● कारवां (6 अगस्त 2023)- सियान, अभिमान और बैस का ‘स्वाभिमान’

■ अनिरुद्ध दुबे

राजधानी रायपुर में महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस का जन्म दिन गरिमामय समारोह में मना। समारोह को ‘हमर सियान हमर अभिमान’ नाम दिया गया था। आयोजन समिति के प्रमुख थे पद्मश्री डॉ. अरुण दाबके। मंच पर धर्म गुरुओं के लिए विशेष स्थान था। रावतपुरा सरकार, शदाणी दरबार के संत युधिष्ठिर लाल, कबीर पंथ के भानुप्रताप मुनि, सतनामी समाज के गुरु बालदास एवं गोदड़ीवाला धाम की माता मीरा देवी मंच पर आसीन थीं। एक मंच अतिथियों का था तो दूसरी तरफ़ कलाकारों का। कलाकारों वाले मंच से गायिका आरू साहू एवं जोशी बहनों ने प्रस्तुति दी। रमेश बैस जब कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे उनके राजनीतिक सफ़र पर केन्द्रित बिना संवादों वाली एक छोटी सी फ़िल्म का प्रदर्शन हुआ। फ़िल्म में कट टू कट जो तस्वीरें दिखाई गईं वो भारत के पहले विश्व कप क्रिकेट जीत पर बनी फ़िल्म ‘83’ के इस गाने के साथ सामने से गुजरती चली गईं, “लहरा दो लहरा दो सरकशी का परचम लहरा दो… गर्दिश में भी अपनी सरज़मीं का परचम लहरा दो…।” देखा जाए तो इस गीत के बोल में गहरा संदेश छिपा था। बैस के जब बोलने की बारी आई वो भावुक हो गए। छत्तीसगढ़ी में अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि “मैं तो गांव में खेती किसानी करता था। मेरा सौभाग्य है कि पार्टी ने मुझ पर भरोसा जताते हुए सबसे पहले पार्षद, फिर विधायक एवं उसके बाद सांसद की टिकट दी। इस तरह क़रीब 40 साल की सतत् यात्रा है।“ बैस ने स्वाभिमानी अंदाज़ में कहा कि “राजनीति को काजल की कोठरी कहा जाता है। राजनीतिक जीवन में किसी भी तरह का दाग मैंने अपने ऊपर नहीं लगने दिया।“ दोपहर से शाम तक इंडोर स्टेडियम में बैस को बधाई देने राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, सामाजिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े लोगों का तांता लगा रहा। देखा जाए तो चार महीने के भीतर बैस दूसरी बार किसी बड़े प्रोग्राम में शिरकत करने छत्तीसगढ़ आए। इससे पहले वे रायपुर के क़रीब स्थित चंदखुरी गांव में प्राचीन राम मंदिर के जीर्णोद्धार के पश्चात् प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए थे। चंदखुरी बैस का गांव है। दूर तक दिमाग दौड़ाते रहने वाले लोग इंडोर स्टेडियम वाले इस आयोजन को दूसरे नज़रिये से भी देख रहे हैं। इन दूरदर्शी लोगों का मानना है कि निश्चित रूप से बैस जी अलग-अलग प्रदेशों त्रिपुरा, झारखंड एवं महाराष्ट्र में राज्यपाल रहते हुए तीन वर्ष से अधिक का समय दे चुके हैं, लेकिन अपनी कर्म भूमि में बड़ा काम करते रहने की किसकी इच्छा नहीं होती। कुछ तो करने को ऐसा बचा होगा कि बैस जी को अपनी कर्म भूमि बार-बार याद आ रही है और उनके समर्थक भी नवंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में उन्हें एक अलग ही भूमिका में देखना चाह रहे हैं।

यात्रीगण कृपया ध्यान

दें… एयरपोर्ट की तरह

खूबसूरत होंगे स्टेशन

देश भर में इन दिनों ट्रेनें घंटों लेट चल रही हैं। न छूटने का टाइम पता रहता है न पहुंचने का। बरसों से सुनते तो यही आए हैं ट्रेन राष्ट्र की पहचान है। ट्रेन में मिनी भारत बसता है। दिल्ली से एक अच्छी ख़बर आई है कि रायपुर समेत छत्तीसगढ़ के सात रेल्वे स्टेशन एयरपोर्ट की तरह टीपटॉप बनेंगे। अन्य स्टेशनों में भिलाई पॉवर हाउस, दुर्ग, बिलासपुर, महासमुन्द, तिल्दा नेवरा एवं अकलतरा स्टेशन शामिल हैं। टेक्नालॉजी का युग है। एयरपोर्ट की तरह बनने के बाद ये स्टेशन कैसे लगेंगे वाली ड्राइंग भी धांय-धांय लोगों तक पहुंच गई। रायपुर के राजधानी होने के कारण उसकी बात कुछ और ही हो जाती है। राज्य बनने से पहले रायपुर स्टेशन काफी दीन-हीन स्थिति में था। प्लेटफार्म तीन या चार की ओर जाने के लिए एक ही संकरा फुट ओव्हर ब्रिज हुआ करता था। तब शहर छोटा था इसलिए लोकल-पैसेंजर को छोड़ दें तो एक्सप्रेस ट्रेनों के रुकने की टाइमिंग कम ही हुआ करती थी। एक्सप्रेस गाड़ियों के आने-जाने के समय काफ़ी मारामारी हो जाती थी। यात्रा से लौटने वाले और ट्रेन पकड़ने वाले दोनों ही तरफ की भीड़ का उस एकमात्र फुट ओव्हर ब्रिज पर काफ़ी दबाव हुआ करता था। कई बार तो ऐसा भी होता था कि भोपाल जाने के लिए निकले मध्यप्रदेश सरकार के तत्कालीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल फूट ओवर ब्रिज में चल ही रहे होते थे कि ट्रेन छूट जाया करती थी। फिर वो बाई रोड नागपुर या किसी अन्य स्थान पर पहुंचकर ट्रेन पकड़ा करते थे। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना केन्द्र सरकार में नितीश कुमार रेल मंत्री थे। नितीश कुमार की मेहरबानी हुई और उन्होंने रायपुर स्टेशन को नये लंबे-चौड़े फुट ओवर ब्रिज की सौगात दी। उसका लोकार्पण नितीश कुमार के हाथों ही हुआ था जो इन दिनों विपक्षी पार्टियों के ‘मिशन इंडिया’ की अगुवाई कर रहे हैं। उसके बाद से रायपुर स्टेशन का कायापलट होना जो शुरु हुआ वह क्रम आज भी जारी है।

गेड़ी को क्यों योग्यता

से जोड़कर देखा जाना

विधानसभा चुनाव तारीख की घोषणा को कुछ ही हफ़्ते बचे हैं। कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ही तरफ से भरपूर ताकत लगनी शुरु हो गई है। रायपुर शहर कांग्रेस व्दारा निकाली गई रायपुर प्रगति यात्रा पिछले दिनों रायपुर दक्षिण विधानसभा में घूमी। रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट जब अस्तित्व में आई तब से अब तक तीन विधानसभा चुनाव हुए और तीनों ही चुनाव में भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल जीते। इससे पहले बृजमोहन रायपुर शहर सीट से चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे थे। वे सात बार के विधायक हैं। कांग्रेस इस बार भी सोच में पड़ी हुई है कि बृजमोहन के किले को कैसे भेदा जाए! रायपुर दक्षिण की प्रगति यात्रा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि “हमारे ही कारण भाजपाई अब गेड़ी चढ़ने लगे हैं। यहां के विधायक तो दो लोगों का सहारा लेकर भी गेड़ी नहीं चढ़ पाए।“ मुख्यमंत्री के इस कथन को लेकर चैनलों में डिबेट हो गए। अख़बारों की हेड लाइन तक बन गई। राजनीतिक जगत पर पैनी नज़र रखने वाले एक विव्दान का मत था कि “किसी का आंकलन गेड़ी चढ़ पाने या नहीं चढ़ पाने से क्यों होना चाहिए! इसी देश में देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने जो न हिन्दी लिख पाते थे और न पढ़ पाते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद देवगौड़ा थोड़ी बहुत हिन्दी बोलना ज़रूर सीख गए थे। छत्तीसगढ़ की ही बात करें, कवासी लखमा जो कि न लिख सकते हैं न पढ़ सकते हैं लेकिन आज वे प्रदेश सरकार के आबकारी मंत्री हैं। देवगौड़ा प्रधानमंत्री और लखमा आबकारी मंत्री बने तो अपनी विशेष योग्यता के आधार पर बने। फिर ऐसे में गेड़ी को राजनीतिक योग्यता से जोड़कर क्यों देखा जाना…”

एक और ओपी भाजपा में

पांच साल बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा को एक और ओपी मिल गए, डॉ. ओम प्रकाश देवांगन। पांच साल पहले जो मिले थे वो ओ.पी. चौधरी थे। पहले ओपी आईएएस जैसी नौकरी छोड़कर भाजपा प्रवेश किए थे। दूसरे ओपी ने हाल ही में भाजपा राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी ओम माथुर के सामने भाजपा प्रवेश किया। ओम प्रकाश देवांगन पूर्व में राजधानी रायपुर से सटकर लगे बीरगांव नगर पालिका (अब नगर निगम) के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे कांग्रेस की टिकट पर दो बार पालिका अध्यक्ष चुनाव जीते थे। जब वे पालिका अध्यक्ष थे प्रदेश में भाजपा की सरकार थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने गरीबों को दो रुपये किलो चावल देने की घोषणा की थी। देवांगन उनसे एक कदम और आगे जाते हुए बीरगांव क्षेत्र में रहने वाले गरीबों को एक रुपये किलो में चावल देने की घोषणा कर गए थे। राज्य शासन ने उनके इस निर्णय पर जब रोक लगा दी तो वे आंदोलन कर गए थे जिसमें उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी। डॉ. देवांगन कभी पूर्व मंत्री एवं रायपुर ग्रामीण विधायक सत्यनारायण शर्मा के बेहद क़रीबी कहलाते थे। आगे दोनों के बीच दूरियां हो गईं। अजीत जोगी ने जब 2017 में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस पार्टी बनाई तो डॉ. देवांगन उसी में चले गए। 2018 में डॉ. देवांगन जोगी कांग्रेस की टिकट पर रायपुर ग्रामीण से विधानसभा चुनाव लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी सत्यनारायण शर्मा से हारे। अजीत जोगी के निधन के बाद यह साफ दिखने लगा था कि डॉ. देवांगन का जोगी कांग्रेस से मोह भंग हो चुका है। उन्होंने निर्णय लेने में थोड़ा लंबा वक़्त लिया और आज भाजपा में हैं। डॉ. देवांगन बारी-बारी से कांग्रेस, जोगी कांग्रेस और अब भाजपा तीन पार्टियों का अनुभव रखने वाले नेताओं की लिस्ट में शामिल होने जा रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि पूर्व में जोगी कांग्रेस से ही विधायक रहे धर्मजीत सिंह एवं प्रमोद शर्मा के भाजपा प्रवेश को अब ज़्यादा दिन दूर नहीं। ये दोनों विधायक हाल ही में रायपुर में हुए महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस के जन्म दिन समारोह में नज़र आए थे।

‘ओम’ का प्रभाव

छत्तीसगढ़ भाजपा में इस समय ‘ओम’ का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय स्तर के नेता ओम प्रकाश माथुर, प्रदेश स्तर के नेता ओम प्रकाश चौधरी एवं शहर स्तर के नेता डॉ. ओम प्रकाश देवांगन।

होलसेल कॉरीडोर

8 हज़ार कतार में

नया रायपुर में 1 हज़ार एकड़ क्षेत्र में होलसेल कॉरिडोर बनाने की योजना पर रंग चढ़ते दिख रहा है। इस योजना पर विश्वसनीयता की मुहर इसलिए लगने जा रही है कि जहां पर कॉरीडोर बनना है उस जगह का लैंड यूज़ चेंज हो चुका है।  होलसेल कॉरिडोर में स्थान पाने छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स के पास लगभग 8 हज़ार आवेदन आ चुके हैं। इन आवेदनों की जांच करने चेम्बर ने पात्रता प्रमाणन समिति का गठन किया है। चेम्बर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष अमर पारवानी लगातार यह कहते नज़र आ रहे हैं कि “चूंकि छत्तीसगढ़ सात राज्यों की सीमाओं से लगा है, अतः नया रायपुर में दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा बाज़ार बनने की पूरी संभावनाएं हैं। पुराने रायपुर में व्यावसायिक योजनाओं की कमी नहीं लेकिन जगह-जगह पार्किंग की जो समस्या है उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ऐसे में नया रायपुर की तरफ संभावनाएं तलाशना ही बेहतर है।“

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