्तीसगढ़ की झलक दिखाती है। हर चरित्र खूबसूरती से फिल्माया गया है। ऐसा महसूस होगा कि आप वही पुराना समय में जी रहे हैं। ऐतिहासिक फिल्मों में बजट की बड़ी चुनौती होती है। महंगा सेट लगाना होता है। उस समय के परिधान उपयोग करने होते हैं। बड़ा खर्चीला मामला होता है। फिल्मकार ने पूरी खूबी के साथ कम बजट में ऐतिहासिक फिल्म ‘बलिदानी राजा गुरु बालकदास’ बनाने की कोशिश की है। कम बजट का प्रभाव दिखता है लेकिन फिल्मकार की हिम्मत साफ नजर आती है।

सतनामी फिल्म प्रोडक्शन के बैनर तले निर्मित प्रोड्यूसर जे.आर. सोनी की इस फिल्म में राजा वीर बालकदास के जीवन दर्शन को बखूबी दिखाया गया है। फिल्म गहरे शोध के बाद बनी है। जहां कुछ तथ्य नहीं मिलते, फिल्मकार ने अपनी कल्पना का उपयोग किया है। बाबा गुरु घासीदास के समय मध्य भारत में पिंडारियों का कहर था जो जमकर लूटपाट करते थे। फिल्म के आरंभ में ही पिंडारियों के घोड़ों की धमक सुनाई देती है और फिर अंग्रेजों के घोड़ों की धमक भी सुनाई देती है। अंग्रेजों ने पिंडारियों का दमन किया था। जिन्हें ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की समझ हो, वे आसानी से इसे समझ जाएंगे, लेकिन यदि इतिहास नहीं पढ़ा हो तो दिमाग पर शुरूआत में ज्यादा जोर देना होगा। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दिल में नया रोमांच और उत्साह जगता है। निर्देशक अमीर पति ने फिल्म के चरित्रों पर विशेष मेहनत की है। चरित्र चित्रण में शत प्रतिशत परफेक्शन दिखलाई पड़ता है। ढाई से तीन सौ साल पुराना वातावरण तैयार करने में काफी सतर्कता बरती गई है। तत्कालीन समय के घर, वेशभूषा, खानपान आपको उस दौर में पहुंचा ही देते हैं। गुरु घासीदास के पुरखों पर जो शिलालेख मिले, गजेटियर में जो मिला, किताबों में जो लिखा गया, सब कुछ खंगालने के बाद उसे पर्दे पर उतारा गया है।

ओम त्रिपाठी ने राजा गुरु बालक दास के किरदार को बखूबी जिया है। गुरू घासीदास के छोटे पुत्र और गुरू बालक दास के छोटे भाई आगर दास का भी चित्रण है। आगर दास की भूमिका छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री गुरु खुशवंत साहेब ने निभाई है। आगर दास भगवान प्रभु श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण की तरह राजा बालक दास के साथ हर निर्णय और सुख दुख में साथ खड़े रहते हैं। दो भाइयों के बीच स्नेह कितना अटूट निर्मल हो सकता है यह दोनों चरित्र दिखाते हैं। दीदी सोहद्रा की भूमिका भी सराहनीय है। हालांकि संत गुरू घासीदास जी के दृश्य कम होने व गुरू बालक दास के विवाह के सीन नहीं होने से दर्शकों में थोड़ी निराशा जरूर है। गुरू बालक दास की मृत्यु को लेकर जो लोकाचार था, उस दृश्य को फिल्मी रूप दिया गया है, इसके लिए दर्शकों के मन में थोड़ी निराशा देखने को मिली।

फिल्म इसलिए भी रोचक है कि पूर्व मंत्री अमरजीत भगत ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने गुरू बालक दास के मित्र के रूप में छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं लोकप्रिय गोड़ राजा शहीद वीर नारायण सिंह का किरदार निभाया है। उन्होंने कैरेक्टर को जीने की हरसंभव कोशिश की। वहीं पूर्व मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया का एक सामाजिक सभा में उपदेश का सीन फिल्माया गया है। डॉ. डहरिया का एक ही सीन नकाफी है और सीन की गुंजाइश थी। पुष्पेन्द्र सिंह एवं डॉ. अजय सहाय सहित कुछ अन्य कलाकारों ने खलनायकी की है जो अपने काम में परफेक्ट नज़र आए। फिल्म का आखरी सीन दर्शकों को गमगीन कर देता है और वे अपने आंसू नहीं रोक पाते। फिल्म में तकनीकी रूप से वीएफएक्स का बेहतरीन इस्तेमाल किया गया है। जहां जितना गीत संगीत होना चाहिए, उतना ही पिरोया गया है। अनुराग शर्मा, सुनील सोनी एवं कंचन जोशी द्वारा गाये गए गीत मनभावन हैं।

वास्तव में यह फिल्म अंग्रेजों, जमीदारों, द्वारा किए गए अन्याय अत्याचार, शोषण के साथ ही अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों जैसे छूआछूत, जातिवाद, सती प्रथा, बलि प्रथा एवं असाध्य रोगों के प्रति जागरूकता का संदेश देने में कामयाब रही है। यह पूरी तरह संदेशात्मक शैली में हैं। फिल्म ‘बलिदानी राजा गुरु बालक दास’ समय निकालकर जरूर देखना चाहिए।

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