‘ए ददा रे’ लेकर आ रहे आनंद दास मानिकपुरी ने कहा- ‘डबरा’ नहीं ‘नदी’ मेरे जीवन का सार…

■ अनिरुद्ध दुबे

मोहित साहू व्दारा निर्मित एवं आनंद दास मानिकपुरी व्दारा निर्देशित हॉरर कॉमेडी छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘ए ददा रे’ 30 अगस्त को सिंगल स्क्रीन एवं मल्टीप्लेक्स में रिलीज़ होने जा रही है। आनंद दास मानिकपुरी ‘ए ददा रे’ के न सिर्फ़ डायरेक्टर हैं बल्कि इसके राइटर होने के साथ मेन हीरो भी हैं। आनंद का हमेशा से एक सूत्र वाक्य रहा है “मुझे डबरा की तरह ठहरा हुआ पानी नहीं बनना, नदी की तरह चलायमान रहना है।“

‘मिसाल न्यूज़’ से बातचीत के दौरान आनंद दास मानिकपुरी ने अपनी फिलॉसफी को थोड़ा और स्पष्ट करते हुए कहा कि “ठहरा हुआ पानी एक समय के बाद दुर्गंध मारने लगता है, जबकि बहती हुई नदी का पानी निर्मल होता है। शायद यही कारण है ‘सरई’ के बाद ‘ए ददा रे’ दूसरी फ़िल्म है जिसे लिखने से लेकर निर्देशित करने और उसमें मुख्य किरदार निभाने यह तीनों ही काम करना मैंने मुनासिब समझा। मुझे लगता है फ़िल्म लिखने वाले के दिमाग में सीन को लेकर अपनी अलग ही कल्पनाएं होती हैं। जब लिखने वाला थोड़े साहस के साथ निर्देशन भी करे तो कहानी के साथ न्याय की पूरी गुंजाइश रहती है। पहली फ़िल्म ‘सरई’ में किसी दूसरे को हीरो का किरदार सौंपना चाह रहा था। किसी से बात भी हुई थी। आख़री में लगा कि नहीं मुख्य किरदार भी मुझे ही निभाना चाहिए। ‘सरई’ को दर्शकों का प्यार मिला तो हौसला बढ़ा। यही कारण है ‘ए ददा रे’ लिखने, निर्देशित करने व मुख्य किरदार निभाने, ये तीन बड़े काम मैं फिर कर गया।“

ऐसा क्या रहा कि आप सिनेमा की तरफ खींचे चले गए, इस सवाल का विस्तार से ज़वाब देते हुए आनंद कहते हैं- “मेरा वास्ता बिलासपुर जिले के रिसदा ग्राम से है। पढ़ाई-लिखाई में बचपन से ही तेज था। स्कूल से लेकर कॉलेज़ तक पूरा ध्यान पढ़ने लिखने में रहा। 10 वीं एवं 12 वीं क्लॉस में मैंने अपनी स्कूल में टॉप किया था। फिर बिलासपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद जॉब भी तूरंत मिल गया। जॉब अच्छा बढ़िया चल रहा था। एक समय के बाद लगने लगा कि मैं 10 से 5 वाली नौकरी के लिए नहीं बना। इससे आगे जाकर बहुत कुछ करना है। जॉब से रिज़ाइन देकर खुद का यू ट्यूब चैनल शुरु किया। लगा कि छत्तीसगढ़ के लोगों का कॉमेडी से गहरा लगाव है। यहां के लोग हर छोटे-बड़े अवसर पर खुशियां तलाशते हैं। यही कारण है कि यू ट्यूब की दुनिया में आने के बाद कॉमेडी को ही अपना माध्यम बनाया। आज यू ट्य़ूब पर चल रहे हमारे ‘द एडीएम शो’ के सब्सक्राइबरों का आंकड़ा लाख में है। ‘एडीएम शो’ की सफलता के बाद लगा कि इससे आगे भी जाकर बहुत कुछ करना है। रुचि के अनुरूप छत्तीसगढ़ी सिनेमा का रास्ता नज़र आया और ‘सरई’ से अलग हटकर नई शुरुआत हो गई।

‘ए ददा रे’ क्या है, पूछने पर आनंद बताते हैं- “बरसों पहले मेरी नानी और पिता ने बताया था कि छत्तीसगढ़ में मटिया और रक्सा जैसी खतरनाक चीजें होती हैं। इसी को हमने ‘ए ददा रे’ का आधार बनाया। अपने काम को हॉरर व कॉमेडी तक ही सीमित नहीं रखा, हमारी फ़िल्म का गीत-संगीत भी लाज़वाब बन पड़ा है। चाँदी के गोला.. समझ नई आये गोरी रे… गीत सोशल मीडिया में पहले से ही छाया हुआ है। बिलासपुर समेत रतनपुर, हरमोड़ी, नेवरा तथा लोरमी के पास झापल की बेहतरीन लोकेशनों में हमने फ़िल्म को शूट किया है।

मोहित साहू जुनूनी व्यक्ति

‘ए ददा रे’ को मोहित साहू ने प्रोड्यूस किया है, उनके साथ कैसी ट्यूनिंग रही, इस सवाल पर आनंद कहते हैं- “मोहित भैया को फ़िल्मो की गहरी समझ है और वे जुनूनी व्यक्ति हैं। सफलता जुनूनी व्यक्ति के कदम चूमती है। उनके एन. माही प्रोडक्शन हाउस से इस समय एक-दो नहीं कई फ़िल्में बन रही हैं। वे हमेशा बड़ी सोच लेकर आगे बढ़ते हैं।“

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