■ अनिरुद्ध दुबे
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने शनिवार को छत्तीसगढ़ के तीन नेताओं डॉ. रमन सिंह, सुश्री सरोज पांडे एवं सुश्री लता उसेंडी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने की घोषणा की। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह तो पहले से ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। सरोज पांडे की दिल्ली में जिस तरह गहरी पकड़ रही है उससे उनका भी बनना कोई अचरज वाली बात नहीं है। कॉलेज में कभी छात्रसंघ अध्यक्ष रहीं सरोज पांडे आगे चलकर जब सक्रिय राजनीति में आईं सबसे पहले 1999 में दुर्ग महापौर बनीं। 2004 में फिर महापौर बनीं। 2008 में वैशाली नगर से विधानसभा चुनाव जीतीं। फिर 2009 में दुर्ग से लोकसभा चुनाव जीतीं। भाजपा राष्ट्रीय महिला मोर्चा की अध्यक्ष रहीं। वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं। ऐसे बड़े उपलब्धियों वाले लंबे राजनीतिक सफर तय कर चुकीं सरोज को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान तो मिलना ही था। रही बात लता उसेंडी की तो वे आदिवासी वर्ग से होने के साथ बस्तर से हैं। आदिवासी बहुल बस्तर की 12 विधानसभा सीटें कांग्रेस एवं भाजपा दोनों के लिए हमेशा से प्रतिष्ठा का प्रश्न रही हैं। कभी भाजपा ने बस्तर में अपनी ज़मीन मजबूत कर ली थी जो आगे जाकर ढीली पड़ गई। आज बस्तर से भाजपा का एक भी विधायक नहीं है तथा केदार कश्यप एवं लता उसेंडी को छोड़ दें तो वहां पार्टी का कोई और बड़ा चेहरा दिखाई नहीं देता। 15 साल भाजपा की सरकार रही लेकिन बस्तर में उसकी नई बड़ी लीडरशिप नहीं उभरी। वहीं कांग्रेस की पिछले दस साल की यात्रा को देखें तो उसके वहां से तीन बड़े चेहरे दीपक बैज (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष), मोहन मरकाम (आदिम जाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री) तथा संतराम नेताम (विधानसभा उपाध्यक्ष) सामने आ चुके हैं। भाजपा को बस्तर में अपनी खोई हुई ज़मीन वापस पाने के लिए वहां के आदिवासी वर्ग को प्रतिनिधित्व देना पहली ज़रूरत हो गई है। यही कारण है कि ठीक विधानसभा चुनाव से पहले रमन सरकार के समय महिला एवं बाल विकास मंत्री रह चुकीं लता उसेंडी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर बड़ा महत्व दिया गया है। इसके साथ यह भी मैसेज देने की कोशिश की गई है कि छत्तीसगढ़ से दो महिलाओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रखकर महिला वर्ग को विशेष सम्मान दिया गया है।
किधर जाएंगे धर्मजीत
सिंह एवं प्रमोद शर्मा
बलौदाबाजार विधायक प्रमोद शर्मा ने जोगी कांग्रेस यानी जनता कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इस तरह जोगी कांग्रेस में अब सिर्फ़ एक ही विधायक बची हैं श्रीमती रेणु जोगी। 2018 के चुनाव में जनता कांग्रेस से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी समेत श्रीमती रेणु जोगी, धर्मजीत सिंह, देवव्रत सिंह एवं प्रमोद शर्मा जीतकर आए थे। अजीत जोगी एवं देवव्रत सिंह के निधन के कारण जब उप चुनाव हुआ तो दोनों की जगह पर कांग्रेस प्रत्याशी जीतकर आए। धर्मजीत सिंह को अमित जोगी पहले ही जनता कांग्रेस से निष्कासित कर चुके हैं और बचे रह गए प्रमोद शर्मा ने इस्तीफा दे दिया है। राजनीति के गलियारे में लंबे समय से लोग एक-दूसरे से यही सवाल करते रहे हैं कि धर्मजीत सिंह एवं प्रमोद शर्मा भाजपा में जाएंगे या कांग्रेस में। वैसे दोनों ही नेताओं की भाजपा के लोगों से लगातार बातचीत चलती रही है। अटकलें यही लगाई जा रही हैं कि दोनों नेताओं का भाजपा प्रवेश हो सकता है। बस उपयुक्त समय का इंतज़ार है।
लंबे समय बाद
चर्चा में चोपड़ा
दिसंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए छत्तीसगढ़ की कांग्रेस चुनाव समिति की घोषणा हो चुकी है, जिसमें 22 नाम शामिल किए गए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ही चुनाव समिति के अध्यक्ष बनाए गए हैं। साथ ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं उप मुख्यमंत्री टी.एस. सिंहदेव समेत कुछ मंत्री एवं अन्य नेतागण इस समिति में शामिल हैं। मंत्रियों में अमरजीत भगत, कवासी लखमा एवं उमेश पटेल को चुनाव समिति में नहीं रखा जाना काफ़ी चर्चा में है। वहीं समिति में रायपुर पश्चिम विधायक विकास उपाध्याय एवं पारस चोपड़ा का नाम होना लोगों को चौंका गया। इन दोनों के समिति में आने के पीछे कारण इनका अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का राष्ट्रीय सचिव होना। विकास तो फिर भी सुर्खियों बने में रहते हैं लेकिन पारस चोपड़ा ने मानो लंबे समय से खुद को दिल्ली तक सीमित कर रखा है। सक्रिय राजनीतिज्ञों एवं मीडिया वालों के पास लंबे समय से चोपड़ा का अपडेट नहीं था। पारस चोपड़ा जब शिखर पर हुआ करते थे वह समय 1980 से 2000 का था। वह एक समय में कांग्रेस कौमी एकता कमेटी के राष्ट्रीय पदाधिकारी रहे थे। पूर्व मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल के बेहद विश्वसनीय लोगों में गिने जाते-जाते थे। 1994 के रायपुर नगर निगम चुनाव में बूढ़ापारा वार्ड से पार्षद चुने गए थे। सन् 1998 में रायपुर शहर विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ़ चुनाव लड़े थे जिसमें हार गए थे। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो चोपड़ा लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रहे थे। वह भी एक समय था जब चोपड़ा की चर्चा विवादास्पद तांत्रिक चंद्रा स्वामी से निकटता रहने के कारण हुआ करती थी। एक बार वे चंद्रा स्वामी को रायपुर भी लेकर आए थे। पिछले कुछ वर्षों से चोपड़ा अपनी राजनीतिक गतिविधियां छत्तीसगढ़ में कम दिल्ली में ज़्यादा बढ़ाकर रखे हुए हैं। दिल्ली दरबार में दखल बनाए रखने के अपने अलग फायदे हैं। कांग्रेस की नई पौध चोपड़ा के बारे में बहुत ज़्यादा नहीं जानती। विधानसभा चुनाव क़रीब है। आगे चोपड़ा की राजनीतिक भूमिका किस तरह की होगी यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।
नये सफ़र पर सौरभ
कुमार व जितेन्द्र शुक्ला
शनिवार को छुट्टी के दिन 14 आईएएस अफ़सरों के तबादले की लिस्ट निकली। स्थानांतरित हुए अफ़सरों में दो सौरभ कुमार एवं जितेन्द्र शुक्ला ऐसे हैं जिनका रायपुर शहर से सीधा जुड़ाव रहा। दोनों ही रायपुर नगर निगम कमिश्नर पद पर सेवाएं दे चुके हैं। 2020 एवं 2021 की गर्मियों में जब कोरोना के कारण राजधानी रायपुर में हाहाकार मचा हुआ था तब दोनों ही दौर में सौरभ कुमार ने निगम कमिश्नर रहते हुए व्यवस्था को काफ़ी सूचारूपूर्ण ढंग से संभाला था। राज्य शासन में इसका काफ़ी अच्छा मैसेज गया था। यही कारण है कि सौरभ कुमार को 2021 में रायपुर नगर निगम कमिश्नर से सीधे रायपुर कलेक्टर का दायित्व सौंपा गया था। साल भर तक रायपुर कलेक्टर का दायित्व उन्होंने बख़ूबी संभाला। यही कारण है कि राजधानी रायपुर के बाद उन्हें न्यायाधानी बिलासपुर कलेक्टर का दायित्व सौंपा गया। हालिया आदेश में उन्हें कोरबा कलेक्टर का दायित्व सौंपा गया है। औद्योगिक नगरी कोरबा पिछले कुछ समय से कुछ कारणों से सुर्खियों में रही है। जन प्रतिनिधि एवं अफ़सर के बीच टकराव से लेकर कई तरह की राजनीतिक उठापटक तथा जांच एजेन्सियों की तिरछी नज़र इन सब का केन्द्र कोरबा बना रहा है। यूं कहें कि आज की तारीख़ में कोरबा जिला कई कोणों से उलझा हुआ है। स्वाभाविक है यहां किसी ऐसे डीएम की ज़रूरत महसूस की जा रही थी जो कठिन से कठिन हालात को हैंडल कर सके। शासन ने कुछ सोचकर ही सौरभ कुमार पर भरोसा जताया होगा। जितेन्द्र शुक्ला की जांजगीर चाम्पा कलेक्टर रहते हुए में सबसे बड़ी परीक्षा की घड़ी उस समय सामने थी जब बच्चा राहुल साहू बोरवेल में फंस गया था। 104 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद उसे बोरवेल से जीवित बाहर निकाला गया था। राहुल को बचाने शुक्ला एवं उनकी टीम ने दिन रात एक कर दिया था। आवास एवं पर्यावरण विभाग के संयुक्त सचिव पद पर सेवाएं दे रहे शुक्ला को छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के प्रबंध संचालक पद पर पदस्थ करते हुए खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण के संचालक का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि शुक्ला पूर्व में संस्कृति विभाग के संचालक पद पर सेवाएं दे चुके हैं। संस्कृति और पर्यटन के बारे में माना जाता है कि ये आपस में काफ़ी मैच करते हैं। रमन सरकार के समय में तो संस्कृति एवं पर्यटन दोनों का एक ही मंत्री होता था। स्वाभाविक है कि शुक्ला पर्यटन मंडल के एमडी बनने के बाद एक बार फिर क्रियेशन की तरफ रुख़ करने जा रहे हैं।
फिर वीआईपी रोड
के दामन पर दाग
राजधानी रायपुर का वीआईपी रोड एक बार फिर किसी घटना के कारण सुर्खियों में है। बताते हैं प्रशासन ने बार बंद करने का समय निर्धारित कर रखा है। घड़ी का कांटा निर्धारित समय से उस पर हो जाने के बाद पुलिस वीआईपी रोड स्थित बार को बंद कराने पहुंची तो एक विधायक का पीए कानून के रखवालों से भिड़ गया। नौबत गाली गलौच तक जा पहुंची। पीए और उसके साथियों का कहना था कि बार घंटे भर और चलने दिया जाए लेकिन वहां तो अनुशासन का डंडा चलना ही था। पुलिस ने उत्पात मचा रहे लोगों की पिटाई कर दी। इसके विरोध में पीए के साहब बहादुर विधायक तथा एनएसयू आई के लोग तेलीबांधा थाने का घेराव करने पहुंच गए। हर दो-तीन महीने में इस वीआईपी रोड़ पर बदनामी का कोई न कोई दाग लग ही जाता है। वीआईपी रोड की शुरुआत तो भव्य राम मंदिर से होती है लेकिन उसके थोड़े ही आगे जाकर रंग-रंगीली दुनिया शुरु हो जाती है। शाम ढलते ही कहीं पर जमकर शराब छलक रही होती है तो कहीं सिगरेट पर सिगरेट के कश लग रहे होते हैं तो कहीं पर नाच गाना भी चल रहा होता है।
ऐसा क्या… विश्व भर
के लोग रायपुर आते हैं
नगर निगम की मेयर इन कौंसिल की बैठक लेने के बाद रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि हम रायपुर की कुछ पुरानी सड़कों को नया बनाने जा रहे हैं। चकाचक करने जा रहे हैं। पूरे विश्व से लोग रायपुर आते हैं, अतः यहां की सड़कों को चकाचक रखना ज़रूरी है। महापौर के इस कथन के बाद मीडिया के ही कुछ लोग यह समझने की कोशिश में लगे हुए हैं कि रायपुर में ऐसी कौन सी चीज है जिसे देखने या समझने विश्व भर से लोग यहां आते हैं?
रायपुर और
विदेशी युवतियां
राजधानी रायपुर के अशोका रतन में किराये के फ्लैट में रह रही किर्गीस्तान की एक युवती ने आत्महत्या कर ली। बताते हैं वह टैटू आर्टिस्ट थी। सोशल मीडिया के माध्यम से रायपुर के एक युवक के संपर्क में आई थी। पहले दोस्ती हुई जो बाद में प्यार में बदल गई। आत्महत्या से पहले युवती ने एक सुसाइड नोट्स लिख छोड़ा था जो कि विदेशी भाषा में था। सुसाइड नोट्स में क्या लिखा है यह जानने के लिए पुलिस को काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। इसलिए की उस भाषा का जानकर कई दिनों तक नहीं मिला। दिल्ली में दूतावास के माध्यम से युवती का शव उसके मुल्क भेजा गया। आत्महत्या को लेकर रहस्य अब भी बरकरार है। खुले तौर पर तो यह बात सामने नहीं आती, लेकिन माना यही जाता है कि पिछले कुछ सालों में विदेशी युवतियों का रायपुर आना बढ़ा है। कुछ ही साल पहले की बात है जब रायपुर के मरीन ड्राइव (तेलीबांधा तालाब) में उजबेकिस्तान की युवती नशे की हालत में मिली थी। पुलिस का अनुमान था कि उसे जानबूझकर नशे की हालत में छोड़कर अज्ञात लोग भाग खड़े हुए। उजबेकिस्तान की वह युवती कुछ समय रायपुर की जेल में रही थी। उसके साथ भी भाषा की समस्या आड़े आई थी। वह जो कहती उसे पुलिस नहीं समझ पाती थी और पुलिस जो कहती वह उसके पल्ले नहीं पड़ता था। बड़ी मुश्किल से उसके देश उजबेकिस्तान रवाना किया जा सका था। रायपुर में तो कोई पहाड़ी इलाका या समुद्र तट है नहीं कि विदेशी युवतियां उसका आनंद लेने यहां आएं। तो फिर किसलिए आती होंगी, यह जानने जिन्हें दिमागी घोड़े दौड़ाना होता है, वह दौड़ाते रहते हैं।
‘कबड्डी’ में शराब बंदी
छत्तीसगढ़ में शराब ऐसा मुद्दा हो गया है कि भाजपा एवं कांग्रेस के बीच लगातार आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है। भाजपा हर बार यहा कहती है कि “विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में वादे के बावजूद कांग्रेस सरकार ने शराब बंदी की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए।“ वहीं कांग्रेस नेताओं का कहना है कि “भाजपा ने अपने शासनकाल में शराब को लेकर जो व्यवस्था बना रखी थी वही चली आ रही है। इसमें हमने ज़रा भी फेरबदल नहीं किया। पता नहीं भाजपाई क्या सोचकर दो हज़ार करोड़ का शराब घोटाला होने का आरोप लगा रहे हैं।“ आरोप प्रत्यारोप का दौर तो विधानसभा चुनाव तक चलते ही रहना है। ये भी कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में शराब भी एक बड़ा मुद्दा रहेगा। शराब पर नियंत्रण ज़रूरी है यह बात तो भाजपा शासनकाल के समय से होती आ रही है। सवाल यह है कि क्या वाकई छत्तीसगढ़ में शराब की खपत कभी कम हो पाई, ज़वाब यही सामने आता है कि नहीं। शराब पर आगे जो फैसला होना होगा, होगा लेकिन हाल ही में रिलीज़ हुई छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘कबड्डी’ में दो मुद्दे ज़रूर प्रमुखता से उठाए गए हैं। एक तो ज़मीनों को हड़पना, दूसरा पूरे गांव के आदमियों को शराब के नशे में धकेलना। बल्कि फ़िल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे ग्रामीणों को शराब की लत लगवाकर भू माफ़िया उनसे औने-पौने में ज़मीन खरीद लेता है। जब धैर्य ज़वाब दे जाता है तो महिला सरपंच भू माफिया के आतंक की परवाह नहीं करते हुए गांव में शराब बंदी कर देती है, जिसके अच्छे नतीजे सामने आते हैं। वास्तव में ऐसी संदेशपरक फ़िल्मों के बनते रहने की ज़रूरत है।