कारवां (2 जून 2024) ● विस्फोट के बाद उभरा सवाल… मालिक कौन… ● माओवादियों का अलग हटकर पर्चा… ● रायपुर महापौर… अब कि बार नहीं चूकना… ● होलसेल कॉरीडोर व एयरो सिटी पर क्या होगा फैसला… ● पीएम पर लिखे, बुरे फंसे… ● इंदिरा कला वि.वि. में पहली बार ऐसा निलंबन… ● नाले ही नहीं नाम भी बड़े…

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ के एक गांव की बारूद फैक्ट्री में हुए भयंकर विस्फोट का वह भयानक मंजर वहां के लोगों की आंखों के सामने अब भी रह-रहकर घूम रहा है। इस हादसे में 9 मजदूरों की जानें गईं। दो मंज़िला बिल्डिंग जहां मजदूर काम कर रहे थे उसका नामोनिशान मिट गया। काफ़ी समय़ तक मीडिया वाले इसी सवाल को लेकर उलझे रहे कि इस फैक्ट्री का मालिक कौन है और पुलिस को किसी तरह की कोई कार्रवाई करने में इतना वक़्त क्यों लग रहा है। राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले कुछ लोग बताते हैं कि जिस फैक्ट्री में विस्फोट हुआ उसके मालिक की और भी अलग-अलग स्थानों पर फैक्ट्रियां हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में मुख्यमंत्री रही एक शख़्सियत से फैक्ट्री मालिक की नज़दीकी रिश्तेदारी  है। काफ़ी सोच विचार के बाद घटना के पांच दिनों बाद एफआईआर लिखी जा सकी। फैक्ट्री के 3 बायलरों का लाइसेंस रद्द करने में जिला प्रशासन को चार दिन लग गए।

माओवादियों का

अलग हटकर पर्चा

बस्तर में पहली बार नक्सलियों का लीक से हटकर पर्चा सामने आया है कि धर्म परिवर्तन के नाम पर आदिवासियों को लड़वाना बंद करें। यह पर्चा एक सरपंच एवं एक उप सरपंच के नाम से जारी किया गया है। बस्तर के स्थानीय लोगों का मानना है कि नक्सलियों की ओर से पर्चा जारी होना कोई नई बात नहीं। वह समय-समय पर जारी होते रहा है। पूर्व में पर्चे में शासन एवं प्रशासन के ख़िलाफ ही बातें लिखी नज़र आया करती थीं। धर्म केन्द्रित पर्चा पहली बार जारी होते दिखा है।

रायपुर महापौर… अब

कि बार नहीं चूकना

वैसे तो नगर निगम चुनाव को क़रीब छह महीने का वक़्त बचा है लेकिन भारतीय जनता पार्टी इसे लेकर अभी से काफ़ी संजीदा नज़र आ रही है। ख़ासकर राजधानी के रायपुर नगर निगम को लेकर। उल्लेखनीय है कि रायपुर शहर कुछ नहीं तो क़रीब 25 वर्षों तक भाजपा का गढ़ माना जाता रहा था। वो तो सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में रायपुर उत्तर से कुलदीप जुनेजा, रायपुर पश्चिम से विकास उपाध्याय और रायपुर ग्रामीण से सत्यनारायण शर्मा जीतकर आए तब जाकर यह महसूस हो पाया कि हां राजधानी में कांग्रेस अब कुछ मज़बूत हुई है। उल्लेखनीय है कि प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर चुनाव पहली बार राज्य बनने से पहले 1999 में हुआ था जिसमें भाजपा प्रत्याशी तरुण चटर्जी की जीत हुई थी। 2002 में चटर्जी कांग्रेस में चले गए और उनका इस्तीफ़ा होने के बाद साल भर तक भाजपा के सुनील सोनी मनोनीत महापौर रहे। 2004 में भाजपा की ही टिकट पर सुनील सोनी महापौर चुनाव लड़े और जीते। रायपुर नगर निगम का राजनीतिक समीकरण 2009 में तब बदलना शुरु हुआ जब महापौर सीट महिला हो गई। 2009 में महापौर चुनाव कांग्रेस से श्रीमती किरणमयी नायक एवं भाजपा से श्रीमती प्रभा दुबे लड़ीं। नायक की जीत हुई, दुबे की हार। 2014 का चुनाव आया। कांग्रेस से प्रमोद दुबे एवं भाजपा से सच्चिदानंद उपासने महापौर पद के लिए चुनावी मैदान में आमने-सामने थे। दुबे जीते और उपासने पराजित हुए। उन दोनों ही चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद भाजपा के भीतर कितने ही लोगों का मन  यह स्वीकारने तैयार नहीं था कि क्या वाकई हमारी स्थिति हारने लायक थी! वो इसलिए कि दोनों बार के चुनाव के समय रायपुर शहर के दो दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल एवं राजेश मूणत छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री थे। तब बृजमोहन एवं मूणत गुट के साथ रायपुर शहर में रमेश बैस गुट भी काफ़ी सक्रिय था। जहां ऐसी बड़ी ताकतें रहें भला हार कैसे गले से उतरती! अब जबकि क़रीब छह महीने के बाद फिर से नगर निगम चुनाव होना है, भाजपा के ही भीतर ज़िम्मेदार लोग कहते नज़र आ रहे हैं कि दो बार तो महापौर चुनाव हम अपने कारणों से हार चुके, लेकिन अब कि बार नहीं….

होलसेल कॉरीडोर व

एयरो सिटी

पर क्या होगा फैसला

नया रायपुर। मुर्दा शहर। पता नहीं कब इसकी किस्मत पलटेगी। 10 साल से अधिक हो गया इस शहर को बसे, लेकिन आबाद होने का नाम ही नहीं ले रहा। भूपेश बघेल सरकार ने नया रायपुर में जान फूंकने होलसेल कॉरीडोर एवं एयरो सिटी बनाने का प्लान तैयार किया था। इसके पहले दोनों परियोजनाओं को लेकर कोई बड़ी पहल होती सरकार ही बदल गई। होलसेल कॉरीडोर प्लान पर ज़ल्द काम शुरु करने की मांग को लेकर हाल ही में छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इडस्ट्रीज़ के अध्यक्ष अमर पारवानी एवं अन्य पदाधिकारियों ने आवास एवं पर्यावरण मंत्री ओ.पी. चौधरी से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात का क्या नतीजा निकलता है यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा। इसी तरह माना एयरपोर्ट के पास 216 एकड़ ज़मीन पर एयरो सिटी का प्लान तैयार करने के पीछे पिछली सरकार की मंशा यह थी कि एयरपोर्ट पर उतरने वाले यात्रियों को अधिक से अधिक सुविधाएं तो मिले ही साथ ही नया रायपुर एवं पुराने रायपुर के बीच जो बड़ा ख़ालीपन है उसे भरा जा सके। नया रायपुर एवं पुराने रायपुर के बीच क़रीब 18 किलोमीटर के इस ख़ालीपन को भरने विष्णुदेव साय सरकार ने क्या कुछ सोच रखा है इस पर तस्वीर लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद ही साफ हो पाएगी। फिलहाल ज़रूरी यह है कि नया रायपुर से पुराने रायपुर के बीच जो रेल पटरी बिछ चुकी है उस पर सांय सांय ट्रेन दौड़ना शुरु हो। नया रायपुर में ट्रेन दौड़ाने का काम चाहकर भी न तो पूर्ववर्ती रमन सरकार कर पाई और न ही भूपेश बघेल सरकार।

पीएम पर लिखे, बुरे फंसे

अति उत्साह कभी-कभी भारी पड़ जाता है। सोशल मीडिया तब ख़तरे से ख़ाली नहीं जब आप बिना सोच समझे किसी तरह की ऐसी वैसी टिप्पणी कर जाएं। यह सही है कि हिन्दुस्तान में लोकतंत्र है लेकिन सरकारी नौकरी में कार्यरत लोगों को कुछ उसूलों का पालन करना ज़रूरी हो जाता है। दिक्कत तब खड़ी हो जाती है जब सरकारी सेवा में कार्यरत कोई व्यक्ति सार्वजनिक जगह पर कुछ ऐसा वैसा बोल जाए या कहीं पर लिख जाए। नारायणपुर के किसी कोने में पदस्थ एक जिला टीकाकरण अधिकारी सोशल मीडिया में कुछ ऐसा-वैसा लिखकर बुरी तरह फंस गए। लिखे भी तो किसी ऐसे-वैसे के बारे में नहीं बल्कि सीधे पीएम और उनकी पार्टी के बारे में लिख गए। बिना देर किए एक भाजपा नेता ने नारायणपुर थाने में एक लिखित शिकायत देते हुए उस टीकाकरण अधिकारी के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग कर डाली। टीकाकरण अधिकारी की समझ में आ चुका था कि बुरे फंसे। उन्होंने सीधे उस भाजपा नेता को माफ़ीनामा लिखकर दिया जिसने थाने में लिखित शिकायत की थी। हो सकता है अधिकारी को लेकर शिकायतकर्ता नेता का दिल पिघल जाए, लेकिन वे उन लोगों की नज़रों में तो आ ही गए हैं, जो कि न चैन से बैठते हैं और न ही दूसरों को बैठने देते हैं।

इंदिरा कला वि.वि. में

पहली बार ऐसा निलंबन

एशिया के सबसे बड़े कहलाने वाले इंदिरा कला संगीत  विश्वविद्यालय खैरागढ़ के सहायक कुल सचिव समेत दो सहायक प्राध्यापक को विश्वविद्यालय प्रशासन व्दारा निलंबित किए जाने की ख़बर है। विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही समय में 3 लोगों पर निलंबन की गाज गिरी हो। बताते हैं कि इन तीनों की ही जिस प्रक्रिया के तहत नियुक्ति हुई उस पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ था। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय पिछले कुछ समय से कला एवं संस्कृति के अलावा और दूसरे कारणों से भी सुर्खियों में रहा है। पिछले साल की ही तो बात है जब विश्वविद्यालय की एक इकाई राजधानी रायपुर में पाठ्य पुस्तक निगम के दफ़्तर के बाजू में खोले जाने के निर्णय पर भारी बवाल मचा था। खैरागढ़ में कई तरफ से यह आवाज़ उठी थी कि संगीत विश्वविद्यालय को रायपुर शिफ्ट करने का षड़यंत्र रचा जा रहा है। इसके विरोध में एक दिन के लिए खैरागढ़ बंद तक रहा था। भारी विरोध के बाद रायपुर में संगीत विश्वविद्यालय की शाखा खोलने का निर्णय वापस ले लिया गया।

नाले ही नहीं नाम भी बड़े

हाल ही में एक ख़बर सामने आई कि रायपुर नगर निगम  जब्बार नाले के सफाई अभियान में जुटा तो वहां से 80 डंपर कचरा निकला। रायपुर शहर के नाले भी मानो पुरुषवादी समाज की तरह हो गए हैं। तभी तो यहां के नालों के अनोखे नाम हैं- जब्बार नाला, अरमान नाला, छोकड़ा नाला…

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