■ अनिरुद्ध दुबे
पृथक बस्तर राज्य की मांग एक बार फिर उठ खड़ी हुई है। हाल ही में कम्यूनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने बस्तर में एक सम्मेलन बुलाया था, जिसमें पृथक बस्तर राज्य की मांग उठी। सम्मेलन में दक्षिण बस्तर के ज़्यादा लोगों की मौजूदगी थी। दिलचस्प यह है कि कांग्रेस से लेकर भाजपा, राकांपा एवं बसपा जैसी राजनीतिक पार्टियों में बारी-बारी से रह चुके पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम भी इस सम्मेलन में शिरकत किए। 2011 या 2012 की बात रही होगी अरविंद नेताम ने रायपुर रेल्वे स्टेशन के पास स्थित एक हॉटल में मीडिया वालों को बातचीत के लिए बुलाया था। बातचीत के दौरान उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा था कि “पृथक दंडकारण्य (बस्तर) की ज़रूरत है”, हालांकि उनके इस मुद्दे को मीडिया में कोई स्थान नहीं मिला था, लेकिन एक बार फिर पृथक बस्तर राज्य का सुर तो उठने लगा है। बताया तो यह भी जाता है कि कुछ साल पहले ओड़िशा के कोरापुट में भी एक सम्मेलन हुआ था, जिसमें अरविंद नेताम मौजूद थे। उस सम्मेलन में कुछ इस तरह की बात उभरकर सामने आई थी कि ओड़िशा, आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्से और बस्तर को मिलाकर एक नया राज्य बनाया जा सकता है। यह भी बताया जाता है सन् 2010 में पृथक बस्तर राज्य को लेकर गीदम में भूमकाल की पहली बैठक हुई थी। बस्तर में पृथक राज्य की जब भी बात उठती है तो यह बात जोर देकर कही जाती है कि बस्तर जो कभी एक जिला हुआ करता था, सात जिलों में विभाजित हो चुका है, फिर भी यहां विकास की रफ़्तार सुस्त है। पूर्व में बस्तर कलेक्टर रह चुके ब्रह्मदेव शर्मा ने बरसों पहले पृथक दंडकारण्य की बात उठाई थी। बस्तर को लेकर ब्रम्हदेव शर्मा किस तरह सुर्खियों में रहा करते थे वह सर्वविदित है। यह भी उल्लेखनीय है कि सुकमा से जब वहां के तत्कालीन कलेक्टर एलेक्स पाल मेनन का नक्सलियों ने अपहरण कर लिया था तब सरकार व नक्सलियों के बीच जो लोग बातचीत की कड़ी बने थे उनमें ब्रह्मदेव शर्मा भी एक थे।
‘निजात’ बनाम ‘गैंग्स
ऑफ रायपुर’
कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस के दूसरे दिन प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि “राज्य में नशाखोरी बहुत बड़ी समस्या है। इस पर तत्काल नियंत्रण पाने की ज़रूरत है।“ मुख्यमंत्री की चिंता स्वाभाविक है। यदि प्रदेश की किसी स्कूल में छात्राएं पार्टी करते हुए बीयर का मज़ा लेती नज़र आएं तो भला मुखिया को चिंता क्यों न हो! नशाखोरी पर अंकुश लगाने के लिए ही तो इन दिनों प्रदेश में ‘निजात’ अभियान चला हुआ है। ‘निजात’ यानी छुटकारा या मुक्ति। आईपीएस संतोष सिंह ने ‘निजात’ अभियान की शुरुआत की है। संतोष सिंह इस समय रायपुर एसएसपी हैं। ‘निजात’ अभियान रायपुर से पहले बिलासपुर, कोरबा, राजनांदगांव एवं कोरिया जिलों में चलाया जा चुका है। एक फ़िल्म मेकर ने तो ‘निजात’ व कुछ अन्य पहलुओं को लेते हुए ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ नाम से फ़िल्म बनाने की ही घोषणा कर दी है। ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी मिलाकर पांच भाषाओं में बनाने की घोषणा की गई है। ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ फ़िल्म की प्रोडक्शन टीम ने पिछले दिनों राजधानी रायपुर के एक मल्टीप्लेक्स में कास्ट रिवील का आयोजन किया। इस अवसर पर ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ की टीम ने कहा कि “राजधानी रायपुर में पुलिस विभाग व्दारा चलाए जा रहे ‘निजात’ अभियान का विशेष सहयोग प्रोडक्शन यूनिट को मिल रहा है।“ फिर कास्ट रिवील में मीडिया की तरफ से सवाल भी उठा कि रायपुर शहर में बड़े गैंगवार जैसी घटना कभी नहीं हुई, तो फिर फ़िल्म का नाम ‘गैंग्स ऑफ रायपुर’ क्यों?
दुर्दशा की जवाबदेही किसकी
नगर निगम या पर्यटन की…
राजधानी रायपुर के प्राचीन बूढ़ातालाब, उसके मध्य में बने नीलाभ उद्यान एवं बगल से बने एक और नये उद्यान की दुर्दशा की कहानियां लिखकर या टीवी पर दिखाकर मीडिया थके जा रहा है। इस दुर्दशा की ज़िम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं। नगर निगम या स्मार्ट सिटी के ज़िम्मेदार लोगों से बात करो तो कहते हैं सारा का सारा कुछ पर्यटन विभाग को हैंड ओवर किया जा चुका है। ज़वाब वहीं से मिलेगा। पर्यटन विभाग के ज़िम्मेदार लोगों से बात करने पर ज़वाब मिलता है नगर निगम या स्मार्ट सिटी ने जिस हाल में दिया, हमने वैसा लिया। इसलिए ज़वाब वहीं से मिलेगा। बताते हैं बूढ़ातालाब एवं उसके आसपास कायाकल्प के नाम पर क़रीब 23 करोड़ खर्च हुए। ठेकेदार समेत कुछ अन्य लोग कमाकर निकल लिए। अब मीडिया सवाल पर सवाल उठा रहा है और नगर निगम व पर्यटन विभाग एक दूसरे पर दोष मढ़े जा रहे हैं। कला, संस्कृति एवं विरासत का गहरा अनुभव प्राप्त कर चुके आईएफएस अफ़सर विवेक आचार्य को हाल ही में पर्यटन विभाग के प्रबंध संचालक का प्रभार मिला है। अब देखना यह होगा कि बूढ़ातालाब एवं उसके आसपास उजड़े हुए चमन को लेकर होने वाले सवालों पर उनका क्या ज़वाब होगा?
तो क्या नगर निगम में
एक बार फिर प्रशासक
का दौर आएगा
इन दिनों यह भी चर्चा चली हुई है कि पिछड़ा वर्ग समुदाय (ओबीसी) के सर्वे में हो रही देर के कारण दिसंबर में होने वाला नगर निगम चुनाव फरवरी-मार्च तक के लिए आगे बढ़ सकता है। रायपुर नगर निगम की बात करें तो यहां के महापौर एवं पार्षदों का कार्यकाल 5 जनवरी के बाद समाप्त हो जाना है। यदि चुनाव आगे बढ़ा तो फिर नगर निगम में प्रशासक बैठाना पड़ेगा। प्रशासक पद पर आईएएस अफ़सरों के बैठने का इतिहास रहा है। इसे लेकर कई तरह की अटकलों का दौर चल पड़ा है। उल्लेखनीय है रायपुर नगर निगम में पूर्व में जब प्रशासक बैठते रहे थे तो उनके अधिनस्थ निगम कमिश्नर भी रहा करते थे। प्रशासक ‘आईएएस’ रहा करते थे तो निगम कमिश्नर पद पर ‘राज्य प्रशासनिक सेवा’ के अफ़सर हुआ करते थे। इक्का-दुक्का अपवाद को छोड़ दें तो महापौर एवं पार्षदों के कार्यकाल में रायपुर नगर निगम में कमिश्नर पद का उत्तरदायित्व आईएएस अफ़सरों को ही दिया जाता रहा है। ऐसे में कुछ प्रश्न हवा में तैर रहे हैं कि यदि रायपुर नगर निगम में प्रशासक की ज़िम्मेदारी किसी आईएएस को दी जाएगी तो क्या निगम कमिश्नर पद पर भी कोई आईएएस रहेगा? या पूर्व की परंपरा के तहत राज्य प्रशासनिक सेवा के किसी अफ़सर को निगम कमिश्नर की ज़िम्मेदारी सौंपी जाएगी? क्या ऐसा भी हो सकता है कि वर्तमान में रायपुर नगर निगम कमिश्नर अबिनाश मिश्रा को ही अल्प समय के लिए प्रशासक का दायित्व सौंप दिया जाए? यदि वे प्रशासक बने तो फिर उनके नीचे निगम कमिश्नर कौन होगा? क्या यह भी हो सकता है कि किसी अन्य विभाग का उत्तरदायित्व संभाल रहे किसी सीनियर आईएएस अफ़सर को प्रशासक का अतिरिक्त प्रभार दे दिया जाए? इस तरह के सवालों की कमी नहीं। महापौर, पार्षदों से लेकर निगम के अफ़सरों तक को अक्टूबर माह का बेसब्री से इंतज़ार है। दिसंबर में निगम चुनाव होना है या फिर फरवरी-मार्च तक के लिए आगे बढ़ जाना है, इस पर तस्वीर अक्टूबर में ही जाकर साफ होगी।
अच्छा है टल जाए, राजीव
भवन में रौनक
तो बनी रहेगी
जिस तरह नगर निगम एवं पालिका चुनाव फरवरी या मार्च में होने की अटकलों का दौर चल रहा है लोकसभा, विधानसभा से लेकर नगर निगम चुनाव तक का गहरा अनुभव रखने वाले एक पुराने कांग्रेसी की मज़ेदार प्रतिक्रिया सामने आई है। उसने कहा कि “यदि चुनाव फरवरी या मार्च तक टल जाता है तो अच्छा ही रहेगा। कम से कम राजीव भवन (रायपुर) में लोग रोज़ाना आते-जाते रहेंगे और थोड़ी रौनक बने रहेगी। 2023 में सरकार जाने के बाद से राजीव भवन में लोगों का आना-जाना बहुत कम हो गया है। याद करें 2003 का वह दौर जब जोगी जी की सरकार गई थी तो पुराने कांग्रेस भवन में जमकर सन्नाटा पसरे रहता था। आलम यह कि वहां चार-चार, पांच-पांच दिन झाड़ू तक नहीं लगता था। दुनिया परिवर्तनशील है यह वाक्य कांग्रेस पर एकदम फिट बैठता है।“