‘चल हट कोनो देख लिही’ नारी शक्ति को सलाम- सतीश जैन

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ी सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर सतीश जैन की बहु प्रतिक्षित फ़िल्म ‘चल हट कोनो देख लिही’ 13 मई को छत्तीसगढ़ के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है। ‘चल हट…’ के ट्रेलर को बड़ी तारीफ़ मिल रही है। यू ट्यूब पर इसके गाने भी लगातार देखे जा रहे हैं। सतीश जी ने इस बार नये हीरो दिलेश साहू पर हाथ आज़माया है। ट्रेलर में जिस तरह अंजली सिंह चौहान का हक़ की लड़ाई लड़ने वाला किरदार सामने आया है उससे प्रतीत होता है ‘चल हट…’ में नारी चरित्र काफ़ी मजबूती के साथ सामने लाया गया है।

सतीश जैन स्वीकार करते हैं कि ‘चल हट कोनो देख लिही’ नारी सशक्तिकरण पर केन्द्रित है। ‘मिसाल’ से हुई एक ख़ास बातचीत के दौरान सतीश जैन ने बताया कि “चल हट कोनो देख लिही में गांव की किसान औरत अपने हक़ के लिए कद्दावर लोगों से लड़ जाती है। वह अपने अधिकारों को लेकर सजग है। यह रोल अंजली सिंह चौहान ने किया है। काफ़ी पॉवरफुल रोल है। ट्रेलर देख चुके लोग अंजली के किरदार की काफ़ी तारीफ कर रहे हैं। उनके पक्ष में काफ़ी कमेन्ट्स लिखे जा रहे हैं।“

आपने अनुज शर्मा, प्रकाश अवस्थी, करण खान एवं मन कुरैशी जैसे बड़े चेहरों के साथ काम किया इस बार दिलेश साहू की च्वाइस कैसे? सतीश जैन कहते हैं- “हमारे छत्तीसगढ़ी सिनेमा में एक-दो नहीं कई बड़े चेहरों की ज़रूरत है। हिन्दी और साउथ सिनेमा में बहुत सारे स्टार हैं। कई बड़े चेहरों का होना निर्माता व निर्देशक के लिए अच्छा होता है। निर्माता-निर्देशक ही क्यों ये पूरे छत्तीसगढ़ी सिनेमा के हित में होगा। दिलेश ने इस फ़िल्म में काफ़ी अच्छा काम किया है। फ़िल्म जब शुरु हुई वह घबराया हुआ था। मुझे लगता है दिलेश काफ़ी नैचुरल एक्टर है। महसूस करते रहा हूं कि अधिकांश हीरो किसी न किसी से प्रभावित नज़र आते हैं। दिलेश के साथ वैसा नहीं है। दिलेश को किरदार में जैसा ढालना चाहता था वैसा मैं ढाल पाया।“

दिलेश तो आपके साथ पहली बार काम कर रहे लेकिन अनिकृति चौहान तो ‘हॅस झन पगली फॅस जबे’ के बाद इसमें रिपीट हुई हैं? इस सवाल पर वे कहते हैं- “हमारे छत्तीसगढ़ में टैलेंटेड लड़कियों की कमी नहीं। मैंने देखा उन लड़कियों में फ़िल्मों में काम करने को लेकर हिचकिचाहट है। मेरी फ़िल्म की शूटिंग में गेप आता है। दूसरे स्टेट से फीमेल आर्टिस्ट बुलवाऊं तो बड़ी दिक्कत है। तारीख़ों के अलावा और भी समस्याएं आड़े आती हैं। अन्नी टैलेंटेड है। यहां अभी उसका कोई विकल्प नहीं है। भोलापन हो या तेज तर्रार, दोनों रोल आप उससे करवा सकते हैं। हो सकता है मेरी अगली फ़िल्म में कोई नई नायिका नज़र आए।“

‘चल हट…’ से एक और नया चेहरा उभरा है गीतकार सतीश जैन का, यह जिक्र करने पर सतीश जैन हॅस पड़ते हैं और कहते हैं- “जब मैं मुम्बई पहुंचा तो वहां सबसे पहले फ़िल्म पत्रकार बना। सपना डायरेक्टर बनने का था। कभी-कभी गीतकार बनने का भी ख़याल आता था। तब गीतकार के रूप में वहां आनंद बख्शी, जावेद अख़्तर एवं इंदीवर जैसे बड़े नाम थे। फिर यह भी ख़्याल आता कि इतनी बड़ी हस्तियों के बीच गाने लिखने की कोशिश की भी तो डॉमिनेट कर दिया जाऊंगा। फिर भी वहां गाने लिखते रहा। यह अलग बात है कि मेरे गाने फ़िल्म बनाने वालों तक नहीं पहुंचे। छत्तीसगढ़ी सिनेमा में डायरेक्टर के रूप में छह फ़िल्में कर ली तो सोचा क्यों न गाने लिखने में भी हाथ आज़माया जाए। मुम्बई के समय का अभ्यास अब काम आ रहा है। ‘लैला टीपटॉप छैला अंगूठा छाप’ से जुड़ा एक रोचक किस्सा सुनाता हूं। इस फ़िल्म की हीरोइन मुम्बई से छत्तीसगढ़ आती है। उसे हिन्दी-अंग्रेजी आती है लेकिन छत्तीसगढ़ी नहीं। उसमें हीरो व हीरोइन पर ददरिया धुन पर एक गाना फ़िल्माया गया। हीरो उस गाने को छत्तीसगढ़ी में गाता है और हीरोइन अंग्रेजी में। हीरो वाले गाने के बोल गीतकार कुबेर गीतपरिहा ने लिखे थे और हीरोइन वाले बोल मैंने।“

आपके पास कितने ही लोग फ़िल्म बनाने का प्रस्ताव लेकर आते हैं, निर्माता छोटेलाल साहू के लिए ‘हॅस झन पगली…’ के बाद उनकी दूसरी फ़िल्म ‘चल हट…’ करना क्यों उचित लगा? सतीश जी कहते हैं- “इनका नाम छोटेलाल है लेकिन ये बहुत बड़े दिल वाले हैं। इनके साथ मेरी काफ़ी अच्छी ट्यूनिंग है। हो सकता है भविष्य में किसी और प्रोड्यूसर के साथ भी फ़िल्म करूं।“

अब तो आपकी बेटी रुनझुन ने भी सिनेमा की तरफ क़दम बढ़ा दिए हैं, इस पर सतीश जैन कहते हैं- “बचपन से ही उसका डायरेक्टर बनने का ख़्वाब था। मैंने उससे कह रखा था बारहवीं की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद ही अपनी पसंद का काम पकड़ना। मैंने उसे अक्सर इंग्लिश फ़िल्में देखते व नॉवेल पढ़ते देखा है। मैंने उसको सलाह दी कि हिन्दी किताबें भी पढ़ा करो। मुंशी प्रेमचंद जैसे लेखकों को तो ज़रूर पढ़ो। डायरेक्टर मनोज वर्मा ने उसे मार्गदर्शन दिया कि संभव हो तो कोई शार्ट मूवी बनाकर खुद को तौलो। होली नज़दीक है, हो सके तो होली पर ही कोई शार्ट मूवी बना लो। रात भर में ही उसने एक कहानी बना डाली, जिसे उसने अपनी मां व मुझे सुनाई। कहानी इतनी मर्मस्पर्शी बन पड़ी थी कि दिल भर आया। फिर उसने इसे मनोज वर्मा को सुनाया। उन्हें भी कहानी पसंद आई और उन्होंने कहा कि चलो इस पर शार्ट मूवी बनाते हैं। फ़िल्म का नाम रखा गया ‘पिचकारी।‘ रुनझुन भाग्यशाली है कि उसके सतीश जैन व मनोज वर्मा जैसे दो गुरु हैं। क्या अच्छा है और क्या बुरा रुनझुन को ख़ुद तय करना है। सिनेमा लाइन ऐसी जगह है जहां एक हिट से ज़िन्दगी बन जाती है और एक फ्लॉप से ज़िंदगी ख़त्म। मैं खुद हिट और फ्लॉप दोनों देख चुका हूं। खुद के बारे में यही राय है कि मैं आज भी स्ट्रगल कर रहा हूं।“

टाइटल सॉग ‘चल होट कोनो देख लिही…” यू ट्यूब पर आया तो प्रतिक्रियाएं यही आने लगीं कि अरे ये तो पारंपरिक लोक गीत “चौरा मा गोंदा…” जैसा है, इस ओर ध्यान आकृष्ट किए जाने पर सतीश जी कहते हैं- लोगों का यह कहना ग़लत भी नहीं है। अंग्रेजी गानों की धुन पर बॉलीवुड में कितने ही गाने बनते रहे हैं और वे पसंद भी किए जाते रहे हैं। अगर पारंपरिक छत्तीसगढ़ी लोक गीत की धुन कहीं पर इस्तेमाल हुई भी तो इसमें बुराई क्या है? आख़िर उठाई तो घर की ही चीज़ है। ‘मोर छंइहा भुंइया’ में जब मैंने “टूरी आइस्क्रीम खाके फरार होगे जी…” गाना रखा तो उंगलियां उठी थीं कि इसमें छत्तीसगढ़ी टच नहीं है। अलग करो तो लोग कह देते हैं अरे ये तो हिन्दी जैसा है। ‘चल हट…’ के गाने में हमने अपनी विरासत को छूने की कोशिश की तो इसमें चोरी कहां।“

यह भी रोचक ख़बर है कि ‘भूलन द मेज़’ फेम डायरेक्टर मनोज वर्मा ने ‘चल हट…’ में रोल किया है? सतीश जैन कहते हैं- “मनोज काफ़ी अच्छा सिंगर है। हर अच्छे सिंगर में किसी भी चीज को गहराई तक फिल करने की क्षमता होती है। जब आप किसी चरित्र को गहराई से महसूस करते हैं तभी उसे जी पाते हैं। ‘चल हट…’ में मनोज ने अपने किरदार को बख़ूबी जिया है। वह वन टेक एक्टर है। ‘चल हट…’ में स्टार कलाकार अनुज शर्मा की नन्ही बेटी आरूग एवं जाने-माने कोरियोग्राफर निशांत उपाध्याय की भतीजी आद्या भी पर्दे पर दिखेंगी। फ़िल्म में अनिकृति चौहान पर एक ऐसा गाना है जिसमें कि उसके बचपन से लेकर बड़े होने तक दिखाया गया है। इस गाने में हमने अनुज की बेटी और निशांत की भतीजी को लिया। दोनों ही बच्चियां पर्दे पर काफ़ी सुंदर लगी हैं। ये कहें कि दोनों अन्नी जैसी ही लगी हैं। छोटे बच्चों से काम लेना बेहद कठिन होता है। निशांत ने उस गाने में बच्चों से बख़ूबी काम लिया है।“

सतीश जैन के बारे में कहा जाता है कि उनकी किसी भी फ़िल्म की रिलीज़िंग से पहले उनके चेहरे पर भारी तनाव नज़र आता है, यह जिक्र करने पर वे कहते हैं- “हर फ़िल्म अपने आप में बड़ा इम्तिहान होती है। बड़ी चुनौती होती है। इसलिए डरा रहता हूं। दर्शकों का जजमेंट जहां किसी फ़िल्म को बहुत बड़ा बना देता है वहीं एक ही दिन में ख़त्म भी कर देता है।“

 

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