■ अनिरुद्ध दुबे
ठीक जन्माष्टमी पर्व के दिन कृष्ण कुंज के नाम पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हिंदुत्व का एक और बड़ा कार्ड खेलकर भाजपा को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। अब तक बारम्बार राम और कृष्ण की बात भाजपा की तरफ से ही हुआ करती थी। भूपेश सरकार ने भाजपा के हिंदुत्व की एजेंडे की काट ढूंढ़ते हुए पहला काम राम वन गमन परिपथ का किया। उसके बाद चंदखुरी में प्राचीन कौशल्या माता के मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण करवाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि राम जितने तुम्हारे हैं उससे ज़्यादा हमारे हैं। भाजपा की ओर से मथुरा व काशी की बात समय-समय पर होती रही है। मानो इसके जवाब में भूपेश सरकार ने कृष्ण कुंज योजना लाकर श्रीकृष्ण से गहरा नाता जोड़ लिया है। कृष्ण कुंज के लिए इस समय प्रदेश में 162 स्थल चिन्हित किए जा चुके हैं। कृष्ण कुंज के शिलान्यास के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सीधे रायपुर प्रेस क्लब के कार्यक्रम में पहुंचे थे। वहां उन्होंने शब्दों के तीर चलाते हुए कहा कि “सवाल दो तरह के होते हैं। एक स्वतः उठते हैं और दूसरे करवाए जाते हैं!“ करवाए जाते हैं कहने के पीछे इशारा किसकी तरफ था यह वहां बैठे अधिकतर लोगों के समझ में आ चुका था। फिर मुख्यमंत्री ने गीता उपदेश का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि “महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कितने ही सवाल किए थे। श्रीकृष्ण ने अर्जुन की हर जिज्ञासा का समाधान किया। इसलिए सवाल होते रहना ज़रूरी है।“
नहीं होंगी शराब दुकानें
राजधानी रायपुर के तेलीबांधा क्षेत्र में कृष्ण कुंज योजना के लोकार्पण के तूरंत बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि यहां पास में जो सरकारी शराब दुकान है उसे कहीं और स्थानांतरित किया जाए। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि न सिर्फ राजधानी रायपुर अपितु प्रदेश में जहां कहीं भी कृष्ण कुंज खुल रहे हों वहां आसपास शराब की दुकानें न हों। मुख्यमंत्री के इस तड़-फड़ वाले अंदाज़ ने विपक्ष से जुड़े धीर-गंभीर लोगों को सोच में डाल दिया है। भले ही वे इसे ज़ाहिर न होने दे रहे हैं। पिछली बार जब भाजपा की सरकार थी धार्मिक स्थलों के आसपास से शराब दुकानें हटवाने के लिए विधायकों को विधानसभा में प्रश्न तक लगाने पड़ जाते थे, तब भी कोई सुनवाई नहीं होती थी। पिछली सरकार के समय कोटा की कांग्रेस विधायक श्रीमती रेणु जोगी ने रतनपुर के महामाया मंदिर के पास से शराब दुकान को हटाने को लेकर विधानसभा में आवाज़ उठाई थी, जिस पर सदन में मौजूद तत्कालीन आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल ख़ामोश रहे थे।
भाजपा में छोटे से लेकर
बड़े तक की बैटरी चार्ज
जिस बात के आसार नज़र आ रहे थे वही हुआ। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के साथ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष भी बदल गए। नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी धरमलाल कौशिक से लेकर नारायण चंदेल को दे दी गई। भाजपा प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी को नये नेता प्रतिपक्ष का ऐलान करने में घंटे नहीं बल्कि कुछ मिनट लगे। इससे साफ हो गया है कि भाजपा के छत्तीसगढ़ से जुड़े जो भी फैसले हैं वह अब यहां नहीं सीधे दिल्ली से हो रहे हैं। चाहे अरुण साव को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने का मामला हो या फिर चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने का। इन दो बड़े परिवर्तनों के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा के दूसरी व तीसरी पंक्ति के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं की बैटरी तेजी से चार्ज होती दिखाई देने लगी है। परिवर्तन से ऐसा जोश आया कि भाजपा कार्यालय के भीतर बड़े से बड़े नेता तक नारे लगाते दिखे। नारायण चंदेल के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं के भीतर जोश भरने पूर्व मंत्री एवं वर्तमान विधायक अजय चंद्राकर ने नारा लगाया “तख़्त बदल दो ताज़ बदल दो बेइमानों का राज बदल दो।“ चंद्राकर के इस नारे का इशारा किसकी तरफ था यह समझने की कोशिश में पार्टी के बहुत से लोग लगे हुए हैं।
पुराने तेवर में
आए बृजमोहन
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को अब जैसा कि सवा साल का समय ही बचा है वक़्त की नज़ाकत को देखते भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल जैसे सीनियर लीडर मानो पूरी ताकत के साथ मैदान में जुट गए हैं। 1 से 15 अगस्त के बीच आज़ादी का अमृत महोत्सव पखवाड़ा जो चला बृजमोहन शायद ही कोई पल चैन से बैठे नज़र आए हों। आख़िर चैन से बैठ भी कैसे पाते मंडल व बूथ स्तर पर तिंरगा झंडा पहुंचाने की ज़िम्मेदारी जो उनके पास थी। अमृत महोत्सव के प्रचार प्रसार में वे रायपुर के बूढ़ातालाब से लेकर गंगरेल बांध तक की यात्रा कर लिए। फिर लगा कि इतने से काम नहीं चलेगा तो धमतरी के पास स्थित कंडेल पहुंच गए। ये वही जगह है जिसे कंडेल सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है और यहां महात्मा गांधी आए थे। अमृत महोत्सव के नाम पर बृजमोहन रायपुर की बस्तियों में तो घूमे ही समय निकालकर भाटापारा व बिलासपुर भी पहुंच गए। पूरे जोर-शोर के साथ अमृत महोत्सव मनाने तिरंगे झंडे बृजमोहन के बंगले से होते हुए कोने-कोने तक पहुंचे। इससे अलग हटकर कुछ सोचें तो बात चाहे नये प्रदेश भाजपा अध्यक्ष चुनने की चली हो या फिर विधानसभा के नये नेता प्रतिपक्ष चुने जाने की, इन दोनों अवसरों पर इस सीनियर लीडर ने ज़्यादा कोई उत्साह नहीं दिखाया। एकात्म परिसर से गहरा वास्ता रखने वाले यही बता रहे हैं कि दरअसल नेताजी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव संचालन समिति के मुख्य पद की ज़िम्मेदारी चाह रहे हैं।
मेहमान कलाकार बनकर
नहीं रहना चाहते महापौर
इसी महीने के आख़री में राजधानी रायपुर में महापौरों का राष्ट्रीय सम्मेलन होने जा रहा है। सम्मेलन में रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर कोई छोटे-मोटे नहीं बल्कि बड़े-बड़े अधिकारों की बात उठाने वाले हैं, जिसे वे खुले रूप में ज़ाहिर भी करते नज़र आ रहे हैं। एजाज़ का कहना है कि सम्मेलन में वे इस बात को खुलकर कहेंगे कि “स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में मेयर की भूमिका किसी फ़िल्म के मेहमान कलाकार की तरह नहीं रहे, बल्कि लीड रोल रहे। मेयर को निगम कमिश्नर का सीआर लिखने का अधिकार हो। जिस तरह सांसदों व विधायकों के लिए पेंशन का प्रावधान है उसी तरह महापौरों के लिए भी हो।“ ढेबर का कहना है कि “क्या महापौर किसी सांसद या विधायक से कम काम करते हैं!”
आर.डी.ए. की नज़र
अब नये रायपुर पर
रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) में बैठे पदाधिकारी अब कुछ नया करना चाह रहे, लेकिन नियम हैं कि आड़े आ रहे हैं। पुराने रायपुर में सरकारी ज़मीनें तो अब ज़्यादा बची नहीं इसलिए आरडीए अब अपनी सीमाएं नया रायपुर की तरफ बढ़ाना चाह रहा है। अंदर की ख़बर रखने वालों के मुताबिक आरडीए के पदाधिकारी नई ज़मीनों की ज़रूरत को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने रख चुके हैं। मुख्यमंत्री नया रायपुर में 200 एकड़ ज़मीन देने तैयार भी हो गए हैं लेकिन टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के अफ़सरों का कहना है कि इसमें तकनीकी बाधाएं हैं। नया रायपुर के विकास के लिए पहले से ही नया रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) बना हुआ है। यदि आरडीए नया रायपुर में काम करने जाए तो एक्ट में परिवर्तन करना पड़ेगा।