■ अनिरुद्ध दुबे
माना जा रहा है कि कांग्रेस एवं भाजपा दोनों के ही चुनावी घोषणा पत्र में किसानों से बड़े वादे किए जाएंगे। घोषणा पत्र बनाने की ज़िम्मेदारी भाजपा ने विजय बघेल एवं कांग्रेस ने मोहम्मद अकबर को कुछ सोचकर ही दी है। पिछले चुनाव में कांग्रेस 68 सीटों वाले चमत्कारिक बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। उसके पीछे एक बड़ा कारण किसानों की कर्ज़ माफी का वादा माना गया था। कांग्रेस ने काफ़ी सोच विचार के बाद इस बार बड़ा निर्णय लेते हुए घोषणा पत्र बनाने की ज़िम्मा वन मंत्री मोहम्मद अकबर को सौंपा है। अल्पभाषी अकबर के बारे में ज़्यादातर लोग यही जानते हैं कि नियम कानून की उन्हें गहरी समझ है और उनका संसदीय ज्ञान तगड़ा है। ये बात कम लोग जानते हैं कि कृषि एवं किसान से जुड़े मुद्दों की भी उन्हें गहरी समझ है। यहां बता दें कि सक्रिय राजनीति में आने के बाद शुरुआती दौर में मोहम्मद अकबर लंबे समय तक रायपुर कृषि उपज मंडी के अध्यक्ष रहे थे। यही वह दौर था जब उन्होंने किसानों से जुड़े पहलुओं को काफ़ी बारीकी से समझा था। अब बात करें भाजपा की घोषणा पत्र समिति के संयोजक विजय बघेल की तो उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि ही खेती किसानी रही है। भाजपा ने प्रत्याशियों की जारी पहली सूची में ही विजय बघेल को पाटन से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ़ उम्मीदवार घोषित कर दिया है। ये भी कहा जा सकता है कि पाटन में इस बार मुक़ाबला खेती-किसानी के दो विशेषज्ञों के बीच होने जा रहा है।
भाकपा से गठबंधन कर
सकते हैं अरविंद नेताम
बस्तर में सर्व आदिवासी समाज के नेता अरविंद नेताम एवं भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेताओं के बीच लगातार बातचीत का दौर जारी है। बातचीत सार्थक रही तो सर्व आदिवासी समाज एवं भाकपा के बीच बस्तर की विधानसभा सीटों को लेकर बंटवारा भी हो सकता है। पूर्व भाकपा विधायक मनीष कुंजाम ने तो हाल ही में कुछ ऐसे ही संकेत दिए हैं। मनीष कुंजाम पिछला चुनाव कोंटा विधानसभा क्षेत्र से लड़े थे जहां उन्हें कांग्रेस के कवासी लखमा के हाथों हार मिली थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में जोगी कांग्रेस ने भाकपा से गठबंधन करते हुए बस्तर की दो सीटें कोंटा एवं दंतेवाड़ा भाकपा के लिए छोड़ी थी, जिसमें से एक कुंजाम वाली सीट थी। पिछले चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी मनीष कुंजाम के पक्ष में सभा लेने कोंटा भी गए थे। लेकिन जोगी जैसे करिश्माई नेता भी अपने पुराने चेले लखमा का किला नहीं ढहा पाए। माना यही जा रहा है कि इस बार भी लखमा एवं कुंजाम कोंटा सीट से ही दो-दो हाथ करेंगे।
मंडाविया के बाद
अब सिंह व शर्मा
भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया के बाद अब दो और दिग्गज नेताओं को छत्तीसगढ़ भेजा है। यह कहते हुए कि छत्तीसगढ़ में ज़मीन जो कमजोर हो चुकी है उसे वापस मजबूत करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखना है। वो दो नेता हैं सिद्धार्थ नाथ सिंह एवं के.के. शर्मा। सिद्धार्थ नाथ सिंह पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की दूसरी सुपुत्री के पुत्र हैं। यानी शास्त्री जी के नाती। वर्तमान में वे प्रयागराज से विधायक हैं। पूर्व में उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। मृदुभाषी सिंह यहां पार्टी के लोगों से कह चुके हैं कि जब तक चुनाव प्रचार नहीं थम जाता छत्तीसगढ़ से हिलूंगा नहीं। वहीं के.के. शर्मा पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वे 2003, 2008 एवं 2013 में छत्तीसगढ़ के भाजपा मीडिया विभाग से जुड़े लोगों को ट्रेनिंग देने आए थे। किसी ने चुटकी लेते हुए कहा कि शर्मा साहब 3, 8 एवं 13 में ट्रेनिंग दिए तो छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी। 2018 में ट्रेनिंग देने नहीं आए थे तो पार्टी का डब्बा गोल हो गया। टोटका यही आज़माया जाना चाहिए कि चुनाव तक शर्मा जी को यहां से जाने ही नहीं दिया जाए।
चरणों की धूल
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा के यहां ईडी का छापा अपने आप में बड़ी ख़बर रही। वर्मा बूथ स्तर पर कांग्रेस नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देते रहे हैं। ईडी के छापे के ठीक दूसरे दिन वर्मा पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीडिया से सीधे रूबरू हुए। चूंकि वर्मा सक्रिय राजनीति में आने से पहले बरसों तक मीडिया के क्षेत्र से जुड़े रहे थे अतः प्रेस कॉन्फ्रेंस में सधी हुई भाषा में अपनी बात रखे। “अन्यान्य कारणों से” जैसी लाइन का प्रयोग तो उन्होंने दो-तीन बार किया ही, साथ ही वे यह कहने से नहीं चूके कि पूरे जीवनकाल में बेईमानी से मेरा कोई वास्ता नहीं रहा। घर में जो मेरे चरणों की धूल है वह भी मेरी कमाई हुई है।
सीडीगढ़ के बाद
अब ईडीगढ़
जब चुनाव नज़दीक होता है तो व्यक्ति, पार्टी और शहर तो दूर प्रदेश के साथ भी तरह-तरह की उपमाएं जुड़ने लग जाती हैं। 2003 से लेकर 2018 तक चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और चारों चुनावों के बीच राजनीति उठापटक के चलते ऐसी कई सीडियां आईं जिनकी राष्ट्रीय स्तर तक पर चर्चा रही। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ को सीडीगढ़ तक कहा जाने लगा था। 2022 में छत्तीसगढ़ में ईडी ने दबिश दी। ईडी के छापे और गिरफ्तारियों का दौर जो शुरु हुआ तो वह अब तक थमा नहीं है। ईडी की छत्तीसगढ़ में ऐसी सक्रियता हो गई है कि उसकी जो भी बड़ी कार्यवाही होती है उस पर बड़ी कहानी बन जाती है। ईडी शब्द छत्तीसगढ़ में ऐसा रच बस गया है कि छोटी-छोटी बातों में मज़ा लेने वाले लोग सीडीगढ़ भूल गए हैं और छत्तीसगढ़ को ईडीगढ़ कहने लगे हैं।
सट्टे का पुराना
गढ़ रहा है रायपुर
महादेव एप्प के कारण छत्तीसगढ़ इन दिनों काफ़ी सुर्खियों में है। यहां तक कि ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने महादेव एप्प को भी छापे की कार्रवाई का आधार बनाया है। महादेव एप्प सट्टे के क़ारोबार से जुड़े कई लोगों को छत्तीसगढ़ पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है। खुलासे में यह बात सामने आई है कि इस काम से जुड़े लोगों के तार दुबई तक हैं। रायपुर का एक शख्स तो गोवा जैसे रंग-बिरंगे स्थान में बैठ कर महादेव एप्प का संचालन कर रहा था। माना जा रहा है कि सट्टे के इस क़ारोबार में संलग्न और लोगों के भी नाम सामने आएंगे। जहां तक राजधानी रायपुर की बात है तो यहां सट्टे के क़ारोबार का इतिहास काफ़ी पुराना रहा है। 1977-78 के दौर में यहां सट्टा काफ़ी गहरे तक पैर जमा चुका था। सद्दानी चौक (सदर बाज़ार) एवं चुड़ी लाइन जैसे इलाके सट्टा के बड़े केन्द्र बन चुके थे। नयापारा के महाराणा प्रताप स्कूल के पास उस दौर में सट्टा पट्टी खुला करती थी। एक सट्टा किंग ने गोल बाज़ार के पास चुड़ी लाईन इलाके में एक मकान किराये पर लेकर कुछ महीने तक वहां से जमकर सट्टा खिलवाने का काम किए था। उस दौर में सदर बाज़ार में इस किंग को मिलाकर सट्टा के दो बड़े किंग थे। एक को बम कांड में जेल में रहना पड़ा था, वहीं दूसरे का पुत्र सट्टे के ही क़ारोबार से जुड़े रहते हुए आज करोड़ों का आसामी है।
रायपुर से कौन दो
ब्राह्मण पाएंगे टिकट
रायपुर पश्चिम, दक्षिण एवं ग्रामीण ये तीन सीटें ऐसी हैं जहां से 3 अलग-अलग दमदार कांग्रेस ब्राह्मण नेताओं ने टिकट के लिए दावा ठोंका है। विकास उपाध्याय पुनः पश्चिम से, पंकज शर्मा ग्रामीण से एवं प्रमोद दुबे दक्षिण से। विकास उपाध्याय वर्तमान में पश्चिम से विधायक हैं स्वाभाविक है उनका दावा पश्चिम से ही होगा। बात करें ग्रामीण की तो वहां से वर्तमान में सत्यनारायण शर्मा विधायक हैं जो कि अपनी विरासत अपने बड़े पुत्र पंकज शर्मा को सौंपने जा रहे हैं। स्वाभाविक है पिता चाहेंगे कि पुत्र परंपरागत सीट ग्रामीण से ही उम्मीदवार बने। अब बात करें दक्षिण की तो वर्तमान में यहां से भाजपा के वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल विधायक हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रमोद को दक्षिण से लड़ने के लिए कहा गया था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए लड़ने से इंकार कर दिया था कि बृजमोहन जैसे कद्दावर नेता के ख़िलाफ मुक़ाबला करने कम से कम छह महीने की तैयारी चाहिए और उतना समय अब नहीं बचा है। अब कि बार प्रमोद ने यह कहते हुए दावा ठोंका है कि वे पूरी तैयारी करके बैठे हैं, बस टिकट मिल जाए। जब रायपुर की चार में से तीन सीटों पर दमदार ब्राह्मण नेता दावा ठोकें तो इसमें एक पेंच भी है। कांग्रेस एक ही शहर में तीन ब्राह्मण नेताओं को तो लड़ाने से रही। मौका देगी तो दो को ही देगी जैसा कि पिछली बार विकास एवं सत्तू भैया को दिया था। देखना यही होगा कि कौन से दो ब्राह्मण नेताओं को अवसर मिलता है और कौन एक कटेगा।