● कारवां (28 मई 2023)- ‘पानीदार’ होते तो क्या जलाशय का पानी इस तरह बहाते…

■अनिरुद्ध दुबे

पानीदार का एक अर्थ ‘इज़्ज़तदार’ होता है। कांकेर जिले के पखांजूर तहसील के परलकोट जलाशय में खाद्य निरीक्षक राजेश विश्वास के गिरे मोबाइल को ढूंढने के चक्कर में जिस तरह 21 लाख लीटर पानी व्यर्थ बहा उसकी प्रदेश क्या पूरे देश में चर्चा है। डीजल पंप व्दारा लगातार चार दिनों तक जलाशय के पानी को बाहर निकाला जाता रहा। उस पर भी यह निंदनीय काम इस भीषण गर्मी में हुआ है जब छत्तीसगढ़ के कई स्थानों पर भारी जल संकट बना हुआ है। खाद्य निरीक्षक ने मीडिया के सामने यही कहा कि जलाशय को खाली करने के लिए मैंने जल संसाधन विभाग के अनुविभागीय अधिकारी आर.सी. धीवर से मौखिक अनुमति ली थी। बहरहाल पानी की बरबादी में लिप्त रहे खाद्य निरीक्षक को कांकेर कलेक्टर डॉ. प्रियंका शुक्ला ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है और अनुविभागीय अधिकारी जल संसाधन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। हाई प्रोफाइल अंदाज़ में जीने वाले उक्त खाद्य निरीक्षक की सोशल मीडिया में तस्वीर ख़ूब वायरल हुई है। सोशल मीडिया में आम लोगों की तरफ से लगातार यही लिखा जा रहा है कि खाद्य निरीक्षक के खिलाफ़ निलंबन की कार्यवाही कम है। जिस तरह 21 लाख लीटर पानी व्यर्थ बह गया उससे लाखों रुपये आर्थिक दंड वसूला जाना चाहिए, ताकि दूसरों के लिए यह सबक रहे। वहीं कुछ लोगों ने तो इनकी बर्ख़ास्तगी की मांग तक कर डाली है। प्रशासन में बैठे बहुत से लोग अच्छे होते हैं तो कुछ ऐसे भी होते हैं कि जिनसे पूरा तंत्र बदनाम होते नज़र आता है। पिछली सरकार के समय में एक आला अफ़सर व्दारा सरकारी खर्चे से अपने बंगले में बनवा लिया गया स्वीमिंग पुल काफ़ी चर्चा में रहा था। 2008 से 2013 के बीच भाजपा के शासनकाल का जब दूसरा दौर था तब विपक्षी कांग्रेस विधायकों की ओर से विधानसभा में आवाज़ गूंजी थी कि रोगदा बांध का पानी एक उद्योगपति को बेच दिया गया। इस पर विधानसभा की जांच कमेटी भी बनी थी। कुछ ही साल पहले की तो बात है राजधानी रायपुर के तेलीबांधा तालाब (मरीन ड्राइव) से आला अफ़सरों के छत्तीसगढ़ क्लब में ऐसे ही गर्मी के मौसम में पाइप से पानी खींचा जाता रहा था। जब मीडिया में यह मामला उछला तब कहीं तालाब से छत्तीसगढ़ क्लब में अवैध पानी की निकासी बंद हुई थी। सीएम हाउस, छत्तीसगढ़ क्लब एवं तेलीबांधा तालाब सब आसपास ही तो हैं। वो भी समय था जब छत्तीसगढ़ क्लब की हरियाली को जिंदा रखने के लिए तेलीबांधा तालाब से बेहिसाब पानी खिंचा जाता रहा था और ये भी दिन है कि शंकर नगर रोड पर मंत्रियों के बंगले के सामने से होकर दूर-दूर तक अमृत जल मिशन की पाइप लाइन साल भर पहले से बिछाकर जो रख छोड़ी गई है, फिलहाल वो कोई काम नहीं आ रही है। बड़े सरकार की गाड़ी के पहियों का खौफ़ अफ़सरों में ऐसा समाया हुआ है कि छत्तीसगढ़ क्लब के ही आसपास खुदाई करवाने से जल मिशन का काम देख रहे अफ़सर डरे हुए हैं। जानकार लोग बताते हैं जिस दिन थोड़ी सी खुदाई का यह काम हो जाएगा सैकड़ों घरों में अमृत जल मिशन का पानी पहुंच जाएगा। पता नहीं वह दिन कब आएगा?

झीरम रहस्य पर

से नहीं उठा पर्दा

25 मई को झीरम घाटी नरसंहार का दशक पूरा हुआ। 25 मई 2013 की वह शाम भुलाई नहीं जाती जब कांग्रेस नेताओं के काफ़िले पर नक्सली हमला हुआ था। उस समय कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा चल रही थी। 25 मई 2013 की शाम ढलते ही जब ब्रेकिंग न्यूज़ आई तो टीवी पर लगातार यही पट्टी चलती रही थी कि ‘दरभा घाटी’ में कांग्रेस नेताओं के काफ़िले पर नक्सली हमला हुआ। ‘झीरम घाटी’ तो बोलचाल में दूसरे दिन से आई। कभी बहुत से कांग्रेसी यह बात कहते रहे थे कि “यदि हमले वाले उसी वर्ष में हुए विधानसभा चुनाव से पहले नंद कुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल एवं उदय मुदलियार जैसे नेताओं की शहादत की कहानी जन-जन के बीच जाकर सुनाई जाती तो सत्ता परिवर्तन हो सकता था। लेकिन सपनों को खरीदने-बेचने में माहिर रहे एक नेता ने पूरे चुनावी समीकरण को ही अस्त-व्यस्त कर दिया था।“ दिसंबर 2013 में भाजपा तीसरी बार सत्ता में आई। 2014 में भूपेश बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। उसके बाद वे जिन गंभीर मुद्दों पर तत्कालीन भाजपा सरकार पर हमला बोलते रहे थे उसमें एक मुद्दा झीरम घाटी हत्याकांड भी था। बघेल ने झीरम कांड को लेकर तत्कालीन सरकार के लिए नरसंहार करवाने वाली सरकार जैसे कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था। 2018 में सत्ता परिवर्तन हुआ। झीरम घाटी हत्याकांड के बाद भाजपा का साढ़े पांच साल एवं कांग्रेस का साढ़े चार साल निकल चुका, रहस्य पर से पर्दा आज तक नहीं उठ पाया है। दिल को झकझोर कर रख देने वाली इस घटना को लेकर विपक्षी भाजपा एवं सत्ता पक्ष कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर आज भी जारी है।

अरविंद नेताम का

रूख़ किधर…

झीरम घाटी की दसवीं बरसी पर जगदलपुर पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम को लेकर जो बात कही वह गौर करने लायक है। मुख्यमंत्री ने कहा कि “कई पार्टियों में जाने के बाद भी नेताम जी की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए उन्हें पार्टी मे लाया गया था। अब जो उनकी गतिविधियां सामने नज़र आ रही हैं वह कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाली है। यदि किसी को चुनाव लड़ना या लड़वाना है तो राजनीतिक दल बनाएं। क्या कभी सुना है कि कोई समाज मुख्य राजनीति धारा में आकर चुनाव लड़ते रहा हो।“ मुख्यमंत्री ने यह बात बड़ी बेबाकी से कही। उल्लेखनीय है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके अरविंद नेताम इस समय सर्व आदिवासी समाज के साथ आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। नेताम जी कह चुके हैं इसी साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में आदिवासी समाज के प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरेंगे। पूर्व में आरक्षण जैसे बड़े मुद्दे पर जब आदिवासी समाज का आंदोलन हुआ नेताम जी उसकी अगुवाई करते दिखे थे। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासी चेहरे को ध्यान में रखते हुए नेताम जी को कांग्रेस में लाया गया था। 18 के विधानसभा चुनाव के समय में जब राहुल गांधी रायपुर में चुनावी सभा लेने आए तब नेताम जी न सिर्फ़ मंच पर आसीन थे अपितु उन्होंने मंच से जनता को संबोधित भी किया था। 18 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद नेताम जी फिर फ्रंट में नज़र नहीं आए। कांग्रेस से जुड़े लोगों से चर्चा करो तो यही मालूम होता है कि नेताम जी अभी कांग्रेस से अलग नहीं हुए हैं, यह अलग बात है कि आदिवासी समाज से जुड़े रहकर अलग मोर्चा खोले हुए हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के शासनकाल में अपना राजनीतिक सफ़र शुरु करने वाले नेताम जी कांग्रेस के अलावा कभी भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी में रहकर वहां की शोभा बढ़ा चुके हैं।

हाथियों पर तीर

से हमला

छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों एवं मानव के बीच व्दंव्द खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। पिछले क़रीब 20 सालों में हाथियों के उत्पात को रोकने शासन एवं प्रशासन व्दारा क्या-क्या यत्न नहीं किए जाते रहे, लेकिन सब बेकार। कोरबा वन मंडल में आने वाले गांव कोरकामा से हैरान कर देने वाली ख़बर निकलकर सामने आई कि हाथियों को भगाने के लिए ग्रामीण तीर धनूष लेकर हाई टेंशन टावर पर चढ़ गए थे। हाथियों को भगाने उन पर तीर चलाए गए तो कुछ लोगों ने कुल्हाड़ी फेंककर भगाने की कोशिश की। हाथी उस गांव से भागें या न भागें ग्रामीण हाइटेंशन टावर पर चढ़कर ज़रूर अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।

आरडीए…किसमें

कितना है दम

रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) में कार्यरत लोगों की संख्या ढाई सौ के आसपास ही होगी लेकिन यह हमेशा से सुर्खियों में बने रहने वाली संस्था है। कभी यहां मनोनीत जन प्रतिनिधियों के बीच अधिकारों की बात होती है तो कभी इतिहास खंगाला जाता है। कुछ लोग यहां इन दिनों इतिहास खंगालने का ही काम कर रहे हैं। बड़ी कोशिशों के बाद इन लोगों ने इतना ही जाना कि 2003 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद 2004 में आरडीए पुनः अस्तित्व में आया तब यहां सबसे पहले श्याम बैस अध्यक्ष एवं श्रीचंद सुंदरानी उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। बाद में एक और उपाध्यक्ष वर्धमान सुराना नियुक्त किए गए। वह ऐसा दौर रहा जब अध्यक्ष पद काफी पॉवरफुल हुआ करता था। यही नहीं मनोनीत पदाधिकारियों के बीच तालमेल भी गहरा था। अध्यक्ष श्याम बैस ने अधिकारों का विकेन्द्रीकरण कर दिया था। प्रथम उपाध्यक्ष सुंदरानी आर्थिक मसले और व्दितीय उपाध्यक्ष सुराना योजनाएं देखते थे। भाजपा की दूसरी बार सरकार आई तब सुनील सोनी आरडीए अध्यक्ष बने। एक मंत्री ने बड़ी चालाकी से अध्यक्ष का अधिकार आरडीए सीईओ (मुख्य कार्यपालन अधिकारी) के हिस्से में ला दिया। बताते हैं सीईओ आज भी ज़्यादा मज़बूत हैं। हों भी क्यों न, आरडीए सीईओ की ज़िम्मेदारी किसी आईएएस अफ़सर को ही मिलती है। अभी के आरडीए पदाधिकारियों में किसके पास कौन सा काम है यह पता करने का विषय है।

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