■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने डीए एवं अन्य मांगों को लेकर शुक्रवार को प्रदेश स्तर पर एक दिवसीय हड़ताल की। फेडरेशन यानी बहुत से कर्मचारी संगठनों को मिलाकर बना एक संगठन। हड़ताल से पहले नया रायपुर में तो यही हवा उड़ी हुई थी कि 17 सितंबर को बढ़े हुए डीए की घोषणा होने जा रही है। मंत्री जी की तरफ से कुछ कर्मचारी नेताओं को ऐसा कुछ इशारा मिला भी था, लेकिन और ऊपर से जहां हरी झंडी मिलनी थी नहीं मिली। मंत्रालयीन कर्मचारी संघ ने इस हड़ताल से खुद को अलग रखा। बरसों पहले जब 20 मान्यता प्राप्त कर्मचारी संघों को मिलाकर एक फेडरेशन अस्तित्व में आया था उसमें मंत्रालयीन कर्मचारी संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। उस दौर में जब कभी हड़ताल हुआ करती मंत्रालयीन कर्मचारी संघ आगे रहा करता था। अब हालात बदल चुके। तालमेल बैठ पाना पहले की तरह आसान नहीं रहा।
मैडम की दहशत
नया रायपुर में एक महिला अफ़सर की दहशत से उनका पूरा डिपार्टमेंट थर्राया रहता है। कभी छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्र में सेवाएं दे चुकीं इन अफ़सर का जंगल से गहरा जुड़ाव है। इनके कोपभाजन के शिकार एक कर्मचारी ने तो बीच में यहां तक कह दिया था कि “ऐसे में जीने का कोई मतलब नहीं रह जाता।“ गनीमत है कि वह बोलकर रह गया। कोई ऐसा वैसा कदम नहीं उठाया। मैडम जी को जिसकी शक्ल पसंद नहीं आए उसकी ख़ैर नहीं। वह दफ़्तर के गेट पर ड्यूटी बजा रहे सूरक्षा अधिकारी को भी कहने से नहीं चूकतीं कि यदि फैलाना आए तो घुसने मत देना। याद करने वाले उन दिनों को भी याद करते हैं जब मोहतरमा कभी किसी पंचायती विभाग से हटीं थीं तो खुशी के मारे कुछ लोग मिठाई तक बांटे थे।
जिला सेनानी नगर
सेना का खौफ़
रायपुर जिले से लगे एक पड़ोसी जिले में लंबे समय से पदस्थ जिला सेनानी नगर सेना ने भी दहशत फैला रखी है। उसके अधिनस्थ काम कर रहे लोग छलछलाते आंसू के बीच अपनी दर्द भरी कहानी सुनाते नज़र आ जाते हैं। कुछ पीड़ितों ने अपनी दर्द भरी कहानी वहां के विधायक के सामने जाकर सुनाई। दर्द भरी दास्तान सुनकर विधायक भावूक हो गए और उन्होंने बिना देर किए उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा को पत्र लिखा कि “जिला सेनानी नगर सेना एक ही जिले में वर्ष 2019 से लगातार नियम विरुध्द पदस्थ है। इनके व्दारा नगर सैनिकों को प्रताड़ित करने की लगातार शिकायतें रही हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त रहने तथा नगर सैनिकों से पैसे लेकर स्थानांतरण करने जैसी अलग शिकायतें हैं। अन्यत्र किसी जिले में इनका स्थानांतरण किया जाए।“ विधायक जी ने इसी साल मार्च महीने में उप मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। उस जिला सेनानी नगर सेना की गहरी पकड़ का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि कोई भी उसका बालबांका नहीं कर पाया है।
मंत्री का आर्टिकल और
पत्रकार बिरादरी
की असहमति
हाल ही में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का पंडित दीनदायाल उपाध्याय पर लिखा जो आर्टिकल प्रकाशित हुआ उस पर मीडिया जगत में लंबी बहस छिड़ी हुई है। जायसवाल के आर्टिकल में पंडित दीनदायाल उपाध्याय के जीवन चरित्र पर जो प्रकाश डाला गया वह न सिर्फ़ पठनीय है बल्कि नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद भी है। मुश्किलें आर्टिकल के आखरी पैराग्राफ पर जाकर खड़ी हो गई हैं। आखरी पैराग्राफ का शीर्षक है “छत्तीसगढ़ सरकार ने रखा मीडिया का पूरा सम्मान।“ इस शीर्षक और उसके भीतर वर्णित बातों पर कितने ही लोगों की घोर असहमति सामने आ रही है। शीर्षक में भले ही पढ़ने में जो कुछ आए, लेकिन सच बात तो यह है कि नई सरकार बनने के बाद मीडिया को लेकर ऐसा कोई भी बड़ा निर्णय नहीं हुआ है जिस पर पत्रकार बिरादरी तारीफ़ के दो शब्द बोल सके। वास्तविकता यह है कि पूर्व में जनसंपर्क विभाग से पत्रकारों को मिलने वाली आर्थिक सहायता सिर्फ 50 हज़ार रुपए थी। पिछली कांग्रेस सरकार ने इसे बढ़ाकर 2 लाख करने की घोषणा की थी। सेवानिवृत्त पत्रकारों के लिए मीडिया सम्मान निधि मात्र 5 हज़ार रुपए थी। इसे बढ़ाकर पिछली सरकार ने 10 हज़ार रुपए प्रति माह किया। उस पर भी रमन सरकार के समय में यह प्रावधान था कि हर पांच वर्ष में मीडिया सम्मान निधि की समीक्षा की जाएगी। पिछली सरकार ने इस नियम को हटाया और पात्र पत्रकारों के लिए मीडिया सम्मान निधि राशि बिना कोई सवाल खड़े किए आजीवन देने का प्रावधान किया। कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में भी थीं। 2023 के विधानसभा चुनाव से पूर्व घोषणा पत्र में पत्रकार हितों से जुड़े कौन से बिन्दू रखे जा सकते हैं इस पर भाजपा ने एकात्म परिसर में मीडिया बिरादरी को बुलाकर राय मांगी थी। मीडिया वालों ने कितने ही सूझाव रखे थे लेकिन एक भी सूझाव को घोषणा पत्र में स्थान नहीं मिला। आज सेवानिवृत्त अधिमान्य पत्रकारों को सरकार दस हज़ार रुपये महीना सम्मान निधि दे रही है। कुछ पत्रकार ऐसे हैं जिनका दस हज़ार या उससे ज़्यादा पैसा दवाओं में ही खर्च हो जाता है। यह राशि बढ़ाकर 20 से 30 हज़ार तक करने पूर्व में सूझाव दिया जा चुका है, जिस पर सरकार कोई फैसला नहीं ले पाई। इसके अलावा सरकार में बैठे ज़िम्मेदार लोगों के कानों तक यह बात लगातार पहुंचाई जाती रही है कि सम्मान निधि प्राप्त करने वाले पत्रकार की यदि मृत्यु हो जाती है तो उसकी आश्रिता पत्नी को सम्मान निधि जारी रखने का प्रावधान होना चाहिए। इस पर भी कभी गंभीरता से विचार होते नहीं दिखा। राजधानी रायपुर के पत्रकारों का आवास/भूखंड वाला मसला अलग लंबे समय से पेंडिंग है। बिलासपुर एवं राजनांदगांव के पत्रकारों को तत्कालीन भूपेश बघेल सरकार ने बेहद रियायती दर पर भूखंड उपलब्ध कराया था। विष्णुदेव साय सरकार चाहे तो रायपुर के पत्रकारों के लिए ऐसा कोई कदम उठा सकती है।
अशोक अग्रवाल
का भाजपा प्रवेश
सेवानिवृत्त आईएएस अफ़सर अशोक अग्रवाल ने भाजपा की सदस्यता ले ली। रायपुर कलेक्ट्रेट से लेकर रायपुर नगर निगम कमिश्नर, नया रायपुर फिर राज भवन किन-किन पड़ाव से अग्रवाल नहीं गुजरे होंगे। वे रायपुर नगर निगम में उस समय कमिश्नर रहे थे जब भाजपा नेता सुनील सोनी महापौर थे। तेज बारिश होने पर जैसा कि आज रायपुर शहर के कई हिस्सों में जलभराव हो जाता है वैसा तब भी हुआ करता था जब अग्रवाल निगम कमिश्नर थे। वह टीवी न्यूज़ चैनलों का युग तो था नहीं तब अख़बारों का ख़ूब डंका बजा करता था। जब भी जलभराव होता अक्सर अख़बारों में हैंडिंग लग जाया करती “तेज बारिश ने खोली निगम की सफाई व्यवस्था की पोल।“ इस हैंडिंग पर अग्रवाल को सख़्त आपत्ति हुआ करती थी और वे कहा करते थे “ये पोल खुलना क्या होता है। ऐसा क्या छिपा हुआ होता है जिससे कि पोल खुल जाती है।“ अब अग्रवाल साहब ने भाजपा की सदस्यता ले ली है। राजनीति में आपत्ति का बहुत कम स्थान होता है ऊपर से जो भी निर्णय हो वही सर्वमान्य हुआ करता है। पुराने भाजपाई जो कभी अग्रवाल की प्रशासनिक कार्यशैली को देखे रहे हैं उन्हें उनकी काबिलियत पर पूरा भरोसा है। इन भाजपाईयों का कहना है अग्रवाल साहब अपने सेवाकाल में कितनी ही कठिन परिस्थितियां क्यों न रही हों, हारकर कभी पीछे हटते नहीं दिखे। एडजेस्टमेंट की उनके भीतर अद्भुत क्षमता है और राजनीति में यही तो चाहिए होता है।
मंत्रालय को चपरासियों
का इंतज़ार
बताते हैं मंत्रालय में बड़े साहब चाहकर भी चपरासियों की पोस्टिंग नहीं कर पा रहे हैं। बीच में चपरासियों की भर्ती के लिए पीएससी का रास्ता चुना गया था। प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब चपरासी पद के लिए पीएससी के माध्यम से आवेदन बुलाए गए थे। मौखिक तौर पर तो चपरासी पद पर कुछ लोगों को रख लिया गया लेकिन लिखित तौर पर इनकी पदस्थापना नहीं हो पाई है। सारा कुछ परिवीक्षा आधार पर चल रहा है। जबकि ऐसे कई विभाग हैं जहां तत्काल में चपरासियों की आवश्यकता है।