● कारवां (20 अगस्त 2023)- 21 उम्मीदवारों की घोषणा भाजपा का अनूठा प्रयोग

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ में संभवतः नवंबर में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा व्दारा अपने 21 उम्मीदवारों की घोषणा करना बेहद चौंका देने वाला घटनाक्रम रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद यह पहला अवसर है जो 3 बार सत्ता में रह चुकी भाजपा के उम्मीदवारों की चुनाव की तारीख़ की घोषणा होने से पहले ही लिस्ट आ गई हो। इस लिस्ट को देखते हुए साफ लगता है कि काफ़ी होम वर्क कर लेने के बाद इसे अंतिम रूप दिया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के क्षेत्र पाटन में विजय बघेल को प्रत्याशी बनाने की घोषणा कर दी गई है। विजय बघेल वर्तमान में दुर्ग से सांसद हैं और विधानससभा चुनाव की घोषणा पत्र समिति के संयोजक भी हैं। रिश्ते में भूपेश बघेल चाचा एवं विजय बघेल भतीजे लगते हैं। यानी मुक़ाबला चाचा-भतीजे के बीच का है। बस्तर से केदार कश्यप, सुश्री लता उसेन्डी एवं विक्रम उसेन्डी भाजपा के तीन बड़े पत्ते हैं और तीनों ही पूर्व में राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं। इनमें से किसी का नाम सामने नहीं लाते हुए बस्तर से मनीराम कश्यप एवं कांकेर से आशाराम नेताम को उम्मीदवार बनाया गया है। इस तरह आदिवासी बहुल 12 सीटों वाले बस्तर क्षेत्र में दो प्रत्याशियों की घोषणा कर भाजपा ने वहां हलचल पैदा तो कर ही दी है। जहां तक एक और आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग की बात है तो वहां की 14 में से 5 सीटों पर भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है। सरगुजा संभाग की रामानुजगंज सीट से भाजपा ने बहुत सोच-समझकर रामविचार नेताम को उम्मीदवार बनाया है जो कि पूर्व में भाजपा सरकार के शासनकाल में गृह एवं पंचायत मंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में इसी रामानुजगंज सीट से बृहस्पत सिंह विधायक हैं जो कि कई कारणों से लगातार सुर्खियों में बने रहे थे। रायपुर संभाग में राजिम एवं अभनपुर आपस में लगी सीटें हैं और दोनों ही सीटों में भाजपा ने साहू को टिकट दी है। इस तरह पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू जो अपने पुराने क्षेत्र अभनपुर से पुनः लड़ना चाह रहे थे उनके सपनों में पानी फिर गया है। दुर्ग संभाग की बात करें तो भाजपा ने खैरागढ़ से विक्रांत सिंह को उम्मीदवार बनाया है जो कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के भांजे लगते हैं। माना जा रहा है इस बार का खैरागढ़ चुनाव काफ़ी रोचक होगा। विक्रांत सिंह को जैसा कि टिकट दी जा चुकी है इसके बाद उसी परिवार में क्या डॉ. रमन सिंह या उनके पुत्र अभिषेक सिंह दोनों में से किसी एक को टिकट दी जाएगी इस बात को लेकर भी चर्चा का दौर शुरु हो गया है।

उम्र फैक्टर

क्या दिल्ली में बैठे भाजपा के वे दिग्गज लोग जो बड़ी बारीकी से अध्ययन के बाद छत्तीसगढ़ की टिकटें तय कर रहे हैं, उम्र फैक्टर पर विशेष ध्यान दे रहे हैं? लगता तो कुछ ऐसा ही है। अभी जिन इक्कीस टिकटों की घोषणा हुई है उसमें रामविचार नेताम के अलावा इक्का-दुक्का को छोड़ दें तो बाक़ी साठ के इस पार वाले ही हैं। यदि इसी तरह का विचार आगे की टिकटों को लेकर भी चला तो छत्तीसगढ़ के कई तथाकथित वज़नदार लोगों की टिकट खतरे में पड़ सकती है।

गहराई से- 1

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में ‘भक्त’ एवं ‘नेता’ शब्द पर गहराई से प्रकाश डाला। अवसर था कीर्तिशेष देवी प्रसाद चौबे की स्मृति में मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में आयोजित वसुंधरा सम्मान समारोह का। समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से बघेल ने कहा कि “शब्दों को संजोना एक कठिन विधा है। उसमें भावनाएं पिरोना और भी कठिन है। आजकल भक्त की परिभाषा बदल गई है। कबीर व दादू का वह समय कुछ और था जब भक्त की परिभाषा कुछ और हुआ करती थी। अब तो मोदी और योगी का काल है। सुभाष चंद्र बोस जब आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे तब बड़े सम्मान के साथ ‘नेताजी’ शब्द उनके नाम के आगे जुड़ा था। अब तो ‘नेता’ शब्द सामने आते ही कुछ अलग ही तरह का भाव सामने आने लगता है। अभी के भक्तों के ख़िलाफ अगर आप बोलेंगे तो देशद्रोही कहलाने लगेंगे।

गहराई से- 2

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजधानी राजधानी रायपुर के परेड ग्राउंड में प्रदेश वासियों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कुछ ऐसी बातें कहीं जिनमें गहरा सार छिपा हुआ था। मुख्यमंत्री ने कहा कि “आज़ाद भारत का गौरवशाली संविधान कहता है कि भारत देश राज्यों का संघ है, इसलिए भारत सरकार को संघ की सरकार कहा गया है। इसका मतलब है कि कोई एक राज्य भी यदि संकट में है तो यह उस राज्य की निजी समस्या नहीं बल्कि पूरे देश की चिंता का विषय है। आज मैं इस मंच से संकटग्रस्त सभी राज्यों की चिंताओं में छत्तीसगढ़ की सहभागिता व्यक्त करता हूं। देश की आज़ादी और संविधान प्रदत्त अधिकार सबके लिए हैं और जब तक भारतवासी उनका समुचित उपयोग कर पाएंगे तभी तक हमारी आज़ादी सुरक्षित रह पाएगी। प्रत्येक राज्य को और देश के प्रत्येक नागरिक को सशक्त बनाकर ही देश को मजबूत बनाया जा सकता है।“ मुख्यमंत्री ने किसी एक राज्य के संकट में होने की बात जो कही तब मानो कितने ही लोगों के मनोमस्तिष्क में मणिपुर की तस्वीर घुमड़ आई थी।

राजिम, अभनपुर और

सिहावा को ले

अलग ही चला गणित

भाजपा ने राजिम से रोहित साहू, अभनपुर से इंद्र कुमार साहू एवं सिहावा से श्रवण मरकाम को अपना प्रत्याशी बनाया है। इन तीन सीटों पर भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता संभावनाएं तलाशने में लगे हुए थे लेकिन दिल्ली में बैठे नेताओं का अपना अलग गणित था। राजिम को भाजपा के किसान नेता एवं प्रदेश प्रवक्ता संदीप शर्मा अपने लिए उपयुक्त मानते रहे थे, लेकिन पार्टी को कुछ और ही मंजूर था। पूर्व मंत्री चंद्रशेखर साहू के अलावा कृषि एवं सहकारिता विशेषज्ञ अशोक बजाज की अभनपुर से उम्मीदें लगी हुई थीं लेकिन पार्टी ने सरपंच रहे इंद्र कुमार साहू पर दांव खेलना मुनासिब समझा। भले ही भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम रायपुर में निवास करते हों लेकिन वे आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सिहावा सीट की तरफ काफ़ी आशा भरी निगाहों से देखते रहे थे, लेकिन हो कुछ और गया। वहीं टिकट के मामले में एक और आदिवासी नेता देवलाल ठाकुर भाग्यशाली निकले। कुछ ही वर्षों पहले कांग्रेस से भाजपा में आए देवलाल ठाकुर को डौंडीलोहारा से उम्मीदवार बनाया गया है। राजिम के उम्मीदवार रोहित साहू की बात करें तो वे जनता कांग्रेस (जोगी कांग्रेस) से भाजपा में आए नेता हैं।

सरकार बदली पर उन

अफ़सरों का रूतबा

पुराना वाला ही था

ख़बर यह है कि भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार एवं निर्वाचन आयुक्त व्दय अनूप चंद्र पांडे तथा अरुण गोयल अगस्त के आख़री हफ़्ते में छत्तीसगढ़ दौरे पर आ रहे हैं। वे अलग-अलग बैठकें लेकर चुनावी तैयारियों की समीक्षा करेंगे। वे राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि मंडल से भी मिलेंगे और उनसे सूझाव लेंगे। उल्लेखनीय है कि जब भी चुनाव से पहले राज्य में मुख्य निर्वाचन आयुक्त का दौरा होता है तो राजनीतिक पार्टियां उनके समक्ष सूझाव तो रखती ही हैं साथ ही शिकवा शिकायत का दौर भी चलता है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2003 में पहला विधानसभा चुनाव था। तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त जे.एम. लिंगदोह थे। बेहद कड़क और ईमानदार छवि वाले अफ़सर। राजधानी रायपुर के वीआईपी रोड स्थित एक हॉटल में उन्होंने राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधि मंडल से मुलाक़ात की थी। उनसे मुलाक़ात करने वालों में ख़ासकर कांग्रेस, भाजपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी का प्रतिनिधि मंडल था। तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त जे.एम. लिंगदोह से राकांपा एवं बसपा ने  सत्ता पक्ष के खिलाफ़ जमकर शिकायत की थी। राकांपा नेताओं ने कुछ आईएएस एवं आईपीएस अफ़सरों का नाम लिखित में देते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त के समक्ष शिकायत की थी कि “ये सत्ता पक्ष के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। जब चुनाव सामने है ये सत्ता पक्ष के मोहरे की तरह काम कर रहे हैं।“ उन सारी शिकायतों को लिंगदोह साहब ने बेहद गंभीरता से लिया था। उनका बयान भी सामने आया था कि चुनाव के इस समय में छत्तीसगढ़ में हालात ठीक नहीं हैं। 2003 के चुनाव में छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ। पूर्ववर्ती सरकार के हाथों का खिलौना बताते हुए जिन आईएएस एवं आईपीएस अफ़सरों के नाम की शिकायतें हुई थीं, राजनीति के गलियारे में यही चर्चा रही थी कि नई सरकार आने के बाद अब इन सब की ख़ैर नहीं। यह अनुमान बेबुनियाद साबित हुआ। 2003 तक वाली सरकार के इशारे पर जो अफ़सर काम करते रहे थे उन सब का बाद वाली सरकार में भी जबरदस्त बोलबाला रहा। यानी सरकार बदली लेकिन अफसरों का बाद में रूतबा भी वही था, जो पहले था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *