● कारवां (10 मार्च 2024) ● डॉ. रमन की रणभूमि में योद्धा भूपेश… ● बैज को कहना पड़ा-विकास नहीं कमज़ोर… ● सीएम साहब क्या ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ एवं ‘वीर सावरकर’ भी देखेंगे?… ● नेगेटिव विचार और उल्टी टी शर्ट… ● विवादों में जोन कमिश्नर…

■ अनिरुद्ध दुबे

भाजपा ने छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित कर दिए वहीं कांग्रेस अब तक 6 सीटों के लिए ही नामों की घोषणा कर पाई है। दोनों ही तरफ से जो बड़े नाम सामने आने थे आ चुके। चौक चौराहों में लोग बतियाते नज़र आ जाते हैं कि राजनांदगांव एवं कोरबा लोकसभा सीट पर चुनावी जंग देखने लायक रहेगी। वहीं दिन-रात दिमागी घोड़े दौड़ाते रहने वाले कुछ कांग्रेसियों का मानना है कि न सिर्फ़ राजनांदगांव व कोरबा बल्कि कार्यकर्ता यदि सही तरीके से चार्ज हो गए तो जांजगीर चाम्पा, महासमुन्द एवं कांकेर में भी हम ज़ोरदार टक्कर दे सकने की स्थिति में रहेंगे। प्रदेश में भूपेश बघेल ऐसे दूसरे नेता हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री का तमगा लगने के बाद लोकसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। पूर्व में 1 नवंबर 2000 से 6 दिसंबर 2003 तक मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी अप्रैल-मई 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में महासमुन्द लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ़ कांग्रेस की टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे। जोगी ने उस चुनाव में 1 लाख से भी ज़्यादा मतों से जीत दर्ज़ की थी। उस चुनाव में वे पूरे प्रदेश में जीतने वाले अकेले कांग्रेस प्रत्याशी थे। शेष 10 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। 2009 में कोरबा से डॉ. चरणदास महंत, 2014 में दुर्ग से ताम्रध्वज साहू एवं 2019 में बस्तर से दीपक बैज एवं कोरबा से श्रीमती ज्योत्सना महंत कांग्रेस की टिकट पर जीतने में क़ामयाब रही थीं। इस तरह लोकसभा आम चुनाव की बात करें तो 2019 का ही चुनाव था जिसमें कांग्रेस की जीत का आंकड़ा एक से बढ़कर दो पर (बस्तर और कोरबा) जा पाया। 2007 में स्ट्रिंग ऑपरेशन में फंसने के बाद राजनांदगांव के भाजपा सांसद प्रदीप गांधी को इस्तीफा देना पड़ा था। उसके बाद राजनांदगांव में हुए लोकसभा उप चुनाव में ज़रूर कांग्रेस प्रत्याशी देवव्रत सिंह ने जीत दर्ज़ की थी। इस तरह देखा जाए तो 2007-2009 के बीच कुछ समय ऐसा रहा था जब देवव्रत सिंह ने राजनांदगांव लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया था। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का प्रभाव क्षेत्र समझे जाने वाले राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से अब कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चुनावी मैदान में हैं। जब डॉ. रमन सिंह की राजनीतिक रणभूमि में भूपेश बघेल चुनावी योद्धा के रूप में सामने आ गए हैं तो निश्चित रूप से राजनांदगांव का चुनाव बेहद रोचक तो रहेगा ही।

बैज को कहना पड़ा…

विकास नहीं कमज़ोर

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज जब हाल ही में राजीव भवन में मीडिया से बातचीत करने के लिए सामने आए तो किसी मीडिया वाले ने ज़िक्र किया कि “चर्चा यही है रायपुर लोकसभा सीट में भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल जैसे कद्दावर नेता के सामने कांग्रेस ने विकास उपाध्याय जैसा कमजोर कैंडिडेट दे दिया है।“ ज़वाब में बैज़ ने इतना ही कहा कि “विकास उपाध्याय कमज़ोर चेहरा नहीं है।“ रायपुर लोकसभा क्षेत्र में रायपुर उत्तर, रायपुर दक्षिण, रायपुर पश्चिम, रायपुर ग्रामीण, आरंग, अभनपुर, धरसींवा, बलौदाबाजार एवं भाटापारा विधानसभा सीटें आती हैं। कुछ ही महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाटापारा को छोड़ दें तो रायपुर लोकसभा क्षेत्र में आने वाली बाक़ी सभी आठ सीटों पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे रायपुर लोकसभा क्षेत्र से यदि बृजमोहन अग्रवाल जैसे दिग्गज नेता चुनावी मैदान में सामने रहें तो चुनौतियां बड़ी रहेंगी ही।

सीएम साहब क्या ‘बस्तर

द नक्सल स्टोरी’ एवं

‘वीर सावरकर’ भी देखेंगे?

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अपनी सरकार एवं पार्टी के लोगों के साथ ‘आर्टिकल 370’ देखी। देखने के तूरंत बाद इसे छत्तीसगढ़ में टैक्स फ्री करने की घोषणा भी कर दी। ‘आर्टिकल 370’ कश्मीर पर बोझ था, जिसे हटाने का काम केन्द्र की मोदी सरकार ने किया। स्वाभाविक है जिस प्रदेश में भाजपा की सरकार होगी वहां फ़िल्म ‘आर्टिकल 370’ का स्वागत तो होगा ही। कोई मुख्यमंत्री मल्टीप्लेक्स में जाकर पूरी फ़िल्म देखे और देखने के बाद मीडिया के सामने अपनी राय प्रगट करे तो उस फ़िल्म को अच्छी-खासी पब्लिसिटी मिल जाती है। पिछली बार जब कांग्रेस की सरकार थी, तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने मंत्रियों व विधायकों के साथ ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखने गए थे। फ़िल्म देखकर निकलने के बाद बघेल ने ‘कश्मीर फाइल्स’ को अधूरा सच बताया था। फ़िल्म को लेकर उनकी जो भी प्रतिक्रिया रही हो लेकिन वह सुर्खियों में तो आ ही गई थी। 2014 में केन्द्र में मोदी की सरकार आने के बाद मानो सच्चाई को पर्दे पर लाने का दावा करते हुए राजनीति पर केन्द्रित फ़िल्में बनाने का सिलसिला चल पड़ा है। ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’, ‘इंदू सरकार’, ‘द कश्मीर फाइल्स’ एवं ‘द केरला स्टोरी’ जैसी फ़िल्में सामने आ चुकी हैं जिन पर लंबी बहस छिड़ी रही। इसे अज़ीब संयोग कहें कि ऐन लोकसभा चुनाव से पहले ‘आर्टिकल 370’ तो रिलीज़ हुई ही है, वहीं नक्सलवाद पर केन्द्रित ‘बस्तर द नक्सल स्टोरी’ एवं विनायक दामोदर सावरकर पर केन्द्रित फ़िल्म ‘स्वतंत्र वीर सावरकर’ इसी अप्रैल महीने में आ रही हैं। सवाल यह है कि क्या मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ‘द बस्तर स्टोरी’ एवं ‘सावरकर’ फ़िल्म देखने के लिए भी समय निकालेंगे? और ये फ़िल्में पसंद आईं तो क्या इन्हें भी टैक्स फ्री करने की घोषणा करेंगे?

नेगेटिव विचार और

उल्टी टी शर्ट

हाल ही में छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘मोही डारे-2’ का मुहुर्त हुआ। मुहुर्त अवसर पर छत्तीसगढ़ के गुलशन कुमार कहलाने वाले फ़िल्म प्रोड्यूसर मोहन सुंदरानी ख़ास तौर पर उपस्थित थे। मुहुर्त शॉट होने से पहले सुंदरानी वहां मौजूद मीडिया वालों से कह गए कि “यहां हम जो बातें कर रहे हैं उस पर ज़रूर लिखिए। मेरा कुछ नेगेटिव नज़र आए तो उस पर भी लिखिए। कोई रहम मत करिये।“ सुंदरानी का इतना कहना ही था कि ‘छंइहा भुंइया’ फेम डायरेक्टर सतीश जैन ने कहा कि “नेगेटिव तो अभीच्च नज़र आ गया।“ सुंदरानी ने पूछा “वो कैसे”, जैन ने -कहा- “फूल बांह वाली इस जैकेट के भीतर आप टी शर्ट उल्टी पहनकर आ गए हैं।“ न सिर्फ़ सुंदरानी बल्कि वहां पर चर्चा में हिस्सा लेने वालों ने गौर से देखा तो वाकई टी शर्ट उल्टी थी। आर्थिक मसलों को लेकर दिन-रात सोच-विचार में डूबे रहने वालों के साथ कभी-कभी ऐसा हो जाता है।

विवादों में जोन कमिश्नर

रायपुर नगर निगम में कुछ ऐसे भी जोन कमिश्नर देखने को मिले जो निगम दफ़्तर एवं बाहर विवादों में घिरे नज़र आते रहे। जोन-5 कमिश्नर सुशील चौधरी की ही बात कर लें, उन्हीं के अधिनस्थ कर्मचारियों ने उनके खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया। जोन-5 के बहुत से कर्मचारी सभापति प्रमोद दुबे एवं निगम कमिश्नर अबिनाश मिश्रा से मिले और कहा कि “चौधरी साहब के साथ काम कर पाना बड़ा मुश्किल है। वे अपशब्दों का इस्तेमाल कर जाते हैं।“ अंदर से ख़बर तो यही आ रही है कि महतारी वंदन योजना के क्रियान्वयन का प्रेशर इस कदर था कि जोन कमिश्नर साहब का अधिनस्थ कर्मचारियों पर गुस्सा फूट पड़ा। वहीं कर्मचारियों का कहना है कि “बात केवल महतारी वंदन की नहीं है, अन्य अवसरों पर भी जोन कमिश्नर का व्यवहार ऐसा ही रहता है।“ चौधरी से पहले और भी जोन कमिश्नर चर्चाओं में रहे हैं। एक जोन कमिश्नर ऐसे रहे जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके पैर एक ख़ास जोन  में अंगद की भांति जमे हुए हैं। पूर्व में इसी रायपुर नगर निगम में एक कड़क कमिश्नर साहब हुआ करते थे। वो व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने जोन स्तर पर जोन कमिश्नरों को इधर से उधर करते रहे, लेकिन उस ख़ास जोन के ख़ास जोन कमिश्नर को हिला नहीं पाए। जिनके सिर पर किसी भगवान वाले नाम का हाथ रहा हो, उन्हें भला कौन हिला पाता।

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