कारवां (26 मई 2024) ● नक्सलवाद ख़त्म करने शांति के मार्ग पर न पड़े बाधा… ● तो क्या 2024 में रायपुर 3 बार आचार संहिता से गुजरेगा… ● कभी तालाबों का शहर था रायपुर… ● कलेक्टर के ‘आदेशा’ व निगम कमिश्नर के निर्देशानुसार…● ड्रग्स-सट्टे का गोवा कनेक्शन… ● डीजे वाले बाबू मेरा गाना चला दो…

■ अनिरुद्ध दुबे

पिछले कुछ हफ़्तों से छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद पर ज़बरदस्त बहस छिड़ी हुई है। मीडिया में सत्ता पक्ष, विपक्ष एवं नक्सली नेताओं के अपने-अपने ढंग से बयान आ रहे हैं। टीवी चैनलों में इस पर बहस चल रही है। उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा जिनके पास गृह मंत्रालय है ने ईमेल आईडी व गूगल फॉर्म जारी करते हुए कहा है कि “नक्सली बताएं कि मुख्यधारा में आने के लिए चाहते क्या हैं?” बीच-बीच में बस्तर के दुर्गम इलाकों में सूरक्षा बलों एवं नक्सलियों के बीच लगातार मुठभेड़ अलग हो रही है। मुठभेड़ में सूरक्षा बलों को सफलता भी मिल रही है। इधर, उप मुख्यमंत्री ने पुनर्वास नीति को अपग्रेड करने फॉर्म जारी किया, दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज जो बस्तर से ही हैं ने सवाल खड़े किए हैं कि “सरकार बताए कि पुनर्वास नीति के लिए सूझाव मांगने से पहले किसी स्तर पर नक्सलियों से कोई वार्तालाप हुआ है क्या?” वहीं नक्सलियों के केन्द्रीय कमेटी के सदस्य प्रताप ने मीडिया में एक बयान जारी करते हुए सवाल खड़ा किया है कि “सरकार शांति वार्ता की बात कर रही है, हिंसा के माहौल में कैसे बातचीत हो सकती है!” सबका अपना-अपना कथन है। वहीं विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव के समय बस्तर की ही चुनावी सभाओं में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि “डबल इंजन की सरकार बनने के बाद नक्सलवाद पूरी तरह मिटा देंगे।“ माना यही जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की सरकार अमित शाह की उसी लाइन पर आगे बढ़ती दिख रही है। किसी समस्या का समाधान निकालने सबसे पहले बातचीत का रास्ता ही सबसे ऊपर होना चाहिए, जिस पर चलने की कोशिश उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा कर भी रहे हैं, लेकिन पूर्व में एक-दो ऐसे अवसर कभी ऐसे आए थे जब शांतिपूर्ण तरीके से समाधान निकालने जो कदम बढ़ाए गए उसमें बाधा पड़ी थी। केन्द्र में जब यूपीए की सरकार थी तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम बातचीत के रास्ते समाधान निकालना चाह रहे थे। इस काम के लिए उन्होंने स्वामी अग्निवेश को आगे किया था। इससे पहले कि बातचीत का कोई रास्ता तैयार हो पाता संदिग्ध परिस्थितियों में नक्सलियों के संपर्क में रहे नेता आज़ाद की मौत हो गई। इस तरह बातचीत का वह प्रयास शुरु होने से पहले ही विफल हो गया। एक और प्रसंग है। स्वामी अग्निवेश, दो बार रायपुर से सांसद रहे केयूर भूषण, वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन रायपुर से बस्तर शांति यात्रा निकालने के पक्ष में थे और इस पर राजधानी रायपुर के टाउन हॉल में एक विमर्श रखा गया था। टाउन हॉल में कार्यक्रम चल ही रहा था कि एक समूह वहां पहुंचकर नारेबाजी करने लगा, जिससे चलती बातचीत पर व्यवधान पहुंचा। उस नारेबाजी व विरोध प्रदर्शन से गांधीवादी विचारधारा वाले पूर्व सांसद केयूर भूषण इतने आहत हो गए थे कि उन्होंने अपनी चप्पल उतारकर प्रदर्शनकारियों को सामने कर दी थी और कहा था कि “लो इसे मेरे सिर पर मार लो।“ इसके बाद का घटनाक्रम कुछ ऐसा रहा कि शांति यात्रा में बाधा पड़ गई। शांति का हर मार्ग स्वागतेय होता है, बस अनावश्यक बाधा मत पड़े।

तो क्या 2024 में रायपुर

3 बार आचार

संहिता से गुजरेगा…

छत्तीसगढ़ में महापौर चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से होना चाहिए इस पर लगातार आवाज़ उठ ही रही है कि इस बात को लेकर भी चर्चा का दौर शुरु हो गया है कि 2024 का यह साल रायपुर के लिए आचार संहिता वाला साल रहेगा। लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को आना है, इसलिए रायपुर क्या पूरा छत्तीसगढ़ ही इस समय आचार संहिता के दायरे में है।  रायपुर दक्षिण विधायक बृजमोहन अग्रवाल रायपुर से लोकसभा चुनाव लड़े हैं। पूरे आसार यही हैं कि बाजी बृजमोहन अग्रवाल ही मारेंगे। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यदि बृजमोहन अग्रवाल दिल्ली की तरफ रुख़ करते हुए विधायक पद से इस्तीफ़ा दे देते हैं तो स्वाभाविक है रायपुर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में उप चुनाव होगा। संभावना यही जताई जा रही है कि उप चुनाव अक्टूबर में होगा। उप चुनाव अक्टूबर में हुआ तो रायपुर में आचार संहिता अगस्त में लग सकती है। रायपुर दक्षिण उप चुनाव के बाद फिर दिसंबर में नगर निगम चुनाव की बारी आ जाएगी। जिसके लिए आचार संहिता नवंबर में लग जाएगी। इस तरह एक ही साल में रायपुर के 3 बार आचार संहिता के दौर से गुजरने का नया इतिहास बन जाएगा।

कभी तालाबों का

शहर था रायपुर

राजधानी रायपुर में सौंदर्यीकरण के बहाने करबला तालाब को पाटे जाने की ख़बर आ रही है। इसकी शिकायत कलेक्टर के पास पहुंची है। इस काफ़ी पुराने तालाब को पाटने की कोशिश पहले भी हुई थी। जागरूक नागरिकों की तरफ से विरोध शुरु हुआ तो तालाब की ज़मीन को दबाने की कोशिश में लगे लोग पीछे हटे थे। रायपुर मानो ऐसा शहर है जहां ‘बहाने’ की तलाश रहती है। बस ‘बहाना’ मिल जाए कुछ भी कर जाओ। यदि ‘बहाने’ को लेकर कोई प्रतियोगिता होती तो रायपुर शहर कितने ही अन्य शहरों को पछाड़ देता। वो ‘बहाने’ ही तो थे, किनारा क्या पूरे का पूरा तालाब ही पट गया। जीई रोड पर आज जहां शहीद स्मारक ऑडिटोरियम है वहां से लेकर पीछे न जाने कितने ही दूर तक तालाब ही तो था। रजबंधा तालाब। इसी रजबंधा तालाब कि किनारे कभी मीना बाज़ार और सर्कस लगा करता था। न जाने कितने ही लोगों की उस तालाब पर गिद्ध दृष्टि थी। शासन एवं प्रशासन का कुछ ऐसा कुचक्र चला कि झीलनुमा इस तालाब का धीरे-धीरे अस्तित्व ही मिटा दिया गया। तालाब ग़ायब कर दिए जाने के बाद वहां क्या-क्या होते चला गया उसके विस्तार में जाने की ज़रूरत नहीं है। कल्पना कीजिए आज अगर रजबंधा तालाब सलामत होता तो जयस्तंभ चौक से नगर घड़ी चौक के बीच की यह तस्वीर कितनी ख़ूबसूरत होती। इस ज़गह पर हर शाम कितनी रंगीन होती। रात का आलम क्या होता। शास्त्री बाज़ार पर आएं। रजबंधा से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित शास्त्री बाज़ार, लेंडी तालाब को पाटने की कीमत पर बना। रजबंधा की तरह लेंडी तालाब का भी अंग्रेजों के शासनकाल में अलग ही महत्व था। जिस सिविल लाइन क्षेत्र में अंग्रेजों की बसाहट थी उनके बंगले से कुछ दूरी पर स्थित इस तालाब का नाम वास्तव में आंग्ल भाषा के आधार पर लेडी तालाब था, जो कि बिगड़कर लेंडी तालाब हो गया। अब काली बाड़ी चौक की तरफ चलें जहां नरैया तालाब के बगल से एक और तालाब हुआ करता था, जिसे पाटकर पूरी कॉलोनी ही बसा दी गई। इस तालाब के पाटे जाने के पीछे कभी ज़मीन से जुड़े रहने वाले एक नेता और उस दौर के शराब व शबाब के शौकीन रहे एक पत्रकार की अहम् भूमिका रही थी। वहीं सौंदर्यीकरण के नाम पर बूढ़ातालाब को पाटकर आधा कर दिया गया। आमापारा के पास कारी तालाब आज भी अपने दुर्भाग्य पर रो रहा है।

कलेक्टर के ‘आदेशा’ व निगम

कमिश्नर के निर्देशानुसार…

पिछले साल-डेढ़ साल से कुछ ऐसा दौर चल रहा है कि रायपुर में पदस्थ होने वाले कलेक्टर नगर निगम के प्रति कुछ ज़्यादा गहरा लगाव दर्शाते नज़र आ रहे हैं। 2023 में डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे रायपुर कलेक्टर व मयंक चतुर्वेदी रायपुर नगर निगम कमिश्नर थे। कई बार डॉ. भुरे व चतुर्वेदी को साथ में शहर भ्रमण करते देखा जाता था। यही नहीं डॉ. भुरे ने नगर निगम के अलग-अलग जोन दफ़्तरों में जाकर बैठक ली थी। रायपुर नगर निगम के इतिहास मे ऐसा पहली बार हुआ था जब कलेक्टर ने निगम के जोन दफ़्तरों में जाकर बैठक ली थी। डॉ. भूरे व चतुर्वेदी का तबादला हुआ तो उनके ठीक बाद डॉ. गौरव कुमार सिंह रायपुर कलेक्टर एवं अबिनाश मिश्रा रायपुर नगर निगम कमिश्नर बने। डॉ. भूरे व चतुर्वेदी के बाद अब डॉ. सिंह व मिश्रा की जोड़ी लगातार शहर भ्रमण करते देखी जा सकती है। अब तो बात और ऊपर की नज़र आने लगी है। ख़बरों को लेकर नगर निगम से रोज़ाना जो प्रेस नोट जारी होता है उसके शुरुआत में ही लिखा नज़र आता है- कलेक्टर डॉ. गौरव कुमार सिंह के ‘आदेशानुसार’ एवं निगम कमिश्नर अबिनाश मिश्रा के ‘निर्देशानुसार’…

ड्रग्स-सट्टे का

गोवा कनेक्शन

ड्रग्स हो या सट्टा छत्तीसगढ़ का गोवा से गहरा कनेक्शन हो गया है। पहले तो गोवा से छत्तीसगढ़ ड्रग्स पहुंचने की बात पढ़ने या सुनने मिलता रही थी, अब छत्तीसगढ़ व गोवा के बीच महादेव ऐप कनेक्शन का एक और नया तार मिल गया है। पुलिस ने महादेव ऐप मामले में लिप्त कोरबा के एक जिस युवक को गिरफ्तार किया उसके बैंक खाते के स्टेटमेंट में 17 करोड़ के लेनदेन का पता चला। पूछताछ में उसने गोवा का लिंक बताया। गोवा जाकर पुलिस ने एक फ्लैट में छापेमारी की तो वहां महाराष्ट्र, हरियाणा एवं गोवा के कुछ ऐसे लड़के हाथ में आए जो कि छत्तीसगढ़ को टारगेट में रखकर काम कर रहे थे। पूर्व में गोवा पर्यटन के हिसाब से छत्तीसगढ़ के भ्रमण प्रेमियों की पहली पसंद रहा करता था, अब वह ड्रग्स एवं सट्टे के अपराध में लिप्त रहने वालों की भी पहली पसंद हो गया है।

डीजे वाले बाबू

मेरा गाना चला दो

“डीजे वाले बाबू मेरा गाना चला दो…” फ़ेम सिंगर आस्था गिल हाल ही में रायपुर आई हुई थीं। उनसे मीडिया से जुड़े कुछ लोगों ने लाख टके के सवाल किए… “आपको रायपुर शहर कैसा लगा…” “क्या आपने यहां का चीला खाया…” इन सवालों को पूछने के लिए कितना रिसर्च नहीं करना पड़ा होगा! ज़माने पहले इसी रायपुर शहर में जब एक महिला संगठन व्दारा प्रेस कांफ्रेंस ली जा रही थी तो एक स्वनाम धन्य पत्रकार ने सवाल कर दिया था कि “आप पत्रकारों के लिए क्या कर रही हैं…”

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