● महापौर फील्ड में रहते हैं, इसलिए मैं दफ़्तर में रहता हूं
● नीतियां तय करने का अधिकार पदाधिकारियों को व क्रियान्वयन का निगम आयुक्त को
● अलग से सभापति निधि होनी चाहिए
■ अनिरुद्ध दुबे
सूर्यकांत राठौड़ ने रायपुर नगर निगम सभापति का पदभार सम्हाल लिया। राठौड़ रायपुर नगर निगम के आठवें निगम सभापति हैं। दो सभापति छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले बने थे तथा छह राज्य बनने के बाद। अब तक जो भी सभापति रहे, उन्होंने अपने-अपने ढंग से छाप छोड़ी। सभापति के रुप में सुनील सोनी का कार्यकाल ख़ास तौर पर याद किया जाता है। सुनील सोनी की पहले नगर निगम सभापति, फिर महापौर, फिर रायपुर विकास प्राधिकरण अध्यक्ष, उसके बाद रायपुर सांसद और अब रायपुर दक्षिण विधायक के रुप में लंबी एवं चौंकाते रहने वाली रोचक राजनीतिक यात्रा रही है। सोनी के राजनीतिक जीवन से जुड़े काफ़ी पीछे के पन्नों को पलटें तो वह कम दिलचस्प नहीं। 1983 में वे दुर्गा कॉलेज़ रायपुर से छात्रसंघ अध्यक्ष बने। कॉलेज़ पूरा होने के बाद भाजपा से जुड़कर सक्रिय राजनीति में आ गए। सोनी के राजनीतिक जीवन का निर्णायक मोड़ 1999 में सदर बाज़ार वार्ड से पार्षद चुनाव लड़ना माना जाता है। राजनीतिक हलकों में चर्चा यही होती है कि भाजपा में लंबा वक़्त देने के बाद, राजनीतिक क़द के हिसाब से उन्हें पार्षद चुनाव लड़ना उचित नहीं लग रहा था। 1995 से 1999 तक रायपुर नगर निगम में कांग्रेस की सत्ता रही थी। 1999 में जब महापौर एवं पार्षद चुनाव हुआ, निगम में सत्ता हासिल करने भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी थी। भाजपा ने जहां ज़मीनी स्तर पर काफ़ी मजबूत रहे नेता तरुण चटर्जी को अपना महापौर प्रत्याशी घोषित किया, वहीं वार्डों में पार्षद प्रत्याशियों को उतारने में पूरी सतर्कता बरती। भले ही सोनी पार्षद चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पार्टी ने सदर बाज़ार वार्ड से उन्हें ही पार्षद प्रत्याशी बनाना उचित समझा। उस दौर को काफ़ी नज़दीक से देखे लोग बताते हैं कि भाजपा ने पूर्व से तय कर लिया था कि निगम चुनाव में बहुमत मिलता है तो मोहन चोपड़ा सभापति बनेंगे। भाजपा ने हेमू कलाणी वार्ड (देवेन्द्र नगर) से मोहन चोपड़ा को पार्षद प्रत्याशी बनाया था और उनके सामने कुलदीप जुनेजा कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में थे। जुनेजा ने चुनाव जीत लिया और फायर ब्रांड नेता मोहन चोपड़ा को हार मिली। इधर, सदर बाज़ार वार्ड में काफ़ी कड़े संघर्ष के बाद सुनील सोनी कांग्रेस उम्मीदवार मनोज कंदोई के खिलाफ़ मात्र 17 वोटों से पार्षद चुनाव जीतने में सफल रहे थे। 99 के चुनाव में तरुण चटर्जी महापौर चुनाव तो जीते ही और पार्षद भी भाजपा के बड़ी संख्या में जीतकर आए। मोहन चोपड़ा के चुनाव हारने के बाद प्रश्न उठा कि सभापति कौन? कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल के क़रीबी सुनील सोनी का नाम आगे हो गया और वे सभापति पद पर आसीन हुए। तक़दीर का खेल देखिए 2002 में तरुण चटर्जी ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया और अजीत जोगी की सरकार में उन्हें लोक निर्माण मंत्री का दायित्व मिला। लोक निर्माण मंत्री बनने के कुछ ही महीनों बाद चटर्जी ने महापौर पद से इस्तीफ़ा दे दिया और छत्तीसगढ़ शासन ने सुनील सोनी को कार्यवाहक महापौर का दायित्व सौंपा। सोनी का कार्यवाहक महापौर बनना उनके राजनीतिक करियर में एक नया सबेरा था। क़रीब एक साल के वे कार्यवाहक महापौर थे तो स्वाभविक है कि 2004 के चुनाव में वे महापौर टिकट के प्रबल दावेदार थे और टिकट उन्हें मिली भी। कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी गुरुमुख सिंह होरा को हराकर सोनी ने वह महापौर चुनाव जीता। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के बाद यहां का पहला महापौर बनने का गौरव उन्होंने प्राप्त किया। शास्त्री चौक से तेलीबांधा तक गौरव पथ का निर्माण, आमापारा से तात्यापारा तक सड़क चौड़ीकरण, गांधी चौक के आगे नये निगम मुख्यालय भवन का निर्माण प्रारंभ होना, स्लम एरिया (निचली बस्तियों) में रहने वालों के लिए मकान बनाकर उन्हें वहां विस्थापित करने की शुरुआत और नगर निगम की स्कूलों में शिक्षा कर्मियों की भर्ती में पारदर्शिता- ये कुछ ऐसे बड़े काम थे जो तत्कालीन महापौर सोनी के खाते में दर्ज़ हुए। सोनी के महापौर और सभापति दोनों ही कार्यकाल के साथ बहुत सी कहानियां जुड़ी रही हैं। सभापति के रूप में सोनी कितनी बेबाक़ी से अपनी बात कहा करते थे इसका पता उनके उस साक्षात्कार से चलता है, जिसे मैंने सांध्य दैनिक अख़बार ‘हाईवे चैनल’ के लिए लिया था। वह साक्षात्कार 8 जनवरी 2001 के अंक में प्रकाशित हुआ था। पुरानी यादों को ताजा करते हुए वह साक्षात्कार आप सब के सामने एक बार फिर प्रस्तुत है-
काम को लेकर महापौर से मतभेद होते हैं, उसमें कोई बुराई नहीं- सभापति
■ अनिरुद्ध दुबे
रायपुर। नगर निगम के सभापति सुनील सोनी का कहना है कि महापौर तरुण चटर्जी से हमेशा मेरे अच्छे सम्बन्ध रहे हैं। वे अनुभवी व्यक्ति हैं। यदि विकास कार्यों को लेकर कभी उनसे मेरे मतभेद होते भी हैं तो मैं उसमें बुराई नहीं देखता। उन्होंने कहा कि महापौर एवं पार्षद निधि की तरह नगर निगम अध्यक्ष (सभापति) निधि की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
श्री सोनी के सभापति के कार्यकाल के एक वर्ष पूरे होने पर हाल ही में ‘हाईवे चैनल’ की उनसे लम्बी बातचीत हुई, जिसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-
0 सभापति के रूप में आपका पिछले एक साल का कार्यकाल कैसा रहा?
00 अपने पिछले एक साल के कार्यकाल से मैं पूर्ण रूप से संतुष्ट हूं। सभापति के पद पर मेरा निर्वाचन निर्विरोध हुआ था। इसलिए निश्चित तौर पर मैंने माना कि निर्वाचन के बाद मेरा उत्तरदायित्व बढ़ गया है। मैंने संकल्प लिया था कि मेरी भूमिका निर्विवाद और निष्पक्ष सभापति के रूप में होनी चाहिए और मैं उस पर कायम हूं। यही कारण है कि मुझे समस्त ५२ पार्षदों का सहयोग भी मिल रहा है। मैंने ऐसी व्यवस्था की कि सामान्य सभा में सभी पार्षदों को अपने प्रश्न रखने का मौका दिया जाए और उन्हें उसका ज़वाब भी वहीं मिले। बीच में यह भी शिकायत आई थी कि सभी पार्षदों को लिखित में उत्तर नहीं मिलता है। इसलिए सामान्य सभा के पूर्व में ही लिखित में सारे पार्षदों को उत्तर भिजवाने की व्यवस्था की गई। सामान्य सभा में सार्थक चर्चाएं हों, मैं इसके पक्ष में हूं।
0 आप सभापति हैं तो स्वाभाविक है समस्त वार्डों के पार्षद अपनी समस्याओं को आपके सामने रखते होंगे। इस व्यस्तता के बीच आप स्वयं के वार्ड को कितना समय दे पाते हैं?
00 जब मैं अपने वार्ड सदर बाज़ार से चुनाव लड़ा तो वहां के नागरिकों से कहा था कि वार्ड को पूरी तरह से समस्या मुक्त करना है। अपने इस वायदे को मैं आज भी भूला नहीं हूं। पिछली गर्मी में मैंने अपने वार्ड में पानी की पर्याप्त व्यवस्था की। कुछ गलियों में कांक्रीटीकरण का कार्य हुआ और कुछ में हो रहा है। कमासीपारा क्षेत्र में ८ लाख रुपये की लागत से सुलभ शौचालय का निर्माण हो रहा है।
0 कुछ महीनों पहले आपने लाइन से पांचों जोन में बैठकें ली थीं। क्या आपका उत्साह अब ठंडा पड़ गया है?
00 जिस समय मैंने पांचों जोन में बैठकें ली थीं, उस समय जोन अध्यक्ष का चुनाव नहीं हुआ था। कोशिश थी कि जोन का काम व्यवस्थित हो तथा पार्षद एवं अधिकारी एक दूसरे को पहचानें। जोन अध्यक्ष का चुनाव हो गया है और जिस जगह पर कोई ज़िम्मेदार आदमी बैठ जाता है तो वह पूरी ज़िम्मेदारी से कार्य करता है। ऐसी स्थिति में बार-बार हस्तक्षेप करना मैं उचित नहीं समझता। इसीलिए मैं जोन की बैठकें नहीं ले रहा हूं। जोन के अध्यक्ष जब बुलाते हैं तो उनके पास मैं ज़रुर पहुंचता हूं।
0 अभी हाल ही में जो प्रशासनिक फेरबदल हुए उसे लेकर जोन क्रमांक दो के अधिकांश पार्षदों एवं राजस्व समिति के अध्यक्ष सुभाष तिवारी ने आपत्ति दर्ज कराई है…
00 अगर निगम आयुक्त जनप्रतिनिधियों को दरकिनार कर कोई निर्णय लेते हैं तो निश्चित तौर पर टकराव होगा। इससे उन्हें बचना चाहिए। मेयर इन कौंसिल के जो सदस्य हैं वे अपने विभागों के प्रति ज़िम्मेदार लोग हैं। उनकी राय को नज़रअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
0 क्या आप मानते हैं कि आयुक्त को सारे अधिकार देने से नगर निगम की स्वायत्तता पर अंकुश लगता है?
00 नीतियां बनाने का अधिकार जनप्रतिनिधियों को है और नीतियों को क्रियान्वित करने का अधिकार निगम आयुक्त को। इस बात को दोनों पक्ष समझ लें तो टकराव की नौबत नहीं आएगी। चूंकि दोनों ही पक्ष अधिकार सम्पन्न हैं इसलिए न कोई छोटा है, न कोई बड़ा। यदि किसी बात के क्रियान्वयन में किसी प्रकार अनियमितता या देर देखने में आती है तो उसके लिए निगम आयुक्त एवं अन्य अधिकारीगण ज़िम्मेदार होते हैं।
0 हर कोई नगर निगम की कंगाली की बात करते नज़र आता है…
00 पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में निश्चित तौर पर नगर निगम की वित्तीय स्थिति सुधरी है। पिछले एक साल में किसी तरह का ओव्हर ड्राफ्ट नहीं लिया गया है। वर्तमान में नगर निगम व्दारा जो करारोपण किया गया है उसे ही वसूल लिया जाए तो आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी।
0 तरुण चटर्जी जब महापौर का चुनाव लड़ रहे थे, तब उन्होंने शहर को धूल एवं मच्छर मुक्त करने का वायदा किया था…
00 शहर को धूल से मुक्त करने जगह-जगह नाली से नाली सड़क का निर्माण हो रहा है। नगर निगम की सामान्य सभा में 28 सड़कों को बनाने का प्रस्ताव लाया गया था, जो पारित भी हो गया था। उस समय रायपुर का राजधानी बनना तय नहीं हुआ था। जैसा कि अब रायपुर राजधानी बन चुका है उससे निश्चित तौर पर सड़कों के निर्माण की प्राथमिकताओं में परिवर्तन आया है। आने वाले समय में बची हुई सड़कों का निर्माण भी हम करेंगे, जिससे रायपुर शहर धूलमुक्त हो जाएगा। इसके लिए शासन को ज़ल्द से ज़ल्द नगर निगम को राशि उपलब्ध कराना होगा। जहां तक शहर को मच्छर मुक्त करने की बात है तो जब भाजपा के पदाधिकारी नगर निगम में चुनकर आए तो सबसे पहले उन्होंने सफ़ाई को ही प्राथमिकता दी थी। महापौर, मैं और पार्षदगण सुबह 6 बजे से सफ़ाई व्यवस्था के लिए सक्रिय हो जाया करते थे। उस समय परिणाम सुखद भी सामने आए थे। बाद में यह सब बंद हो गया तो पुनः सफाई व्यवस्था में ढिलाई आ गई। हाल ही में विधायक बृजमोहन अग्रवाल एवं नगर निगम के पदाधिकारियों ने विस्तृत चर्चा भी की थी। जैसा कि रायपुर शहर की आबादी दस लाख से ऊपर पहुंच गई है, उस स्थिति में नगर निगम का तेरह सौ सफाई कर्मचारियों का अमला अपर्याप्त है।
0 पिछले महीने जो सामान्य सभा हुई थी उसमें विपक्षी पार्षदों ने माइक हवा में उछाल दिए थे और मेज़ पलटा दी थी। नगर निगम अध्यक्ष के रूप में आपकी इस पर क्या टिप्पणी है?
00 पार्षद के रूप में हम राजनीति की पहली सीढ़ी चढ़ते हैं और हमारा आचरण और व्यवहार कैसा है यह जनता देखती है। जो डगमगाता है वह गिर जाता है। जो सम्हलकर चलता है उसका भविष्य उज्जवल होता है। जिन पार्षदों ने कुछ इस तरह की ग़लती की थी बाद में उन्होंने उसका पश्चाताप भी किया था।
0 विपक्षी पार्षदों का यह आरोप था कि सामान्य सभा को तीन दिनों से अधिक समय तक स्थगित नहीं किया जा सकता, यह बात संविधान में लिखी हुई है। लेकिन आपने तो हफ़्ते भर से ज़्यादा समय के लिए स्थगित कर दिया था…
00 मैंने विपक्षी पार्षदों को यह ज़वाब देकर संतुष्ट कर दिया था कि बहुमत के आधार पर सामान्य सभा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित की जा सकती है। यह नगर निगम अधिनियम की धारा 36 में लिखा हुआ है।
0 महापौर तरुण चटर्जी और आपके बीच संबंध ठीक नहीं रहने की चर्चा अक्सर पार्षदों के बीच होती रहती है। यह भी कहा जाता है कि आपके और उनके बीच कई बार संवादहीनता की स्थिति रहती है…
00 महापौर से मेरे संबंध काफी अच्छे हैं। वह अनुभवी व्यक्ति हैं। विकास कार्यों को लेकर कभी उनसे मतभेद हो भी जाते हैं तो मैं उसे बुरा नहीं मानता।
0 हाल ही में महापौर तरुण चटर्जी ने अपनी निजी राय व्यक्त करते हुए कहा था कि महापौर और उप महापौर, पहले वाली जो व्यवस्था थी, वह ठीक थी…
00 तीन साल पूर्व मध्यप्रदेश शासन ने उप महापौर का पद नगर निगम अध्यक्ष (सभापति) के रूप में परिवर्तित किया था। जैसा कि मेरी अपनी सोच है शासन ने यह निर्णय इसलिए लिया ताकि सामान्य सभा में निर्वाचित होकर आए सभी पार्षदों को सुझाव देने व बोलने का अवसर मिल सके। अध्यक्ष चूंकि निष्पक्ष होता है और उसका कार्य व आचरण दलगत राजनीति से ऊपर उठकर होता है इसलिए छोटी इकाईयों में भी यह व्यवस्था लागू की गई है और इस व्यवस्था के लागू होने के बाद सुखद परिणाम सामने आ रहे हैं। सभी पार्षदों को अपनी समस्याओं को सदन में रखने का अवसर बराबर मिल रहा है।
0 आपके आलोचकों का कहना है कि आप फील्ड में घूमकर विकास कार्यों का जायज़ा लेने की बज़ाय दफ़्तर में ज़्यादा समय बिताते हैं…
00 पहली बात तो यह कि मेरा कोई आलोचक होगा यह मैं नहीं मानता। इस तरह की बात कहने वाले लोग मेरे आलोचक नहीं बल्कि शुभचिन्तक हैं। उनकी जानकारी के लिए मैं यह बता दूं कि मैंने फील्ड में घूमना शुरू कर दिया है। यदि मैं ज्यादा समय दफ़्तर में देता हूं तो उसके पीछे कारण यह भी है कि महापौर ज़्यादा समय फील्ड में रहते हैं। ऐसी स्थिति में दफ़्तर में एक ऐसे व्यक्ति का रहना ज़रूरी है जो ज़वाबदेह हो।
0 विपक्षी पार्षदों के बीच इन दिनों एक जोक चल पड़ा है कि निर्वाचित पदाधिकारियों को मिटिंग, इटिंग एवं सीटिंग से फ़ुरसत नहीं है…
00 लोग यदि यह मानते हैं कि बीते एक वर्ष में हम लोग सिर्फ़ बैठकें ही करते रहे हैं तो उनकी जानकारी में मैं यह ला दूं कि इन बैठकों के सुखद परिणाम भी सामने आए हैं। क़रीब सात करोड़ रुपये का काम इस एक साल में हुआ है। हमने आर्थिक तंगी का रोना नहीं रोया है।
0 क्या नगर निगम में महापौर निधि एवं पार्षद निधि की तरह अलग से सभापति निधि का प्रावधान होना चाहिए?
00 चूंकि सामान्य सभा में सारे पार्षद सभापति के समक्ष अपनी सारी समस्याएं रखते हैं, ऐसे में उनके संरक्षण एवं उनकी समस्याओं के निराकरण की ज़िम्मेदारी भी सभापति की होती है। इसलिए अलग से सभापति निधि होना चाहिए। कुछ और नगर निगमों के सभापतियों का भी इस सिलसिले में मेरे पास सुझाव आया है। छत्तीसगढ़ की सभी नगर निगमों के सभापति इस बात को मुख्यमंत्री के समक्ष रखेंगे। अगर सभापति के नाम से अलग से निधि तय होती है तो वह विकास कार्यों पर ही खर्च होगी। इस पर किसी को एतराज़ नहीं होना चाहिए।
रायपुर नगर निगम के
अब तक के सभापति
1. गजराज पगारिया (1997)
2. सुनील सोनी (1999)
3. प्रफुल्ल विश्वकर्मा (2003)
4. रतन डागा (2004)
5. संजय श्रीवास्तव (2009)
6. प्रफुल्ल विश्वकर्मा (2014)
7. प्रमोद दुबे (2019)
8. सूर्यकांत राठौर (7 मार्च 2025)