■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री एवं जनता कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजीत जोगी का 29 मई को रायपुर में देहांत हो गया। उन्होंने रायपुर के श्री नारायणा हास्पिटल में 21 दिनों तक जीवन और मौत के बीच संघर्ष किया। इस बार मौत जीत गई, जिन्दगी हार गई।
पहले भी ऐसे अवसर आए थे जब जोगी जिन्दगी और मौत की लड़ाई के बीच झुले थे। तब जिन्दगी जीतती रही थी। इंजीनियरिंग कॉलेज के प्राध्यापक से आईपीएस, फिर आईएएएस, उसके बाद नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में आना और लंबा सफर तय करने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना, यह ऐसी रोचक दास्तान है कि लिखने के लिए पेज कम पड़ जाएं। जोगी से जुड़े कुछ दृश्य अक्सर मेरी आंखों के सामने घूमते रहे हैं। 1991 या 1992 की बात रही होगी। तब मैं रायपुर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘अमृत संदेश’ में रिपोर्टर था। रायपुर वासी होने के कारण मुझे यह तो पता था कि जोगी जी कभी रायपुर कलेक्टर रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रत्यक्ष देखने का मौका ‘अमृत संदेश’ में मिला। खादी का सादा कुर्ता और पायजामा जोगी जी की उस दिन की वेशभूषा थी। चेहरे पर मुस्कराहट लिए वे संपादकीय विभाग के लोगों से मिले थे। उसके बाद उसी दौर में कुछ मुलाकातें सर्किट हाउस में हुई थीं। आज का राज भवन तब सर्किट हाउस हुआ करता था। जोगी जी उस समय कांग्रेस के प्रवक्ता हुआ करते थे। पत्रकारों को ऑफ द रिकॉर्ड राजनीति से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बता दिया करते थे जो कि उनके काम की साबित हुआ करती थीं। उसी दौर में रायपुर में पिछड़ा वर्ग सम्मान रैली निकली। तब मैंने रायपुर के हृदय स्थल कहे जाने वाले जयस्तंभ चौक के पास तत्कालीन भाजपा सांसद रमेश बैस व अजीत जोगी को कदम से कदम मिलाकर चलते देखा था। वह घोषित तौर पर कोई राजनीतिक रैली तो थी नहीं, इसलिए भाजपा के रमेश बैस व कांग्रेस के अजीत जोगी को साथ चलने में कोई दिक्कत भी नहीं थी। अक्टूबर 2000 में जब यह साफ हो चुका था कि 1 नवंबर को छत्तीसगढ़ राज्य बनने जा रहा है। रायपुर की पत्रकार बिरादरी से लेकर हर कोई यही पूर्वानुमान लगाए हुए था कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के पहले मुख्यमंत्री विद्याचरण शुक्ल होंगे, लेकिन कांग्रेस आलाकमान श्रीमती सोनिया गांधी की पसंद के रूप में अजीत जोगी का नाम सामने आया। 31 अक्टूबर की रात 12 बजते ही रायपुर के पुलिस ग्राउंड में अजीत जोगी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सांध्य दैनिक अखबार ‘हाईवे चैनल’ के पत्रकार के नाते उस पल का गवाह रहने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ था। जैसे ही जोगी जी मुख्यमंत्री की शपथ लेकर मंच से नीचे आए लोग उन्हें बधाई देने टूट पड़े थे। ऐसी धक्का-मुक्की की जोगी जी के लिए खुद को सम्हाल पाना मुश्किल हो रहा था। छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के कुछ मिनट बाद ही मानो यहां की राजनीति ने पूरी तरह करवट ले ली थी। कभी छत्तीसगढ़ में शुक्ल बंधुओं का बोलबाला हुआ करता था। राज्य बनने के बाद उनका असर धीरे-धीरे कम होते चला गया। मुख्यमंत्री बनने के बाद जोगी जी का प्रभा मंडल कुछ इस तरह का तैयार हो चुका था कि उनकी छवि अकेला शासक, अकेला प्रशासक वाली बन चुकी थी। साम दाम दंड भेद अपनाते हुए जोगी जी ने अपना कद इतना बड़ा कर लिया था कि दूसरा सब कुछ छोटा नजर आने लगा था। दिसंबर 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता कांग्रेस के हाथों से जा चुकी थी, लेकिन फिर भी जोगी जी का अपनी पार्टी के भीतर वजन बने रहा। 2003 में वे मरवाही से विधायक चुनाव जीते फिर अप्रैल 2004 में महासमुन्द से सांसद भी बने। 2003 में छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की सत्ता से हट जाने के बाद जोगी जी जब कभी अपने बंगले में पत्रकार वार्ता लेते उनके दाएं व बाएं तरफ पार्टी के विधायकगण बैठे नजर आते थे। यह एक तरह से मैसेज हुआ करता था कि जोगी आज भी उतने ही ताकतवर हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव के समय जोगी सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए। उसके बाद वे कभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए, लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण कभी राजनीतिक जगत में कमजोर पड़ते नहीं दिखे। यहां तक कि हाल में अस्पताल में दाखिल होने से पहले तक वे काफी मुखर थे।
2003 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद विधायक खरीद फरोख्त कांड वाली घटना सामने आई थी। वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण जेटली ने एक टेप मीडिया के सामने लाते हुए आरोप लगाया था कि इस कांड के सूत्रधार अजीत जोगी हैं। चैनलों में जब यह खबर दौड़ने लगी तत्कालीन कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव अंबिका सोनी ने अजीत जोगी को इसके लिए जिम्मेदार मानते हुए दिल्ली से उनके निलंबन की घोषणा की थी। ‘हाईवे चैनल’ के लिए एक खबर तैयार करने के सिलसिले में जिज्ञासावश मैंने फोन पर जोगी जी से पूछा था कि कांग्रेस से निलंबन के बाद अब आपकी भूमिका किस तरह की होगी? जोगी जी ने तब कहा था- मुझे तो निलंबन का कोई कागज नहीं मिला। सुनने में यह जवाब कुछ अजीब सा लगा था पर यह भी उतना ही सच था कि दिल्ली के नेताओं ने जोगी का निलंबन वापस लेने जैसी कोई खबर कभी जारी नहीं की, अलबत्ता 2004 के लोकसभा चुनाव में यह घोषणा जरूर की कि महासमुन्द क्षेत्र से जोगी भाजपा प्रत्याशी विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ चुनावी मैदान में होंगे। उस चुनाव में जोगी ने भारी मतों के अंतर से शुक्ल को हराया था।
जोगी जी की शख्सियत को थोड़े शब्दों में समेट पाना बेहद मुश्किल है। ऐसे लोग बहुत कम देखने मिलेंगे जो राजनीति के साथ कई विधाओं में दखल रखते हों। भाषण कला में जोगी जी का कोई मुकाबला नहीं था, वहीं उनका लेखन भी कमाल का था। अखबारों में प्रकाशित उनके लेख ‘दृष्टिकोण’ नाम से पुस्तक के रूप में सामने आए। ‘दृष्टिकोण’ को पढ़ें तो लगता है कि जमीन से शीर्ष तक पहुंचे इस नेता का दृष्टिकोण कितना व्यापक था। उनके व्दारा लिखित अन्य किताबें- ‘द रोल ऑफ डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर’, ‘एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ पेरिफेरियल एरियाज’, ‘सदी के मोड़ पर’, ‘मोर मांदर के थाप’, ‘फूलकुंवर’ एवं ‘स्वर्ण कण जन मेरे प्रेरणा स्त्रोत’ हैं। जब इतिहास की बात होती है मुगल सम्राट अकबर का जिक्र खास तौर पर होता है। इतिहास के बहुत से जानकार ‘अकबर महान’ जैसे विशेषण का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जोगी की इस मामले में राय अलग थी। अपनी किताब ‘स्वर्ण कण जन मेरे प्रेरणा स्त्रोत’ में जोगी ने लिखा है चाहे सभी इतिहासकार अकबर को महानतम मुगल मानते हैं पर मेरे आकलन के अनुसार बाबर को यह दर्जा मिलना चाहिए। समय के प्रवाह की गति के विरुद्ध चलकर जैसे गोस्वामी तुलसीदास धर्म और साहित्य के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ गए कुछ वैसे ही बाबर ने भी अपनी भाषा में अपनी बात कहकर ऐसे साहित्य का सृजन किया जो समकालीन कृतियों में विश्व के किसी भी साहित्य से कम नहीं आंका जा सकता। जोगी ने कविताएं भी लिखी। संस्कृत के बहुत से श्लोक उन्हें कंठस्थ थे। 2008 से 2013 के दौर में जब जोगी विधायक थे विधानसभा में प्रश्नकाल के दौरान उन्होंने संस्कृत का एक श्लोक पढ़ते हुए सदन में अपनी बात दृढ़ता से रखी थी। इसी तरह 2013 के विधानसभा चुनाव के समय तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे के बंगले में जब प्रदेश चुनाव समिति की बैठक चल रही थी उसमें जोगी ने प्रत्याशी चयन पर अपनी राय एक श्लोक के साथ रखी थी। श्लोक कहने के तूरंत बाद जब वे बैठक से जाने लगे तो वरिष्ठ नेत्री श्रीमती मोहसिना किदवई ने मुस्कराकर कहा था जाते-जाते इस श्लोक का अर्थ भी तो समझाते जाइये। जोगी का जवाब था- पंचों का फैसला यानी ऊपर वाले का फैसला। 2013 के विधानसभा चुनाव में समाचार पत्रों में एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। उस विज्ञापन में एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की तस्वीर थी तो दूसरी तरफ अजीत जोगी का रेखाचित्र। डॉ. रमन की फोटो के नीचे लिखा था- मैं छत्तीसगढ़ का सेवक हूं। वहीं जोगी के रेखाचित्र के नीचे लिखा था- मैं छत्तीसगढ़ का शेर हूं। इस विज्ञापन पर न सिर्फ राजनीतिक जगत बल्कि आम लोगों के बीच भी व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। त्वरित व तीखी प्रतिक्रया देने के लिए अलग से पहचाने जाने वाले जोगी डॉ. रमन सिंह की तस्वीर के साथ अपने रेखाचित्र पर आखिर क्यों खुलकर कुछ नहीं बोले यह प्रश्न गहराया था। बहुत सी खूबियां होने के बावजूद जोगी के कहे हुए में कभी-कभी विरोधाभास भी नजर आता था। 2004 के भयंकर एक्सीडेंट में जब वे चलने फिरने में असमर्थ हो गए, इलाज के लिए एक महीने लंदन में रहे। लंदन से उन्होंने अपने मन की बात यहां मीडिया तक लिखकर भेजी थी। रायपुर के एक जाने-पहचाने समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ में मन की बात का प्रकाशन हुआ था, जिसमें जोगी ने कहा था- मैं अब नये तरह का जीवन जीयूंगा। नया क्या होगा यह बाद में तय होगा। जोगी अपनी इस बात पर शायद ही अमल कर पाए। 2013-14 के समय जोगी ने कहा था- कुछ महीने के लिए मैं राजनीति से दूर जा रहा हूं। ऐसे वक्त में धर्म, अध्यात्म, लेखन एवं दर्शन में डूब जाना चाहता हूं। इस घोषणा के बाद जोगी अपने कुछ समर्थकों के साथ एक शाम अपने बंगले में पद्मश्री भारती बंधु का भजन सुनते नजर आए थे। लेकिन धर्म व अध्यात्म की वह धुन ज्यादा समय टिकी नहीं रह पाई और जोगी को राजनीति में वापस सक्रिय होने में देर नहीं लगी। 2018 के विधानसभा चुनाव से काफी पहले अजीत जोगी ने घोषणा की थी कि वे छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में राजनांदगांव सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से दो-दो हाथ करेंगे। जब नामांकन दाखिल होने की प्रक्रिया शुरु हुई जोगी का मन बदल गया। उन्होंने राजनांदगांव से कदम पीछे खींच लिए, अपनी परंपरागत सीट मरवाही से लड़े और जीते भी।
राजनांदगांव के महापौर रह चुके व विद्याचरण शुक्ल के बेहद करीबी समझे जाने वाले धाकड़ नेता विजय पांडे ने कभी जोगी से कहा था कि साहब अगर आप अपनी राजनीतिक शैली में परिवर्तन ले आएं तो छत्तीसगढ़ में 20 से 25 साल आपको राज करने से कोई रोक नहीं पाएगा। प्रश्न यह हो सकता है कि क्या जोगी ने कभी अपनी राजनीतिक शैली में बदलाव लाने की कोशिश की थी। इसका जवाब शायद यही सामने आए ‘नहीं’। जब कभी छत्तीसगढ़ के राजनीतिक इतिहास के पन्ने पलटे जाएंगे छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी से जुड़े कई प्रसंग अवश्य याद किए जाएंगे। बिरले शासक व प्रशासक वाला उनका चेहरा जरूर आंखों के सामने घूमेगा।