● कारवां (26 नवम्बर 2023)- वादे और भी तो हो सकते थे…

■ अनिरुद्ध दुबे

इस बार के विधानसभा चुनाव में किसान एवं महिलाओं से जुड़ा मुद्दा छाया रहा। कांग्रेस व भाजपा दोनों ने धान के समर्थन मूल्य पर ख़रीदी को लेकर किसानों से बड़े वादे किए। कांग्रेस की ओर से इस बार भी किसानों की कर्ज़ माफ़ी का वादा हुआ। भाजपा ने विवाहित महिलाओं को हर वर्ष 12 हज़ार रुपये देने का वादा किया और जगह-जगह इसके लिए फार्म भरवाए गए। वहीं कांग्रेस तीन कदम और आगे बढ़ाते हुए महिलाओं के खाते में 15 हज़ार डालने का वादा कर गई। बेहद कम कीमत में गैस सिलेंडर देने का भी वादा हुआ। इन वादों को पूरा करने की स्थिति में प्रदेश के खज़ाने पर कितना आर्थिक भार पड़ेगा इस पर कितने ही लोग गंभीरता से चिंतन मनन करते दिख रहे हैं। ऐसे कई जागरूक लोग हैं जो अन्नदाता किसान एवं नारी शक्ति से किए गए वादों का सम्मान करने के साथ यह सवाल करते दिख रहे हैं कि क्या चुनावी घोषणाएं करते समय और दूसरे बिन्दुओं पर विचार करने की ज़रूरत नहीं थी? इन जागरूक लोगों का कहना है कि बिलासपुर एवं सरगुजा संभाग में ऐसे कई इलाके हैं जहां बरसों से हाथियों का खौफ़ है। जंगली हाथियों से जन व धन दोनों की हानि होती रही है। हाथियों की ओर से होने वाली तबाही को रोकने के लिए पूर्ववर्ती भाजपा की सरकार में जिस तरह बढ़-चढ़कर दावे होते रहे थे, वैसे ही दावे कांग्रेस के शासनकाल में भी होते रहे। हाथियों के आतंक का असर इस विधानसभा चुनाव तक में देखने को मिला। रामपुर एवं पाली तानाखार विधानसभा क्षेत्र के ऐसे कई इलाके रहे जहां हाथियों के भय से शाम होते तक चुनाव प्रचार थम जाता था। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पांच विधानसभा चुनाव हो गए लेकिन हाथियों के आतंक से मुक्ति दिलाने की दिशा में क्या कोई पहल होगी, इसका वादा कभी भी किसी बड़ी राजनीतिक पार्टी की ओर से नहीं हुआ। छत्तीसगढ़ में विधानसभा सीटें भले ही पड़ोसी राज्यों ओडिशा एवं तेलंगाना की तुलना में कम हैं लेकिन यहां का क्षेत्रफल बड़ा है। छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट बिलासपुर में है। बस्तर से बिलासपुर सीधे रेल मार्ग नहीं है। बस्तर में आने वाले 12 विधानसभा क्षेत्रों की बिलासपुर से दूरी काफ़ी ज़्यादा है। चुनाव के समय किसी भी राजनीतिक पार्टी की ओर से यह वादा होते नहीं दिखाई पड़ता कि बस्तर में हाईकोर्ट की खंडपीठ की स्थापना के लिए ठोंस कदम उठाए जाएंगे। ऐसी और भी ज़रूरतें हैं जो सीधे आम जनता से जुड़ी हुई हैं। काश उन पर भी चुनावी घोषणा पत्र तैयार करते समय विचार हो पाता।

इसलिए भाजपा ज़ल्दबाजी

में कार्यवाही के पक्ष में नहीं

विधानसभा चुनाव में खुलाघात करने वाले कांग्रेसियों पर प्रदेश संगठन धड़ाधड़ निलंबन या निष्कासन की कार्यवाही कर रहा है। अब तक कांग्रेस में 30 ऐसे जाने-पहचाने चेहरे हैं जिनके ख़िलाफ़ कार्यवाही हो चुकी। वहीं भाजपा की बात करें तो सुनने में यही आ रहा है कि भितरघात या खुलाघात करने वालों के ख़िलाफ़ अभी रिपोर्ट तैयार हो रही है। जो भी दोषी पाए जाएंगे उनके ख़िलाफ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण साव सख़्त कदम उठाएंगे। माना जा रहा है कि भाजपा की ओर से हर कदम काफ़ी सोच समझकर उठाए जाने के पीछे बड़ा कारण है। 2018 के चुनाव में पार्टी को जो भयंकर हार का सामना करना पड़ा था उसके बाद वह 2022 में जाकर संभलना शुरु हो पाई थी। यानी पार्टी में 3 साल तक मायूसी का आलम था। दिल्ली में बैठकर सत्ता का सूत्र थामे कई बड़े नेताओं का जब छत्तीसगढ़ ताबड़तोड़ दौरा हुआ तब कहीं जाकर चुनाव के इस समय में भाजपा की सेहत काफ़ी हद तक सुधर पाई। चुनाव के समय जिन लोगों के ख़िलाफ़ शिकायतें मिली भी हैं तो भाजपा प्रदेश संगठन काफ़ी सोच विचार करने के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाह रहा है। लोकसभा चुनाव को छह महीने भी नहीं बचे हैं, इसलिए पार्टी आनन-फानन में किसी के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने के पक्ष में नहीं हैं। यह भी हो सकता है कि चुनाव के समय यदि कुछ जाने-पहचाने भाजपाइयों ने छोटी-मोटी चूक कर भी दी हो तो उसे नज़रअंदाज़ कर दिया जाए।

दो और दो पांच

विधानसभा चुनाव में दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों की तरफ से चुनावी मैदान में उतरे दो-दो प्रत्याशी ऐसे हैं जिनकी चर्चा मज़े लेकर की जाती रही है। उन चार में से तीन पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। माना तो यह भी जा रहा है कि ये चारों ही प्रत्याशी जीत रहे हैं। मज़ेदार बात यह है कि चारों के ही नामों को लेकर उनकी-उनकी पार्टी के कई बड़े-छोटे नेताओं के मन में भीतर ही भीतर भारी असंतोष रहा है। चार में से दो अपनी आक्रामक शैली के कारण जाने जाते हैं। तीसरा बेहद वाचाल एवं चतुर सुजान है। चौथे का लंबा कद और मासूम चेहरा घायल कर देता है।

महादेव एप्प पर बॉलीवुड

तो क्या छॉलीवुड

में भी बन सकती है फ़िल्म

विधानसभा चुनाव के नतीजे अभी आने बाक़ी हैं। शादी हो या शोक कार्यक्रम, बर्थ डे हो या किटी पार्टी, सर्वत्र यही चर्चा है कि कौन जीत रहा है या किसकी पार्टी की सरकार बन रही है। ऐसे में छत्तीसगढ़ी सिनेमा जगत भी भला चुनावी चर्चा से कैसे अछूता रहे। हाल ही में एक छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘जवानी जिंदाबाद’ का मुहुरत हुआ। कार्यक्रम में एक वरिष्ठ फ़िल्म निर्माता एवं निर्देशक जिनकी राजनीति में भी गहरी रुचि है बतौर अतिथि मौजूद थे। वे आपस में किसी से चर्चा करते नज़र आए कि “भाजपा हो या कांग्रेस, महादेव एप्प को लेकर दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। आलम यह है कि पकड़े गए आरोपी ड्रायव्हर का गिरफ्तारी के समय जो बयान सामने आया था वह बाद में बदलकर कुछ और हो गया। सच्चाई क्या है यह तो आकाश में विद्यमान महादेव ही जान सकते हैं। महादेव एप्प को लेकर इतनी कहानियां सामने आ चुकी हैं कि बॉलीवुड तो क्या हम छॉलीवुड वाले भी इस पर फ़िल्म बना सकते हैं। फिर भाजपा सांसद रवि किशन पिछले दिनों जब चुनाव प्रचार करने छत्तीसगढ़ आए थे तो मीडिया के सामने कहे थे कि छत्तीसगढ़ में हुए घोटालों की कहानियां बॉलीवुड के लोगों तक ने सुन रखी हैं। हमें अब लंबे समय तक कहानियों की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। छत्तीसगढ़ में हुए घपलों-घोटालों की ढेरों कहानियां हमारे पास पहुँच गई हैं।“ छॉलीवुड के निर्माता-निर्देशक ने आगे कहा कि “बॉलीवुड वाले तो यहां की कहानियां केवल सुनते भर रहे हैं। यहां तो हमें सब कुछ होते नज़र आ रहा है।“

पांच महापौर हुए, कई

अफ़सर आकर गए…

खूंख़ार कुत्ते जस के तस

पिछले दिनों राजधानी रायपुर के एक कॉलोनी एरिया में एक मासूम बच्ची को आवारा कुत्तों ने नोंच डाला। वो तो आसपास लोग मौजूद थे इसलिए जान बच गई। बच्ची के शरीर पर 17 गहरे ज़ख्म हैं। वहीं शुक्रवार को रायपुर मेडिकल कॉलेज के पैथालॉजी विभागाध्यक्ष तथा एंकरिंग में अपनी अलग पहचान रखने वाले डॉ. अरविंद नेरल को तीन-चाऱ कुत्तों ने घेरकर काट खाया। कुछ साल पहले पंडरी के सिटी सेंटर मॉल के पास रह रहे एक मजदूर परिवार की मासूम बच्ची की तो आवारा कुत्तों ने जान ही ले ली थी। आवारा कुत्तों के काट खाने की छोटी-मोटी घटनाएं आए दिन पढ़ी या सुनी जा सकती हैं। 2003 में जब रायपुर नगर निगम के महापौर तरुण चटर्जी थे तब पहली बार मेयर इन कौंसिल की बैठक में आवारा कुत्तों की नसबंदी का प्रस्ताव पास हुआ था। ताकि शहर में आवारा कुत्तों की बेतहाशा बढ़ रही संख्या को रोका जा सके। तब से अब तक रायपुर नगर निगम में पांच बड़े नेता महापौर की ज़िम्मेदारी संभाल चुके हैं और दर्जन भर से अधिक आईएएस अफ़सर निगम कमिश्नर पद की शोभा बढ़ाकर जा चुके हैं, लेकिन समस्या आज भी जस की तस है। बीच-बीच में निगम की ओर से ही सूचना जारी की जाती रही है कि इतनी-उतनी संख्या में आवारा कुत्तों की नसबंदी की गई। लेकिन कुत्तों की संख्या कभी कम होती नहीं दिखी। वैसे तो रायपुर नगर निगम व्दारा शहर के आख़री कोने सोनडोंगरी में आवारा कुत्तों के लिए शेल्टर होम बनाया जा रहा है। जानकारी यही सामने आ रही है कि वहां पर 500 कुत्तों को पकड़कर रखा जा सकेगा। देखा जाए तो 500 की संख्या मायने नहीं रखती। अनुमान यही है कि रायपुर नगर सीमा क्षेत्र में इस समय 10 हज़ार से ज़्यादा आवारा कुत्ते हैं। ऐसे में 500 की संख्या वाले शेल्टर होम से शहर का कितना भला हो पाएगा यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा।

कब्ज़े वाली जगह

का विज्ञापन

रायपुर विकास प्रधिकरण (आरडीए) समय-समय पर मकान, दुकान व प्लाट बेचने विज्ञापन निकालते रहता है। कहीं-कहीं पर आरडीए व्दारा लाई गई योजनाओं का अच्छा रिज़ल्ट आया तो कुछ मामलों में फेल रहा। हाल ही में आरडीए ने मकान, दुकान व प्लाट बेचने का जो विज्ञापन निकाला उसके किसी हिस्से में देखने में आया कि “रायपुर शहर के पॉश इलाके में 400 वर्ग फुट का एक छोटा सा प्लाट 2 हज़ार 138 रुपये प्रति वर्ग फुट पर उपलब्ध है।“ 8 लाख 55 हज़ार रुपये का ये सौदा बुरा भी नहीं है। खरीदने में दिलचस्पी रखने वाले कुछ लोग जब आरडीए दफ़्तर पहुंचे तो वहां एक अलग ही कहानी सुनने को मिली। उन्हें बताया गया कि इसे छोड़कर किसी और के बारे में पूछ लें। जब यह सवाल हुआ कि इसके बारे में क्यों नहीं, तो बताया गया कि इस प्लाट पर पहले से ही कब्ज़ा है। यानी कब्ज़े वाली जगह ख़रीदना है तो ख़रीद लो, ख़ाली कराने की ज़िम्मेदारी आपकी ही होगी।

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