■ अनिरुद्ध दुबे
वैसे तो छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावी संग्राम को क़रीब दस महीने का समय शेष है लेकिन जिस तरह भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही पार्टियां जोर आजमाइश करती नज़र आ रही हैं उससे मानो ऐसा प्रतीत होने लगा है कि चुनाव को पांच-छह महीने ही बचा हो। फरवरी में नया रायपुर में कांग्रेस का महाअधिवेशन कोई यूं ही नहीं हो रहा। कांग्रेस किसी भी सूरत में छत्तीसगढ़ में अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना चाह रही है। हालांकि छत्तीसगढ़ के साथ मध्यप्रदेश एवं राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं लेकिन उन दोनों राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पैर काफ़ी मजबूत हैं। इधर, हाल ही में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं भाजपा प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जो कुछ भी कहा वह गौर करने लायक है। रायपुर में मीडिया से बातचीत करते हुए बघेल ने कहा कि “विधायकों को लगातार बताया जा रहा है कि इन-इन कामों को आपको करना है। अगर सब ठीकठाक रहा तो किसी की टिकट क्यों काटेंगे। अगर स्थिति नहीं सुधरी तो पार्टी तय करेगी।“ वहीं ओम माथुर ने बिलासपुर में कहा कि “यदि कुछ विधायक कम भी पड़े तो भी हम सरकार बनाने की स्थिति में रहेंगे। जहां हमारे विधायक कम होते हैं वहां सहयोग लेते हैं।“ बघेल एवं माथुर, दोनों की ही बातों में गहरा मर्म छिपा हुआ है। भाजपा एवं कांग्रेस दोनों ही पार्टियां चुनाव को लेकर अभी से गंभीर हो चुकी हैं।
विजय, सुनील व सरोज
में किसका लगेगा नंबर
राजनीति में रुचि रखने वालों के मन में जिज्ञासा बनी हुई है कि यदि केन्द्रीय मंत्री मंडल में फेरबदल हुआ तो क्या छत्तीसगढ़ के किसी भाजपा सांसद को मंत्री बनने का मौका मिलेगा। जिन नामों को लेकर संभावना जताई जा रही है उनमें विजय बघेल, सुनील सोनी, सरोज पांडे एवं चुन्नीलाल साहू हैं। हालांकि इस समय छत्तीसगढ़ की एक सांसद रेणुका सिंह केन्द्रीय राज्य मंत्री हैं लेकिन समीकरण बदले तो फिर किस दूसरे चेहरे को मंत्री बनाया जा सकता है इसे लेकर बड़ी चर्चा है। राजनीति के कुछ जानकार लोगों का मानना है कि छत्तीसगढ़ की राजनीति इस समय ओबीसी केन्द्रित हो गई है अतः छत्तीसगढ़ पर विचार हुआ तो प्रमुखता से दो नामों विजय बघेल एवं सुनील सोनी पर विचार होगा। विजय बघेल को ग्रामीण ओबीसी नेता तथा सुनील सोनी को शहरी ओबीसी नेता के रुप में देखा जाता रहा है। स्वाभाविक है बघेल का पड़ला ज़्यादा वज़नदार होगा। फिर विजय बघेल दुर्ग से सांसद हैं और 2008 के चुनाव में वे पाटन विधानसभा क्षेत्र में भूपेश बघेल को हराकर विधायक बने थे। यानी विजय बघेल को मुख्यमंत्री को टक्कर दे सकने की क्षमता रखने वाला नेता भी माना जा रहा है। जहां तक सुनील सोनी की बात है तो उनका कैरियर राजनीतिक करिश्मे से भरा रहा है। 1999 में सुनील सोनी का रायपुर नगर निगम चुनाव में पार्षद बनना, उसके बाद सभापति बनना, फिर महापौर बनना, उसके बाद साढ़े तीन लाख से अधिक मतों से सांसद चुनाव जितना यह सब उनके जीवन में चमत्कारिक तरीके से होते रहा है। यानी सुनील सोनी ऐसा नाम है जिनके साथ कोई भी करिश्मा हो सकता है! अब बात करें सरोज पांडे की तो केन्द्र में छत्तीसगढ़ से रेणुका सिंह महिला मंत्री हैं। रेणुका सिंह के मंत्री पद पर रहते हुए में छत्तीसगढ़ से किसी और महिला नेत्री को अवसर मिलेगा इसकी संभावना कम ही है।
चौपाटी के ख़िलाफ आंदोलन
और उठते कई सवाल…
पूर्व मंत्री एवं रायपुर शहर के वरिष्ठ भाजपा नेता राजेश मूणत साइंस कॉलेज के पास बन रही तथाकथित चौपाटी निर्माण को लेकर अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन छेड़े हुए हैं। यह निर्माण रायपुर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है जहां से मूणत दो बार विधानसभा चुनाव जीते थे। उनके आंदोलन को समर्थन देने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह समेत सरोज पांडे, धरमलाल कौशिक, बृजमोहन अग्रवाल, नंद कुमार साय जैसे दिग्गज नेता धरना स्थल पहुंचे। यही नहीं रायपुर सांसद सुनील सोनी एवं रायपुर नगर निगम के भाजपा पार्षदों के साथ मूणत दिल्ली गए और वहां केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी के पास शिकायत दर्ज करा आए कि रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड व्दारा किए गए 176 कामों में से 148 कामों में भारी अनियमितताएं हुई हैं। लग तो यही रहा है कि चौपाटी निर्माण के ख़िलाफ उठी यह आवाज़ फिलहाल थमने वाली नहीं। इस आंदोलन को लेकर राजनीतिक हल्कों में कई तरह की चर्चाएं हैं और सवाल पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं! स्मार्ट सिटी के कामों की शुरुआत तो 2018 में ही हो गई थी जब प्रदेश में भाजपा का शासन था। स्मार्ट सिटी योजना के तहत राज भवन के आगे गौरव पथ के दोनों तरफ लाखों खर्च कर सायकल ट्रैक बना दिया गया, जिसकी नाम मात्र की भी उपयोगिता नहीं थी। सायकल ट्रैक अपनी बरबादी की कहानी अलग कह रहा है। यह भी सवाल उठ रहा है कि आज जो लोग साइंस कॉलेज के पास चौपाटी निर्माण को लेकर शोर मचा रहे हैं वे तब कहां थे जब बूढ़ापारा सौंदर्यीकरण के नाम पर न सिर्फ बूढ़ातालाब के किनारे बने परिक्रमा पथ को मिटा दिया गया बल्कि सप्रे स्कूल मैदान को छोटा करके रख दिया गया। जो लोग आज चौपाटी के नाम पर साइंस कॉलेज, आयुर्वेदिक कॉलेज एवं इंजीनियरिंग कॉलेज के वातावरण के प्रभावित होने का हवाला दे रहे हैं उन्हें बूढ़ापारा सौंदर्यीकरण के समय सप्रे स्कूल, दानी स्कूल एवं डिग्री गर्ल्स कॉलेज़ का ख़्याल क्यों नहीं आया? लोगों को तो धरने के साथ अनिश्चितकालीन शब्द जुड़ा होना भी समझ नहीं आ रहा!
होलसेल कॉरीडोर के लिए
हजार एकड़, वहीं
फ़िल्म सिटी लगी किनारे
छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज का 63 वां सम्मेलन यादगार बन गया। यादगार क्यों न हो, चेम्बर की मांग पर सम्मेलन के मुख्य अतिथि भूपेश बघेल ने होलसेल कॉरिडोर के लिए नया रायपुर में 1000 एकड़ ज़मीन मंजूर जो कर दी। मुख्यमंत्री की इस घोषणा से जहां एक तरफ व्यापार जगत में हर्ष है वहीं फ़िल्म सिटी नया रायपुर की जगह किसी अन्य स्थान पर बनाए जाने के निर्णय से छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत में निराशा है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति की संवाहक मानी जाती रही है। इस नई सरकार से छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत से जुड़े लोगों को काफ़ी उम्मीदें थीं। नया रायपुर के सेक्टर 39 (ग्राम खंडवा) में फ़िल्म सिटी बनना प्रस्तावित था। संस्कृति विभाग ने यहां फ़िल्म सिटी के लिए 1 रुपये वर्ग फुट के हिसाब से 115 एकड़ ज़मीन मांगी थी, जो कि नहीं मिली। संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत अब महासमुन्द से 16 किलोमीटर दूर पर ग्राम बिरबिरा में फ़िल्म सिटी के लिए ज़मीन देखकर आए हैं। छत्तीसगढ़ में चुनावी संग्राम को क़रीब 10 माह बचे हैं। इतने कम समय में फ़िल्म सिटी का प्रोजेक्ट कैसा आकार लेगा यह देखने वाली बात रहेगी।
कांग्रेस नेताओं को चढ़ा
एक्टिंग का नशा
कांग्रेस में कुछ ऐसे जाने-पहचाने चेहरे हैं जिन्हें इन दिनों छत्तीसगढ़ी फ़िल्मों में काम करने की धुन सवार हो गई है। बलौदाबाजार के सम्मानित वरिष्ठ नेता एवं राज्य कृषक कल्याण परिषद के अध्यक्ष सुरेन्द्र शर्मा को लें, हाल ही में इन्होंने निर्माणाधीन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘तहीं मोर सोना’ में नेता का रोल किया है। अपने बेहद क़रीबी लोगों के बीच शर्मा संघर्ष भरी दास्तान सुना रहे थे कि “5 मिनट का सीन रहा होगा जिसके लिए बलौदाबाजार में लगे सेट पर 5 घंटे का इंतज़ार करना पड़ा। यहां तक कि अपने रोल की डबिंग के लिए बिलासपुर का लंबा सफ़र भी तय करना पड़ा।“ ऐसा ही कुछ प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता व्दय सुरेन्द्र वर्मा एवं अजय गंगवानी के साथ हुआ। ये दोनों छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘जिमी कांदा’ के एक महत्वपूर्ण सीन का हिस्सा बनने जोरा स्थित डॉ. अजय सहाय के फ़िल्म स्टूडियो गए हुए थे। सीन तो मिनट भर का था लेकिन दोनों नेताओं को दो घंटे इंतज़ार करना पड़ गया। इस तरह तीनों कांग्रेस नेताओं के धैर्य की परीक्षा तो हो ही गई है। देखना यह है कि तीनों के फ़िल्मों में काम करने का नशा आगे भी बना रहेगा या छू मंतर हो जाएगा।
सफेद भालू और
ख़तरनाक मछली
छत्तीसगढ़ मानो इन दिनों चमत्कारों का गढ़ हो गया है। गरियाबंद जिले के पंटोरा क्षेत्र अंतर्गत पैरी नदी में एक खूंख़ार किस्म की मछली (डेविल फिश) पाई गई है। जीव जन्तुओं के बारे में गहरी जानकारी रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि यह मछली भारत से हज़ारों किलोमीटर दूर दक्षिण अमरीका की अमेज़न नदी में पाई जाती है। विशेषज्ञ कहते हैं “इस मछली का मिलना चिंता का विषय है। इसकी चार आंखें होती हैं और ये जीव जन्तुओं को खाकर जिंदा रहती है, यानी पूर्णतः मांसाहारी। भारत की नदियों के लिए तो ये बिलकुल अनुकूल नहीं हैं।“ वहीं पिछले दिनों मरवाही इलाके में सफेद भालू दिखा। कुछ गांव वालों ने तो सफेद भालू का वीडियो बनाकर वायरल भी किया। माना यही जाता है कि सफेद भालू बर्फीले स्थानों में पाया जाता है। मरवाही क्षेत्र मे काले भालुओं के बीच इस सफेद भालू का पाया जाना किसी चमत्कार से कम नहीं।
रायपुर में नहीं दस
के सिक्के का मोल
जो कहीं नहीं होता वह रायपुर शहर में होता है। रायपुर में लंबे समय से दस रुपये का सिक्का चलना बंद है। मुम्बई जैसे शहर में दस का सिक्का दौड़ जाता है लेकिन यह रायपुर है जहां लोग दस के सिक्के को हाथ लगाने तैयार नहीं। रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे तक शिकायत पहुंची कि भिलाई, दुर्ग एवं बिलासपुर शहरों में दस के सिक्के का लेन देन हो रहा है लेकिन यह रायपुर है जहां इसे लेने कोई तैयार नहीं है। कलेक्टर को कहना पड़ा कि “दस का सिक्का लेने से इंकार न करें। आरबीआई की तरफ से जारी दस के सिक्के को कोई लेने से मना करता है तो उसके खिलाफ़ एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है।“ रायपुर में कोई पहली बार ऐसा अजूबा नहीं घटा है। किसी समय में जब चार आने, आठ आने के सिक्के सभी स्थानों पर चलन में थे तो रायपुर शहर में सुनियोजित तरीके से इसे चलन से बाहर कर दिया गया था। इसी तरह 1995 से 2005 के बीच एक ऐसा भी दौर आया था जब रायपुर में एक, दो, पांच एवं दस रुपये के फटे चिथड़े नोट लेन देन में चलते रहे थे। बाहर का कोई भी व्यक्ति रायपुर आता तो आश्चर्य जताता था कि यहां इस तरह फटे-चिथड़े नोटों की खपत कैसे हो जाती है! रायपुर के व्यापार जगत से जुड़े सुनियोजित तरीके से गंदा खेल खेलने वाले उन कुछ लोगों का बस चले तो एक व दो के सिक्के को भी चलन से बाहर कर दें। लेकिन वे अच्छी तरह जान रहे हैं कि फ़िलहाल ऐसा गेम खेलना उचित नहीं होगा।