आस्‍था और विश्‍वास का महापर्व महाशिवरात्रि

■ चन्द्र शेखर गंगराड़े

​ब्रम्‍हा, विष्‍णु और महेश भारतीय हिन्‍दू संस्‍कृति के मूल स्‍त्रोत हैं। ये तीनों देवता हिन्‍दू धर्म में सभी देवताओं में श्रेष्‍ठ और पूजनीय हैं। ​जहां ब्रम्‍हा जी को सृष्टि का रचयिता और विष्‍णु जी की सृष्टि का पालन पोषण करने वाले देवता के रूप में हम आराधना करते हैं वहीं महेश यानी शिव को सृष्टि का संहारक अथवा विनाशक माना जाता है। ​भारतीय हिन्‍दू पंचाग की गणना अनुसार प्रत्‍येक माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि होती है लेकिन फाल्‍गुन माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में श्रद्धा, विश्‍वास, उल्‍लास और उमंग के साथ मनाया जाता है।

​महाशिवरात्रि के पर्व के आयोजन का एक प्रमुख कारण यह है कि माता पार्वती ने वर के रूप में भगवान शिव को प्राप्‍त करने के लिए कठोर तपस्‍या की थी और जब भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर, माता पार्वती के साथ विवाह करने के लिए सहमति दे दी थी, तब उनका विवाह फाल्‍गुन माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ही हुआ था इसलिए इस दिन पड़ने वाली शिवरात्रि को “महाशिवरात्रि” के रूप में मनाया जाता है। ​लेकिन इसी तिथि को महाशिवरात्रि मनाये जाने के कुछ और कारण भी हैं। किवदंती है कि जब सतयुग का आरंभ हुआ और अमृत को प्राप्‍त करने के लिए समुद्र-मंथन किया गया तो उस समुद्र-मंथन से अमृत तो सबसे अंत में निकला लेकिन सबसे पहले विष निकला जिसे कालकूट या हलाहल भी कहा जाता है। कहते हैं कि उस विष की ज्‍वाला से देवताओं, राक्षसों, मनुष्‍यों समेत समस्‍त प्राणियों में और जगत में हाहाकार मच गया था। ऐसी स्थिति में उस विष को ग्रहण करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव से अनुरोध किया और भगवान शिव ने सृष्‍टि के कल्‍याण के लिए उस विष को अपने कंठ में धारण किया और उनका कंठ नीले रंग का हो गया इसलिए उन्‍हें “नीलकंठ” नाम से भी पुकारा जाता है। वह दिन, फाल्‍गुन माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी और भगवान शिव को जागृत अवस्था में बनाये रखने के लिये रात भर भजन कीर्तन किया गया इसलिए महा शिव रात्रि का महत्‍व और भी बढ़ जाता है।

​फाल्‍गुन माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को उत्‍सव के रूप में मनाये जाने का एक कारण यह भी है की इस तिथि को पृथ्‍वी का उत्‍तरी गोलार्ध इस प्रकार स्थित होता है कि मनुष्‍य के अंदर की ऊर्जा स्‍वाभाविक तौर पर ऊपर की ओर जाती है, जो मनुष्‍य को उसके आध्‍यात्मिक शिखर तक ले जाने में सहायता करती है। इस ऊर्जा एवं समय का उपयोग करने के लिए भी यह उत्‍सव मनाया जाता है, जो पूरी रात चलता है, जिससे ऊर्जा के प्राकृतिक प्रवाह को, प्रवाहित होने का पर्याप्‍त अवसर मिलता है।

​महाशिवरात्रि के उत्‍सव के पीछे एक और कारण यह भी है कि इसी तिथि की रात्रि को भगवान शिव धरती पर ज्‍योतिर्लिंग स्‍वरूप में प्रकट हुए थे।
​आज हम देखते हैं कि पूरे भारतवर्ष में भगवान शिव के बहुत मंदिर हैं और करोड़ो लोग उनकी आस्‍था, विश्‍वास और श्रद्धा से पूजा करते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि जहां उन्‍हें सृष्टि के विनाशक के रूप में जाना जाता है, वहीं वे अपने भक्‍तों के बीच भोलेनाथ के रूप में भी पूजे जाते हैं। उनकी आराधना से वे भक्‍तों की मनोकामना शीघ्र पूर्ण करते हैं। जहां एक ओर वे माता पार्वती की तपस्‍या से प्रसन्‍न हुए, वहीं उन्‍होंने रावण की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर उसे भी वरदान दिया. यहां तक कि वे इतने उदार और भोले हैं कि यदि अज्ञानतावश भी सच्‍चे भाव से, उनकी पूजा अर्चना की जाये तो भी वे प्रसन्‍न हो जाते हैं. चित्रभानु शिकारी की कथा से यह स्‍पष्‍ट भी हो जाता है कि जब अज्ञानतावश ही उसके द्वारा शिवरात्रि की रात को भगवान शिव की पूजा होती है तो अनजाने में ही की गई उस पूजा का भी उसे तत्काल फल मिला और उसका ह्दय परिवर्तित हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई और त्रेतायुग में निषादराज के रूप में भगवान राम की मित्रता का सुअवसर प्राप्‍त हुआ।

(लेखक छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव हैं)

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