■ अनिरुद्ध दुबे
केन्द्र में बैठे भाजपा के दिग्गजों के लिए छत्तीसगढ़ कितना महत्वपूर्ण है इसका एक बड़ा उदाहरण सामने आया। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह एवं भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने बुधवार की रात जयपुर में राजस्थान कोर ग्रुप के नेताओं के साथ जो बैठक शुरु की तो वह गुरुवार को सूरज उगने से पहले तक चली। यानी रात भर की बैठक। हल्का फुल्का आराम कर लेने के बाद दोनों नेता बिना वक़्त गंवाए दोपहर ढलने से पहले छत्तीसगढ़ पहुंच गए। शाम से रात तक क़रीब 5 घंटे छत्तीसगढ़ के चुनिंदा भाजपा नेताओं के साथ बैठक की और रात में ही दोनों नेताओं ने दिल्ली के लिए उड़ान भर ली। अंदर की ख़बर तो यही है कि शाह ने प्रदेश के नेताओं से कह दिया है कि चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा। साथ ही बिहार, झारखंड एवं ओड़िशा के 200 से अधिक नेता जो चुनावी मोर्चा संभालने छत्तीसगढ़ आने वाले हैं उन्हें सहयोग करने में कोई कमी नहीं करना है।
बैज गुट
किसी भी बड़ी राजनीतिक पार्टी में कोई प्रदेश अध्यक्ष बने तो उसके समर्थकों की बड़ी फौज खड़ी हो ही जाती है। यह अलग बात है कि उस फौज को गुट का नाम दे दिया जाता है। इस तरह बस्तर में अब कांग्रेस का बैज गुट भी तैयार हो गया है। बस्तर में आबकरी मंत्री कवासी लखमा का गुट पहले से रहा है। फिर मोहन मरकाम गुट बना और अब बैज गुट। बता दें दीपक बैज के सितारे पहले से ही बुलंद रहे हैं। 2013 में चित्रकोट विधानसभा से विधायक बने। 2018 में चित्रकोट से फिर विधायक बने। 2019 में बस्तर लोकसभा सीट से सांसद बने। सांसद बने तो विधायक पद छोड़े। सांसद रहते हुए में छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी बन गए। स्वाभाविक है जिस नेता की राजनीतिक यात्रा इस तेज गति से भाग रही हो तो उसके साथ खड़े रहने वालों की संख्या तो लगातार बढ़ेगी ही। वैसे बैज के सामने अपने बस्तर में ही चुनौतियां कम नहीं हैं। धर्मांतरण के विरोध की हवा पहले से बह रही है। प्रधानमंत्री आवास योजना के क्रियान्वयन में बस्तर के पीछे रहने को लेकर वहां के लोगों में नाराज़गी बरकरार है। सरकार ने समर्थन मूल्य पर 67 वनोपज खरीदी की घोषणा कर रखी है, लेकिन इसका लाभ भोले-भाले आदिवासियों से ज़्यादा बिचौलियों को मिल रहा है। सर्व आदिवासी समाज ने बस्तर में अपने प्रत्याशियों को उतारने की तैयारी कर ली है। आम आदमी पार्टी ने भी बस्तर में अपनी राजनीतिक गतिविधियां बढ़ा रखी है।
जिंदाबाद के नारे
राजनीति में खींचतान कहां नहीं होती लेकिन पिछले दिनों जगदलपुर में कुछ ज़्यादा ही देखने को मिली। वहां के कांग्रेस भवन में चुनावी बैठक थी। एक बड़े नेता बैठक लेने पहुंचे हुए थे। वो बड़े नेता जब कांग्रेस भवन पहुंचे तो एक तरफ के लोगों ने रेखचंद जैन जिंदाबाद तो दूसरी तरफ के लोगों ने राजीव शर्मा जिंदाबाद के ख़ूब नारे लगाए। बाहर तो बाहर, मिटिंग हाल में चलती मिटिंग के बीच दोनों तरफ के लोग अपने नेता का नाम लेकर जिंदाबाद के नारे लगाने से पीछे नहीं रहे। रेखचंद जैन वर्तमान में जगदलपुर विधायक हैं। स्वाभाविक है कि वे चाहेंगे इस बार भी पार्टी उन्हें ही टिकट दे। दूसरी तरफ राजीव शर्मा भी टिकट की दौड़ में हैं। हफ्ते-दो हफ्ते में तो पता लग ही जाएगा कि टिकट प्राप्त करने वाला भाग्यशाली कौन है।
सबसे कठिन
रायपुर उत्तर
भाजपा हो या कांग्रेस, टिकटों को लेकर भविष्यवाणी करने में अग्रणी रहे लोगों से पूछो कि ऐसी कौन सी सीट है जहां के बारे में पूर्वानुमान लगा पाना बेहद कठिन है तो वे कहते हैं- रायपुर उत्तर। रायपुर उत्तर ऐसी सीट रही है जिस पर दोनों पार्टियां सबसे आख़री में जाकर फैसला लेती हैं। 2008 में जब रायपुर उत्तर सीट अस्तित्व में आई कांग्रेस की ओर से कुलदीप जुनेजा के प्रत्याशी घोषित हो जाने के बाद ही भाजपा ने सच्चिदानंद उपासने को मैदान में उतारा था। 2013 का चुनाव आया तो यहां से टिकट की दौड़ में प्रमुख रूप से श्रीचंद सुंदरानी और संजय श्रीवास्तव थे। सुंदरानी के नाम पर फैसला लेने में भाजपा को काफी वक़्त लगा। फिर आया 2018 का चुनाव जिसमें सिटिंग एमएलए सुंदरानी समेत संजय श्रीवास्तव, सुनील सोनी एवं केदार गुप्ता प्रबल दावेदार थे। 90 में से 89 सीटों की घोषणा हो चुकी थी और एकदम आख़री में जाकर सुंदरानी की टिकट पक्की हुई। यह चुनाव सुंदरानी हार गए, कुलदीप जुनेजा जीत गए। अब 23 के चुनाव में रायपुर उत्तर से भाजपा के टिकट दावेदारों की संख्या बढ़ चुकी है। सुनील सोनी से लेकर उदय शदाणी, संजय श्रीवास्तव, केदार गुप्ता एवं अमित चिमनानी के नाम चले हुए हैं। हवा का रुख़ किस तरफ होगा समझ पाना मुश्किल पड़ रहा है। वैसे सुंदरानी को भी अपने आप पर भरोसा है कि टिकट उन्हें ही मिलेगी।
सीधे एक नाम
पर भड़का असंतोष
टिकट मिलना तो बहुत बड़ी बात होती है लेकिन कांग्रेस या भाजपा में कोई टिकट की दौड़ में रहे और उसका नाम पैनल में आ जाए यह भी अपने आप में कम बड़ी बात नहीं होती। कुछ ऐसे भी विधानसभा क्षेत्र होते हैं जहां टिकट की दौड़ में दो से तीन दमदार चेहरे होते हैं। स्वाभाविक है कि ऐसी सीटों में टिकट को लेकर किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले पैनल बनाना ज़रूरी हो जाता है। रायपुर पश्चिम विधानसभा की बात करें, जहां से वर्तमान में कांग्रेस के विकास उपाध्याय विधायक हैं। स्वाभाविक है कि इस बार के चुनाव में भी सबसे ऊपर नाम उन्हीं का रहना है। हुआ यह कि रायपुर के ही एक ऊंचे कद के नेता ने बिना कोई पैनल बनाए सीधे एक नाम विकास उपाध्याय ऊपर वालों के पास भेज दिया था। जबकि रायपुर पश्चिम से सुबोध हरितवाल, सूर्यमणि मिश्रा एवं श्री कुमार मेनन जैसे जाने-माने नेताओं के कांग्रेस टिकट के लिए आवेदन लगे हुए थे। ऐसी स्थिति में सिंगल नाम ही ऊपर भेजे जाने से असंतोष भड़क उठा। मुखिया से जब इस बात को लेकर शिकायत हुई, तब कहीं जाकर मामला ठीक हुआ।
बदनाम गली नहीं
बल्कि एयरपोर्ट
रायपुर एयरपोर्ट पर पिछले कुछ महीनों से जो कुछ होते आ रहा उससे ज़रूर वहां की छवि ख़राब हुई है। ऐसे भी मौके आए जब वीआईपी लोगों तक को एयरपोर्ट के बाहर आते ही अशोभनीय दृश्य का सामना करना पड़ा। कोई भी व्यक्ति हवाई जहाज से उतर सामान लेकर बाहर निकला नहीं कि अपनी गाड़ी में बिठाने ट्रेव्हल्स एजेन्सियों के कुछ लड़के-लड़कियां कूद पड़ते हैं। अपनी गाड़ी में बिठाने के लिए लड़के-लड़कियों के बीच तू तड़ाक वाला संवाद होते अक्सर देखा जा सकता है। हवाई जहाज से सुंदर आकाश को निहारते रहने के बाद धरती पर अभद्रता से भरा सीन देखने मिले तो यात्रियों का मूड ख़राब नहीं होगा तो और क्या होगा। पिछले दिनों हद तो तब हो गई जब एयरपोर्ट की पार्किंग के पास दो ट्रेव्हल्स एजेन्सी में कार्यरत लड़कियां आपस में भिड़ गईं। खूब मुक्के चले। बाल खिंचे गए। गालियों की बौछार हुई। कुछ लोगों ने उसका वीडियो बना लिया। गाली-गलौच और ढिशुम-ढिशुम वाला यह वीडियो शहर ही नहीं बल्कि प्रदेश के बाहर तक वायरल हो गया। यानी रायपुर एयरपोर्ट की बाहर भी बदनामी। ऐसी घटनाएं तो जब-तब होती ही रही थीं लेकिन एयरपोर्ट अथ़ॉरिटी मानो अब सोकर जागी। पुलिस तक शिकायत गई। 7 युवतियों व 1 युवक की गिरफ्तारी हुई है।