कारवां (25 जून 2023)- संस्कृति विभाग का पता अब नया रायपुर

●अनिरुद्ध दुबे

ख़बर है कि सोमवार से संस्कृति विभाग का दफ़्तर नया रायपुर में लगेगा। सेक्टर 27 में हाउसिंग बोर्ड व्दारा बनाई बिल्डिंग में। यानी संस्कृति संचालनालय, संस्कृति परिषद एवं राजभाषा आयोग को एक ही बिल्डिंग में ला दिया गया है। संस्कृति विभाग का सामान तो हफ्ते भर पहले ही नया रायपुर में शिफ्ट होना शुरु हो गया था, काम करने वाले लोग सोमवार से वहां जाना शुरु करेंगे। बताते हैं इस निर्णय से संस्कृति विभाग में कार्यरत कितने ही लोगों में मायूसी है। मायूसी तो रायपुर से बाहर रहने वाले उन कलाकारों में भी है जो अपने काम के सिलसिले में ट्रेन या बस से सफ़र करते हुए रायपुर पहुंचते थे और नगर घड़ी चौक के पास वाले पुराने संस्कृति विभाग के दफ़्तर बड़ी आसानी से पहुंच जाते थे। नया रायपुर में यह आसानी कहां। आम जनता के लिए नया रायपुर का रास्ता तो मानो दुर्गम जैसा है। लंबा खर्च करो तब कहीं नया रायपुर तक पहुंचो। कहने को तो पुराने-नये रायपुर के बीच बस चलती है लेकिन क्या उसका भी कोई ठिकाना है कि कब आ रही है, कब जा रही है। प्रदेश में समृद्ध कलाकार सैकड़ों में होंगे लेकिन निर्धन कलाकार तो हज़ारों में हैं। ज़्यादा समय नहीं हुआ जब पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग को अलग कर दिया गया है। पुरातत्व विभाग का दफ़्तर वहीं पुरानी जगह पर ही रहेगा जहां कि संस्कृति विभाग का हुआ करता था। प्रतिक्रियाएं कुछ इस तरह भी आ रही हैं कि पुरातत्व विभाग से आम जनता का सीधे कोई संपर्क नहीं होता। सीधे संपर्क वाला विभाग तो संस्कृति रहा है। ऐसे में कलाकारों से जुड़े संस्कृति विभाग को नया रायपुर ले जाना कहां से उचित है।

रवि सिन्हा का पहले

से ही लक्ष्य ‘रॉ’ था

छत्तीसगढ़ आईपीएस कैडर रवि सिन्हा खुफिया एजेन्सी ‘रॉ’ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) के मुखिया बनाए गए हैं। आईपीएस बनने के बाद रवि सिन्हा को जब छत्तीसगढ़ कैडर मिला 1993-94 में वे रायपुर में कोतवाली सीएसपी थे। वहीं छत्तीसगढ़ के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) अशोक जुनेजा के पास सिविल लाइन सीएसपी का प्रभार था। अशोक जुनेजा स्वभाव से नरम थे जबकि रवि सिन्हा गरम। जुनेजा छत्तीसगढ़ में ही रहे वहीं सिन्हा सात-आठ महीने छत्तीसगढ़ में बिताने के बाद प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। सिन्हा के साथ काम किए कुछ पुलिस अफ़सर बताते हैं सिन्हा साहब का जितना तेज दिमाग रहा उतनी ही तेज नाक रही। जब वे रायपुर में सीएसपी थे गुढ़ियारी इलाके में पुलिस की टीम ने बड़ी मात्रा में नशीला पदार्थ पकड़ा था। टीम यह समझ नहीं पा रही थी कि आख़िर इस मादक पदार्थ का नाम क्या है। पदार्थ सिन्हा साहब तक पहुंचा। उन्होंने गौर से देखा फिर सूंघा। सूंघते साथ ही कहा- चरस। वह चरस ही निकला। पुराने साथी यह भी बताते हैं कि रायपुर के दौर में ही सिन्हा साहब कहा करते थे कि मेरा टारगेट ‘रॉ’ है और उन्होंने लक्ष्य को पा ही लिया।

प्रशासन-संगठन सिसोदिया

व घोष में से किसके पास

छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस संगठन मानो इन दिनों अबूझ पहेली बना हुआ है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने प्रदेश कांग्रेस महामंत्री प्रशासन एवं संगठन की जिम्मेदारी रवि घोष से लेकर अरुण सिसोदिया को दे दी। कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी कुमारी सैलजा ने मरकाम के फैसले को निरस्त करते हुए नया पत्र जारी किया कि महामंत्री की हैसियत से संगठन एवं प्रशासन का काम पूर्व की भांति रवि घोष ही देखेंगे। इधर, मोहन मरकाम ने सैलजा जी के आदेश को यह कहते हुए मानने से इंकार कर दिया कि पहले समीक्षा होगी उसके बाद ही कोई नया कदम उठाया जा सकेगा। आगामी आदेश तक यही व्यवस्था बनी रहेगी। यानी संगठन और प्रशासन दोनों ही सिसोदिया देखेंगे। आज तारीख़ तक तक रवि घोष ने राजीव भवन में अपना कमरा नहीं छोड़ा था फिर दूसरी तरफ कुछ जानकार लोगों का कहना है कि सिसोदिया ने राजीव भवन आकर अपना दायित्व सम्हाल लिया है। कितने ही कांग्रेसी अभी तक इसी में उलझे हुए हैं कि प्रदेश कांग्रेस महामंत्री प्रशासन एवं संगठन अरुण सिसोदिया हैं या रवि घोष?

भाजपा और पद्मश्री

भाजपा का पद्मश्री से मानो गहरा नाता है। उस पर भी ऐसी हस्तियों से जिन्हें कला, संस्कृति, सिनेमा व साहित्य में पद्मश्री प्राप्त हुई हो। भाजपा का जब शासनकाल था तब सिनेमा से अनुज शर्मा, कला से भारती बंधु तथा श्रीमती ममता चंद्राकर एवं साहित्य से कवि सुरेन्द्र दुबे को पद्मश्री सम्मान मिला। शासकीय नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद पद्मश्री सुरेन्द्र दुबे की बेमेतरा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने की चर्चा होने लगी थी, जो कि चर्चा ही रही। अब विधानसभा चुनाव को जब गिनती के महीने शेष बचे हैं तो पद्मश्री अनुज शर्मा का भाजपा में आ जाना चर्चा में है। हाल ही में केन्द्रीय मंत्री अमित शाह का दुर्ग में सभा को संबोधित करने आना हुआ। सभा स्थल पर जाने से पहले अमित शाह का पद्मश्री पंडवानी गायिका ऊषा बारले के यहां उनसे भेंट करने के लिए जाना भी बड़ी ख़बर बन गई।

फिर सुर्खियों में इंदिरा

प्रियदर्शिनी बैंक घोटाला

रायपुर के न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट की तरफ से इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक घोटाले की फिर से जांच के आदेश हुए हैं। इस तरह घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आ गया। सामने विधानसभा चुनाव है। ऐसे समय में एक बार फिर जब घोटाले वाला मामला उछले तो स्वाभाविक है माहौल तो गरमाना ही है। इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक की शुरुआत काफ़ी गौरवशाली तरीके से हुई थी। बाद में कुछ लोगों की करतूतों के कारण इस पर बदनुमा दाग लग गया। 1996 की बात रही होगी जब अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने राजधानी रायपुर के ऐतिहासिक क्षेत्र सदर बाज़ार-बूढ़ापारा के बीच इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक का उद्घाटन किया था। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नाम पर रखे गए इस बैंक की नींव रखने में कांग्रेस नेत्री लीला पारेख ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दिग्विजय सिंह को इस बैंक का उद्घाटन शाम को करना था लेकिन अति व्यस्त कार्यक्रम रहने के कारण वे रात 11 बजे के आसपास उद्घाटन करने पहुंचे थे। दिग्विजय सिंह ने अपने भाषण में लीला पारेख के प्रयासों की काफ़ी सराहना की थी। इसमें कोई दो मत नहीं कि एक अच्छे उद्देश्य को लेकर यह बैंक खोला गया था। मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग एवं ग़रीब तबके के लोग इस बैंक की तरफ सबसे ज़्यादा आकर्षित हुए थे। विशेषकर नेहरु नगर तथा टिकरापारा में निवासरत् कितनी ही काम वाली बाइयों के खाते इस बैंक में थे। इसलिए कि इन बाइयों का कार्य क्षेत्र बूढ़ापारा, सदर बाज़ार, गोल बाज़ार सत्ती बाज़ार एवं नयापारा होता था। जब इन्हें मेहनताना मिलता तो कुछ पैसा इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक में जमा कर दिया करतीं। जब इंदिरा प्रियदर्शनी बैंक के दिवालिया हो जाने की ख़बर सामने आई तो सबसे बड़ा सदमा इन बाइयों को ही लगा था, जिन्होंने समय-समय पर वहां पचास- सौ रुपये जैसी छोटी रकम जमा करते हुए कुछ सपने देख रखे थे। बैंक के दिवालिया होने की ख़बर से सपने तो ढहे ही आंखों से न जाने कितनी बार आंसू छलके। तत्कालीन भाजपा सरकार की पहल के बाद जिनकी बैंक में कम जमा राशि थी वह राशि उन्हें मिल तो गई लेकिन उस राशि को पाने के  लिए जो लंबा संघर्ष चला वह भुलाया नहीं जा सकता।

रजत बंसल का

संस्कृति सचिव बनना

छत्तीसगढ़ आईएएस एसोसिएशन का पुर्नगठन हुआ। मनोज कुमार पिंगुआ पुनः आईएएस एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए। ख़ास बात यह कि रजत बंसल एसोसिएशन के संस्कृति सचिव बनाए गए हैं। चर्चा यही है कि सही जगह पर सही व्यक्ति रजत बंसल को बिठाया गया है। वैसे भी बंसल कला, संस्कृति, पुरातत्व तथा पर्यटन प्रेमी रहे हैं। बंसल का इन सारी चीजों के प्रति प्रेम तब जमकर नज़र आया था जब वे जगदलपुर कलेक्टर थे। उनके कलेक्टर रहते में जगदलपुर में ‘बादल’ नाम की संस्था गठित हुई। ‘बादल’ में जहां साहित्य का प्रचुर मात्रा में संकलन है वहीं गीत, संगीत एवं नृत्य का प्रशिक्षण भी है। ‘बादल’ को इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से मान्यता भी मिली हुई है। ‘बादल’ के अलावा उन्होंने नवोदय ग्रुप की स्थापना की जहां प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग की व्यवस्था आज भी है। बंसल ने जगदलपुर में पर्यटन समिति का गठन करते हुए वहां के ऐतिहासिक स्थलों को सजाने संवारने का काम किया, जिसमें दलपत सागर के जीर्णोद्धार की मिसाल ख़ास तौर पर दी जाती है। हालांकि कोरोना काल के समय में धमतरी कलेक्टर रहते हुए में बंसल ने मॉक ड्रिल के नाम पर एक एम्बुलेंस धमतरी से रायपुर तक जो दौड़वा दी थी वह प्रयोग ज़रूर लोगों को खटका था। इसके अलावा रायपुर नगर निगम कमिश्नर रहते हुए में बंसल ने कड़ा परिश्रम कर रिजल्ट देने वाले अफ़सर के रूप में जो छवि बनाई थी उसे लोग अक्सर याद करते हैं।

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