कारवां (18 मई 2025) ● क्या संभव है सरकार व नक्सलियों के बीच बातचीत…● ‘आतंक’ का खात्मा करने पूर्व में निकाले जाते रहे बातचीत के रास्ते… ● चंबल को थर्रा देने वाले डकैत की जादूगरी… ● स्टॉप डेम का पानी फैक्ट्रियों में नहीं जाने देना चाहते ग्रामीण… ● ‘कमल विहार’ पर ऐसी गिद्ध दृष्टि कि मौज करने बाड़ी ही बनवा ली…

■ अनिरुद्ध दुबे

माना जा रहा है कि केन्द्रीय मंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 का जो टारगेट दे रखा है उसी का नतीजा है कि बस्तर में नक्सलवाद काफ़ी पीछे धकेला गया है। कर्रेगुटा की पहाड़ी पर नक्सलवाद के खिलाफ़ लगातार 21 दिन का ऑपरेशन चला, जिसमें 31 नक्सलियों को मार गिराने का दावा छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से सामने आया है। पिछले क़रीब छह महीनों में नक्सलियों की तरफ से 5 पत्र यह कहते हुए जारी किए गए हैं कि वह सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं। इधर, उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि “बातचीत तभी संभव है जब वह बिना किसी शर्त के हो।“ उल्लेखनीय है कि उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा को गृह मंत्री का प्रभार मिलने के बाद उन्होंने आगे से होकर कहा था कि “नक्सलियों से बातचीत के लिए रास्ते खुले हुए हैं। यदि नक्सलियों को किसी तरह की आशंका है तो वे वाट्स अप कॉल में आकर भी बात कर सकते हैं।“ वह समय 2024 का था, तब नक्सलियों की ओर से कोई रिप्लाई नहीं आया था, यह दौर 2025 का है। नक्सलवाद की ख़बरों पर सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले लोग पिछली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल और भाजपा सरकार के इस मौजूदा कार्यकाल के अंतर को समझने की कोशिश में लगे हुए हैं। कांग्रेस के शासनकाल में भूपेश बघेल मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने भी कहा था कि “नक्सली यदि भारत के संविधान पर आस्था व्यक्त करते हुए बातचीत के लिए आगे आते हैं तो हम तैयार हैं।“ सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले इस सवाल का ज़वाब खोज रहे हैं कि बातचीत का रास्ता खुला होने की बात भूपेश बघेल और वर्तमान उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा दोनों ने कही, क्या कारण हो सकता है कि पिछली कांग्रेस की सरकार में नक्सलियों की ओर से बातचीत के लिए कोई पत्र जारी नहीं हुआ था, जबकि इस सरकार के डेढ़ साल के कार्यकाल में 5 बार जारी हो चुका है…

‘आतंक’ का खात्मा करने

पूर्व में निकाले जाते रहे

बातचीत के रास्ते

छत्तीसगढ़ की विष्णु देव साय सरकार लगातार नक्सलियों के आत्मसमर्पण और उनके पुनर्वास पर जोर दे रही है। यह भी प्रश्न है कि यदि सरकार एवं नक्सलियों के बीच कभी बातचीत की स्थिति बनी भी तो वह आगे किस मोड़ पर जाएगी? क्या बातचीत के बाद थोक में आत्मसमर्पण जैसी कोई नई कहानी सामने आएगी? बातचीत के रास्ते खुले हैं, इसका ज़िक्र जब भी होता है तो फिर एक और बड़ा प्रश्न उठता है कि बातचीत की कभी स्थिति बनी भी तो सरकार की तरफ से चर्चा के लिए बड़ा चेहरा कौन होगा? अतीत को खंगालते हुए यदि सोचें कि क्या पहले कभी ‘आतंक’ को मिटाने बातचीत के रास्ते को चुना गया था, तो इसका ज़वाब ‘हां’ में मिलता है। सत्तर के दशक की बात करें, चंबल घाटी में डाकुओं का ज़बरदस्त आतंक रहा था। आतंक की गूंज मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश व राजस्थान तीनों राज्यों में सुनाई देती थी। मोहर सिंह एवं माधव सिंह जैसे डाकुओं के नाम से चंबल घाटी व आसपास के गांव थर्राते थे। सत्तर के दशक में लोकनायक जयप्रकाश नारायण की पहल पर मोहर सिंह एवं माधव सिंह ने क़रीब 500 साथियों के साथ आत्मसमर्पण किया था। जेल की सजा काटने के बाद इन सभी डाकुओं ने सामान्य लोगों की तरह जीवन व्यतीत किया। माधव सिंह तो जेल से बाहर आने के बाद प्रोफेशनल जादूगर ही बन गए थे। पूरे भारतवर्ष में घूम-घूमकर उन्होंने अपनी जादू कला का प्रदर्शन किया था। वहीं मोहर सिंह राजनीति में गए और 1995 से 2000 तक मध्यप्रदेश अंतर्गत मेहगांव के नगर पंचायत अध्यक्ष रहे।

बात करें 80 के दशक की जब महिला डकैत फूलन देवी का उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश में भारी आतंक था। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की पहल पर फूलन देवी एवं उनकी गैंग ने 13 फरवरी 1983 को भिंड में आत्मसमर्पण किया था। फूलन देवी हिंसा का मार्ग छोड़कर न सिर्फ़ अहिंसा के रास्ते पर आईं, बल्कि लोकतंत्र पर आस्था जताते हुए उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ीं और जीतीं भी। मशहूर डायरेक्टर शेखर कपूर ने फूलन देवी पर फ़िल्म बनाई थी ‘बैंडिट क्वीन’, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराही गई थी। ‘बैंडिट क्वीन’ में हमारे छत्तीसगढ़ के कलाकार रामचरण ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रामचरण सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर के ‘नया थियेटर’ ग्रुप के हिस्सा थे।

बहरहाल नक्सलियों व डकैतों में आपस में कहीं से कोई तुलना नहीं हो सकती, लेकिन आगे कभी बातचीत का रास्ता खुले तो वह कैसा होगा, देखने और समझने वाली बात होगी।

चंबल को थर्रा देने

वाले डकैत की जादूगरी

जब डकैत माधव सिंह की बात चल ही निकली है तो सन् 1980 के आसपास का एक वाकया याद आ जाता है। जब माधव सिंह अपनी जादू कला का प्रदर्शन करने रायपुर आए हुए थे। जीई रोड पर जहां आज शहीद समारक भवन है, उसके पीछे प्रेस कॉम्पलेक्स से लेकर एकात्म परिसर वाली जगह तक बड़ा सा मैदान व बड़ा सा तालाब हुआ करता था, जिसे रजबंधा मैदान व रजबंधा तालाब के नाम से जाना जाता था। उस रजबंधा मैदान में हर साल मीना बाज़ार लगा करता था और कभी सर्कस भी आया करता था। एक बार जब मीना बाज़ार लगा, उसमें टिकट पर डकैत से जादूगर बने माधव सिंह के जादू का शो हुआ। मीना बाज़ार लगाने वालों ने अख़बारों में ख़ूब प्रचारित किया था कि डाकू से जादूगर बने माधव सिंह के जादू का शो देखिए। तब माधव सिंह का जादू देखने यह कॉलम राइटर खुद मीना बाज़ार में मौजूद था। माधव सिंह जादू का क़रतब दिखाने मंच पर आए तो सामने एकदम दुबली-पतली जादूगर की काया खड़ी थी! वो भी नशे में एकदम धुत्त! तब मन में यही ख़याल आया था कि क्या यह वही डाकू माधव सिंह था जिसके नाम से कभी चंबल घाटी थर्राती थी! जिस पर उस ज़माने में लाख रुपये का ईनाम था! जिसकी तलाश में उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश की पुलिस जुटी रहती थी!

स्टॉप डेम का पानी फैक्ट्रियों

में नहीं जाने

देना चाहते ग्रामीण

मीडिया में शनिवार को यह ख़बर दौड़ी कि छत्तीसगढ़ के सुंगेरा गांव के ग्रामीणों ने क़सम खाई है कि वे अपने गांव में स्थित नदी के स्टॉप डेम का पानी किसी भी कीमत पर फैक्ट्रियों में नहीं जाने देंगे। बताया यही जा रहा है कि तिल्दा ब्लॉक के सुंगेरा ग्राम पंचायत से 15 किलोमीटर दूर स्थित एक स्पंज आयरन प्लांट और दो अन्य फैक्ट्रियों को पानी देने पाइप लाइन बिछाई जा रही है। ग्रामीणों ने संगठित होकर काम को रुकवा दिया। काम रुकवाने वाले कुछ लोगों की गिरफ़्तारी की ख़बर है। राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि सुंगेरा गांव का यह मामला विपक्ष की जानकारी में आया है। जुलाई में होने वाले विधानसभा के मानसून सत्र में विपक्ष इस मामले को सदन के भीतर उठा सकता है। इससे मिलता-जुलता एक मामला विधानसभा में तब उठा था जब भाजपा की दूसरी पारी वाली सरकार थी। तब विपक्षी कांग्रेस विधायक मोहम्मद अक़बर ने विधानसभा के प्रश्नकाल में आरोप लगाया था कि रोगदा बांध किसी उद्योगपति को बेच दिया गया है। तब सदन में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री हेमचंद यादव ने सीधे सपाट शब्दों में कहा था कि ऐसा कोई भी मामला मेरी जानकारी में नहीं है। विपक्ष की ओर से इस मामले को लेकर सदन के भीतर भारी हंगामा मचाए जाने पर तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक को विधायकों की जांच समिति का गठन करना पड़ा था।

‘कमल विहार’ पर ऐसी

गिद्ध दृष्टि कि मौज

करने बाड़ी ही बनवा ली

राजधानी रायपुर में अवैध कब्जा करने वालों के हौसले किस कदर बुलंद हैं इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि रायपुर विकास प्राधिकरण (आरडीए) के सदा से विवादों में घिरे रहे प्रोजेक्ट कमल विहार (कौशल्या विहार) पर भी भू माफ़ियाओं की गिद्ध दृष्टि जा ठहरी। वहां क़रीब 25 एकड़ क्षेत्र में स्थित सरकारी ज़मीन को न सिर्फ़ अवैध प्लाटिंग करके बेचा गया बल्कि बनाने वालों ने मौज मस्ती के लिए वहां बाड़ी तक बनवा ली थी। जिला, नगर निगम और पुलिस प्रशासन की संयुक्त टीम ने सुबह होने से पहले वहां बने अवैध मकानों व बाड़ी को तोड़ गिराया। चुनौती इतनी तगड़ी थी कि क़रीब डेढ़ सौ अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संयुक्त टीम को इस काम को अंज़ाम देना पड़ा। छत्तीसगढ़ राज्य बनते ही जोगी सरकार के समय में थोड़े समय के लिए एक ऐसा भी उदाहरण देखने में आया था कि कौन सी अवैध बिल्डिंग को गिराना है यह आरडीए के सीईओ तय करते थे और तोड़ गिराने की कार्यवाही नगर निगम व पुलिस प्रशासन की टीम संयुक्त रूप से करती थी।

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