■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ विधानसभा का मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरु होने जा रहा है। इस बार के सत्र में विधानसभा में कुछ तब्दीलियां देखने को मिलेंगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कक्ष पहले की तूलना में बड़ा और आधुनिक साज सज्जा से सुसज्जित नज़र आएगा। उल्लेखनीय है कि मार्च महीने में हुए बजट सत्र से पहले ही विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत एवं नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक के कक्ष को बड़ा आकार देते हुए सजाया संवारा जा चुका था। ऐसे में भला मुख्यमंत्री का कमरा क्यों पीछे रहता, उसकी भी कायापलट की जा रही है। वैसे तो विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत का सपना था कि उनके कार्यकाल में नया रायपुर में नये विधानसभा भवन का ढांचा बनकर खड़ा हो जाए। दो साल तक कोरोना का भारी प्रकोप और प्रदेश सरकार की कमजोर माली हालत, ये दो ऐसे कारण रहे कि नये विधानसभा भवन का काम शुरु भी नहीं हो सका है। आसार तो यही नज़र आ रहे हैं कि दिसंबर 2023 में जो नये विधायक चुनकर आएंगे उन्हें भी पुराने विधानसभा भवन से ही लंबे समय तक नाता बनाए रखना पड़ेगा। नया रायपुर के नये विधानसभा भवन को अभी दिल्ली दूर है। अभी के मानसून सत्र में एक और नई बात होगी। विधानसभा के नये सचिव दिनेश शर्मा पहली बार सदन के भीतर कार्यवाही के संचालन में अहम् भूमिका निभाते नज़र आएंगे। इनसे पहले चंद्रशेखर गंगराड़े जो विधानसभा के प्रमुख सचिव थे वे 31 मार्च को रिटायर हो चुके हैं।
सूर्या की चमक के आगे
दिग्गजों की आंखें चुंधियाई
मीडिया में सूर्यकांत तिवारी की चर्चा जिस चीज के लिए होनी थी उसके लिए उतनी नहीं हुई जितना कि इस बात को लेकर हो रही है कि वह कांग्रेस के दिग्गजों के नज़दीकी हैं या भाजपा के दिग्गजों के! सूर्यकांत तो नज़दीक अजीत जोगी के भी थे। यूं कहें कि अजीत जोगी जब मुख्यमंत्री थे तभी सूर्यकांत का प्रादूर्भाव हुआ था। सूर्यकांत इसलिए भी छोटी-मोटी शख़्सियत नहीं माने जा सकते क्योंकि वे पूर्व वरिष्ठ विधायक एवं छत्तीसगढ़ बीज निगम के अध्यक्ष अग्नि चंद्राकर के दामाद हैं। हाल ही में जब सूर्यकांत तिवारी के ठिकानों पर इंकमटैक्स विभाग के छापे पड़े तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह समेत अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने सवाल उठाए कि इस युवा नेता का आख़िर कांग्रेस के दिग्गजों के साथ क्या रिश्ता है? इसका रोचक जवाब कांग्रेस प्रवक्ता आर.पी. सिंह की तरफ से सामने आया। आरपी ने सूर्यकांत तिवारी के साथ डॉ. रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्रकार, राजेश मूणत एवं केदार कश्यप के साथ वाली अलग-अलग तस्वीरें मीडिया के समक्ष जारी की हैं। साथ ही जितेन्द्र और बिंदिया गोस्वामी जैसे मशहूर कलाकारों पर फ़िल्माए गए फ़िल्म ‘खानदान’ के सुमधुर गीत की लाइनें कोड की हैं- “ये मुलाक़ात एक बहाना है, प्यार का सिलसिला पुराना है।“ ये बात कम लोग जानते हैं कि आरपी के कई बड़े शौक हैं, जिसमें संगीत भी शामिल है। शास्त्रीय संगीत के तालों का भी उन्हें ज्ञान है। अपने अनुभवों के आधार पर आरपी गानों की लाइनों को कोड करते हुए विपक्ष पर वार करने से नहीं चूके। संगीत प्रेमी तो सूर्यकांत तिवारी भी हैं। जोगी जी के शासनकाल में सूर्यकांत जब अपनी छबि को निखारने में लगे हुए थे तो उनके मोबाइल पर कॉल आते ही “इधर चला मैं उधर चला, जाने कहां मैं किधर चला, अरे फिसल गया, ये तूने क्या किया…” गाने की रिंग टोन बज उठती थी। राजनीति जगत से जुड़े कुछ ऐसे लोग जो लगातार उधेड़बुन में लगे रहते हैं उनका दबे स्वरों में कहना है कि सूर्या को लेकर कांग्रेस व भाजपा के बीच तो वाक युद्ध चल रहा है लेकिन जोगी कांग्रेस की तरफ से कहीं कोई आवाज़ सुनाई नहीं आ रही है। हमेशा मुखर रहने वाले अमित जोगी सूर्यकांत मामले में अभी तक तो कुछ बोलते नज़र नहीं आए हैं।
किसी के खाते में वाह
वाह, तो किसी के में…
पिछले महीने 37 आईएएस आईएएस अफ़सरों की तबादला लिस्ट निकली थी। कुछ आईएएस कलेक्टर रहते हुए में अपने क्षेत्र से विदा हुए तो वहां के लोगों ने उनको भावभीनी विदाई दी। इनमें रायपुर कलेक्टर रहे सौरभ कुमार, बस्तर कलेक्टर रहे रजत बंसल, जांजगीर चाम्पा कलेक्टर रहे जितेन्द्र शुक्ला, एवं सरगुजा कलेक्टर रहे संजीव झा जैसे कुछ प्रमुख नाम हैं। वहीं कुछ ऐसे भी कलेक्टर रहे जिनके जाने से वहां के लोगों ने जश्न मनाया। कलेक्टर भीम सिंह को लेकर कुछ ऐसी ही ख़बर समाचार पत्र के माध्यम से सामने आई है। रायगढ़ जिले से भीम सिंह की रवानगी पर वहां के श्रमिकों ने खुशियां जताते हुए मिठाई बांटी। कुछ अपने काम के लिए याद किए जाते हैं तो कुछ अन्य कारणों से। कभी एम.के.राउत रायपुर कलेक्टर हुआ करते थे। बात-बात पर अधिनस्थ कर्मचारियों को डांटना फटकराना उनकी फितरत थी। बताते हैं व्यथित कर्मचारियों की भीड़ एक बार राउत के टेबल के सामने खड़ी हो गई। जब उन्होंने पूछा कि क्या हुआ, तो कर्मचारियों ने कहा कि आप हमको डांटते बहुत हैं। राउत को अहसास हुआ कि अनुशासन बनाए रखने के नाम पर वह कुछ ज़्यादा ही सख़्त हो गए हैं। कर्मचारियों की उस मुलाक़ात के बाद से राउत का अपने अधिनस्थ लोगों के प्रति व्यवहार मित्रवत् हो गया था। वहीं कर्मचारियों के मन में भी राउत के प्रति गहरा सम्मान भाव पैदा हो गया था।
दंतेवाड़ा में फिर ब्रेक, अब
कि बार नाबालिग फ़रार
बस्तर के दंतेवाड़ा में बाल संप्रेक्षण गृह ब्रेक की घटना हो गई। वहां देर रात चौकीदार की बेदम पिटाई कर 9 किशोर भाग निकले। बताया जाता है कि अलग-अलग अपराधों में पकड़े गए 19 नाबालिग बाल संप्रेक्षण गृह में लाकर रखे गए थे, जिनमें से 9 भाग निकले। सोचने की बात यह है कि यह ब्रेक वाला मामला दंतेवाड़ा में ही क्यों होता है? 16 दिसंबर 2007 की शाम दंतेवाड़ा जेल ब्रेक की घटना हुई थी। वहां से 299 कैदी फ़रार हो गए थे। ख़बर यही सामने आई थी कि फ़रार होने वालों में 110 नक्सली थे। उस जेल ब्रेक का मास्टर माइंड नक्सली नेता सूजीत मंडावी को माना गया था। यह घटना उस समय हुई थी जब कैदियों को खाना परोसा जा रहा था।
छत्तीसगढ़ी सिनेमा वालों
के दर्द को समझे मयंक
छत्तीसगढ़ी सिनेमा के साथ मानो हमेशा से सौतेला व्यवहार होते आया है। 2001 से 2003 तक प्रदेश में जो अजीत जोगी की सरकार रही थी वह छत्तीसगढ़ी सिनेमा के प्रति उदार थी। 2003 के बाद 15 साल तक जो सरकार रही उसका छत्तीसगढ़ी सिनेमा के प्रति वैसा ही रूख़ रहा जैसे किसी बाप का नापसंद औलाद के प्रति रहता है। 2018 में जो नई सरकार आई उसने छत्तीसगढ़ी सिनेमा को लेकर कुछ बेहतर सोचना शुरु किया। बीच-बीच में कुछ ऐसा घटित हो जाता है जिससे छत्तीसगढ़ी सिनेमा से तन मन धन से जुड़े लोगों की भावनाएं आहत हो जाती हैं। इन दिनों सिनेमाघरों में छत्तीसगढ़ी फ़िल्म चल रही है ‘लव लेटर।‘ इसके गाने काफ़ी अच्छे बन पड़े हैं। कलाकारों का अभिनय भी सधा हुआ है। रात में पोस्टर चिपकाने का काम करने वाले नासमझ बच्चों ने राजधानी रायपुर के कुछ ऐसे स्थानों पर ‘लव लेटर’ का पोस्टर चिपका दिया जहां नहीं चिपकाया जाना था। बस फिर क्या था, नगर निगम ने ‘लव लेटर’ फ़िल्म बनाने वालों को 25 हजार जुर्माने का नोटिस थमा दिया। बताते हैं इसके पहले एक और छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘बेनाम बादशाह’ के इसी तरह पोस्टर चिपकाए जाने पर बड़े जुर्माने की नोटिस भेज दी गई थी। बहरहाल छत्तीसगढ़ प्रोड्यूसर डायरेक्टर एसोसियेशन का प्रतिनिधि मंडल निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी से मिला। फ़िल्म बनाने वालों ने निगम कमिश्नर को बताया कि कैसे वे खून पसीना बहाकर छत्तीसगढ़ी में फ़िल्म बनाते हैं और क्षेत्रिय भाषा में फ़िल्म बनाना कितना बड़ा जोखिम भरा काम होता है। निगम कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी ने न सिर्फ़ उनके दुख दर्द को समझा अपितु 25 हजार का जुर्माना भी माफ़ कर दिया। निगम कमिश्नर ने फ़िल्म वालों से कहा कि कुछ स्थान निर्धारित कर दिए जाएंगे, वहीं पर पोस्टर लगाएं उससे बाहर नहीं। निगम कमिश्नर के इस फौरी निर्णय और उनकी उदारता से फ़िल्म वाले प्रसन्नचित्त होकर नगर निगम से लौटे। फाइलों एवं ज़्यादा लिखा पढ़ी में कम दिमाग खपाते हुए फौरन निर्णय लेने की चतुर्वेदी की जो कार्यशैली है उससे कहीं न कहीं निगम के पार्षदगण भी प्रभावित हैं। पार्षदों का मानना है कि निगम फौरन निर्णय के आधार पर चलता है ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’ वाले अंदाज़ में नहीं।
जगह 1, नगीने 3
राजनीतिक चर्चाओं में दिन रात खोए रहने वाले कुछ लोग इन दिनों मजाकिया अंदाज़ में कहते नज़र आ रहे हैं कि कांग्रेस के तीन नगीने जो इन दिनों सुर्खियों में हैं वो एक ही जगह से निकलकर आए हैं। नगीने हैं सूर्यकांत तिवारी, अमरजीत चावला एवं चंद्रशेखर शुक्ला। जगह है महासमुन्द।