कारवां (16 जून 2024) ● तो ऐसे बने मंत्री तोखन… ● अनुराग का मंत्री नहीं बनना कितनों को अखर गया… ● सीधे पीएमओ को रिपोर्ट… ● सवा लाख के बूथ… ● समाज हित या व्यावसायिक हित…

■ अनिरुद्ध दुबे

मोदी मंत्री मंडल में बृजमोहन अग्रवाल को जगह नहीं मिलने पर न जाने कितने ही लोगों में मायूसी छा गई। ऐसा तो है नहीं कि बृजमोहन जी की पकड़ केवल रायपुर तक में है, उनके चाहने वाले प्रदेश में दूर-दूर तक फैले हुए हैं। पूर्व में ऐसा भी होते रहा था कि किसी विधानसभा में उप चुनाव हो रहा हो तो मोहन भैया को ज़िम्मेदारी सौंप दो, जीत की पूरी गारंटी। रमन सरकार के समय में केशकाल, संजारी बालोद एवं भटगांव के हुए उप चुनाव इसीलिए याद किए जाते हैं। कुशल प्रबंधन वाले नेता जो ठहरे। वक़्त कब कैसा करवट ले ले नहीं जाना जाता। कहां तो माना ये जा रहा था कि बृजमोहन अग्रवाल, विजय बघेल या संतोष पांडे तीनों में से किसी को एक को मोदी मंत्री मंडल में जगह मिलेगी। इन तीनों का नाम लिए जाने के पीछे बड़े कारण थे, लेकिन शपथ ग्रहण समारोह वाले दिन बिलासपुर से चुनाव जीते तोखन साहू का चौंकाने वाला नाम सामने आया। छत्तीसगढ़ में आदिवासी एवं साहू वर्ग के मतदाताओं की अधिकता है। साफ है इस लोकसभा चुनाव में साहू मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा जताया। भाजपा प्रत्याशियों की घोषणा चुनाव से काफ़ी पहले हो चुकी थी। कांग्रेस ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए भाजपा के ओबीसी कैंडिटेड के खिलाफ़ ओबीसी चेहरे को उतारने का कॉर्ड खेला। कांग्रेस व्दारा दुर्ग में विजय बघेल के खिलाफ़ राजेन्द्र साहू, महासमुन्द में रूप कुमारी चौधरी के खिलाफ़ ताम्रध्वज साहू तथा बिलासपुर में तोखन साहू के खिलाफ़ देवेन्द्र यादव को उतारा जाना उदाहरण है। दुर्ग, महासमुन्द तथा बिलासपुर में साहू वोट बैंक का झूकाव पूरी तरह भाजपा की ही तरफ नज़र आया। दिल्ली में बैठे नेता इस निष्कर्ष पहुंचे कि विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी साहू वोटरों का भरपूर साथ मिला। आदिवासी वोटर्स तो वापस लौट ही चुके हैं, साहू मतदाताओं के दिलों में कमल छाप को जो जगह मिली वह भी तो बरक़रार रहना ज़रूरी है। ये सारा गणित दिल्ली वालों को छत्तीसगढ़ के उसी नेता ने समझाया, जिसने लोकसभा प्रत्याशी चयन के समय में भी अपनी बात पूरा ज़ोर लगाकर ऊपर वालों के समक्ष रखी थी। ऊपर वालों व्दारा यहां के शासन एवं प्रशासन दोनों की गहरी समझ रखने वाले नेता की बात सुन ली गई और तोखन साहू की लाटरी खुल गई।

अनुराग का मंत्री नहीं बनना

कितनों को अखर गया

छत्तीसगढ़ के कितने ही भाजपाइयों में तो मायूसी इसलिए भी छाई हुई है कि हिमाचल प्रदेश के युवा नेता अनुराग ठाकुर इस बार केन्द्र सरकार में मंत्री नहीं बनाए गए। उनके मंत्री नहीं बनने से यहां मायूसी क्यों, तो इसके पीछे भी बड़ा कारण है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में जो दिग्गज नेता छत्तीसगढ़ आकर कमान संभाले हुए थे उनमें तब केन्द्र सरकार में मंत्री रहे अनुराग ठाकुर भी शामिल थे। विधानसभा चुनाव वाले उस दौर में छत्तीसगढ़ के कितने ही भाजपाई अनुराग ठाकुर से गहराई से जुड़ते चले गए। गहराई का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अनुराग ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में एक तेज तर्रार युवा नेता को टिकट दिलाने में अहम् भूमिका निभाई थी और वह युवा नेता जीतने में क़ामयाब भी रहा। यही नहीं यहां के कुछ मीडिया वालों से भी अनुराग के मित्रवत् संबंध हो गए थे। ऐसे नेता के मंत्री बनने की ख़बर न आए तो उनके चाहने वालों के बीच मायूसी तो छाएगी ही। बताते हैं भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने जिन दो-तीन नामों पर विचार चल रहा है उनमें एक नाम अनुराग ठाकुर का भी है।

सीधे पीएमओ को रिपोर्ट

चर्चा यही है छत्तीसगढ़ में पीएमओ की ओर से एक बड़ी शख़्सियत को बिठाकर रखा गया है। ये सीधे पीएमओ को रिपोर्ट करते हैं। रूतबे वाले इस व्यक्ति की राजनीतिक एवं प्रशासनिक महकमे में व्यापक चर्चा है।

सवा लाख के बूथ

रायपुर दक्षिण विधानसभा उप चुनाव के लिए भाजपा से जिन लोगों का नाम मीडिया में रह-रहकर आ रहा है वह ऊपर ही ऊपर खुश तो नज़र आ रहे हैं, लेकिन यह भी जान रहे हैं कि रायपुर की अन्य तीन सीटों की तुलना में रायपुर दक्षिण सबसे महंगी सीट है। उदाहरणार्थ बाकी सीटों के बूथों पर जहां 25-25 हज़ार में काम चल जाता है वहीं दक्षिण के बूथों में बिना सवा लाख के काम नहीं चलता।

समाज हित या

व्यावसायिक हित

रायपुर कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह ने शुक्रवार को राजधानी के हृदय स्थल जयस्तंभ चौक से चंद कदमों की दूरी पर स्थित रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) की बॉम्बे मार्केट बिल्डिंग का निरीक्षण किया। उन्होंने बिल्डिंग के ख़ाली पड़े ऊपरी तल का क्या उपयोग हो सकता है इसकी संभावनाएं तलाशी। बताते हैं शहर के मध्य में होने के बाद भी शहर का ऊपरी तल ख़ाली पड़ा है। बहुत सी दुकानें व हॉल जो किराये पर थे वह ख़ाली होते चले गए। कलेक्टर ने बॉम्बे मार्केट बिल्डिंग के योजनाबद्ध तरीक़े से समाज हित में उपयोग किए जाने के निर्देश दिए। शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि कोई कलेक्टर जीर्ण शीर्ण अवस्था वाले इस बॉम्बे मार्केट में झांकने गया। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि कलेक्टर ने इसके समाज हित में उपयोग करने के जो निर्देश दिए क्या वैसा हो पाना संभव है! यह भी दिलचस्प संयोग रहा कि जिस दिन कलेक्टर बॉम्बे मार्केट का निरीक्षण कर रहे थे आरडीए ने वहां की छह दुकानों की बिक्री का विज्ञापन जारी किया। ये दुकानें 1 करोड़ 87 लाख से लेकर साढ़े तीन करोड़ तक की हैं। सवाल यही है कि बॉम्बे मार्केट का अब उपयोग समाज हित में होगा या व्यावसायिक हित में?

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