● कारवां (24 अप्रैल 2022)- खैरागढ़ का जश्न और 23 का लक्ष्य

■ अनिरुद्ध दुबे

खैरागढ़ उप चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिलने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पार्टी के संचार विभाग एवं प्रदेश संगठन से जुड़े लोगों को डिनर पर बुलाने में देर नहीं लगाई। डिनर पर गए कुछ लोगों का अनुमान था कि सीएम साहब का अंदाज़ काफ़ी जोश खरोश वाला नज़र आएगा, लेकिन वहां तस्वीर कुछ अलग हटकर थी। ख़बर यही है कि डिनर में मुख्यमंत्री के चेहरे पर खुशी तो दिखी पर लेकिन कहीं-कहीं पर वे गंभीर भी नज़र आए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “कोई यह गलतफहमी में न रहे कि इतनी बड़ी जीत आसानी से झोली में आ गिरी। मंत्रियों से लेकर कितने ही विधायकों ने खैरागढ़ में खुद को झोंका। जब एक उप चुनाव को साधने में इतनी ताकत लगानी पड़ती है तो सोच लीजिए कि 2023 के विधानसभा आम चुनाव में कैसे जमकर लड़ना पड़ेगा। उप चुनाव में मिली बड़ी जीत की खुशी में देर तक न खोए रहें। 2023 की तरफ देखें।“

कौन होगा ‘आप’ का चेहरा

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने और छत्तीसगढ़ के डॉ. संदीप पाठक के ‘आप’ की तरफ से राज्यसभा में जाने से प्रदेश में बड़ी राजनीतिक हलचल पैदा हो ही गई है। राजधानी रायपुर में आए दिन ‘आप’ की प्रेस कांफ्रेंस हो रही है। ‘आप’ के नेता भरपूर आत्मविश्वास के साथ कहते नज़र आ रहे हैं कि “छत्तीसगढ़ में हम सरकार बनाएंगे।“ ख़ैर यह तो राजनीतिक बोल-चाल की भाषा हुई। कभी बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी के नेता भी कहा करते थे कि छत्तीसगढ़ में सरकार बनाएंगे। विधानसभा चुनाव में बसपा की इक्का-दुक्का सीटें तो आती भी रही हैं लेकिन सपा का तो यहां कभी कोई वज़ूद ही नहीं बन पाया। छत्तीसगढ़ में कभी वज़ूद बना भी था तो विद्याचरण शुक्ल के कारण राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा अजीत जोगी के कारण छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का बना था। आज की तारीख़ में देखें तो छत्तीसगढ़ में राकांपा एवं जकां हैं भी और नहीं भी हैं। रही बात ‘आप’ की तो छत्तीसगढ़ में उसकी धमक हो चुकी है। 2023 में ‘आप’ यदि डॉ. संदीप पाठक का चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करते हुए चुनाव लड़े तो अचरज वाली बात नहीं होगी। ‘आप’ के लोग छत्तीसगढ़ की दोनों ही बड़ी राजनातिक पार्टियों से जुड़े कुछ पुराने चर्चित चेहरों के लगातार संपर्क में हैं। माना जा सकता है कि 2023 का चुनाव 2018 के चुनाव की तुलना में ज़्यादा रोचक होगा।

अमेरिका और रायपुर

केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने राजधानी रायपुर में विभिन्न योजनाओं के शिलान्यास समारोह में अपने उद्बोधन में कहा कि “आने वाले पांच वर्षों में छत्तीसगढ़ की सड़कें अमेरिका की सड़कों की तरह दिखने लगेंगी।“ गडकरी जी के इस कथन को लेकर राजनेता से लेकर आम जनता तक में जिज्ञासा पैदा हो गई है कि क्या ऐसा हो पाना संभव है? बात कह देने की है तो लोग क्या नहीं कह देते। अजीत जोगी जब मुख्यमंत्री थे तो एक बार कह गए थे कि “हवाई जहाज से रायपुर शहर स्वीट्जरलैंड की तरह नज़र आता है।“ इसी तरह पिछली भाजपा सरकार में अमर अग्रवाल मंत्री थे तो वे कह गए थे कि “बिलासपुर की अरपा नदी को लंदन की टेम्स नदी जैसा खूबसूरत बना देंगे।“ क्या रायपुर शहर स्वीट्जरलैंड जैसा मनमोहक बन गया या अरपा, टेम्स जैसी खूबसूरत हो गई, इसका जवाब तो नीर-क्षीर करने वाले ही दे सकते हैं।

पी.एस.ओ. से पता

चलता है क़द का

किसी नेता के आगे या पीछे पीएसओ (सूरक्षा सेवा अधिकारी)  चले तो उसकी शख़्सियत में चार चांद लग ही जाते हैं। पीएसओ न सिर्फ मंत्री, सांसद या विधायक बल्कि जिनके पद के आगे पूर्व भी लिखा हो उन्हें भी मिल जाते हैं। यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह किस पूर्व को पीएसओ दे और किसे न दे। रायपुर के एक पूर्व विधायक को पीएसओ मिला हुआ है। उन्हें पीएसओ मिलना एक पूर्व मंत्री को अखर रहा है। वह अपने क़रीबी लोगों के बीच यह कहने से नहीं चूकते कि ऊपर बैठे लोग पूर्वाग्रह से पीड़ित हैं। उनका भेदभाव वाला यह आचरण ठीक नहीं। कभी काफ़ी आक्रामक रहने वाले ये पूर्व मंत्री जी इन दिनों शांत हैं। जानकार लोग बताते हैं कि वे भीतर ही भीतर 2023 की तैयारी में लगे हुए हैं।

मायूसी क्यों…

हाल ही में नगरीय प्रशासन विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने निर्देश दिए कि “ले आउट पास करने का अधिकार अब नगर निगम को सौंपा जाएगा। अब तक टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग व्दारा ले आउट पास किया जाता था। नागरिकों को अब किसी भी काम के लिए दो विभागों को चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।“ मुख्यमंत्री के इस निर्देश के बाद रायपुर नगर निगम में कुछ उन जन प्रतनिधियों की आंखों की चमक तेज हो गई है जो दूसरी, तीसरी या चौथी बार पार्षद चुनाव जीतकर आए हैं। निगम के गलियारे में यह भी चर्चा है कि नगर निगम के नगर निवेशक का महत्व अब पहले से ज़्यादा बढ़ जाएगा। मामले बड़े स्तर के होंगे तो निगम कमिश्नर की भूमिका भी बड़ी हो जाएगी। दूसरी तरफ टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के कुछ निचले स्तर के स्टाफ में मायूसी नज़र आने की ख़बर है। आख़िर ये मायूसी क्यों, यह पता करने लायक बात है।

युवा नेता का बढ़ता ग्राफ

सत्तारूढ़ पार्टी के एक युवा नेता का ग्राफ इन दिनों तेजी से  ऊपर जा रहा है। कभी इस नेता का सागौन घर से गहरा रिश्ता था। बदलाव की हवा को देखते हुए उसने समय रहते राजनीतिक घर बदल लेना ठीक समझा जिसका उसे फायदा भी मिला। विपक्ष के एक कद्दावर नेता को इस युवा नेता से अदालत में कड़ी चुनौती मिली हुई है। खैरागढ़ उप चुनाव में इस युवा नेता की सक्रियता देखते बनी। बताया तो यह भी जाता है कि गरियाबंद-मैनपुर क्षेत्र इन दिनों इस युवा नेता की कर्मभूमि बना हुआ है। ‘बिग बॉस’ को भी अब इनकी क़ाबिलियत पर भरोसा होने लगा है और आजकल वे इस युवा नेता को स्नेह भरी निगाहों से देखने लगे हैं।

फ़िल्ममय वातावरण

पूरे छत्तीसगढ़ का वातावरण मानो इस समय फ़िल्ममय हो गया है। छत्तीसगढ़ सरकार के सलाहकार गौरव व्दिवेदी के अभिनेता एवं निर्देशक मित्र तिग्मांशु धुलिया की मानो मुम्बई के बाद छत्तीसगढ़ दूसरी कर्मभूमि हो गई है। बीच-बीच में धुलिया का छत्तीसगढ़ चक्कर लगते रहता है। छत्तीसगढ़ टूरिज़्म बोर्ड के प्रबंध संचालक अनिल कुमार साहू मुंबई गए तो वहां उन्होंने निर्माता, निर्देशक और अभिनेता सुजॉय मुखर्जी से न सिर्फ छत्तीसगढ़ की फ़िल्म पॉलिसी पर चर्चा की बल्कि उनके साथ जोरदार फोटो खिंचवाकर उसे सोशल मीडिया में शेयर भी किया। ‘कहो न प्यार है’ और ‘गदर एक प्रेमकथा’ फ़ेम हीरोइन अमिषा पटेल रायपुर आईं तो महापौर एजाज़ ढेबर ने उन्हें अपने बंगले में आमंत्रित किया। साथ ही छत्तीसगढ़ से जुड़ी फ़िल्म संभावनाओं पर उनसे बातचीत भी की। इन नये घटनाक्रम से अवगत होने के बाद सरकारी सलाहकार गौरव व्दिवेदी को उनके एक-दो क़रीबी मित्रों ने सलाह दी है कि “यार फ़िल्म पॉलिसी पर चिंता करने वाले यहां बहुत लोग हो गए हैं। इससे आपके सिर का बोझ भी कुछ कम हो गया होगा। अब तो आप लंबी छुट्टी लेकर कहीं घूम-घाम आओ।“

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