● कारवां (25 सितम्बर 2022)- नक्सलवाद मुक्ति मिशनः तो क्या अब बस्तर की बारी है…

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्य झारखंड में बूढ़ा पहाड़ को सेना के जवानों ने नक्सलियों से मुक्त करा लिया। बूढ़ा पहाड़ वैसा ही दुर्गम स्थल माना जाता है जैसा कि बस्तर के कुछ पहाड़ी इलाके। यही नहीं बिहार के भी दुर्गम इलाके चक्रबंधा व भीम बांध को भी सूरक्षा बल नक्सलावादियों से मुक्त कराने में कामयाब रहे हैं। तो क्या अब बस्तर के दुर्गम क्षेत्रों का भी नंबर लग सकता है? रमन सरकार के समय में अबूझमाड़ क्षेत्र में सेना का केम्प खोलने की बड़ी कोशिश हुई थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं मिल पाई। अभी की स्थिति में छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद बस्तर के केवल 4 जिलों सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा एवं नारायणपुर तक सिमटकर रह गया है। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के सिमटने का बड़ा प्रमाण पिछले दिनों उस समय सामने आया जब दुर्दांत नक्सली रामन्ना की पत्नी माड़वी हिड़मे उर्फ सावित्री ने आत्मसमर्पण किया। हालांकि यह आत्मसमर्पण तेलंगाना के डीजीपी के समक्ष हुआ लेकिन यह भी उतना ही सच है कि नक्सली लीडर रामन्ना का आतंक बस्तर में था और पत्नी माड़वी उर्फ सावित्री दक्षिण बस्तर डिवीजन के इंचार्ज के रूप में सक्रिय थी। माड़वी पर 15 लाख का ईनाम था। इससे पहले रामन्ना व सावित्री का पुत्र रंजीत भी 2021 में तेलंगाना में ही आत्मसमर्पण कर चुका है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले केन्द्र सरकार के तत्कालीन मंत्री राजनाथ सिंह ने रायपुर में मीडिया के समक्ष कहा था कि यदि केन्द्र में फिर से भाजपा की सरकार बनी तो बस्तर से नक्सलवाद मिट जाएगा। इधर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूर्व में कह चुके हैं कि यदि नक्सली भारत के संविधान पर आस्था जताते हुए सामने आते हैं तो उनसे बातचीत के लिए तैयार हैं। नक्सलवाद को ख़त्म करने छत्तीसगढ़ सरकार का बस्तर में बिना किसी शोर शराबे के मिशन चल रहा है। यानी केन्द्र एवं प्रदेश दोनों तरफ की सरकारों का एक ही लक्ष्य है बस्तर से नक्सलवाद को मिटाना।

धर्मजीत के अरमान

“बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले”- राजनीति में अक्सर इस शेर का इस्तेमाल होते रहा है। पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, फिर जोगी कांग्रेस, फिलहाल कहीं नहीं वाले विधायक धर्मजीत सिंह सिनेमा, गीत व संगीत के काफ़ी शौकीन रहे हैं। विधानसभा में वे अक्सर किसी गीत या शेर की लाइन कहते नज़र आते रहे हैं। राजनीति से जुड़े न जाने कितने ही लोग इन दिनों “बड़े बेआबरू होकर निकले तेरे कूचे से…” शेर का इस्तेमाल धर्मजीत सिंह के लिए किए दे रहे हैं। किसी ने सोचा भी नहीं था कि धर्मजीत का गंभीर आरोप-प्रत्यारोप के बीच इस तरह जोगी कांग्रेस यानी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस से नाता टूटेगा। जनता कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रेणु जोगी एवं प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने कहा कि “यदि हम धर्मजीत को बाहर नहीं करते तो हमारी पार्टी का गुपचुप तरीके से भाजपा में विलय कर दिया जाता।“ दूसरी तरफ धर्मजीत सिंह ने आरोप लगाया कि “अमित जोगी ने मेरी पत्नी से अपशब्द कहे। अब मेरी हत्या भी करवाई जा सकती है।“ राजनीति अनिश्चितता व अस्थिरता का क्षेत्र माना जाता है। राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठेगा कहा नहीं जा सकता। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी जब कांग्रेस से अलग हुए थे तब एक धर्मजीत सिंह ही पूरी दमदारी से उनके साथ खड़े नज़र आए थे। जोगी जी के कांग्रेस से हटने के बाद जोगी बंगले की खुली जगह पर सम्मेलन हुआ था। तब मंच पर रहते हुए में भी जोगी जी माइक पर आकर कुछ नहीं बोले थे। बोले थे तो धर्मजीत सिंह एवं कुछ अन्य कट्टर जोगी समर्थक। तब धर्मजीत सिंह ने कहा था- “जोगी जी आप को निराश होने की ज़रूरत नहीं। आपके पीछे चलने एक पूरी फौज़ खड़ी है।“ इसी सम्मेलन में छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के बीज पड़े थे। जोगी जी के जीवित रहते तक तो सब ठीक-ठाक चलते रहा लेकिन उनके न रहने के बाद चीजें तेजी से बदलती चली गईं। पिछले दिनों केन्द्र सरकार के गृह मंत्री अमित शाह के रायपुर में हुए कार्यक्रम में जनता कांग्रेस विधायक व्दय धर्मजीत सिंह एवं प्रमोद शर्मा की मौजूदगी से यह साफ हो गया था कि हवा का रूख़ किस तरफ है।

फिर बहस शराब पर

राजनांदगांव पुलिस व्दारा हाल ही में पाटेकोहरा चेकपोस्ट पर एक भाजपा नेता को तथाकथित रूप से शराब के साथ पकड़े जाने की ख़बर सामने आने के बाद से शराब को लेकर सियासत एक बार फिर गरमा गई है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में पूर्ण शराब बंदी का वादा था। हो सकता है इस वादे को पूरा करने में कुछ अड़चनें सामने आ रही हों। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल काफ़ी पहले कह चुके हैं कि “शराब बंदी करेंगे पर नोटबंदी की तरह नहीं।“ शराब बंदी को लेकर प्रदेश सरकार ने एक कमेटी बना रखी है जिसके अध्यक्ष पूर्व मंत्री एवं विधायक सत्यनारायण शर्मा हैं। राजनांदगांव में नेता की गिरफ्तारी के बाद भाजपा के लोगों ने एक बार फिर सरकार पर हमला बोलना शुरु किया तो सत्यनारायण शर्मा की तरफ से यही जवाब आ रहा कि “दम है तो जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां पहले शराब बंदी करके दिखाएं। जिन्हें शराब की आदत है उनसे यह अचानक कैसे छूटेगी। इतना ही किया जा सकता है कि इस बुराई से दूर रहने जागरूकता अभियान चलाया जाए।“ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम भी पूर्व में कह चुके हैं कि “कुछ ऐसे क्षेत्र जहां एक समुदाय विशेष के बीच शराब की संस्कृति रची बसी है वहां उन्हें इससे नहीं रोका जा सकता।“ बहरहाल शराब और राजधानी रायपुर का आधा अधूरा स्काई वॉक- ये दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर फिलहाल थमते नहीं दिख रहा है।

लेडी डॉन

एक हफ्ते के भीतर राजधानी रायपुर में दो ऐसी अपराधिक घटनाएं हुईं जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया। रायपुर सेंट्रल जेल में बंद एक लेडी डॉन ने वहां ड्यूटी कर रही एक महिला प्रहरी को इतना पीटा कि उसके हाथ में प्लास्टर चढ़ गया। वहीं माना एयरपोर्ट पर एक ड्रायव्हर ट्रेव्हल्स कंपनी में अपना बकाया वेतन मांगने गया तो कंपनी में कार्यरत चार-पांच लड़कियों ने उसे बेदम पीटा। उन लड़कियों ने उस ड्रायव्हर के कपड़े तक फाड़ दिए। इस घटना का वीडियो जमकर वायरल हुआ है। ऐसा कौन सा एयरपोर्ट होगा जहां कड़ी सूरक्षा व्यवस्था नहीं रहती होगी! जागरूक नागरिक सवाल यही करते नज़र आ रहे हैं कि जब लड़कियां ड्रायव्हर को बेदम पीट रही थीं तब वहां आसपास तैनात सूरक्षा कर्मी क्या कर रहे थे? कुछ हफ्ते पहले की तो बात है जब कंकालीपारा में एक लड़की ने एक गूंगे-बहरे युवक की धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। उस मूक बधिर युवक का दोष सिर्फ इतना ही था कि वह सायकल से जा रहा था और स्कूटी सवार उस लड़की को हार्न की आवाज़ नहीं सुन पाने के कारण साइड नहीं दे पाया था। एक के बाद एक इस तरह की घटनाएं देखने और पढ़ने के बाद लगता है कि क्या हो गया है इस रायपुर शहर को! महिला अपराधी यहां पहले भी हुआ करती थीं लेकिन जिस तरह के ख़तरनाक दृश्य इन दिनों सामने आ रहे हैं वैसा तो पहले नहीं दिखा करता था। रायपुर में महिलाओं के अपराध से जुड़े होने की ख़बरें पहले भी सुनने आती थीं लेकिन ऐसी नहीं कि सुनने पर दिल दहल जाए। नब्बे के दशक में रायपुर रेल्वे स्टेशन व उसके आसपास का इलाक़ा ज़रूर सुर्खियों में हुआ करता था। स्टेशन के पास कभी एक लेडी डॉन का बड़ा नाम था जो सोने से लदी नज़र आती थी। उसका दबदबा ऐसा था कि मीडिया वालों को भी उससे मिलना हो तो समय लेना पड़ता था। वहीं स्टेशन परिसर व प्लेटफार्म पर कभी एक खतरनाक महिला घूमती नज़र आया करती थी। कई लावारिस नज़र आने वाले छोटे बच्चे उस महिला की ड्यूटी बजाते दिख जाया करते थे। आज जो देखने सुनने मिल रहा वैसे अपराध उस दौर में नहीं हुआ करते थे। वाकई रायपुर बदल रहा है…

बीटीआई का रावण

महान धार्मिक ग्रंथ में रावण का चित्रण ख़लनायक के रूप में हुआ है। भारत के अधिकांश इलाकों में हर साल दशहरा पर्व पर रावण दहन की परंपरा है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के संदेश के रुप में देखा जाता है। राजधानी रायपुर में दो जाने-पहचाने नेता पिछले कुछ दिनों से रावण को लेकर भिड़े हुए हैं। संजय श्रीवास्तव भाजपा से हैं तो राकेश धोतरे कांग्रेस से। दोनों नेता अलग-अलग दशहरा उत्सव समिति से जुड़े हुए हैं। दोनों ने संकल्प ले रखा है कि रावण का दहन करेंगे तो राजधानी के प्रतिष्ठित बीटीआई ग्राउंड में ही। वैसे तो बरसों से रावांभाठा (भाटागांव) एवं डब्लूआरएस कॉलोनी का रावण सुर्खियों में रहते आया है लेकिन मीडिया में इन दिनों बीटीआई का रावण छाया हुआ है। सुनने में यही आ रहा कि संजय-राकेश के बीच छिड़े इस युद्ध ने कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर भूरे तक को असमंजस में डाल रखा है। डॉ. भूरे की कार्यशैली ठंडे दिमाग से काम करने वाले अफ़सर के रूप में रही है। उनकी तरफ से प्रयास यही चल रहा है कि दोनों ही पक्षों को थोड़े समय के अंतराल में बीटीआई में रावण दहन का अवसर मिल जाए। आलम यह है कि दोनों ही पक्ष अपने रावण की परंपरा को सबसे ज़्यादा पुराना बताते हुए मैदान से पीछे नहीं हटने की कसम खाकर बैठे हुए हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *