कारवां (22 जून 2025) ● कहानी जैतूसाव मठ की… ● रायपुर नगर निगम पर गहरा आर्थिक संकट… ● अमलेश्वर के लोग बनना चाहते हैं रायपुर नगर निगम का हिस्सा… ● करे कोई, भरे कोई… ● सेंसर ने ‘सीता’ व ‘वैदेही’ को पास किया लेकिन ‘जानकी’ को रोका…

■ अनिरुद्ध दुबे

मठों पर कब्जे करने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपनाए जाते रहे हैं यह जानना है तो निर्देशक प्रकाश झा की फ़िल्म ‘मृत्युदंड’ देख लें। इस समय राजधानी रायपुर का जैतूसाव मठ सुर्ख़ियों में है। यह वही जैतूसाव मठ है जहां भारत छोड़ो आंदोलन के समय क्रांतिकारी इकट्ठे होकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ रणनीति बनाया करते थे। यह वही जैतूसाव मठ है जहां के महंत श्री लक्ष्मीनारायण दास ने अंग्रेजों को खिलाफ़ मोर्चा खोला था और जेल गए थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी का जैतूसाव मठ में पदार्पण हुआ था। महंत लक्ष्मीनारायण दास आगे चलकर मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी बने थे। तब की कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भरा पूरा परिवार थी। देश आजाद होने के बाद गांधीवादी विचारधारा वाले लाखों लोग कांग्रेस का हिस्सा थे। समय के साथ कांग्रेस व जैतूसाव मठ दोनों में काफ़ी कुछ बदला। महंत लक्ष्मीरायण दास जी वाले दौर में जैतूसाव मठ की जो आन बान शान थी, बाद के दौर में उसमें अंतर आते चला गया। इन दिनों चर्चा यह है कि एक व्यक्ति ने फर्ज़ी महंत बनकर जैतूसाव मठ की क़रीब 100 एकड़ ज़मीन बेच दी। इस काम में ज़मीन के अपराधी किस्म के धंधेबाजों, विवादास्पद नेताओं, आला अफ़सरों से लेकर पटवारी तक की संलग्नता रही। माना यही जा रहा है कि फर्ज़ी तरीके से बेची गई ज़मीनों के रेट का आज के हिसाब से आकलन करें तो ढाई सौ से तीन सौ करोड़ तक का आंकड़ा निकल आएगा। परंपरा यही चली आ रही है कि  रायपुर के प्राचीन जैतूसाव एवं दूधाधारी मठ का महंत वही बन सकता है जो ब्रम्हचारी हो, ऐसा भी कह सकते हैं कि अविवाहित हो। लेकिन वह फर्ज़ी महंत शादीशुदा, बाल बच्चेदार है। जैसा कि शुरुआत ‘मृत्युदंड’ फ़िल्म से की गई, इसे समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। महंत लक्ष्मीनारायण दास ने महंत गणेश दास को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। महंत गणेश दास के निधन के बाद महंत रामभूषण दास को अपना उत्तराधिकारी बनाया। महंत लक्ष्मीनारायण दास के निधन के बाद मठ का पूरा दायित्व महंत रामभूषण दास के कंधों पर आया। महंत रामभूषण दास के निधन होते ही मठ की कहानी में शासन से लेकर प्रशासन तक को उलझा देने वाला मोड़ आया था। महंत रामभूषण दास के निधन को महीने भर का भी समय़ नहीं बीता रहा होगा कि उनका भांजा आशीष तिवारी सीधे महंत की गद्दी पर विराजमान हो गया। जैतूसाव मठ के ट्रस्टियों की ओर से भारी विरोध हुआ। मठ के भीतर भारी हंगामा खड़ा हो गया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए राजधानी रायपुर के एक दिग्गज कांग्रेस नेता समेत जिला एवं पुलिस प्रशासन ने सीधे मठ जाकर हाज़री दी। जिला एवं पुलिस प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद आशीष तिवारी को महंत की गद्दी छोड़ना पड़ा। प्रशासन ने बिना देर किए दूधाधारी मठ के महंत राजेश्री रामसुंदर दास को जैतूसाव मठ का भी सर्वेसर्वा नियुक्त कर दिया। तब से आज तक महंत रामसुंदर दास दोनों मठों का दायित्व सम्हालते आ रहे हैं। राजनीति से गहराई से जुड़े लोग इस बात से अवगत हैं कि महंत रामसुंदर दास पामगढ़ तथा जैजैपुर जैसी सीटों से दो बार कांग्रेस के विधायक रहे। 2023 के विधानसभा चुनाव में वे रायपुर दक्षिण सीट से कांग्रेस की टिकट पर भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ़ चुनावी मैदान में उतरे थे, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद महंत जी ने कांग्रेस छोड़ दी और अब उनका अधिकांश समय दोनों मठों के दायित्वों तथा अन्य धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों में बीतता है।

रायपुर नगर निगम पर

गहरा आर्थिक संकट

रायपुर में न सिर्फ़ महापौर बल्कि यहां के चारों विधानसभा क्षेत्रों के विधायक भी भाजपा के हैं। नगर निगम जब भी किसी कार्य का भूमि पूजन करवाता है उस कार्यक्रम में संबंधित क्षेत्र के विधायक को ज़रूर बुलवाता है। नगर निगम के गलियारे में एक विधायक जी का नाम इन दिनों काफ़ी चर्चा में है। इसलिए कि जब भी कोई भूमि पूजन कार्यक्रम हो वह मंच से ताल ठोंककर कहते हैं- “रायपुर शहर के विकास के लिए पैसों की कमी नहीं होने दी जाएगी।“ विधायक जी जिस विधानसभा क्षेत्र से आते हैं वहां के वार्डों के पार्षदगण उनकी “पैसों की कमी नहीं होने दी जाएगी” वाली बात से हैरान हैं।  हैरान क्यों न हों, रायपुर नगर निगम इस समय बदहाली की हालत से जो गुज़र रहा है। फिर निगम के कोने-काने में वहीं के लोग यह भी बतियाते दिख जाते हैं कि ठेकेदारों का 30 करोड़ का भुगतान रुका पड़ा है। वैसे महापौर जी से लेकर उनके क़रीबी पार्षदों को भरोसा है कि भले ही देर लगे, तस्वीर बदलेगी। डबल इंजन सरकार जो है।

अमलेश्वर के लोग बनना

चाहते हैं रायपुर

नगर निगम का हिस्सा

खारुन नदी के उस पार अमलेश्वर में बसे लोग रायपुर नगर निगम का हिस्सा बनना चाहते हैं, ताकि विकास की गंगा उनके क्षेत्र में भी बह सके। रायपुर कलेक्टर गौरव कुमार सिंह ने वहां के लोगों से कहा है कि इस तरह का प्रस्ताव बनाकर दें तो उसे आगे बढ़ाया जा सकता है। क्या राह इतनी आसान है, ज़वाब यही है नहीं। खारुन के इस पार यानी महादेवघाट, रायपुर जिले की सीमा है और उस पार यानी अमलेश्वर, दुर्ग जिले की सीमा। पूर्व में कहीं से यह बात सामने आई थी कि बिलासपुर में संकरी जो कि नगर पंचायत थी, उसे विकास की दृष्टि से बिलासपुर नगर निगम का हिस्सा बनाया गया। हिस्सा किसी नगर निगम का बनना हो या किसी राज्य का, राह आसान नहीं होती। बालाघाट व अमरकंटक के लोग छत्तीसगढ़ राज्य का हिस्सा बनना चाहते थे। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ऐसा नहीं होने दिया था।

करे कोई, भरे कोई

कुछ साल पहले उटपटांग वीडियो बनाकर यू ट्यूब पर डालते रहने वाली एक लड़की ने काफ़ी सुर्ख़ियां बटोरी थी। यू ट्यूब पर वह ढिंचैक पूजा के नाम से है। ढिंचैक पूजा ने “सेल्फी मैंने ले लिया…” जैसे बेसिर पैर वाले गाने को बेसुरी आवाज़ में एक्ट करते हुए यू ट्यूब पर डाला था। इस गाने की शुरुआत कार में हुड़दंग लीला के साथ शुरु होती है। लोगों को यह गाना इतना ख़राब लगा था कि बुरा कहने वालों की बाढ़ आ गई थी। यह दौर ही ऐसा है कि उल्टा सीधा काम करने पर भी नाम हो जाता है। ढिंचैक पूजा को लोकप्रिय होना था, हो गई। छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के सरगवां पैलेस रिसॉर्ट के समीप बनाए गए एक वीडियो की बात करें, जिसमें एक पुलिस अफ़सर की पत्नी अपने बर्थ डे पर नीली बत्ती कार के बोनेट पर बैठे केक काटती नज़र आ रही हैं। बाद की ख़बर तो यही सामने आई है कि उस नीली बत्ती वाले कार ड्रायव्हर के खिलाफ़ केस दर्ज़ कर लिया गया है। करे कोई, भरे कोई।

सेंसर ने ‘सीता’ व ‘वैदेही’

को पास किया

लेकिन ‘जानकी’ को रोका

छत्तीसगढ़ी सिनेमा के बहुचर्चित प्रोड्यूसर मोहित साहू की हिन्दी फ़िल्म ‘जानकी’ को मुम्बई में सेंसर बोर्ड की हरी झंडी नहीं मिल पाई। मोहित ने काफ़ी पहले से घोषणा कर रखी थी कि ‘जानकी’ 13 जून को पूरे भारतवर्ष में रिलीज़ होगी। उन्होंने ‘जानकी’ का ट्रेलर रायपुर एवं मुम्बई दोनों जगह समारोह आयोजित कर लॉच किया था। फ़िल्म की रिलीज़ डेट से ठीक चार दिन पहले सेंसर बोर्ड व्दारा सर्टिफिकेट नहीं जारी करने वाली ख़बर बड़ी संख्या में लोगों को सदमा दे गई। मोहित कहते हैं- सेंसर बोर्ड को ‘जानकी’ नाम पर आपत्ति है।  सेंसर बोर्ड वाले कह रहे हैं ‘जानकी’ नाम बदल दो रिलीज़िंग का रास्ता खुल जाएगा। मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं। अदालत की शरण जाकर न्याय मांगूंगा।

छत्तीसगढ़ी सिनेमा से गहराई से जुड़े कुछ लोगों की तरफ से यह बात सामने आई कि जानकी सीता जी का नाम है। सीता जी का एक और नाम वैदेही भी है। इसी छत्तीसगढ़ में ‘सीता’ एवं ‘वैदेही’ नाम से फ़िल्में बनीं और सेंसर बोर्ड से पास भी हुईं फिर केवल ‘जानकी’ नाम को लेकर सेंसर बोर्ड को क्या आपत्ति है, समझ से परे है।

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