● कारवां (15 मई 2022)- कांग्रेस चिंतन शिविर और छत्तीसगढ़

■ अनिरुद्ध दुबे

उदयपुर में इस समय कांग्रेस का चिंतन शिविर चल रहा है। 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। स्वाभाविक है कि गंभीर चिंतन अब नहीं होगा तो कब होगा! चिंतन शिविर में छत्तीसगढ़ से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल समेत स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव, कांग्रेस राष्ट्रीय सचिव राजेश तिवारी एवं विधायक विकास उपाध्याय की उपस्थिति दर्ज हो चुकी है। यहां के कुछ और बड़े नेताओं के वहां पहुंचने की संभावना है। चिंतन शिविर में एक परिवार से एक ही को टिकट दिए जाने का फार्मूला तैयार हुआ है। यह भी कि परिवार के दूसरे सदस्य को टिकट लेना है तो संगठन में कम से कम पांच साल काम करना होगा। यह सही भी है, पैराशूट से उतरकर आने वालों पर कम से कम रोक तो लगेगी। छत्तीसगढ़ की ही बात कर लें। अस्सी के दशक में दो महिलाओं को सिर्फ़ इसलिए विधानसभा की टिकट दे दी गई थी कि वे दोनों राज परिवार से थीं। हालांकि उस समय दोनों जीत भी गई थीं लेकिन तब और अब की स्थिति में ज़मीन आसमान का फ़र्क आ चुका है। मतदाता अब भावनाओं में नहीं बहता। गुणा भाग कर लेने के बाद ही किसी प्रत्याशी के नाम के आगे वोट का बटन दबाता है। एक परिवार से एक को टिकट यह निर्णय तो अच्छा है लेकिन बात तब है जब इस पर सख़्ती से अमल हो।  ऊपर वाले सोचते कुछ हैं और हो कुछ जाता है। छत्तीसगढ़ के मामले में तो हमेशा से ऐसा ही दिखता नज़र आया है। 2013 के विधानसभा चुनाव के समय की बात है। अंदर की ख़बर रखने वाले बताते हैं- तब राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ को लेकर गोपनीय सर्वे कराया था। वो सर्वे रिपोर्ट चौंका देने वाली थी। उस समय के कांग्रेस के कई सीटिंग एमएलए सर्वे रिपोर्ट में चुनाव हारते दिख रहे थे। राहुल गांधी तब बहुत से सीटिंग एमएलए की टिकट काटकर नये चेहरों को मौका देना चाहते थे। वे उन नये चेहरों को चुनावी मैदान में उतारना चाहते थे सर्वे में जिनकी तरफ जनता का झुकाव नज़र आया था। इसी फार्मूले पर चलते हुए जगदलपुर सीट से सामू कश्यप की टिकट पक्की कर दी गई थी। कई घाट का पानी पी चुके कुछ ऐसे सीटिंग एमएलए जिन्हें अपनी टिकट कटने की भनक लग गई थी उन्होंने दिल्ली जाकर जबरदस्त दबाव बनाया। उन लोगों का उस बड़े नेता ने भी साथ दिया था जिनकी तत्कालीन सरकार के साथ आत्मीय रिश्तों की ख़बरें अक्सर सुनने मिल जाया करती थीं। दबाव के आगे दिल्ली दरबार को झूकना पड़ा था। जिन सिटिंग एमएलए की टिकट कट रही थी वो चुनाव लड़ने में क़ामयाब रहे और उनमें से कई हार भी गए थे। हार तो सामू कश्यप भी गए थे, लेकिन हो सकता है कि कांग्रेस उस समय अपने फार्मूले पर काम कर गई होती तो तत्काल फायदा नहीं मिलता, लेकिन भविष्य में मजबूती के साथ निखरकर सामने आने की संभावना बन सकती थी।

बस्तर व सरगुजा से ही

निकलती है सत्ता की राह

कांग्रेस, भाजपा से लेकर आम आदमी की पार्टी तीनों का फ़ोकस इस समय आदिवासी बहुल क्षेत्रों में है। सरगुजा डिवीजन की सभी 14 एवं बस्तर डिवीजन की सभी 12 विधानसभा सीटें इस समय कांग्रेस की झोली में हैं। माना जाता है कि प्रदेश में किसी भी पार्टी की सरकार बनाने में बस्तर और सरगुजा की आदिवासी बहुल सीटें ही निर्णायक होती हैं। भाजपा की प्रदेश में तीन बार सरकार बनी तो सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बस्तर व सरगुजा से ही खुला था। 2018 में दोनों तरफ की चाबी कांग्रेस के हाथ लग गई। कांग्रेस दोनों आदिवासी मैदान को खोना नहीं चाहती है और भाजपा भी इन्हीं दोनों तरफ अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाना चाहती है। यही कारण है कि भाजपा की प्रभारी पुरंदेश्वरी आएं या फिर संगठन महामंत्री शिव प्रकाश, रायपुर से इनकी गाड़ी सीधे बस्तर की तरफ ही जाती है। आम आदमी की पार्टी तो बस्तर में सन् 2013 से वर्क करते आ रही है और उसकी वहां पर थोड़ी बहुत पकड़ पहले से बनी हुई है। ‘आप’ पंजाब में सरकार बनाने के बाद जिस तरह छत्तीसगढ़ को टारगेट में लेकर चल रही, स्वाभाविक है कि आगे चलकर उसके कदम सरगुजा की तरफ भी बढ़ेंगे। बताया जाता है कि इन बातों से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भलीभांति वाकिफ़ हैं और वह बिल्कुल नहीं चाहेंगे कि उनकी तैयार ज़मीन पर चुनाव के समय कोई दूसरा सेंधमारी कर पाए। यही कारण है कि मुख्यमंत्री इन दिनों विधानसभा क्षेत्र भ्रमण मिशन में जो निकले हुए हैं उसमें उन्होंने शुरुआत आदिवासी बहुल क्षेत्र सरगुजा से की। बताते हैं कि सरगुजा के ठीक बाद वे बस्तर के विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगे। इसके बाद ही अन्य संभागों के विधानसभा क्षेत्रों में उनका जाना होगा।

हेलीकॉप्टर की गर्मी

छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों एक ही समय में जिस तरह इतने मंत्रियों का एक साथ हेलीकॉप्टर दौरा हुआ वैसा पहले कभी नहीं हुआ। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस समय लगातार हेलीकॉप्टर से आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग का दौरा कर रहे हैं। जहां कहीं अनियमितता सुनने या देखने मिल रही है मुख्यमंत्री व्दारा दोषी अफ़सर या कर्मचारी को सस्पेंड करने का सिलसिला जारी है। भीषण गर्मी वाले इस दौरे में मुख्यमंत्री बूढ़ों से बतिया रहे हैं और बच्चों से भी। बीच में कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे एवं नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार का भी हेलीकॉप्टर दौरा चर्चा में रहा। स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव का हेलीकॉप्टर दौरा भी कम सुर्खियों में नहीं रहा। बाबा के हेलीकॉप्टर ने आदिवासी बहुल बस्तर इलाके की उड़ान भरी थी। बाबा सरकारी हेलीकॉप्टर से नहीं उड़े बल्कि उन्होंने निजी ख़र्चे से उड़न खटोला बुलवाया था। बाबा जहां कहीं भी रुके बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखते दिखे। बीच में प्रदेश की राजनीति हेलीकॉप्टर के नाम पर गरमाई रही थी।

‘भूलन कांदा’ पर

किस किस के पैर

छत्तीसगढ़ के मशहूर फ़िल्म डायरेक्टर मनोज वर्मा की फ़िल्म ‘भूलन द मेज़’ इसी मई माह में रिलीज़ होने जा रही है। ऐसा बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों में भूलन कांदा देखा जाता है। गलती से किसी का पैर इस पर पड़ गया तो वह भटक जाता है। सब तरफ पेड़ ही पेड़ दिखता है लेकिन रास्ता नहीं दिखता। इसी पर साहित्यकार संजीव बख्शी का ‘भूलन कांदा’ उपन्यास है। यह उपन्यास ही फ़िल्म ‘भूलन द मेज़’ का आधार है। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त यह फ़िल्म सिनेमाघरों में तो अब रिलीज़ होने जा रही है, लेकिन अक्टूबर 2017 में यह कुछ ख़ास लोगों को अलग से दिखाई गई थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उन कुछ लोगों की मौजूदगी में कहा था कि मैंने 60 प्रतिशत इस फ़िल्म को देखा है और इससे काफ़ी प्रभावित हूं। 40 प्रतिशत बचाकर रखा हूं। उन काफ़ी लोगों में मौजूद रहे एक शख़्स ने हाल ही में चुटकी लेते हुए कहा कि अच्छा होता कि डॉक्टर साहब बाक़ी की 40 प्रतिशत फ़िल्म भी देख लिए होते, इससे उन्हें रास्ता भूल जाने पर समाधान क्या है, यह तो पता चलता। अभी की स्थिति में छत्तीसगढ़ की राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर तो यही लगता है मानो पूरे विपक्ष का पैर ‘भूलन कांदा’ पर पड़ गया है।

जय सिंह के बदले सुर

राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री जय सिंह अग्रवाल के सुर इन दिनों बदले हुए से हैं। उनके और कलेक्टर रानू साहू के बीच जो तालमेल नहीं बैठ पा रहा वह मीडिया में उछलकर सामने आ रहा है। अग्रवाल ने खनिज सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेसी को पत्र लिखकर शिकायत की है कि कलेक्टर रानू साहू खनिज न्यास फंड की राशि का इस्तेमाल निजी संस्था के रूप में कर रही हैं। 72 लाख की खेल सामग्री खरीद ली गई जबकि 2 साल से कोई टूर्नामेंट ही नहीं हुए हैं। यही नहीं मेरे निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित कार्य को लंबित रखा जा रहा है जो जिला मुख्यालय भी है। मंत्री अग्रवाल का यह पत्र ऐसे समय में उछलकर सामने आया है जब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विधानसभा क्षेत्रों का लगातार दौरा कर रहे हैं। सुनने में तो यही आ रहा है कि रानू साहू पूरे हौसले के साथ मैदान में डटी हुई हैं। कोई अदृश्य ताकत ज़रूर होगी, जिससे वे अपने निर्णय पर अटल हैं।

महापौर के शुभचिंतक ज्योतिषी

रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर पार्षद साथियों एवं प्रमुख अफ़सरों के साथ इंदौर, चंडीगढ़ एवं मोहाली का भ्रमण कर आए हैं। लौटकर आने के बाद महापौर ने ठान लिया है कि सफाई के मामले में रायपुर को नंबर वन पर लाना है। अध्ययन के दौरान इंदौर में उन्होंने यही जानने की कोशिश की कि सफाई में वह शहर नंबर वन रहा तो आख़िर कैसे? वहां उन्हें समझ आया कि यहां की तरह इंदौर नगर निगम में बाहरी जन प्रतिनिधियों की दादागिरी नहीं चलती। निगम के गलियारे में टाइम पास करते रहने वाले कुछ लोग बताते हैं कि रायपुर नगर निगम के एक पार्षद को ज्योतिष विद्या का गहरा ज्ञान है। उस ज्योतिषी पार्षद ने महापौर के कान में चूपके से कह रखा है कि निश्चिंत रहें आने वाले समय में आपके राजनीतिक कैरियर की गाड़ी और सरपट भागेगी। जानकार लोग यह भी बताते हैं एजाज़ ढेबर ने महापौर बनने के बाद जब सरकारी बंगले में प्रवेश किया था तब इन्हीं ज्योतिषी पार्षद ने वहां पूजा कराई थी।

 

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