● कारवां (17 जुलाई 2022)- सिंहदेव और जन घोषणा पत्र के वादे…

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री पद से खुद को अलग करके प्रदेश की सियासत में एक बार फिर जबरदस्त हलचल पैदा कर दी है। साथ में सिंहदेव ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे स्वास्थ्य मंत्री बने रहेंगे। सिंहदेव ने पंचायत एवं ग्रामीण विभाग से खुद को अलग किया भी तो ऐसे समय में जब 20 जुलाई से छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र शुरु होने जा रहा है। विधायकों की तरफ से पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग को लेकर न जाने कितने ही सवाल लगे होंगे। अब देखना यह होगा कि 20 से 27 तक चलने वाले मानसून सत्र में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से जुड़े सवालों का जवाब मंत्री की हैसियत से कौन देगा? सिंहदेव ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग छोड़ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को जो पत्र लिखा है उसमें कई गहरी बातें हैं। कहीं-कहीं पर जन घोषणा पत्र का जिक्र आया है। गौर करने लायक बात यह है कि सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का जन घोषणा पत्र सिंहदेव के संयोजकत्व में ही तैयार हुआ था। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में सिंहदेव ने यही इशारा किया है कि जन घोषणा पत्र में किए गए कुछ वादे पूरे नहीं हुए। पेसा कानून जैसा चाहते थे वैसा नहीं बना। मनरेगा की दुर्दशा पर वे काफ़ी कुछ कह गए। साथ ही प्रधानमंत्री आवास योजना के जीरो रहने पर भी।

राहुल जी ने बनाया तो

फिर किस बात की चिंता

बीच में ख़बर तो यही छनकर आई कि संगठन चुनाव को लेकर हुई बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने काफ़ी खरी-खरी बातें कही। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम से तीखे अंदाज़ में सवाल किए। मरकाम की तरफ से भी हर बात का सधा हुआ ज़वाब आया। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बने साढ़े तीन साल हो चुके। अगला पूरा साल एक तरह से चुनावी साल होगा। राजनीति से गहराई से जुड़े लोग यही कहते हैं कि केन्द्र में मोदी तो प्रदेश में भूपेश की काट खोज पाना मुश्किल है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से देख लें, चाहे अजीत जोगी का मुख्यमंत्रित्वकाल हो या डॉ. रमन सिंह का, प्रदेश अध्यक्ष ऐसे लोग बनते रहे थे जो मुख्यमंत्री के हिसाब से चलते थे। अभी की स्थिति में कुछ हल्का सा बदला-बदला नज़र आ रहा है। मोहन मरकाम ने प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अपनी एक बड़ी टीम बनाने का काम किया। टीम- जिसे राजनीतिक भाषा में गुट कहा जाता है। टीम बनाने के अलावा मरकाम ख़ुद से होकर कुछ बड़े फैसले लेने से भी पीछे नहीं रहे। प्रदेश कांग्रेस महामंत्री (संगठन) पद से चंद्रशेखर शुक्ला को हटाकर उनकी जगह अमरजीत चावला को बैठाना एक बड़ा उदाहरण है। वो भी एक समय था जब जोगी या रमन शासनकाल में प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए मुख्यमंत्री की पसंद मायने रखती थी। यहां तो मोहन मरकाम सीधे राहुल गांधी की पसंद से प्रदेश अध्यक्ष बने। 2018 में छत्तीसगढ़ की सरकार बनी और मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ा तो दिल्ली वालों ने यही तय किया कि किसी आदिवासी नेता को प्रदेश नेतृत्व की कमान सौंपी जाए। प्रदेश अध्यक्ष के लिए राहुल गांधी ने दिल्ली में बस्तर के दो बड़े आदिवासी नेता मोहन मरकाम और मनोज मंडावी का इंटरव्यू लिया था। उसी आधार पर मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष की कमान मिली। जब राहुल जी ने ही अध्यक्ष बनाया है तो फिर डर काहे का…

छत्तीसगढ़ और ओड़िशा मिलकर

करेंगे नक्सलवाद से मुक़ाबला

हाल ही में रायपुर में छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के बड़े पुलिस अफ़सरों की साझा बैठक हुई। तय हुआ कि नक्सलवाद के ख़िलाफ दोनों राज्यों की पुलिस अब मिलकर अभियान चलाएगी। ख़ासकर नक्सलियों तक पहुंचने वाली सामग्रियों को कैसे रोका जाए पर लंबी बात चली। इस बैठक की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा ने की। इस तरह के साझा अभियान पर कोई आज से नहीं काफ़ी पहले से जोर दिया जाता रहा है। नक्सल प्रभावित ऐसे राज्य जो आपस में जुड़े हैं मिलकर अभियान चलाएं तो वह अपने आप में बड़ी बात होगी। डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के समय पी. चिदंबरम केन्द्रीय गृह मंत्री थे तो उन्होंने इसी तरह साझा अभियान चलाने पर जोर दिया था। तब छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह की सरकार थी। पी. चिदंबरम ने रायपुर आकर छत्तीसगढ़, ओड़िशा एवं आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्रियों की संयुक्त बैठक ली थी। चिदंबरम की उस पहल की काफ़ी सराहना हुई थी लेकिन राज्यों के उस संयुक्त मिशन को जिस तरह आगे बढ़ना था वैसा वह नहीं बढ़ पाया था।

फेसबुक पर छलका

दलेश्वर का दर्द

फेसबुक और वाट्स अप ग्रुप व्यथित नेताओं के लिए अपने मन की बात रखने अच्छा माध्यम बन गया है। शिव सेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे ने तो मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा फेसबुक पर लाइव आकर की थी। हमारे छत्तीसगढ़ के बड़े नेता फेसबुक पर लाइव तो नहीं आते लेकिन लिखकर अपने दिल की बात ज़रूर सामने रख देते हैं। ताजा उदाहरण डोंगरगांव के विधायक दलेश्वर साहू का है। दलेश्वर साहू ने हाल ही में फेसबुक पर अपने मन की बात यह लिखकर पोस्ट की कि “वक़्त ने दिखा दी है सब की असलियत, वरना हम तो वो थे जो सब को अपना कहते थे।“ अब राजनीति से गहरा वास्ता रखने वाले लोग दिमागी घोड़े दौड़ाते हुए दलेश्वर साहू के इस लिखे हुए के मर्म को समझने में लगे हुए हैं। दलेश्वर साहू ने तो जो कहा, इशारे ही इशारे में कहा, उनके पड़ोसी खुज्जी विधानसभा की विधायक छन्नी साहू ने तो किसी बात से खफ़ा होकर अपनी सूरक्षा व्यवस्था ही लौटा दी थी। छन्नी साहू की उपेक्षा का मामला विधानसभा में जमकर उठा था। इन दो साहू विधायकों के अलावा प्रदेश कांग्रेस महामंत्री (संगठन) पद से हटाए जाने पर चंद्रशेखर शुक्ला भी कुछ बार फेसबुक में अपने मनोभाव को रखने से पीछे नहीं हटे थे और इशारे ही इशारे में काफ़ी कुछ कह गए थे। कांग्रेस से अलग हटकर बात करें तो पूर्व विधायक और भारतीय जनता पार्टी से काफ़ी पहले अलग हो चुके नेता विरेंद्र पांडे इन दिनों फेसबुक पर निरंतर लिखते हुए अपनी पूर्व पार्टी भाजपा के वर्तमान क्रियाकलापों पर टीका टिप्पणी करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रख रहे हैं। जोगी कांग्रेस से पुरानी कांग्रेस में आए संजीव अग्रवाल कई बड़े लोगों के प्रिय पात्र रहे सूर्यकांत तिवारी पर न जाने क्या लिख गए! जानकार लोग बताते हैं कि इस तरह लिखना संजीव के लिए महंगा सौदा साबित हुआ है और वे कुछ घाघ लोगों के राडार पर हैं।

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