कारवां (9 जून 2024) ● नीतीश बाबू ने कभी रायपुर में भी दिखाया था कमाल… ● राजनीति तो कोई डॉ. महंत से सीखे… ● लखमा की हार के बाद तरह तरह की बातें … ● मुम्बई में नहीं बन पाया छत्तीसगढ़ भवन… ● सायं सांय काम करेगा हाउसिंग बोर्ड व आरडीए…

■ अनिरुद्ध दुबे

केन्द्र में तीसरी बार बनी मोदी सरकार में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड सहयोगी दल की भूमिका निभा रही है। ये कहें कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहूमत नहीं मिलने के बाद सरकार बनाने के लिए निर्भरता नीतीश कुमार एवं चंद्र बाबू नायडू की पार्टी तेलगू देशम पर हो गई है। नीतीश कुमार का अपना अलग राजनीतिक स्टाइल है। कहां तो पूर्व में आसार ये नज़र आ रहे थे कि नीतीश बाबू विपक्षी इंडिया गठबंधन के मुखिया बनेंगे। समय रहते नीतीश बाबू ने पैंतरा बदल लिया और वे एनडीए के साथ हो गए। नीतीश बाबू की बौद्धिक क्षमता की मिसाल एक बार राजधानी रायपुर में देखने को मिली थी। अजीत जोगी की सरकार थी और नीतीश बाबू उस समय केन्द्र की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में रेल मंत्री थे। नीतीश बाबू रायपुर रेल्वे स्टेशन में नये फूट ओव्हर ब्रिज के लोकार्पण के लिए आए हुए थे। लोकार्पण कार्यक्रम में रेल्वे स्टेशन परिसर में बड़ा सा मंच बना था। मंच पर नीतीश बाबू के अलावा तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी, तत्कालीन रायपुर सांसद रमेश बैस एवं तत्कालीन रायपुर शहर विधायक बृजमोहन अग्रवाल मौजूद थे। तब अजीत जोगी ने अपने संबोधन में कहा था कि “मैंने नीतीश बाबू से मितान बदा है। मितान बनाया हूं तो उनसे ज़्यादा से ज़्यादा काम कराने का मेरा हक़ बनता है।“ जोगी जी के संबोधन के बाद नीतीश जी का संबोधन हुआ। संबोधन के बाद वहीं पर प्रेस कांफ्रेंस हुई। वह यादगार प्रेस कांफ्रेस थी। नीतीश बाबू मंच पर थे और नीचे कुर्सियों पर पत्रकार। वह इलेक्ट्रानिक मीडिया वाला ज़माना तो था नहीं, इसलिए चैनल जैसी कोई चीज नहीं थी। एक पत्रकार ने सवाल किया, जिसे सुनने के बाद नीतीश बाबू बोले “ठीक है, दूसरा सवाल।“ दूसरे पत्रकार ने सवाल किया तो नीतीश बाबू बोले “ठीक है, अगला सवाल।“ तीसरा सवाल पूछने वाले पत्रकार ने कहा कि “ऐसे में तो आप भूल ही जाएंगे। पहले वाले सवालों का ज़वाब पहले दे दीजिए।“ नीतीश बाबू बोले “पूछिए तो सही, नहीं भूलूंगा।“ इस तरह तीसरा सवाल भी हो गया। एक के बाद एक तीन सवाल हो जाने के बाद कमाल की बौद्धिक क्षमता रखने वाले नीतीश बाबू ने तीनों पत्रकारों के सवालों का सिलसिलेवार ज़वाब बड़े ही ख़ूबसूरत अंदाज़ में दिया था।

राजनीति तो कोई

डॉ. महंत से सीखे

समय तो सबसे अच्छा डॉ. चरणदास महंत का चल रहा है। 2018 में विधानसभा चुनाव लड़े, जीते और विधानसभा अध्यक्ष बने। 2023 में फिर विधानसभा चुनाव लड़े, जीते और विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष बने। 2019 का लोकसभा चुनाव था तो डॉ. महंत अपनी पत्नी श्रीमती ज्योत्सना महंत को कोरबा से टिकट दिलाने क़ामयाब रहे थे। कांग्रेस के ही एक खांटी नेता ने पूरी ताकत लगा थी कि डॉ. महंत खुद ही कोरबा से लोकसभा चुनाव लड़ें। तब डॉ. महंत दिल्ली के नेताओं को कन्वेंस कराने में क़ामयाब रहे थे कि ज्योत्सना जी के लड़ने से कोई बड़ी चुनौती नहीं खड़ी हो जाएगी। इस तरह 19 के चुनाव की टिकट श्रीमती महंत के नाम हो गई थी। बाद में वाकई एक नई चुनौती खड़ी हो गई थी, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जनता कांग्रेस की टिकट पर कोरबा से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। बेटे अमित जोगी ने पूरा जोर लगा दिया था पापा कोरबा के मैदान में उतर कर रहें। माना यही जाता है कि डॉ. महंत, अजीत जोगी को नहीं लड़ने के लिए मनाने में क़ामयाब हो गए थे। जोगी के कोरबा से नहीं लड़ने की घोषणा के बाद एक बड़ी चुनौती सामने से हट चुकी थी लेकिन दूसरी बड़ी चुनौती बरक़रार थी- मोदी जी के राष्ट्रवाद का नारा। पूलवामा एवं बालाकोट जैसे घटनाक्रम उस समय ताजा थे और राष्ट्रवाद की हवा देश भर में चली हुई थी। उस मोदी लहर का ही नतीजा था कि छत्तीसगढ़ की 11 में से 9 सीट भाजपा जीत ले गई थी। छत्तीसगढ़ से सिर्फ़ दो लोग जीतने में क़ामयाब रहे थे, श्रीमती ज्योत्सना महंत एवं बस्तर से दीपक बैज। इस बार के लोकसभा चुनाव में श्रीमती महंत फिर कोरबा से प्रत्याशी थीं। उनके सामने भाजपा ने कद्दावर नेत्री सरोज पांडे को उतारा। 4 जून को जब परिणाम आया तो छत्तीसगढ़ की 11 सीटों में से सिर्फ़ एक कोरबा कांग्रेस के खाते में गई। अब कांग्रेस के कई अनुभवी लोग नये नेताओं व कार्यकर्ताओं को यही समझाते नज़र आ रहे हैं कि राजनीति का गुर सीखना है तो महंत जी के पास जाकर सीखो।

लखमा की हार के बाद

तरह तरह की बातें 

कांग्रेस के सपाटबयानी वाले नेता कवासी लखमा यानी दादी बस्तर से लोकसभा चुनाव हार गए। ये दूसरी बार हुआ है जब कवासी लखमा बस्तर से लोकसभा चुनाव हारे हैं। रही बात विधानसभा की तो कोंटा क्षेत्र से वे लगातार छह बार विधानसभा चुनाव जीते हैं और अभी भी वहां से विधायक हैं।  दुर्भाग्य यह कि लोकसभा चुनाव में लखमा को अपने ही कोंटा विधानसभा क्षेत्र से लीड नहीं मिल पाई। लखमा के बारे में अब कहा जाने लगा है कि उन्हें लोकसभा चुनाव नहीं फलता, विधानसभा चुनाव फलता है। इस बात को शायद वे भी समझते रहे हैं। तभी तो बस्तर लोकसभा क्षेत्र से अपने बेटे हरीश लखमा को लड़वाना चाह रहे थे, लेकिन पार्टी के दिग्गजों ने दादी पर ही दांव लगाना उचित समझा। प्रत्याशी बनने के बाद दादी का दर्द मंच पर छलक आया था, जब उन्होंने माइक थामे रहते में कहा था कि “मैं तो अपने बेटे की बारात सजाने की तैयारी कर रहा था, पार्टी ने मुझे ही दुल्हन थमा दी।“ लखमा की हार के बाद अब कांग्रेस के भीतर एक नई चर्चा चल पड़ी है, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज को लेकर। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी जी की राष्ट्रवाद की लहर चली हुई थी उस परिस्थिति में भी दीपक बैज बस्तर से लोकसभा चुनाव जीतने में क़ामयाब रहे थे। 19 के चुनाव में कांग्रेस 11 में से 2 सीट जीती थी। कोरबा से श्रीमती ज्योत्सना महंत के अलावा बस्तर से बैज ही जीतने में सफल रहे थे। 2023 का विधानसभा चुनाव हुआ तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सम्हाल रहे बैज बस्तर के चित्रकोट विधानसभा से प्रत्याशी बनकर चुनावी मैदान में आ गए। चित्रकोट में उन्हें भाजपा प्रत्याशी विनायक गोयल के हाथों हार का सामना पड़ना। बैज बस्तर से सांसद तो थे ही, अभी के लोकसभा चुनाव में भी वे बस्तर से टिकट चाह रहे थे, लेकिन उनकी बजाय लखमा को लड़ाना मुनासिब समझा गया। अब पार्टी के भीतर कहने वाले यही कह रहे हैं कि बेहतर होता कि 23 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज के संगठनात्मक अनुभव का इस्तेमाल पूरे प्रदेश में किया गया रहा होता और लोकसभा चुनाव में उन्हें फिर से उम्मीदवार के रूप में आज़माया गया रहा होता। ख़ैर, जितने मूंह उतनी बातें। लखमा हार गए तो उसके बाद कई तरह की बातों का दौर चल पड़ा है। जीत की स्थिति में कितनी ही कमज़ोरियां क्यों न हो ढंक जाती हैं।

मुम्बई में नहीं बन

पाया छत्तीसगढ़ भवन

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने शनिवार को नई दिल्ली में बने छत्तीसगढ़ के नए अतिथि गृह ‘छत्तीसगढ़ निवास’ का निरीक्षण किया। इस दौरान उन्होंने व्यवस्थाओं का जायजा लेकर अधिकारियों को आवश्यक निर्देश दिए। दिल्ली में द्वारका के सेक्टर 13 में छत्तीसगढ़ के अतिथियों के ठहरने के लिए 60 करोड़ 42 लाख की लागत से ‘छत्तीसगढ़ निवास’ का निर्माण किया गया है। ‘छत्तीसगढ़ निवास’ में 10 स्यूट रूम, 67 कमरे, डाइनिंग हॉल एंड वेटिंग सहित मीटिंग हॉल और कर्मचारियों के लिए टावर का निर्माण किया गया है। छत्तीसगढ़ निवास के बाद मुख्यमंत्री साय ने द्वारका ही स्थित ट्राइबल यूथ हॉस्टल का भी दौरा किया। मुख्यमंत्री ने वहां छात्रों से कहा कि “यूपीएससी अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों के सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए यूथ हॉस्टल में 50 बच्चों की सीटों को बढ़ाकर अब 200 करने का प्रावधान बजट में किया गया है। उनके लिए हॉस्टल व पीजी की व्यवस्था की जाएगी।” दिल्ली के व्दारका में ‘छत्तीसगढ़ निवास’ एवं ‘ट्राइबल यूथ हॉस्टल’ निर्माण का सरकार का लक्ष्य तो पूरा हुआ लेकिन एक बड़ा काम अभी भी बाक़ी रह गया है। पूर्ववर्ती डॉ. रमन सिंह की सरकार यानी भाजपा सरकार के समय में ही एक बड़ा निर्णय लिया गया था कि दिल्ली की तर्ज पर देश की औद्योगिक राजधानी मुम्बई में भी ‘छत्तीसगढ़ भवन’ का निर्माण किया जाएगा। इसलिए कि अध्ययन दौरे से लेकर राजनीतिक, स्वास्थगत, कला, संस्कृति एवं सिनेमा से जुड़े कारणों से छत्तीसगढ़ के ज़िम्मेदार लोगों का लगातार मुम्बई प्रवास होते रहता है। यही वज़ह है कि पूर्ववर्ती डॉ. रमन सिंह की सरकार के समय में मुम्बई में ‘छत्तीसगढ़ भवन’ बनाने ज़मीन भी तलाशी गई थी। मुम्बई में ज़मीन केवल देखी गई थी या ली भी गई थी इस पर कभी तस्वीर साफ़ नहीं हो पाई। मुम्बई में छत्तीसगढ़ भवन या निवास की पहले भी ज़रूरत थी और अब भी है।

सायं सांय काम करेगा

हाउसिंग बोर्ड व आरडीए

आवास एवं पर्यावरण विभाग छत्तीसगढ़ सरकार के युवा मंत्री ओ.पी. चौधरी के पास है। राजनीतिक एवं प्रशासनिक हलकों में चर्चा यही है कि चौधरी जी के इंट्रेस्ट के चलते ही राजधानी रायपुर में ज़ल्द दो बड़ा प्रोजेक्ट शुरु होने जा रहा है। पहला पंडरी क्षेत्र में हाट बाज़ार वाली जगह पर गुजरात की तर्ज पर एकता मॉल बनाया जाना एवं दूसरा सिंचाई कॉलोनी शांति नगर में आवासीय एवं व्यावसायिक प्रोजेक्ट लाना। एकता मॉल बनाने का काम रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) करेगा एवं सिंचाई कॉलोनी वाली जगह पर छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल (हाउसिंग बोर्ड)। एकता मॉल का तो टेंडर भी जारी हो चुका है। पिछली कांग्रेस सरकार में आवास एवं पर्यावरण विभाग मंत्री मोहम्मद अक़बर के पास था। सिंचाई कॉलोनी में आवासीय एवं व्यावसायिक प्रोजेक्ट अक़बर भी लाना चाह रहे थे। इसके लिए उन्होंने सिंचाई कॉलोनी के न सिर्फ़ कितने ही बरसों पुराने सरकारी मकान ख़ाली करवाए थे बल्कि गौरव पथ से लगकर बने एक मिनी गॉर्डन को भी तोड़वाया था। पता नहीं ऐसे कौन से कारण रहे अक़बर का सपना मूर्त रूप नहीं ले सका। उस सपने को अब ओपी भैया पूरा करना चाह रहे हैं। जिस तरह ओपी भैया फटाफट निर्णय ले रहे हैं उससे लग तो यही रहा है कि पिछली बार सुस्त पड़ा रहा हाउसिंग बोर्ड एवं आरडीए इस बार सांय सांय काम करेगा।

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