● कारवां (4 दिसंबर 2022) मोदी-भूपेश की मिलती जुलती शैली!

■ अनिरुद्ध दुबे

राजनीतिक ख़बरों के प्रति गहरा अनुराग रखने वाले कुछ लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं हमारे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कार्य शैली काफ़ी मिलती जुलती है। दोनों आक्रामक हैं। आम जनता से भावनाओं के तार कैसे जोड़ना है यह कला दोनों को आती है। हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि “डॉ. रमन सिंह मुझे चूहा, बिल्ली, कुत्ता न जाने क्या-क्या कहते रहते हैं।“ वहीं गुजरात के कलोल क्षेत्र में चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मुझे लेकर रावण वाला बयान देते हैं। कांग्रेस में इस बात की होड़ है कि मोदी की सबसे ज्यादा बेइज्जती कौन करेगा।“ संयोग देखिए एक ही समय में मिलता-जुलता घटनाक्रम दोनों नेताओं के साथ घटता है।

विधानसभा में पहली

बार दिखी ऐसी उत्तेजना

1 व 2 दिसंबर को हुआ छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र कई मायनों में यादगार रहेगा। पहला तो लोग कई दिनों तक इसी उलझन में थे कि यह विशेष सत्र है या सामान्य सत्र। अब तक देखने में यही आते रहा था कि विशेष सत्र किसी ख़ास एक विषय पर होता है। जैसा कि इससे पहले हुआ विशेष सत्र राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर केन्द्रित था। वहीं इस बार पूर्व में जानकारी यही सामने आई थी कि आरक्षण मामले को लेकर विशेष सत्र बुलाया जा रहा है, लेकिन जब कार्य सूची सामने आई तो आरक्षण के अलावा अनुपूरक बजट एवं विनियोग विधेयक भी विषय था। सत्र के दूसरे दिन वरिष्ठ भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल यह कहने से नहीं चूके कि “लोकसभा, राज्यसभा से लेकर विधानसभा का इतिहास उठाकर देख लें, कभी ऐसा देखने में नहीं आया कि विशेष सत्र में विनियोग विधेयक लाया गया हो।“ फिर विधानसभा नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने सदन में सवाल उठाया कि “5 दिसंबर को भानुप्रतापुर उप चुनाव है। क्या विशेष सत्र बुलाने चुनाव आयोग से विचार विमर्श किया गया?” फिर सत्र के दूसरे दिन सदन के भीतर जो कुछ घटित हुआ उसे तो और भी नहीं भुलाया जा सकेगा। नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल एक दूसरे के खिलाफ़ इस तरह आक्रामक हो गए थे कि लगने लगा पता नहीं अगले पल क्या कुछ हो जाए! विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने मौके की नज़ाकत को देखते हुए सदन की कार्यवाही दस मिनट के लिए स्थगित कर दी, तब भी माहौल शांत नहीं हुआ। गर्भ गृह में शिव डहरिया व वरिष्ठ भाजपा विधायक अजय चंद्राकर तो आपस में टकरा ही गए। नारायण चंदेल व अन्य कुछ विधायकों ने बीच बचाव किया। फिर इन तीनों नेताओं ने सदन के बाहर आकर मीडिया के सामने जो कुछ कहा वह कहने वाला अंदाज़ और भी ज़्यादा आक्रामक था। सदन की कार्यवाही जब दोबारा शुरु हुई तो अजय चंद्राकर यह कहने से नहीं चूके कि “दो वरिष्ठजनों की ओर से इशारा मिलने पर ही हल्ला पार्टी इस तरह कूदी।“ कुल मिलाकर विधानसभा में इस एक दिन में इतना कुछ घट गया जो कि बरसों भुलाया न जा सकेगा। कुछ लोग तो यह भी कहते नज़र आए कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 22 साल के इतिहास में विधानसभा के भीतर ऐसी उत्तेजना पहली बार देखने मिली।

कपड़े उतारेंगे

हाल ही में एक गरिमामय स्थान पर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष के विधायकों की मौजूदगी में पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि “हम सत्ता पक्ष को नंगा करके रहेंगे।“ इस पर वरिष्ठ कांग्रेस विधायक अमितेष शुक्ल ने आपत्ति करते हुए कहा कि “असंसदीय भाषा का उपयोग हो रहा है।“ बृजमोहन अग्रवाल ने अपने शब्द वापस लेते हुए कहा कि “कोई बात नहीं नंगा नहीं करेंगे सत्ता पक्ष के कपड़े उतारेंगे।“

क्या जयवीर ’23’ में फिर

छत्तीसगढ़ में दिखेंगे

कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए पंजाब के कुछ चर्चित नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली है। उन चर्चित नेताओं में जयवीर शेरगिल एक हैं। सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में जयवीर का छत्तीसगढ़ से गहरा रिश्ता बन गया था। तब वे कांग्रेस में थे। चुनाव के दौरान महीने भर वे रायपुर में रहे थे। उस दौरान राजीव भवन में कांग्रेस के जिन राष्ट्रीय नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस हुई थी उन्हें लीड करते जयवीर ही नज़र आए थे। उसी चुनावी दौर में जयवीर ने बस्तर का दौरा भी किया था। जिस तरह जयवीर छत्तीसगढ़ की आबोहवा से परिचित हैं उससे इस बात की पूरी संभावना है कि 2023 के चुनाव में भाजपा उनका उपयोग छत्तीसगढ़ में करेगी।

बस्तर की शराब को नई

पहचान दिला रहा फ्रांस

छत्तीसगढ़ की बहुत सी चीजों को जो अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिल रही है उनमें यहां की शराब भी है। बताते हैं फ्रांस की एक वाइन कंपनी ने बस्तर में महुए से बनी शराब को हाथों हाथ लिया है। इस शराब को ‘माह’ नाम दिया गया है। कंपनी की ओर से इस शराब को ब्रांड के रूप में स्थापित करने की कोशिश हो रही है। गूगल में आप इस शराब के बारे में जानकारी ले सकते हैं और ऑन लाइन ऑर्डर भी कर सकते हैं। माना जा रहा है कि इस अंतर्राष्ट्रीय कंपनी व्दारा दिलचस्पी दिखाए जाने से बस्तर के उन अधिकांश वनवासियों का भला होगा जो महुए की शराब के क़ारोबार से जुड़े रहे हैं।

मास्टर प्लान

नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के कड़े परिश्रम के बाद अंततः राजधानी रायपुर का मास्टर प्लान सामने आ गया। अभी दावा-आपत्तियों का दौर चल रहा है। दावा-आपत्तियों के निराकरण के बाद हो सकता है मार्च महीने तक मास्टर प्लान का अंतिम प्रकाशन हो जाए। लंबी उम्र तय कर चुके कुछ लोग बताते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल को न सिर्फ सिंचाई व्यवस्था बल्कि मास्टर प्लान की भी गहरी समझ थी। जब वे अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सोच रखा था कि नया मास्टर प्लान लाकर रायपुर शहर की तस्वीर बदलकर रख देंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। इसके पीछे वज़ह राजनीतिक दखंलदाजी मानी जाती रही है। यह भी माना जाता रहा है कि रायपुर शहर के स्वरूप को विकृत कर देने में कुछ नेताओं की अहम् भूमिका रही। वोट की राजनीति ने इस शहर का बंटाढार कर दिया। जहां पाए तहां मनमाने ढंग से बस्तियां बसा दी गईं। जानकार लोग बताते हैं अविभाजित मध्यप्रदेश की बात करें तो मास्टर प्लान सही ढंग से इंदौर शहर में ही लागू हो पाया था। उसमें श्यामाचरण शुक्ल की ही भूमिका थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद अब कहीं जाकर काफ़ी होम वर्क करते हुए रायपुर शहर का यह नया मास्टर प्लान लाया गया है। उम्मीद तो यही की जा रही है कि आने वाले समय में रायपुर की तस्वीर विशाल व्यवस्थित महानगर के रूप में सामने आएगी।

एक्सप्रेस वे की तरफ

खुलते दरवाज़े

रायपुर रेल्वे स्टेशन से केन्द्री तक बने क़रीब 13 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस वे के मई में लोकार्पण हो जाने के दावे हुए थे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अब तो दिसंबर निकला जा रहा। वैसे तो आने-जाने के लिए एक्सप्रेस वे खोल दिया गया है फिर भी कहीं-कहीं पर छोटे-मोटे काम बाकी हैं। योजना यही रही है कि घर, दुकान या कॉलोनी किसी का भी दरवाज़ा एक्सप्रेस वे के तरफ नहीं खुलेगा लेकिन इसका उल्लंघन होना शुरु हो गया है। थोड़ी-थोड़ी दूर के अंतर पर देखा जा सकता है कि कॉलोनी वाले हों या फिऱ धंधेबाज सीधे एक्सप्रेस वे की तरफ रास्ता खोल दिए हैं। बताया जाता है कि जिला एवं नगर निगम प्रशासन ने तेलीबांधा से लेकर फुंडहर तक रास्ता खोल देने वालों के खिलाफ़ कार्रवाई भी की है, लेकिन शंकर नगर से लेकर स्टेशन तक का एक्सप्रेस वे पार्ट शायद अभी प्रशासन की निगाहों से बचा रह गया है। ख़ासकर पंडरी के आसपास की एक्सप्रेस वे से जुड़ी तस्वीरें तो कुछ और ही कहानी बयां कर रही हैं।

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