■ अनिरुद्ध दुबे
राहुल गांधी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता की हैसियत से पहली बार जो भाषण दिया उसकी अलग-अलग स्तर पर छत्तीसगढ़ में भी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। राहुल के भाषण के ठीक दूसरे दिन उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने एकात्म परिसर में प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और राहुल गांधी का नाम लेकर ख़ूब शब्द बाण छोड़े। इसके क़रीब दो घंटे बाद राजीव भवन में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रेस कांफ्रेंस ली और लोकसभा में राहुल गांधी के भाषण की कई ख़ूबियां गिनाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम लेकर क्या-क्या नहीं कहे। इसके पहले भूपेश बघेल ने राजीव भवन में प्रेस कांफ्रेंस उस समय ली थी जब वे लोसकभा चुनाव के समय राजनांदगांव से प्रत्याशी घोषित हुए थे। यानी क़रीब 3 माह निकल जाने के बाद वह मौका आया जब बघेल राजीव भवन में पत्रकारों से मुख़ातिब हुए। वह भी समय था जब बघेल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे और तब उन्होंने लगातार प्रेस कांफ्रेंस लेने का रिकॉर्ड ही बना दिया था।
लेटर बम को ‘गोपनीय’
कहें या ‘अज्ञात’…
राजधानी रायपुर के राजीव भवन यानी कांग्रेस भवन से होते हुए पूरे प्रदेश में वायरल हुआ एक पत्र भारी चर्चा में है। वैसे तो कांग्रेस में बड़े नेताओं के नाम से अनाम लोगों व्दारा पत्र जारी करने की परंपरा कोई नहीं, लेकिन इस बार जो लेटर बम फूटा उसे अख़बारों में बड़ी ज़गह तो मिली ही उस पर टीवी चैनलों में डिबेट भी हुआ। योजनाबद्ध तरीके से यह लेटर बम फोड़ा गया। इसकी मिसाल इसी से दी जा सकती है कि दिन वह चुना गया जब राजनांदगांव लोकसभा चुनाव पर समीक्षा होनी थी। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज दोनों राजीव भवन में मौजूद थे। वह विस्फोटक लेटर अज्ञात मोबाइल नंबरों से ऐसे अधिकांश पत्रकारों के पास पहुंचा जो राजनीति पर अपनी कलम चलाते हैं या कैमरे के सामने समीक्षा करते हैं। पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से लेकर टी.एस. सिंहदेव, डॉ. चरणदास महंत, रविन्द्र चौबे, ताम्रध्वज साहू समेत और कई बड़े चेहरों पर निशाना साधा गया। ऐसी हवा उड़ा दी गई कि गोपनीय पत्र लीक हुआ है। किसी बड़े या मंझोले कद के नेता का लिखा कोई पत्र लीक हुआ होता तो शायद वह गोपनीय कहलाता लेकिन इसमें तो लिखने वाले ने आख़री में अपना नाम ही नहीं लिखा था, इसलिए यह गोपनीय कैसे हुआ? अज्ञात हुआ। जिस योजनाबद्ध तरीके से लेटर बम का धमाका किया गया उसके पीछे तीन ऐसे लोगों की अहम् भूमिका बताई जा रही है जो कि दिल्ली का हालचाल मालूम रखने से लेकर राजीव भवन के एक-एक कमरे में क्या हो रहा है पर पैनी नज़र रखते हैं।
मोबाइल टार्च की रोशनी
की तरह जगमगाए नितिन
नितिन नबीन भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी बनाए गए हैं। वह सह प्रभारी तो पहले से थे ही अब प्रभारी के रूप में उनकी भूमिका और बड़ी हो गई है। नितिन नबीन से पहले ओम माथुर छत्तीसगढ़ के प्रभारी थे। 2022 के आख़री का वह समय रहा होगा जब राजधानी रायपुर में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की चलती सभा के बीच में यह मैसेज आया था कि डी. पुरंदेश्वरी की जगह ओम माथुर छत्तीसगढ़ के प्रभारी होंगे। उस समय पुरंदेश्वरी, नड्डा जी की सभा वाले मंच पर ही थीं। ये भाजपा है- जहां कभी भी, कुछ भी हो सकता है। ओम माथुर की गिनती धाकड़ शख़्स के रूप में होती रही है। उनको लेकर धारणा यही रही है कि वे जिस राज्य में प्रभारी बनकर कदम रखें वहां भाजपा मजूबत हो जाती है। कम हॅसने-मुस्कराने वाले ओम माथुर सिद्धांतों को लेकर पक्के और प्रचार प्रसार से दूर रहने वाले व्यक्ति माने जाते हैं। विधानसभा चुनाव के ठीक बाद राजधानी रायपुर में हुए एक कवि सम्मेलन में प्रख्यात कवि कुमार विश्वास ने दीप प्रज्जवलन के समय एक नहीं बल्कि तीन बार ओम माथुर का नाम मंच पर ससम्मान आने के लिए पुकारा था। प्रचार से दूर रहने वाले ओम माथुर मंच पर नहीं गए तो नहीं गए। भाजपा में गहरी पैठ रखने वाले कुछ लोग बताते हैं, विधानसभा चुनाव होने के बाद ओम माथुर ने छत्तीसगढ़ से जो दूरी बना ली उसके पीछे कोई न कोई बड़ा कारण है! छत्तीसगढ़ से उनका गहरा लगाव हो गया था। विधानसभा चुनाव के समय में नये-नये सक्रिय राजनीति में आए एक चंचल किस्म के नेता की उन्होंने ही टिकट पक्की करवाई थी। पूरा लोकसभा चुनाव निकल गया माथुर जी के छत्तीसगढ़ में दर्शन नहीं हुए। उधर रायगढ़ क्षेत्र में जब मोदी जी की सभा हुई थी तब नितिन नबीन ने मोबाइल टार्च जलवाकर उनका स्वागत करवाया था। मोबाइल टार्च की रोशनी की तरह नितिन नबीन की छत्तीसगढ़ में लगातार चमक बढ़ती चली गई। स्वाभाविक है कि सह प्रभारी से पूर्ण प्रभारी बनने के बाद उनकी चमक और बढ़ती दिखेगी।
‘कोयला’ व ‘दवा’
इसे संयोग ही कहें कि राम या रामू नाम की शख़्सियत किसी भी राजनीतिक पार्टी में रहे, उनका जबरदस्त बोलबाला रहता है। बताते हैं 2023 के चुनाव में विधायक टिकट के दावेदार रहे एक नेता का किसी धार्मिक नाम वाले घराने के साथ जबरदस्त तालमेल बैठ चुका है। यह घराना पिछले दौर में भी चर्चा में रहा था। एक मंत्री जी हैं, जिनका इस नेता पर पूरा भरोसा है। इन नेता जी को ‘कोयला’ व ‘दवा’ दोनों की ही क्वालिटी की गहरी समझ है। कहां तो यह कहावत रही है कि “कोयले की दलाली में काला हाथ।“ एक नई कहावत का ईज़ाद कर देना चाहिए “ऊंचाई पर पहुंचाता है कोयले का मार्ग।“ कोयले के साथ जब ‘दवा’ भी गहरा असर दिखाने लगे तो फिर भला बुलंदियों पर जाने से कौन रोक सकता है।
‘करेंसी’ में कितना वज़न
‘करेंसी’ शब्द अपने आप में वज़नदार तो है ही सुनने में भी कानों को कितना अच्छा लगता है। जब करेंसी ‘वीआईपी’ शब्द के क़रीब हो तो उसका वज़न और भी ज़्यादा बढ़ जाता है। राजधानी रायपुर में राजनीति से गहरा वास्ता रखने वालों का ‘करेंसी’ प्रेम इन दिनों छलछला रहा है। बड़ी से बड़ी डील भला ‘करेंसी’ के बिना कैसे हो सकती है! फिर ‘करेंसी’ किसी गली कूचे में तो नज़र नहीं आती। उसकी ऊंचाई को फैली हुई सड़क के दूसरे छोर पर खड़े होकर खुली आंखों से ही देखा और समझा जा सकता है।
गालियां भी प्रसाद की तरह
इन दिनों रायपुर महापौऱ एजाज़ ढेबर की सक्रियता देखते बन रही है। उन्होंने 3 सप्ताह में 3 बार मेयर इन कौंसिल की बैठक रखवा दी, जो अपने आप में रिकॉर्ड है। बहरहाल मसला स्वच्छता सर्वेक्षण में रायपुर को ऊंचे स्थान पर ले जाने महापौर एजाज़ ढेबर व्दारा दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बैठक बुलाये जाने का है। बैठक में मौजूद निगम के कुछ नेताओं ने जब सफाई व्यवस्था को लेकर नाराज़गी जताना शुरु किया तो निगम अपर कमिश्नर राजेंद्र प्रसाद गुप्ता यह बोलने से नहीं चूके कि “पार्षद ही सफाई का ठेका अपने हाथ में ले लें तो फिर कहां से सफाई नज़र आएगी!” नगर निगम में कभी-कभी ही ऐसा देखने में आता है जब कोई सीधे ज़वाब देने की हिम्मत कर पाता हो। लोग इसी रायपुर नगर निगम में कभी कार्यपालन अभियंता पद पर रहे ओ.पी. तिवारी को याद करते हैं, दबकर काम करना जिनकी फितरत में नहीं था। इसी रायपुर नगर निगम से जुड़ा एक दिलचस्प प्रसंग है। तब महापौर तरूण चटर्जी थे। एक सुबह तरूण दादा कुछ अफ़सरों को लेकर पैदल जयस्तंभ चौक के आसपास भ्रमण कर रहे थे। जयस्तंभ चौक के आसपास की सफाई और सड़कों की हालत देखकर दादा से रहा नहीं गया। उन्होंने साथ चल रहे अफ़सरों को ऐसे ऐसे शब्द कहे जो शायद डिक्शनरी में भी न मिलें। दादा के वहां से रवाना होने के बाद उसी भ्रमण में साथ रहे एक अफ़सर ने दांत निपोरते हुए कहा था कि “हम तो दादा कि गालियों को भी प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।“