■ अनिरुद्ध दुबे
छत्तीसगढ़ के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल के बेटे प्रदीप शुक्ल ने चौंका देने वाली बात सामने लाई है। प्रदीप शुक्ल ने बताया कि “2006 में पिता राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल अपोलो अस्पताल बिलासपुर में भर्ती थे। जहां कथित फर्जी डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य यादव ने मेरे पिता की हार्ट सर्जरी की थी। इसके बाद पिता 18 दिन तक वेंटिलेटर पर रहे फिर उनकी सांसें उखड़ गईं।“ इस फर्ज़ी डॉक्टर का भंडाफोड़ पिछले दिनों मध्यप्रदेश के दमोह में हुआ और दिल को झकझोर देने वाली बहुत सी जानकारियां सामने आईं हैं। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल छत्तीसगढ़ विधानसभा के पहले अध्यक्ष थे। उनके संसदीय ज्ञान की मिसाल हमेशा से राजनीतिक जगत में दी जाती रही है। भाषा पर उनकी ज़बर्दस्त पकड़ थी और उनके व्दारा संसदीय प्रक्रिया पर लिखी गई पुस्तक ‘प्रश्नकाल से शून्यकाल तक’ नये विधायकों का ज्ञानावर्धन करती है। डॉ. शुक्ल के हार्ट की ग़लत सर्जरी होने की चर्चा जैसा कि इन दिनों है, ऐसी ही कुछ मिलती-जुलती चर्चा कभी अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में हुई थी। महंत लक्ष्मीनारायण दास बड़ा नाम हुआ करते थे। उन्होंने कभी मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद का दायित्व संभाला था। वे विधायक भी रहे थे और राजधानी रायपुर के प्राचीन जैतूसाव मठ के महंत थे। काफ़ी उम्र हो जाने के कारण महंत जी की सेहत काफ़ी बिगड़ गई थी। उन्हें डी.के. अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डी.के. अस्पताल में इस हद तक लापरवाही हुई थी कि फंगस लगी ग्लूकोज़ की बॉटल महंत जी पर चढ़ा दी गई थी। वह प्रिंट मीडिया का ज़माना था। किसी पत्रकार को इसकी भनक लग गई। फफूंद लगी बॉटल वाली वह तस्वीर समाचार के साथ अख़बार में लग गई। उस ख़बर ने शासन एवं प्रशासन दोनों को हिलाकर रख दिया था।
एक के साथ डॉक्टर साहब
तो दूसरी तरफ अदृश्य शक्ति
छत्तीसगढ़ सरकार में दो मंत्री का पद खाली है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय चाहें तो तीन मंत्री भी बना सकते हैं। सवाल वही पुराना है कौन होंगे नये मंत्री? पहेली क्लास की बाल भारती में एक पाठ हुआ करता था “अमर घर चल…” ये लाइन इन दिनों कितने ही लोग दोहराते नज़र आ रहे हैं। एक तेज तर्रार विधायक ऐसे हैं जिनके लिए डॉक्टर साहब ने पूरी ताकत लगा दी है। एक और विधायक हैं जिनका पड़ला कभी कम नहीं आंका जाता रहा है। पहली बार जब मंत्री मंडल का गठन हुआ था तब वे दौड़ में तो थे ही अब भी दौड़ में हैं। उनके पीछे अदृश्य शक्ति का हाथ जो है। कोई अदृश्य ताकत ओड़िशा में समुद्र तट के आसपास है तो कोई शक्ति दिल्ली में विद्यमान है। दोनों तरफ की अदृश्य शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त वाले इन नेता जी को अपने और अच्छे दिनों का इंतज़ार है। यह तो आने वाला समय बताएगा कि डॉक्टर साहब की चली या अदृश्य शक्ति की!
कभी मुखिया और राज्यपाल
में ख़ूब निभी थी…
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा है कि “राज्यपालों को सीमा में रहकर काम करना चाहिए। उनके पास कोई वीटो पॉवर नहीं है।“ तमिलनाडु के मामले में यह फैसला आया है। इस समय न सिर्फ़ तमिलनाडु बल्कि तेलंगाना, पंजाब एवं पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं जहां की सरकारों एवं राज भवनों के बीच ज़बर्दस्त खींचतान मची हुई है। खींचतान तो 2023 में छत्तीसगढ़ में भी मची हुई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा था कि “लगता है राज भवन एकात्म परिसर से संचालित होता है।“ छत्तीसगढ़ में सरकार और राज भवन के बीच खींचतान तथा मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच ज़बरदस्त दोस्ताना संबंध दोनों तरह के उदाहरण देखने को मिले हैं। बात कर लें दोस्ताना संबंधों की। किस्सा अजीत जोगी के शासनकाल का है। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन होने के साथ अजीत जोगी पहले मुख्यमंत्री बने थे और दिनेश नंदन सहाय पहले राज्यपाल। उस समय केन्द्र में अटल जी की सरकार यानी भाजपा गठबंधन वाली सरकार थी और छत्तीसगढ़ में भाजपा विपक्ष में थी। अजीत जोगी और दिनेश नंदन सहाय विभिन्न कार्यक्रमों में मंच पर एक साथ नज़र आने लगे थे। कितने ही भाजपाइयों के मन में यह बात घर करते जा रही थी कि जोगी व्दारा उठाए जाने वाले हर कदम को अप्रत्यक्ष रूप से राज भवन का समर्थन मिल रहा है। माना यही जाता है कि छत्तीसगढ़ के दिग्गज भाजपाइयों को दिल्ली जाकर बात रखनी पड़ी कि जोगी और राज भवन के बीच ख़ूब दोस्ती निभ रही है। कौन सी बात ने कहां कैसा असर डाला होगा यह तो नहीं मालूम, जोगी के ही मुख्यमंत्री रहते हुए में सहाय की छत्तीसगढ़ से रवानगी हो चुकी थी और कभी सेना में रहे के.एम. सेठ छत्तीसगढ़ के दूसरे राज्यपाल बनाए गए थे।
आरडीए का मकड़जाल
और नंदे साहू
निगम-मंडलों की पहली बड़ी लिस्ट सामने आ चुकी। अप्रैल के बाद नियुक्तियों का दौर फिऱ शुरु होने की संभावना है। पिछली बार हमने अपने इसी ‘कारवां’ कॉलम में कुछ बड़े नेता एवं उनके कद के हिसाब से उन्हें मिले कमतर निगम-मंडल की चर्चा की थी। एक और ज़गह और वहां के पद को लेकर चर्चा का दौर जारी है। मसला रायपुर विकास प्राधिकरण यानी आरडीए का है, जिसके अध्यक्ष पद का दायित्व पूर्व विधायक नंद कुमार साहू को सौंपा गया है। नंद कुमार साहू के आचरण एवं व्यवहार को लेकर उनकी पार्टी के लोगों में कहीं से कोई शिकायत नहीं है। लोगों का बस यही मानना है कि ओबीसी वर्ग के इस सरल एवं सहज नेता को आरडीए अध्यक्ष जैसी कुर्सी पर बिठा दिया गया, जहां टेबल पर समस्याएं ही समस्याएं बिखरी नज़र आती हैं। ‘कमल विहार’ आरडीए की ऐसी आवासीय योजना है, जिसके साथ न जाने कितने ही विवाद जोंक की तरह चिपके हुए हैं। ये वही ‘कमल विहार’ है जिसके बारे में पूर्ववर्ती सरकार के आवास एवं पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अक़बर ने कहा था कि यह “कर्ज़ में डूबो देने वाली योजना है।“ पूर्ववर्ती सरकार में ही आरडीए अध्यक्ष रहे सुभाष धुप्पड़ का ज़्यादातर समय आरडीए को कर्ज़ से उबारने में बीता। ठीक है कि धुप्पड़ आरडीए को काफ़ी हद तक आर्थिक संकट से छुटकारा दिला कर गए, लेकिन ‘कमल विहार’ की समस्याओं से जुड़ी कहानियां अंतहीन हैं। किसी समय इसी आरडीए को योजनाओं का जाल बिछा देने के कारण काफ़ी लोकप्रियता मिली थी। समस्याओं के मकड़जाल में फंसे आरडीए के अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद क्या नंदे साहू नई योजनाओं पर काम शुरु कर पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है!
जन नेता नहीं, प्लग नेता
ज़िन्दगी का बड़ा हिस्सा कांग्रेस में दे चुके एक नेता से किसी मीडिया पर्सन ने सवाल किया कि छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए आप यहां के बड़े नेताओं का आकलन किस तरह करते हैं? उन नेताजी का सधा हुआ ज़वाब था- “पहले छत्तीसगढ़ में जन नेता देखने को मिला करते थे, अब प्लग नेता देखने को मिलते हैं। प्लग हटा नहीं कि बत्ती गुल।“