■ अनिरुद्ध दुबे
पूर्ण शराब बंदी का वादा पूरा नहीं होने समेत अन्य मुद्दों को लेकर भाजपा महिला मोर्चा की न्यायाधानी बिलासपुर में विशाल रैली और सभा हुई। रैली व सभा में शामिल होने विशेष रूप से केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बिलासपुर पहुंचीं थीं। इधर, कांग्रेस ने भी ज़वाबी हमले के लिए अपनी राज्यसभा सदस्य रंजीत रंजन को बुलवा लिया। रंजीत रंजन को ठीक हुंकार रैली के समय बुलवाकर कांग्रेस ने एक नहीं तीन काम साधे। पहला तो रंजीत रंजन ने रायपुर में कदम रखते ही स्मृति ईरानी के ऊपर जमकर जुबानी हमला किया। फिर वे बस्तर के लिए रवाना हो गईं। बस्तर के भानुप्रतापपुर में विधानसभा का उप चुनाव होना है। ऐसे समय में रंजीत रंजन का बस्तर में कदम पड़ना चर्चा में रहा। इसके अलावा लोग यह कहते हुए उंगली उठाने से पीछे नहीं रहते थे कि कांग्रेस जिन बाहरी लोगों को छत्तीसगढ़ के कोटे से राज्यसभा भेजती है वे यहां झांकने तक नहीं आते। इस पर के.टी. तुलसी का उदाहरण प्रमुखता से दिया जाता रहा था। दो से तीन दिन छत्तीसगढ़ में रहते हुए रंजीत रंजन ने यह मैसेज देने की कोशिश की कि उनका छत्तीसगढ़ से जीवंत संपर्क बने रहेगा। साथ ही वह यह कहते हुए यहां से गईं कि आने वाले समय में बस्तर ही नहीं पूरा छत्तीसगढ़ घूमकर देखेंगी।
विशेष या शीत सत्र
छत्तीसगढ़ विधानसभा का 1 एवं 2 दिसंबर को जो सत्र होने जा रहा है उसने भारी जिज्ञासा पैदा कर दी है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के सचिव दिनेश शर्मा की ओर से जो सूचना जारी हुई है उसमें लिखा है- छत्तीसगढ़ की पंचम विधानसभा का पंद्रहवां सत्र 1 दिसंबर से प्रारंभ होकर 2 दिसंबर तक रहेगा। इस सत्र में कुल 2 बैठकें होंगी। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आदिवासी आरक्षण के मुद्दे पर विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध करते हुए विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत को पत्र लिखा था। विधानसभा से जो सूचना जारी हुई है उसमें कहीं पर नहीं लिखा है कि दो दिन का यह सत्र विशेष सत्र होगा या शीतकालीन सत्र। ज्ञात रहे कि विधानसभा का शीतकालीन सत्र दिसंबर माह में ही होते आया है। लोग यह जानने की कोशिश में लगे हैं कि इस दो दिवसीय सत्र को विशेष सत्र माना जाए या फिर शीत सत्र। यदि यह विशेष सत्र है तो क्या शीत सत्र इसी महीने के आख़री में होगा? या फिर इसी सत्र का दो या तीन दिन और विस्तार करते हुए इसे ही शीत सत्र का रूप दे दिया जाएगा?
महासमुन्द के
अनमोल रत्न
2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन क्या हुआ महासमुन्द छाया हुआ है। राजनीति के गलियारे में हास परिहास के क्षणों में कुछ लोग यह कहने नहीं चुकते कि महासमुन्द अनमोल रत्नों की खान है। राजनीति हो या प्रशासन या फिर मनोरंजन का क्षेत्र, महासमुन्द ने कई नगीने दिए हैं, उदाहरणार्थ- सूर्यकांत तिवारी (व्यापारी और नेता), अमरजीत चावला (नेता), चंद्रशेखर शुक्ला (नेता), पुलक भट्टाचार्य (अधिकारी), अजातशत्रु (पुलिस अधिकारी), अशोक मालू (डूप्लीकेट अमिताभ बच्चन) और उचित…
प्रतिक्रिया सांसद से पहले
भाजपा पार्षदों की आनी थी
राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड तिराहा के ठीक पहले तेलीबांधा में रोड डिवाइडर के सौंदर्यीकरण को लेकर खड़े हुए बवाल की चर्चा न सिर्फ़ शहर बल्कि पूरे प्रदेश में है। बताते हैं टेंडर जारी होने से पहले ही क़रीब 80 प्रतिशत काम हो चुका था। 2 करोड़ के आसपास का ठेका था। ऑन लाइन से बचने के लिए 12 अलग-अलग टेंडर जारी हुए, जो किसी एक ही आदमी के लिए रखे गए थे। जब इसका ख़ुलासा हुआ तो सबसे पहले सांसद सुनील सोनी का नगर निगम के खिलाफ़ बयान आया। फिर भाजपा के भीतर ही गहन चिंतन करते रहने वालों ने सवाल उठाया कि ये क्या बात हुई, बिना टेंडर दो करोड़ के इस काम पर पहली प्रतिक्रिया तो हमारी पार्टी के पार्षदों की तरफ से आनी थी लेकिन आई सांसद की। फिर अचानक भाजपा पार्षदों की चेतना जगी और उन्होंने निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी के कक्ष में जाकर धावा बोल दिया। कक्ष में क्या हुआ इसे जानने समझने के लिए उस पूरे घटनाक्रम का वीडियो काफ़ी है, जो जमकर वायरल हुआ है।
पहले भी होते रहा निगम
कमिश्नर व जन
प्रतिनिधियों के बीच टकराव
रायपुर नगर निगम के इतिहास को देखें तो आईएएस मयंक चतुर्वेदी चौथे निगम कमिश्नर रहे जिन्हें निगम के नेताओं ने निशाने पर लेने की कोशिश की। रायपुर नगर निगम में पार्षदों के चुनकर आने की परंपरा शुरु होने के बाद विवेक देवांगन पहले आईएएस अफ़सर थे जो यहां कमिश्नर बनकर आए थे। देवांगन से पहले राज्य प्रशासनिक सेवा के अफ़सर ही कमिश्नर बनते रहे थे। सन् 2000 की बात थी। उस ज़माने के रायपुर के एक प्रतिष्ठित सांध्य अख़बार ‘हाइवे चैनल’ में विवेक देवांगन का काफ़ी बड़ा इंटरव्यू प्रकाशित हुआ था। इंटरव्यू का शीर्षक था “महापौर एवं मेरे रास्ते भले ही अलग हों लेकिन मंज़िल एक।“ देवांगन ने यह लाइन कोई ग़लत भाव से नहीं कही थी, लेकिन तत्कालीन महापौर तरुण चटर्जी को यह नागवार गुज़री और उन्होंने बिना देर किये मेयर इन कौंसिल की बैठक बुलाई। उस बैठक में तरूण चटर्जी और उनके दो क़रीबी एमआईसी सदस्यों ने देवांगन पर जमकर भड़कते हुए कहा कि “आपने इंटरव्यू में ऐसा कहा तो क्यों कहा?” देवांगन की पहचान सरल एवं सौम्य अफ़सर के रूप में रही है। महापौर एवं एमआईसी सदस्यों के ऐसे अनुचित व्यवहार में भी देवांगन धैर्य का परिचय देते हुए शांत बने रहे और उनके चेहरे पर मुस्कराहट बनी रही। सुनील सोनी जब महापौर थे उनके कार्यकाल में कुछ समय आईएएस अमित कटारिया निगम कमिश्नर रहे। तब कटारिया ने कोई ऐसा डिसीजन ले लिया था जो सुनील सोनी को रास नहीं आया। नेताजी सुभाष स्टेडियम के बाजू में निगम दफ़्तर का एक पार्ट हुआ करता था जहां एमआईसी की बैठक रखी गई थी। बैठक शुरु होते ही सुनील सोनी कटारिया पर बरस पड़े। कटारिया को लगा कि उनके सम्मान पर आघात हो रहा है और वे बिना देर किये चलती बैठक छोड़कर निकल गए। उनके पीछे-पीछे अन्य अधिकारीगण भी निकल गये। इस तरह एमआईसी की वह बैठक हो ही नहीं पाई थी। कांग्रेस नेत्री श्रीमती किरणमयी नायक जब महापौर चुनकर आईं उस समय आईएएस ओ.पी. चौधरी निगम कमिश्नर थे। श्रीमती नायक के पदभार ग्रहण करने के साथ ही उनके और चौधरी के बीच तालमेल बिगड़ना शुरु हो गया जो गंभीर मोड़ पर जा पहुंचा। श्रीमती किरणमयी नायक ने मेयर इन कौंसिल की बैठक बुलाई। बैठक की डेट लाइन सामने आ गई तब संदेश यही पहुंचा कि चौधरी बैठक में नहीं आ रहे। श्रीमती नायक ने जिद्द पकड़ ली कि जब निगम कमिश्नर ही न रहें ऐसी एमआईसी मिटिंग का क्या मतलब। जब तक चौधरी यहां आ कर नहीं बैठते मिटिंग शुरु नहीं होगी। अब सवाल यह था कि चौधरी को मिटिंग तक बंगले से लाए तो लाए कौन। हिम्मत करके यह ज़िम्मेदारी राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने ली। राजस्व विभाग के अधिकारी जब बंगले पहुंचे तो चौधरी ने स्पष्ट कहा कि “मेरे लिए मान सम्मान से बढ़कर दूसरी कोई चीज़ नहीं।“ राजस्व अधिकारी ने वचन दिया कि बैठक के दौरान कोई भी आपत्तिजनक घटनाक्रम सामने आया तो उसका सबसे पहले विरोध करने वाला मैं रहूंगा। तब कहीं जाकर चौधरी एमआईसी की बैठक में शामिल होने पहुंचे। देवांगन, कटारिया व चौधरी पर हमला नगर निगम के सत्ता पक्ष की ओर से होते दिखा था लेकिन हाल ही में निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी वाला जो ताजा घटनाक्रम सामने आया वहां सत्ता पक्ष नहीं बल्कि विपक्षी भाजपा पार्षद दल था।
इंदौर तो घूम आए पर
ज्ञान को उतारेंगे कहां
रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) का प्रतिनिधि मंडल इंदौर का अध्ययन दौरा कर लौट आया। इस दौरे में आरडीए अध्यक्ष सुभाष धुप्पड़ एवं उपाध्यक्ष सूर्यमणि मिश्रा नहीं गए। जाने वालों में आरडीए के ही दूसरे नंबर के उपाध्यक्ष शिव सिंह ठाकुर, संचालक मंडल के सदस्य पप्पू बंजारे, हिरेन्द्र देवांगन, मुकेश साहू, ममता राय एवं दो अधिकारीगण शामिल थे। राजनीतिक हल्कों में लगातार प्रतिक्रिया व्यक्त करते रहने वालों का यही कहना है कि सुभाष धुप्पड़ एवं सूर्यमणि मिश्रा दीर्घ राजनीतिक जीवन में अपने अनुभवों को इतना समृद्ध कर चुके हैं कि अध्ययन दौरा जैसी चीजें अब इनके लिए मायने नहीं रखती। जिन्हें ज्ञान प्राप्ति की ज़रूरत थी वे गए। इस दौरे के साथ यह भी सवाल उठ खड़ा हुआ है कि आरडीए के जन प्रतिनिधियों ने इंदौर जाकर जो सीखा-जाना आख़िर उसे रायपुर में कहां पर उतारेंगे? पहला तो आरडीए कर्ज़ में डूबा हुआ है। अभी तो कमल विहार जैसे प्रोजेक्ट को ही पूरा कर पाना बहुत बड़ी चुनौती है। फिर आरडीए के पदाधिकारियों के पास अब दस महीने से ज़्यादा का समय नहीं है। 2023 में नवंबर महीने में चुनावी आचार संहिता लग चुकी होगी। इस तरह कोई बड़ा काम कर दिखाने का समय बाक़ी ही कहां रहने वाला है।