■ अनिरुद्ध दुबे
पूर्व में इस ‘कारवां’ कॉलम में प्रश्न उठा था कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, उपाध्यक्ष शिवरतन शर्मा, महामंत्रीगण केदार कश्यप, ओ.पी. चौधरी एवं विजय शर्मा, ये सभी टिकट की दौड़ में हैं, अगर ये सभी चुनाव लड़ेंगे तो चुनावी प्रबंधन संभालेगा कौन? ये प्रश्न आज भी पहले की तरह खड़ा है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह समेत अरुण साव, शिवरतन शर्मा, केदार कश्यप, ओ.पी. चौधरी एवं विजय शर्मा, ये सभी चुनाव लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल चुनाव लड़ रहे हैं। मैनेजमेंट के विशेषज्ञ समझे जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल एवं अमर अग्रवाल भी चुनावी मैदान में हैं। धरमलाल कौशिक, प्रेमप्रकाश पांडे एवं अजय चंद्राकर जैसे दिग्गज नेता भी कमर कसकर चुनावी रणभूमि में उतर चुके हैं। ऐसे में पूरे प्रदेश में दौड़ लगाने वाला बचा कौन? सुनने में यही आ रहा है कि मोर्चा प्रकोष्ठ से जुड़े लोग प्रत्याशियों वाली सूची में नहीं हैं, अतः चुनावी मैदान में वही मोर्चा संभालेंगे। फिर पीछे ‘संघ’ भी तो है।
लीक सूची ही
अधिकृत निकली
2 अक्टूबर को भाजपा प्रत्याशियों की दूसरी सूची जो लीक हुई थी तक़रीबन वही सूची 9 अक्टूबर को अधिकृत सूची के रूप में सामने आ गई। बरसों से भाजपा में सेवाएं देते आ रहे लोग यह कहते रहे थे कि सूची लीक हो जाने के बाद तीन-चार चेहरे तो बदल ही दिए जाएंगे। जिन चेहरों के बदलने की बात हो रही थी वह नहीं बदले और वे लोग ताल ठोंककर चुनावी मैदान में हैं। “ये हो क्या रहा है…” या “ये चल क्या रहा है…” ऐसा कुछ जीवन में कई बार घटित होता है। दूसरी सूची आने के बाद कितने ही भाजपाई प्रदेश कार्यालय या उसके बाहर “क्या हो रहा, क्या चल रहा” वाली विचारमग्न मुद्रा में ही दिखाई दिए। कितने ही लोग इस बात पर आश्चर्य जताते नज़र आए कि सूची लीक हो जाने के बाद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव मीडिया के सामने तो यह कहते नज़र आए थे कि ये अधिकृत सूची नहीं है। लेकिन बाद में वही लीक हुई सूची अधिकृत सूची बनकर सामने आ गई।
भीमा मंडावी की पत्नी
ओजस्वी का छलका दर्द
भाजपा ने दंतेवाड़ा से इस बार नये चेहरे चैतराम अरामी को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। 2018 के चुनाव में इसी सीट पर भाजपा के भीमा मंडावी ने जीत हासिल की थी। आलम यह था कि बस्तर की 12 में से एकमात्र दंतेवाड़ा सीट ही भाजपा जीत पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नक्सली हमले में भीमा मंडावी की मौत हो गई। इसके बाद वहां हुए उप चुनाव में भाजपा ने भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को टिकट दी थी, जिसमें वे कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती देवती कर्मा से हार गई थीं। इस चुनाव में भी ओजस्वी दंतेवाड़ा से भाजपा की टिकट चाह रही थीं, लेकिन नहीं मिली। टिकट कटने पर ओजस्वी के आंसू छलक पड़े। ओजस्वी की बेटी दीपा ने एक बयान जारी कर कहा कि “मां की टिकट काटकर भाजपा ने पिता के बलिदान का अपमान किया है। दंतेवाड़ा को लेकर पिता ने जो सपने देख रखे थे उन्हें पूरा करने ही मां ने राजनीति में कदम रखा था।” दीपा के इस बयान पर राजनीति के गलियारे में व्यापक चर्चा हो रही है। देने वाले झीरम घाटी नक्सली हमले का हवाला दे रहे हैं। झीरम घाटी नक्सली हमले में शहीद हुए नेताओं महेन्द्र कर्मा, उदय मुदलियार एवं योगेन्द्र शर्मा की पत्नियों को कांग्रेस ने 2013 के चुनाव में टिकट दी थी। देवती कर्मा दंतेवाड़ा, अलका मुदलियार राजनांदगांव एवं श्रीमती अनिता शर्मा धरसींवा से चुनावी मैदान में थीं। तीनों में श्रीमती देवती कर्मा ही जीत पाई थीं। उस समय शहीद परिवारों के 3 लोगों को टिकट देकर कांग्रेस ने अपना कर्तव्य निभाया था। देवती कर्मा को तो उप चुनाव मिलाकर 3 बार चुनाव लड़ने का अवसर दिया गया जिसमें वे दो बार जीतीं भी। वहीं अनिता शर्मा को 2018 में दूसरी बार फिर लड़ने का मौका दिया गया, जिसमें वे जीतीं। यह सही है कि वर्तमान में भाजपा के 13 ही विधायक हैं और ऐसी स्थिति में उसके लिए एक-एक सीट अनमोल है। यदि 90 विधानसभा सीट में से एक टिकट शहीद परिवार को दे भी दी गई होती तो पार्टी का सम्मान ही बढ़ता। जब अनूठा प्रयोग करते हुए भाजपा ने रायपुर उत्तर से पुरंदर मिश्रा, धरसींवा से अनुज शर्मा एवं आरंग से खुशवंत दास को टिकट दी है तो सम्मान के तौर पर दंतेवाड़ा में स्व. भीमा मंडावी की पत्नी को भी टिकट दी जा सकती थी।
किसी बहाने
जोगी की याद
तारीफ़ मिले या आलोचना पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी हमेशा सुर्खियों में बने रहते थे। जोगी जी के निधन को तीन वर्ष से ज़्यादा समय हो चुका लेकिन इस विधानसभा चुनाव के समय में भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के नेताओं को किसी न किसी वज़ह से जोगी जी याद आ ही रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राजधानी रायपुर में मीडिया के सामने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को देखो तो अजीत जोगी की याद हो आती है। 2003 के समय मुख्यमंत्री रहते हुए में जोगी जी का जो आतंक था वैसा ही आतंक इस भूपेश बघेल सरकार में देखने मिल रहा है। रविशंकर जी का यह कथन सामने आए कुछ ही घंटे बीते रहे होंगे कि कांग्रेस की सीनियर नेत्री राधिका खेड़ा ने रायपुर में ही मीडिया से मुख़ातिब होते हुए कहा कि पितृ पक्ष चल रहा है। इन्हें जोगी जी ख़ूब याद आ रहे हैं। क्यों न याद आएं, जोगी जी भाजपा की बी टीम के रूप में काम जो करते रहे थे।
योगी जी की
जगह जोगी जी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम का उनकी पार्टी के नेताओं के दिमाग में कितना असर है इसकी बानगी हाल ही में देखने को मिली। राजधानी रायपुर में एकात्म परिसर में पूर्व केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद प्रेस कांफ्रेंस ले रहे थे। प्रेस कांफ्रेस में ऐसा दो बार हुआ जब रविशंकर प्रसाद ने जोगी जी (अजीत जोगी) कहना चाहा लेकिन उनकी ज़ुबान से ‘योगी जी’ निकला। दोनों ही बार रविशंकर प्रसाद ने कहा कि क्षमा प्रार्थी हूं, योगी जी नहीं जोगी जी कहना चाह रहा था।
‘कैंडी क्रश’ से पहले
‘छक्का’ फिर ‘हिट विकेट’
पिछले दिनों भाजपा के लोगों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का मोबाइल पर कैंडी क्रश खेलते हुए वाला वीडियो ख़ूब वायरल किया। बताते हैं यह वीडियो चुनावी बैठक शुरु होने से पहले का है। भाजपा के इस वीडियो वायरल पर मुख्यमंत्री ने कहा- “मनोरंजन करना अपराध है क्या?” वहीं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि “अब आचार संहिता लगी हुई है। स्कैम गेम तो खेल नहीं सकते।“ जब चुनाव सामने होता है तो तरह-तरह के खेलों की चर्चा अपने आप होने लगती है। 2018 के विधानसभा चुनाव के मतदान से ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मीडिया से कहा था कि “आख़री गेंद में छक्का मारूंगा।“ इस पर मीडिया ने तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल से प्रतिक्रिया चाही थी तो उन्होंने कहा था कि “छक्का क्या मारेंगे, हिट विकेट हो जाएंगे।“ 2018 के चुनाव का नतीजा चाहे जो रहा हो लेकिन छक्का मारने व हिट विकेट होने जैसी बातों पर लोगों को वैसा ही मज़ा मिला था जैसा कि अभी कैंडी क्रश पर मिल रहा है।