■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ के जाने-माने डायरेक्टर मनोज वर्मा निर्देशित फ़िल्म ‘भूलन दे मेज़’ को क्षेत्रीय फ़िल्म कैटेगिरी राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई। इस खबर से छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत में खुशी की लहर है। और क्यों ना हो, छत्तीसगढ़ी भाषा की कोई पहली फ़िल्म (जिसमें हिन्दी का भी समावेश है), उस ऊंचाई तक जो पहुंची।
संजीव बख्शी लिखित उपन्यास ‘भूलन कांदा’ पर फ़िल्म बनाने के बीज मनोज के मन में सन् 2012 में ही पड़ गए थे। ये वही दौर था जब ‘भूलन कांदा’ उपन्यास पढ़ने वालों के हाथों में पहुंचा था। मनोज ने ही ‘भूलन कांदा’ की पटकथा तैयार की और इसके संवाद लिखे। इस काम में उन्हें लगभग चार साल लगे। मनोज की दिली इच्छा थी कि ‘भूलन’ में एक महत्वपूर्ण किरदार मशहूर अभिनेता ओम पुरी निभाएं। इसके लिए मनोज की उनसे से बात भी हुई थी, लेकिन वक़्त को कुछ और मंजूर था। फिर मनोज ने महत्वपूर्ण किरदार के लिए फ़िल्म ‘पीपली लाइव’ फेम ओंकारदास मानिकपुरी यानी नत्था को तैयार किया। साथ ही बॉलीवुड के नामचीन अभिनेता मुकेश तिवारी एवं राजेन्द्र गुप्ता को भी मनोज ने राजी कर लिया। मुम्बई से एक हीरोइन अनिमा पगारे ‘भूलन’ का हिस्सा बनीं। महान फ़िल्मकार श्याम बेनेगल के प्रिय राइटर अशोक मिश्रा का ‘भूलन’ के लिए न सिर्फ मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, अपितु उन्होंने इस फ़िल्म में एक महत्वपूर्ण किरदार भी निभाया। बॉलीवुड के मशहूर आर्ट डायरेक्टर जयंत देशमुख की कलात्मक परिकल्पना ‘भूलन’ के लिए काफी मददगार हुई। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के हमारे बेहतरीन कलाकारों की टीम ‘भूलन’ से जुड़ी। इससे पहले मनोज छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘बैर’, ‘महूं दीवाना तहूं दीवानी’, ‘मिस्टर टेटकूराम’ एवं ‘दू लफाड़ू’ जैसी फ़िल्में निर्देशित कर चुके थे, लेकिन उनकी असली परीक्षा तो ‘भूलन’ पर जाकर होनी थी। ‘भूलन’ के फ़िल्मांकन के लिए मनोज गरियाबंद के ग्रामीण क्षेत्रों में लोकेशन तलाशने खूब घूमे। दृश्यों को सजीव बनाने बहुत से दृश्य गरियाबंद जिले के गांव में शूट किए गए। कुछ हिस्सा राजधानी रायपुर व खैरागढ़ में फ़िल्माया गया। मनोज का खुद का फिल्म प्रोडक्शन हाउस और रिकॉर्डिंग स्टूडियो है। फ़िल्में व अलबम बनाने खुद का कैमरा उनके पास बरसों से रहा है, लेकिन वह ‘भूलन’ के निर्माण में किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहते थे। यही वजह है कि ‘भूलन’ के लिए कैमरा व फ़िल्मांकन के लिए टीम कोलकाता से आई। मनोज के साथ जो गहराई से जुड़े हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें संगीत की गहरी समझ है। ‘भूलन’ के गीतों पर उन्होंने छत्तीसगढ़ी सिनेमा के जाने-माने संगीतकार सुनील सोनी के साथ बैठकर घंटों-घंटों मेहनत की। फिर उनके दिमाग में आया कि बेकग्राउंड म्यूजिक में कोई कमी नहीं रह जानी चाहिए। इसके लिए उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों के जाने-माने संगीतकार मोंटी शर्मा से संगीत तैयार करवाया। मोंटी शर्मा, संजय लीला भंसाली व्दारा निर्देशित एवं रणबीर कपूर एवं सोनम कपूर की पहली फ़िल्म ‘सांवरिया’ के संगीतकार रहे हैं। इसके अलावा भंसाली की ही फ़िल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ व ‘देवदास’ में बेक ग्राउंड म्यूजिक मोंटी शर्मा का है। बहरहाल ‘भूलन दे मेज’ के पूर्ण होने के बाद कुछ बड़े फ़िल्म फेस्टिवलों में गई और पुरस्कृत भी हुई। पूर्व में मनोज को छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से किशोर साहू सम्मान जो दिया गया उसका आधार ‘भूलन’ को ही माना जा सकता है। प्रदेश के बाद अब उनकी फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार दिए जाने की जो घोषणा हुई, उसके लिए वे निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। उनसे उम्मीद है कि इसी तरह पर्दे पर लगातार बेहतर रचते रहेंगे। आज से करीब 11 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ी सिनेमा के इतिहास पुरुष सतीश जैन ने कहा था- “मैं मसाला फ़िल्में बनाता हूं। मसाला फ़िल्मों का अलग ही दर्शक वर्ग है। छत्तीसगढ़ में हिन्दी व अंग्रेजी फ़िल्में देखने का शौक रखने वाले छत्तीसगढ़ी फ़िल्में भी देखें इसके लिए उनका विश्वास हासिल करना ज़रूरी है। यह तभी हो सकेगा जिसे सरकार की ओर से अवार्ड मिले। उस छत्तीसगढ़ी फ़िल्म को देखने हर तरह का दर्शक वर्ग थियेटर पहुंचेगा। मुझे उस वक़्त का इंतज़ार है।“ सतीश जी का इंतज़ार खत्म हुआ और अब आम दर्शकों को ‘भूलन’ के सिंगल स्क्रीन व मल्टीप्लेक्स पर पहुंचने की बेसब्री से प्रतीक्षा है। आशा है कि प्रतीक्षा पर ज़ल्द विराम लगेगा। ‘भूलन द मेज़’ की पूरी टीम को पुनः शुभकामनाएं व बधाई।