● कारवां (17 अप्रैल 2022)- अमिट छाप छोड़ गया खैरागढ़ उप चुनाव

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ में तीन साल में चार विधानसभा उप चुनाव हो गए। चित्रकोट, दंतेवाड़ा, मरवाही के बाद हाल ही में खैरागढ़ उप चुनाव हुआ। पिछले तीन उप चुनाव की तुलना में वाकई खैरागढ़ उप चुनाव बेहद रोचक रहा। हालांकि खैरागढ़ में कांग्रेस से श्रीमती यशोदा वर्मा एवं भाजपा से कोमल जंघेल मैदान में थे लेकिन प्रतीत यह हो रहा था कि मुक़ाबला मानो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बीच हो रहा हो। भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल के पक्ष में जिस तरह केन्द्रीय मंत्री व्दय प्रहलाद पटेल व फग्गन सिंह कुलस्ते तथा पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रचार में आए उससे यह चुनाव और भी ज़्यादा दिलचस्प हो गया। ऐन वक़्त पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने खैरागढ़-छुईखदान-गंडई को जिला बनाने के वादे का जो दांव खेला उससे मानो पूरा चुनावी परिदृश्य ही बदल गया। इस घोषणा के साथ ही मान लिया गया था कि खैरागढ़ में बाजी भाजपा के हाथ से जा चुकी। शनिवार की शाम रिजल्ट आ गया कि कांग्रेस की श्रीमती यशोदा वर्मा 20 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीत गईं और इसके कुछ ही घंटे बाद यानी उसी रात खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिला बनाने का ऐलान भी हो गया। होली त्यौहार मने अभी एक महीने भी पूरा नहीं हुआ और जिले की घोषणा होते ही मानो खैरागढ़-छुईखदान-गंडई में शनिवार की रात दिवाली मन गई। खैरागढ़ का जो नतीजा सामने आया वह न सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह एवं उनके पूर्व सांसद बेटे अभिषेक सिंह बल्कि पूरी भारतीय जनता पार्टी के लिए चिंतन-मनन का विषय है, क्योंकि क़रीब 20 महीने बाद छत्तीसगढ़ की सभी सीटों पर विधानसभा चुनाव होना है। किसी ज़माने में विपक्ष में रहते हुए भाजपा का जो आक्रामक रूख़ नज़र आया करता था वह अभी नदारद है। अभी के दौर में छत्तीसगढ़ में भाजपा के व्दारा उठाया जाने वाले अधिकांश राजनीतिक कदम कुछ इस तरह नज़र आते हैं मानो केवल औपचारिकता निभाई जा रही हो। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस समय बेहद गदगद हैं और वे त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए कह चुके हैं कि “खैरागढ़ उप चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा झटका यदि किसी को लगेगा तो वह डॉ. रमन सिंह को लगेगा।“ संभावना यही है कि अब कोई उप चुनाव नहीं होगा। जो भी होगा सीधे 90 सीटों पर चुनाव होगा। किसी भी बड़े विपक्षी दल के लिए चुनावी तैयारी हेतु 20 महीने का समय काफ़ी होता है। निश्चित रूप से दिसंबर 2023 का जो विधानसभा चुनाव होगा 2018 के चुनाव की तुलना में काफ़ी रोचक होगा।

राज्यसभा की ख़्वाहिश और

सूरज के चमक की अभिलाषा

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने मीडिया के सामने फिर दोहराया कि “राजनीतिक जीवन के इस पड़ाव में मैं राज्यसभा जाना चाहता हूं। मैंने सब जगह काम कर लिया। यह एक जगह बची हुई है।“ वैसे डॉ. महंत शत प्रतिशत सही कह रहे हैं। एक समय था जब उन्होंने सरकारी नौकरी की थी। वे नायब तहसीलदार थे। उनके पिता बिसाहू दास महंत अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में मंत्री रहे थे। कांग्रेस को जब लगा कि बिसाहूदास जी के उत्तराधिकारी के रूप में चरणदास महंत में अपार संभावनाएं हैं तो उनके पास राजनीति में आने का प्रस्ताव रखा गया। चरणदास महंत प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिए और राजनीति की मुख्यधारा में आ गए। उन्हें विधायक की टिकट मिली। चुनाव जीते और विधायक बने। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तब दूसरे नंबर पर सबसे ताकतवर मंत्री डॉ. चरणदास महंत को ही माना जाता था। मध्यप्रदेश सरकार में वे मंत्री तो रहे ही पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कोरबा से लोकसभा चुनाव लड़े, जीते और केन्द्र सरकार में भी मंत्री रहे। 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आई तो वे विधानसभा अध्यक्ष बने। डॉ. महंत यदि कहते हैं कि मैंने सभी जगह काम कर लिया तो गलत नहीं कहते। यही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में डॉ. महंत कोरबा से अपनी पत्नी श्रीमती ज्योत्सना महंत को जितवाने में भी कामयाब रहे। कांग्रेस संगठन में गहरी पकड़ रखने वालों का मानना है कि डॉ. महंत ने तो सब कुछ पा लिया अब उनके बेटे सूरज महंत की बारी है। सूरज की पार्टी में सक्रियता दिखने लगी है। यदि डॉ. महंत की इच्छा के अनुरूप उन्हें राज्यसभा में जाने का अवसर मिल जाता है तो पूरी संभावना रहेगी कि अगले विधानसभा चुनाव में सूरज उम्मीदवार के रूप में मैदान में दिखें। हर पिता अपने पुत्र को चमकते हुए देखना चाहता है। स्वाभाविक है कि डॉ. महंत अब सूरज में राजनीतिक चमक देखना चाह रखे रहे हों।

जोगी के बाद अब

कर्मा पर बायोपिक

पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी पर छत्तीसगढ़ी में फ़िल्म बन रही है। झीरम घाटी नक्सली हमले में शहीद हुए नेता महेन्द्र कर्मा पर भी हाल ही में फ़िल्म बनाने की घोषणा हुई है। यानी एक तरफ जनता कांग्रेस के नेता रहे जोगी जी पर फ़िल्म बन रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे नेता महेन्द्र कर्मा पर। महेन्द्र कर्मा पर बनने वाली बायोपिक का नाम ‘बस्तर टाइगर’ होगा। अगर यह दोनों फ़िल्में निर्धारित समय पर बन जाती हैं तो निर्माणकर्ताओं की यही कोशिश रहेगी कि 2023 में इनका प्रदर्शन हो जाए। दिसंबर 2023 में विधानसभा चुनाव संभावित है। स्वाभाविक है कि कांग्रेस व जनता कांग्रेस दोनों ही पार्टियां फ़िल्म के माध्यम से अपने दिवंगत नेताओं की तस्वीरें सामने लाकर चुनाव से पहले मतदाताओं की सहानुभूति अर्जित करना चाहेंगी। कांग्रेस व जनता कांग्रेस को तो अपने यादगार नेता का चेहरा फ़िल्म बनाने के लिए मिल गया लेकिन राजनीतिक चर्चाओं में मशगूल रहने वाले लोग बार-बार यह सवाल खड़े करते दिख जाते हैं कि क्या छत्तीसगढ़ में भाजपा के पास भी ऐसा कोई बड़ा फेस है जिन पर फ़िल्म बने सके? इसके जवाब में कभी स्व. दिलीप सिंह जूदेव का नाम सामने आता है तो कभी बस्तर के आदिवासी नेता स्व. बलिराम कश्यप का।

कब दौड़ेंगी सिटी बसें

मंत्रालय में सड़क दुर्घटना को रोकने के लिए बुलाई गई बैठक में मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने रायपुर-दुर्ग समेत अन्य स्थान पर सिटी बस सेवा बंद होने पर नाराजगी जताई। कोरोना आने के बाद से सिटी बस सेवा जो बंद हुई तो अब तक शुरु नहीं हो पाई है। मार्च में हुए विधानसभा के बजट सत्र में इस पर भाजपा विधायक विद्यारतन भसीन की ओर से सवाल भी लगा था। इस पर नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया की तरफ से जवाब आया था कि “वर्तमान में रायपुर व दुर्ग संभाग में सिटी बसों का संचालन नहीं किया जा रहा है। 23 मार्च 2020 से यह सार्वजनिक परिवहन सेवा बंद की गई थी। रायपुर एवं दुर्ग संभाग के बस ऑपरेटर व्दारा कोरोना महामारी के दौरान रोड टैक्स माफ करने एवं डीजल, चालक, परिचालक, बीमा टैक्स, किराया एवं बसों के रखरखाव के खर्च में वृद्धि होने के कारण अरबन पब्लिक सर्विस सोसायटी से अनुदान राशि की मांग की जा रही है। इसका अनुबंध में प्रावधान नहीं है।“ मंत्री जी के इस जवाब से यही प्रतीत होता है कि सिटी बस का संचालन शुरु होने में अभी और वक़्त लग सकता है। राजधानी रायपुर की बात है तो बस स्टैंड भाटागांव में शिफ्ट हो जाने के बाद यहां सिटी बस की आवश्यकता पहले से कहीं और ज़्यादा महसूस की जा रही है। इसलिए की बस स्टैंड अब शहर के मध्य में नहीं एक अलग ही छोर पर हो गया है। सिटी बसें चल रही होतीं तो यात्रियों को भाटागांव पहुंचाने में काफ़ी मददगार होतीं। कोरोना का कोहरा छंटे महीनों बीत गए लेकिन बस ऑपरेटर एवं प्रशासन के बीच कई दौर की बातचीत होने के बाद भी इसका कोई समाधान निकलते नहीं दिख रहा है।

7 महीने में 3 सीईओ

जा चुके आरडीए से

ये रायपुर विकास प्राधिकरण मानो प्रयोगशाला हो गया है। सात महीने में तीन बार यहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी रहे अफसरों का तबादला हो चुका है। आरडीए अध्यक्ष सुभाष धुप्पड़ राजनीति के पके हुए खिलाड़ी हैं अतः इस तरह के परिवर्तन से उन्हें तो कोई फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन वहां दो उपाध्यक्ष एवं चार संचालक मंडल के जो सदस्य हैं वह चकित हैं कि आख़िर यह सब हो क्या रहा है! सूर्यमणि मिश्रा एवं शिव सिंह ठाकुर समेत चार अन्य संचालक मंडल सदस्यों ने क़रीब आठ महीने पहले राविप्रा में पदभार ग्रहण किया था। इनके देखते ही देखते में तीन आईएएस सीईओ डॉ. अय्याज तंबोली, रितुराज रघुवंशी एवं अभिजीत सिंह का तबादला हो चुका है। अब आईएएस चंद्रकांत वर्मा आरडीए के नये सीईओ बनाए गए हैं। इससे पहले वर्मा रायपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में अतिरिक्त प्रबंध संचालक रहे। वे छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं। गौर करने लायक बात यह भी है कि अभिजीत सिंह आरडीए सीईओ के अलावा रायपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के प्रबंध संचालक भी थे। अभिजीत सिंह को दोनों जिम्मेदारियों से मुक्त करते हुए छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन के प्रबंध संचालक पद पर पदस्थ किया गया है। स्मार्ट सिटी में उनकी जगह आईएएस मयंक चतुर्वेदी आए हैं। देखा जाए तो स्मार्ट सिटी में भी कुछ ही महीनों के भीतर आईएएस प्रभात मलिक एवं अभिजीत सिंह प्रबंध संचालक के रूप में थोड़े समय ही अपनी सेवाएं दे पाए। इस सब के बाद लगातार सवाल खड़े होते आ रहे हैं कि रायपुर नगर निगम, रायपुर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट एवं रायपुर विकास प्राधिकरण से जुड़े बड़े-बड़े फैसले आख़िर ले कौन रहा है? नया रायपुर में गहरी नज़र रखने वाले तो यही बताते हैं कि जिस पर्सन ने प्रशासन में रहते हुए इन तीनों संस्थाओं को लंबे समय तक नजदीक से देखा है वही पावरफूल होने के बाद बहुत सी चीजें तय कर रहा है।

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