कारवां (19 जनवरी 2025) ● लखमा के सामने संकट की दूसरी बड़ी घड़ी… ● कौन बनेगा मंत्री अमर या मूणत… ● अपनी सरकार में भी बात रखना कठिन… ● कांग्रेस कोषाध्यक्ष बनना यानी… ● उम्मीदें पूरी नहीं होने की बात कहते खूंटे ने छोड़ी कांग्रेस… ● गांजे से करोड़पति बने ये वर्दी वाले…

■ अनिरुद्ध दुबे

अंततः 2 हज़ार 161 करोड़ के शराब घोटाले में बस्तर के वरिष्ठ कांग्रेस विधायक कवासी लखमा की गिरफ़्तारी हो गई। जानकार लोग बताते हैं ईडी ने लखमा की गिरफ़्तारी से पहले लंबा होमवर्क किया। ईडी ऐसी किसी भी स्थिति से दो-चार नहीं होना चाहती थी कि उसका पक्ष कमज़ोर पड़े। ईडी लंबे समय तक साक्ष्य जुटाती रही। बताते हैं शराब घोटाले के पूरे प्रकरण में ईडी के हाथ कुछ ऐसे दस्तावेज लगे जिससे इस निष्कर्ष पर पहुंचना आसान हो गया कि किसकी क्या भूमिका रही। लखमा गिरफ़्तारी होते तक कहते रहे कि “मैं अनपढ़ आदमी, अधिकारी लोग जहां दस्तख़त करने बोलते, कर दिया करता था।“ लखमा के इस कथन के बाद वही पुराना सवाल फिर रह-रहकर उठ रहा है कि आबकारी विभाग फूंक-फूंककर कदम रखने वाला विभाग है, आख़िर लखमा को ऐसे विभाग का मंत्री कैसे बना दिया गया था! कांग्रेस की सरकार के समय में विधानसभा सत्र के दौरान लखमा के विभाग से संबंधित जो प्रश्न लगा करते थे, उसमें ज़वाब लखमा के बजाए उनके बगल में बैठने वाले वन मंत्री मोहम्मद अक़बर को देना पड़ता था। इस व्यवस्था पर सदन के ही भीतर वरिष्ठ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर समेत अन्य विपक्षी सदस्य आपत्ति जताया करते थे। लखमा अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से विधायक चुनकर आते रहे हैं। वे लगातार छह बार के विधायक रहे। बिना रुके लगातार छह बार किसी की जीत क्रम जारी रहना सामने वाले व्यक्ति के वज़न को बताता है। लखमा के राजनीतिक जीवन में दूसरी बार ऐसी संकट की बड़ी घड़ी सामने आई है। पहली बार झीरम घाटी नक्सली हमले के समय में आई थी और दूसरी बार ईडी व्दारा की गई गिरफ़्तारी में।

कौन बनेगा मंत्री

अमर या मूणत

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी पुनः विधायक किरण सिंह देव के कंधों पर डाल दी गई है। कहां तो उनका छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री बनना तय माना जा रहा था। मंत्री मंडल का जब भी विस्तार होता और यदि उसमें किरण देव मंत्री बनते तो वे सामान्य वर्ग से होते। माना जा रहा है कि किरण देव के मंत्री पद से दौड़ में बाहर होने के बाद सामान्य वर्ग से अब अमर अग्रवाल व राजेश मूणत में से किसी एक के मंत्री बनने के ज़्यादा चांसेज हैं।

अपनी सरकार में भी

बात रखना कठिन

भाजपा के कुछ बड़े-छोटे नेता दबे स्वर में लगातार कहते आ रहे हैं कि यहां अपनी ही सरकार में सुनवाई नहीं हो रही है। वो तो महासमुन्द के पूर्व विधायक डॉ. विमल चोपड़ा हैं जो अपनी ही सरकार या पार्टी के बड़े क़द के लोगों के सामने खुलकर अपनी बात रखने में संकोच नहीं कर रहे। डॉ. चोपड़ा जैसे तीखे तेवर पूर्व में पूर्व विधायक व्दय देवजी पटेल एवं संतोष बाफना में दिखा करते थे। राजनीति में अब ऐसे कलेजे वाले बहुत कम ही दिखते हैं जो अपनी पार्टी के ज़िम्मेदार लोगों के बीच खुलकर अपनी बात रख पाते हैं। अब तो राजनीति में एक लाइन का लिखित या मौखिक आदेश जारी होने के बाद उसे मान लेने में ही भलाई समझा जाने वाला कल्चर चल पड़ा है। कहानी कुछ यूं है कि डॉ. चोपड़ा तहसील में बरसों से लंबित मामलों का निराकरण नहीं होने की शिकायत को राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा के सामने रखने रायपुर रवाना हुए थे। उनके साथ क़रीब 50 लोग और थे। इन सभी को रायपुर पहुंचने से पहले ही पुलिस व्दारा रोक दिया गया। रोकने के दौरान जो बहस हुई उससे सड़क के दोनों तरफ जाम अलग लगे रहा। जैसे-तैसे चोपड़ा रायपुर पहुंचे और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव के समक्ष अपनी बात को रखे। बताया तो यह भी जाता है कि किरण देव ने 2 से 3 बार महासमुन्द कलेक्टर को कॉल किया लेकिन वह रिसीव नहीं हुआ। मजबूरन किरण देव को मुख्यमंत्री के सचिव को फोन लगाकर महासमुन्द तहसील कार्यालय से जुड़ा मामला बताना पड़ा। बताते हैं देर से ही सही तहसील कार्यालय से जुड़ी कहानी मंत्री टंकराम वर्मा के कानों तक पहुंची। बड़े अधिकारी को जिस भाषा में समझाना था मंत्री वैसा समझा चुके हैं।

कांग्रेस कोषाध्यक्ष

बनना यानी…

पहले विधानसभा चुनाव, उसके बाद लोकसभा चुनाव निकला और अब नगरीय निकाय चुनाव सामने है। सामने वही पुराना यक्ष प्रश्न खड़ा है कि प्रदेश कांग्रेस कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल आख़िर कहां हैं? बताने वाले बताते हैं कि अग्रवाल आख़री बार सितम्बर 2023 में दिखे थे। उसके बाद से अज्ञातवास में हैं। ज्ञात हो कि 2023 में अग्रवाल के दो बड़े ठिकानों पर ईडी की रेड पड़ी थी। ईडी की रेड के बाद वे दो या तीन ही बार दिखे फिर अदृश्य हो गए। अब कहा तो यह भी जाने लगा है कि प्रदेश कांग्रेस कोषाध्यक्ष पद एक तरह से पनौती वाला पद हो गया है! छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद इंदरचंद जैन (राजनांदगांव) पहले प्रदेश कांग्रेस कोषाध्यक्ष बने। धीरे-धीरे लोग उन्हें भुलाते चले गए। जैन के बाद पारस चोपड़ा को प्रदेश कोषाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी मिली थी। चोपड़ा का भी समय सुनहरे अवसर का इंतज़ार करते रहने में निकल गया। उनके बाद कोषाध्यक्ष बने रामगोपाल की कहानी तो सामने है ही।

उम्मीदें पूरी नहीं होने

की बात कहते

खूंटे ने छोड़ी कांग्रेस

पूर्व सांसद पी.आर. खूंटे ने कांग्रेस छोड़ दी। खूंटे अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में भाजपा की टिकट पर पहले पलारी से विधायक फिर सारंगढ़ से सांसद बने थे। जब पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बना और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने तो खूंटे ने यह कहते हुए एक बड़ा संकल्प लिया था कि जब तक जोगी को सत्ता से उखाड़कर नहीं फेंक देते वे गले में काला गमछा ही डालेंगे। कुछ ऐसी नाटकीय राजनीतिक परिस्थितियां निर्मित हुईं कि काला गमछा डाले रहना तो दूर खूंटे ने भाजपा छोड़ जोगी यानी कांग्रेस का दामन थाम लिया था। 2003 के चुनाव में जब सत्ता परिवर्तन हुआ खरीद फ़रोख़्त कांड में खूंटे का भी नाम सामने आया था। तब खूंटे रायपुर की एक बड़ी हॉटल में पत्रकार वार्ता लेते हुए रो ही पड़े थे और कहा था कि “जोगी ने मुझे फंसा दिया।“ कांग्रेस ने कभी खूंटे को अनुसूचित जाति विभाग का अध्यक्ष बनाया था और वर्तमान में वे प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष थे। पार्टी छोड़ने के बाद खूंटे ने कहा कि जनता को कांग्रेस से जो उम्मीदें थीं वह पूरी नहीं हो पाईं।

गांजे से करोड़पति

बने ये वर्दी वाले

हर विभाग में कुछ ईमानदार तो कुछ बेईमान लोग रहते हैं। रेल्वे पुलिस ऐसा विभाग है जहां किसी के मूंह पर ख़ून लग जाए तो शिकार खोजते रहने की आदत पड़ जाती है। बात गांजा तस्करी की है। ओड़िशा की तरफ से गांजा लेकर आने वालों की स्टेशन में धरपकड़ कर पैसा ऐठनें की कहानी कोई आज की नहीं बल्कि बरसों पुरानी है। मामला बिलासपुर का है। रेल्वे पुलिस के 4 ऐसे आरक्षक घेरे में आ गए जो स्वयं गांजे के क़ारोबार में लिप्त थे। ये लोग जहां कहीं भी गांजा पकड़ते उसकी जब्ती बनाने के बजाए अपराध जगत में लिप्त दूसरे लोगों तक पहुंचा देते थे। इन लोगों व्दारा अवैध कमाई से महंगी कार, बाइक, ज़मीन और न जाने क्या-क्या खरीदने की जानकारी सामने आई है। इनके पास जब्त संपत्ति का आंकड़ा करोड़ों में है।

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