■ अनिरुद्ध दुबे
राजधानी रायपुर में शहीद भगत सिंह चौक से छत्तीसगढ़ क्लब चौक। दोनों चौक के बीच पैदल में फ़ासला महज़ दो मिनट का। यह दो मिनट का रास्ता त्यौहारों का मौसम शुरु होने के बाद से सुर्खियों में है। इसलिए कि इसी दो चौक के बीच मुख्यमंत्री विष्णु देव साय एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सरकारी बंगला है। हरेली के लगते ही भूपेश जी के बंगले में त्यौहार मनने की शुरुआत हो गई। भूपेश जी के जन्म दिन से लेकर हरेली, पोला एवं तीजा चार बड़े आयोजन सरकारी बंगले में हो चुके। भूपेश जी के बंगले के ही सामने मुख्यमंत्री के बंगले की बाउंड्रीवॉल है। इस रास्ते से रोज़ाना सीएम साहब का आना-जाना होता है। हरेली, पोला एवं तीजा तीनों ही त्यौहार सीएम हाउस में पूर्व में जिस तरह मनते रहे थे उसी परंपरागत तरीके से इस बार भी मने। पूर्व सीएम के बंगले को लेकर इन दिनों चर्चाएं होने के पीछे कुछ और भी विशेष कारण हैं। भूपेश जी को जो सरकारी बंगला अभी मिला है वही बंगला 2018 में सत्ता परिवर्तन के बाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को मिला था। जिस विशाल सरकारी बंगले में डॉ. रमन सिंह बतौर मुख्यमंत्री 15 साल रहे वह भला उसी के बाजू किनारे में लगे छोटे से सरकारी बंगले में कैसे रहते! पांच साल… जब तक सरकार नहीं रही डॉ. साहब ने अपना समय वीआईपी रोड के पास स्थित अपने निजी बंगले में गुज़ारा। 2018 में सत्ता परिवर्तन होने पर राजनीतिक चर्चाओं में मशगूल रहने वाले यह कहने से नहीं चूके थे कि तीन बार मुख्यमंत्री रहे डॉक्टर साहब को नीचा दिखाने के लिए उपेक्षित सा वह बंगला जान-बूझकर उनके नाम किया गया था। 2023 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। इस बार भी चर्चाओं में मशगूल रहने वाले लोग त्वरित प्रतिक्रिया देते नज़र आए कि दाऊ जी को नीचा दिखाने वही बंगला उन्हें दिया गया, जो डॉक्टर साहब को दिया गया था। अब मुख्य बिन्दू पर आएं। डॉक्टर साहब तो मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद न कभी इस सरकारी बंगले में दिखे थे और न ही बंगले के रास्ते कभी उनके नाम का पोस्टर या फ्लैक्स लगा दिखा करता था। अब नज़ारा दूसरा है। दाऊ जी सीएम पद से हटने के बाद इस बंगले में शिफ्ट हुए सो हुए, जब भी यहां कोई आयोजन होता है तो सामने वाली सड़क उनकी तस्वीर वाले पोस्टर फ्लैक्स से पट जाती है। यानी सड़क के एक हिस्से में दाऊ जी की तस्वीरें तो दूसरे हिस्से में साय जी की तस्वीरें।
एक और मंत्री तो
बस्तर से ही बनेगा
विधायकों में लता उसेंडी को बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण, श्रीमती गोमती साय को सरगुजा क्षेत्र विकास प्राधिकरण एवं गुरु खुशवंत साहेब को अनुसूचित जाति विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है। प्राधिकरण उपाध्यक्ष बनाए गए ये तीनों ही विधायक मंत्री पद की दौड़ में थे। विष्णु देव साय सरकार में अभी दो मंत्री पद खाली हैं। खाली दोनों मंत्री पदों के लिए अटकलों का दौर चलता ही रहता है। मंत्री पद की दौड़ में रहे तीन लोगों के प्राधिकरण उपाध्यक्ष बन जाने से पूर्वानुमान लगाते रहने वालों या कागज़ों पर गणित बिठाने में सिद्धहस्त लोगों के लिए अच्छा यह हो गया कि इनकी मंत्री पद दौड़ वाली पूर्वानुमान लिस्ट अब शार्ट लिस्ट हो गई है। फिर भी कहने वाले अब भी दावे के साथ यही कह रहे हैं कि लता दीदी उपाध्यक्ष बन गईं तो क्या हुआ बस्तर से ही कोई न कोई एक और मंत्री बनेगा। अभी तो बस्तर से केदार कश्यप मंत्री हैं तो फिर दूसरा मंत्री कौन बनेगा, किरण सिंह देव या फिर कोई और…
चेम्बर का
सरकारी अंदाज़
छत्तीसगढ़ में कल और आज में कांग्रेस के बंद को लेकर जितनी चर्चाएं रहीं उतनी ही चर्चाएं छत्तीसगढ़ चेम्बर ऑफ कामर्स व्दारा बंद को समर्थन नहीं दिये जाने को लेकर रहीं। चेम्बर की दुनिया में कभी लंबा समय गुज़ार चुके कुछ लोगों के बीच आपस में यह बातचीत होती नज़र आई कि शुक्रवार की रात चेम्बर ने बंद को समर्थन नहीं देने को लेकर जो बयान जारी किया उसकी भाषा सरकारी दफ़्तरों में इस्तेमाल होने वाली भाषा की तरह थी। चेम्बर का बयान कुछ यूं था कि “बंद को लेकर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी का 19 सितम्बर का पत्र 20 सितम्बर को दोपहर 12 बजे चेंबर कार्यालय को प्राप्त हुआ। पत्र में बंद को समर्थन देने का आग्रह किया गया है। पत्र पर विचार करने बैठक बुलाई गई। बैठक में निष्कर्ष निकला कि बंद का समर्थन करना केवल कार्यकारिणी का क्षेत्राधिकार है। इतने अल्प समय में प्राप्त सूचना में कार्यकारिणी की बैठक बुलाना संभव नहीं। बिना पूर्व सूचना अथवा व्यापारिक संघों की बैठक लिये बगैर ”छत्तीसगढ़ बंद” का समर्थन करने में चेंबर असमर्थ है।“ चेम्बर में लंबा समय दे चुके लोग आपस में यह भी बतियाते नज़र आए कि हमने तो किसी ज़माने में चार से पांच घंटे के अल्प समय की सूचना पर कितनी ही बार चेम्बर को बंद का समर्थन देते देखा था। वह भी तब, जब डिजीटल साधन से सूचनाएं जारी करने का दौर नहीं था। अब कोई अति आवश्यक मुद्दा हो तो ऑन लाइन मिटिंग करना भी बेहद आसान है। इसलिए कोई यह कहे कि अल्प समय में प्राप्त सूचना के आधार पर बैठक बुलाना संभव नहीं यह समझ से बाहर की चीज है।
रुचिर और फिरकी
रायपुर दक्षिण विधानसभा उप चुनाव के लिए कांग्रेस ने चुनाव संचालन समिति की घोषणा कर दी, जिसके सत्यनारायण शर्मा, रविन्द्र चौबे, धनेन्द्र साहू, मोहन मरकाम, डॉ. शिव कुमार डहरिया, जयसिंह अग्रवाल, रुचिर गर्ग सदस्य बनाए गए हैं। देखें तो ऊपर के इस एक वाक्य में कोई नयापन नहीं, और कोई ख़ास बात भी नहीं। बात ख़ास तो उस समय हो गई जब रुचिर गर्ग ने चुनाव संचालन समिति से खुद को अलग कर लिया। इस बीच रुचिर फ़ेस बुक पर एक पोस्ट डाले कि “सिर्फ़ रायपुर के मित्रों के लिएः फिर कोई फिरकी ले रहा है, माफ करो न भाई!” रुचिर की इस पोस्ट का लोग अपने-अपने ढंग से मतलब निकाल रहे हैं। रुचिर जी की हर तो नहीं लेकिन कुछ पोस्ट ऐसी होती हैं जिन्हें समझने अतिरिक्त दिमाग लगाने की ज़रूरत पड़ जाती है। श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका ‘कादम्बिनी’ में कभी राजेन्द्र अवस्थी संपादक थे। राजेन्द्र अवस्थी ‘कादम्बिनी’ के हर अंक में ‘काल चिंतन’ नाम से कुछ बेहद गहरी बातें टूकड़ों-टूकड़ों में लिखा करते थे। ‘काल चिंतन’ के गहरे मर्म को समझने के लिए अतिरिक्त दिमाग लगाना पड़ता था। क्षेत्र राजनीति का हो तो कई तरह की कहानियां चलती ही हैं। कॉफी हाउस में घंटों बिताने वाले एक कांग्रेसी का कहना था कि “पहली बात तो यह कि चुनाव संचालन समिति में नाम रखने से पहले रुचिर से पूछा नहीं गया। एक नेता जिसके मूंह से हमेशा फूल झरते रहते हैं उसने ऊपर वाले को कुछ इस तरह बात समझाई थी कि जब 2018 में रुचिर कांग्रेस में आए तो उनका नाम रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट के लिए चला था, हालांकि टिकट कन्हैया अग्रवाल को मिली। फिर रायपुर दक्षिण में क्षेत्र में ही रुचिर खेले-कूदे, पले-बढ़े। यदि उनका नाम उप चुनाव संचालन समिति में रखा जाए तो निश्चित रूप से इसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी को मिलेगा। मूंह से फूल बरसाने वाले नेता की बात ने ऊपर वाले के सामने कितना असर डाला यह तो नहीं मालूम लेकिन कुछ तो बात रही होगी, तभी तो उस बात पर इतनी बात हो रही।“
डीजे… हम नहीं सुधरेंगे
नियम कानून को ताक में रखकर कैसे अशांति पैदा की जाती है यह किसी को समझना हो तो रायपुर शहर में आकर समझ ले। समाज सेवियों की तऱफ से पिछले चार-पांच साल से लगातार यह प्रयास होते आ रहा है कि धार्मिक त्यौहारों में डीजे के कानफोड़ू शोर पर रोक लगे। इसी सितंबर महीने की तो बात है डीजे के कानफोड़ू शोर से एक वृद्ध की मौत हो गई और एक युवक ब्रेन हेम्ब्रेज का शिकार होते-होते बचा। कोर्ट की तरफ से आदेश भी हुआ कि डीजे के शोर पर लगाम लगे। लेकिन लोग भला कहां मानने वाले। रायपुर में डीजे के साथ गणेश की विसर्जन झांकी निकालने की जिद्द थी और निकालकर रहे। और तो और डीजे के खिलाफ़ अभियान चला रहे समाज सेवी डॉ. राकेश गुप्ता के साथ धमकी-चमकी करने से भी बाज नहीं आए। गुरुवार को ध्वनि प्रदूषण मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने शासन के महाधिवक्ता से जो कुछ कहा गौर करने लायक है- “समूचे राज्य में कानून व्यवस्था कैसे कायम रहे यह आपको देखना है। प्रदेश का आम आदमी शांति से रहना चाहता है। ऐसी ही स्थिति बनी रही तो क्या वह शांति से रह पाएगा। इतनी तेज आवाज़ में डीजे बजेगा तो छात्र पढ़ाई कैसे करेंगे। डीजे के कारण प्रदेश में लोगों की जान तक दांव पर लग गई है।“