■ अनिरुद्ध दुबे
(इन दिनों राजधानी रायपुर के ऐतिहासिक रंग मंदिर हॉल में जादूगर सम्राट अजूबा के जादू का शो चल रहा है। 5 अप्रैल को इन्होंने यहां अपना पहला शो किया। रोज़ाना 3 शो कर रहे हैं- 1 बजे, 4 बजे एवं शाम 7 बजे। सम्राट पहली बार रायपुर में अपना शो कर रहे हैं। 7 मई को रायपुर लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होना है। यूं कहें चुनावी शोरगुल के बीच जादू का शो चल रहा है। एक तरफ चुनावी मैदान में नेतागण अपना राजनीतिक करतब दिखा रहे हैं तो दूसरी तरफ रंग मंदिर में जादूगर सम्राट की जादूगरी। अब जब मल्टीप्लेक्स सिनेमा और वेब सीरीज़ का कल्चर है, टेलीविज़न पर सीरियलों की बाढ़ है और हर हाथ में मोबाइल है, जिसमें कि दुनिया सिमटकर रह गई है, ऐसे में किसी भी जादूगर के लिए किसी शहर में जाकर जादू का शो करना बड़ी चुनौती है। 1979 से लेकर 1999 के बीच ऐसा भी समय आया था जब देश के जाने-माने जादूगर एक के बाद रायपुर में अपनी जादूगरी दिखाने आते रहे थे। वह ऐसा दौर था जब मनोरंजन के साधन सीमित हुआ करते थे। रेडियो था, किताबें थीं, सिनेमा हॉल थे। 1982 में जब देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रयासों से एशियाड हुआ, टेलीविज़न खरीदने की होड़ शुरु हो चुकी थी। 1982 के उस एशियाड के समय तक में भी मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग एवं ग़रीब तबके लिए टेलीविज़न सेट ख़रीद पाना आसान नहीं हुआ करता था। उस दौर में टीवी पर दिल्ली दूरदर्शन का बोलबाला था, जिसमें दिन भर में कुछ गिने-चुने ही कार्यक्रम प्रसारित हुआ करते थे। अब तो टेबल पर रखा जाने वाला टीवी सेट इतिहास की वस्तु हो चुका और दीवार वाली टीवी (एलईडी) घर-घर शोभा बढ़ा रही है। अमीर हो या ग़रीब, छोटा पर्दा अब हर किसी के घर की दीवार पर देखा जा सकता है। तो बात 1979 से 1999 के उस दौर की हो रही थी। वही वह दौर था जब जादूगर आनंद से लेकर जादूगर के. लाल, जादूगर चार्ली, जादूगर अग्रवाल एवं जादूगर ओ.पी. शर्मा अपनी जादूगरी का करिश्मा दिखाने रायपुर आए थे। इनमें से जादूगर आनंद एवं जादूगर ओ.पी. शर्मा तो सन् 2000 का दौर शुरु होने के बाद भी समय-समय पर जादू का शो करने रायपुर आते रहे थे। कानपुर निवासी रहे जादूगर ओ.पी. शर्मा सीनियर का कुछ वर्षों पहले निधन हो गया। अब उनके बेटे ओ.पी.शर्मा के ही नाम से जादू का शो करते हैं। जादूगर ओ.पी. शर्मा परिवार से रायपुर के वरिष्ठ भाजपा नेता एवं रायपुर नगर निगम के पूर्व सभापति (स्पीकर) प्रफुल्ल विश्वकर्मा की रिश्तेदारी है। वहीं मध्यप्रदेश के जबलपुर से वास्ता रखने वाले जादूगर आनंद की बहन रायपुर में रहा करती थीं। आनंद का पूरा नाम आनंद अवस्थी है। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद मई 2002 का वह दौर था जब राजधानी रायपुर के रंग मंदिर में ओ.पी. शर्मा का शो चल रहा था, वहीं फाफाडीह एवं रायपुर रेल्वे स्टेशन के बीच स्थित सम्राट टॉकीज़ में आनंद अपनी जादूगरी का करतब दिखा रहे थे। सम्राट टॉकीज़ अब बंद हो चुकी है। शर्मा व आनंद के बाद 12 या 13 साल की कम उम्र वाली बाल जादूगर सुहानी भी रंग मंदिर में अपने जादू का करिश्मा दिखाने आई थीं। उनका पूरा नाम सुहानी शाह है। युवावस्था में कदम रखने के बाद भी सुहानी रायपुर आईं, लेकिन तब मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में। बताते हैं सुहानी को किसी भी व्यक्ति का चेहरा पढ़ लेने में महारथ हासिल है। सामने वाले का चेहरा देखकर वह बता देती हैं कि उसके मन में क्या चल रहा है। फरवरी 2023 में रंग मंदिर रायपुर में जादूगर ज्ञानेंद्र भार्गव का शो हुआ था।
रायपुर में जादूगर सम्राट अजूबा के आने की ख़बर सुनकर वह यादें ताज़ा हो गईं जब मई 2002 में रायपुर में जादूगर आनंद का शो चल रहा था और मैंने सांध्य दैनिक ‘हाईवे चैनल’ के लिए उनका इंटरव्यू लिया था। इंटरव्यू 11 मई 2002 के अंक में प्रकाशित हुआ था। वह इंटरव्यू आपके सामने प्रस्तुत है…)
जादूगर आनंद
● मैंने सम्मोहन ‘ओशो’ से सीखा
■ अनिरुद्ध दुबे
विश्व विख्यात जादूगर आनंद बताते हैं कि उन्होंने सम्मोहन विद्या ओशो रजनीश से सीखी और बदले में उन्हें जादू सिखाया। आनंद का कहना है कि जादू कला का अपना एक अलग अस्तित्व है। जादू को जिंदा रहने के लिए किसी बैसाखी की ज़रूरत नहीं है।
‘हाईवे चैनल’ ने हाल ही में जादूगर आनंद से लंबी बातचीत की जिसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-
0 बरसों से जादू के क्षेत्र में पी.सी. सरकार, के. लाल, आनंद जैसे ही कुछ गिने-चुने नाम चल रहे हैं…
00 हमारी पीढ़ी के जादूगरों ने जादू को कला मानकर उसे पूजा, जबकि अधिकांश नए जादूगर पैसों के पीछे भाग रहे हैं। जहां पर पैसा हावी होता है तो वहां सृजन खत्म होते चले जाता है।
0 क्या जादू कला दम तोड़ रही है?
00 ऐसा नहीं माना जा सकता। सच तो यह है कि जादू कला का विस्तार हुआ है। पहले मदारी जादू दिखाया करते थे। आगे चलकर इसके प्रारूप में परिवर्तन आया। अब तो सरकार भी जादू की तरफ ध्यान देने लगी है। राजस्थान एवं केरल सरकार जादू कला को बढ़ावा दे रही है। छत्तीसगढ़ सरकार भी जादू के लिए बहुत कुछ करना चाहती है। मेरा बचपन छत्तीसगढ़ में बीता है। मुझे मालूम है कि यहां बहुत ज्यादा अंधविश्वास है। जहां पर ज्यादा अंधविश्वास हो वहां लोग जादू को अज्ञात शक्ति से जोड़कर देखते हैं। जहां अंधविश्वास कम है वहां अधिकतर लोग जादू को कला के रूप में स्वीकार करते हैं। कहना यह होगा कि हर तरफ जादू के महत्व को स्वीकारा जा रहा है।
0 आप यह कैसे दावा कर सकते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार भी जादू के लिए किसी स्तर पर प्रयास करेगी?
00 मेरी मुख्यमंत्री अजीत जोगी जी से बात हुई है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि जादू के उत्थान के लिए आनंद जो भी सुझाव देंगे वह स्वीकार्य होगा। आप खुद ही समझ सकते हैं कि उन्होने स्वीकार करने की बात कही है विचार करने की नहीं। छत्तीसगढ़ में जादू एकेडमी जैसी कोई संस्था खोले जाने की ज़रूरत है।
0 आजकल जादू देखने के लिए लोगों की इच्छा शक्ति जोर मारती हो ऐसा नहीं लगता…
00 पहले मनोरंजन के साधन सीमित थे। इसलिए लोग बड़े उत्साह के साथ जादू देखने जाया करते थे। आज इलेक्ट्रानिक मीडिया ने लोगों को घरघुसड़ा बना दिया है। आज ड्राइंग रूम में टीवी पर लोग क्या कुछ नहीं देख लेते। आप जादू की ही बात क्यूं कर रहे हैं, सर्कस भी तो खत्म हुआ है। नाटकों का भी कितना बुरा हाल हुआ है। आज गिने-चुने लोग ही नाटक देखने थियेटर तक जाते हैं।
0 क्या जादू इस समय परिवर्तन के दौरान से गुजर रहा है?
00 देश, काल और परिस्थितियों के साथ जादू कला ने लोच को स्वीकार किया। पिछले चालीस सालों से मैं जादू दिखाते आ रहा हूं। ४०-५० साल पहले का जादू अलग था। आज रंग-बिरंगी लाइटों एवं आर्केस्ट्रा के बीच जादू होने लगा है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। यह ज़रूर कहना चाहूंगा कि आज के अधिकांश नौसिखिए जादूगर मंच पर ऊल-जलूल प्रयोगों पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं। उनमें जादू की साधना करने की नीयत नहीं है। यह याद रखना चाहिए कि बिना साधना के दुनिया की कोई भी चीज़ सिद्ध नहीं होती है। क्या यह ज़रूरी है कि जादू के बीच में लड़की को किसी गाने में नाचते हुए दिखाया जाए।
0 आपके कार्यक्रमों में भी तो कभी लड़की गाने में नाचते हुए नज़र आती थी। पूर्व में जब आप रायपुर आए थे तब आपके कार्यक्रम में आइटम सॉग शामिल था…
00 दरअसल राजस्थान में जादू की इमेज़ कुछ और ही है। वहां के जादूगरों का ऐसा है कि चार-पांच गाने नहीं तो जादू नहीं। मुझे याद है कि पूर्व में मैं जब रायपुर आया था उसके पहले काफ़ी दिनों तक राजस्थान में जादू का प्रदर्शन दिखाते रहा था। वहां के माहौल के हिसाब से जादू के बीच में गाने पर लड़की को नाचते दिखाना हमारी मजबूरी थी। राजस्थान से जब हम रायपुर आए तो यहां भी यह चीज़ बरक़रार रही। रायपुर से रवाना होने के दो महीने बाद मैंने अपने कार्यक्रम से नाचने-गाने को अलग कर दिया। मेरा तो यही कहना है कि जादू को किसी बैसाखी की ज़रूरत नहीं है। वैसे भी जादूगरों की संस्था ऑल इंडिया मेजिक फेडरेशन ने यह तय कर दिया है कि जादू कार्यक्रम में नाच-गाना नहीं दिखाया जाएगा तथा चलते कार्यक्रम के बीच में किसी भी जादूगर का आदमी दर्शकों के बीच में नहीं बैठेगा। ऐसी शिकायतें मिला करती थीं कि कुछ जादूगर कार्यक्रम के दौरान यह दर्शाते थे कि किसी आइटम को पेश करते समय वह भीड़ में से ही किसी आम आदमी को बुला रहे हैं। मंच पर पहुंचने वाला वह आदमी आम नहीं बल्कि जादूगर का आदमी होता था।
ओशो
0 ओशो (आचार्य रजनीश) याद आते हैं…
00 हमेशा। आज जब भूतकाल के बारे में सोचता हूं तो लगता है कि ओशो कितने अद्भुत व्यक्ति थे। लंबे समय तक उनके साथ अंतरंग संबंध बने रहना वाकई सुखद संयोग था। ओशो जबलपुर के थे और मैंने भी जबलपुर में काफ़ी समय गुज़ारा है। मैं शुरू से ही जिज्ञासु प्रवृत्ति का रहा हूं। मैंने सम्मोहन कला ओशो से सीखी और जादू उन्हें सिखाया।
0 आज भी आप इस बात पर कायम हैं कि ओशो ने आपको भुनाया था…
00 बेशक! ओशो को मेरी ज़रूरत थी। ओशो का व्यक्तित्व एवं दर्शन अपने आप में मिसाल था लेकिन उस समय सत्य सांई बाबा की धूम थी। सत्य सांई बाबा चमत्कार दिखाते थे। ओशो ने मुझे दुनिया के सामने लाकर यह साबित करने की कोशिश की कि चमत्कार तो कोई भी दिखा सकता है।
0 उभरते हुए जादूगरों से आप किस तरह की उम्मीद रखते हैं?
00 अपनी बुद्धि, विवेक एवं श्रम पर भरोसा करें। आंखें बंद कर दूसरे जादूगरों का अनुसरण नहीं करते रहें। कुछ लोग मुझसे पूछते हैं कि आप एकेडमी की बात करते हैं इससे आपके जादू के रहस्य का सबको पता नहीं चल जाएगा? मैं उनसे यही कहता हूं कि जादू एकेडमी शुरु होने पर नए लड़के सामने आएंगे जो कि जादू को कुछ नया स्वरूप देंगे। मैं शुरू से ही आशावादी रहा हूं।