● कारवां (27 नवंबर 2022)- ओम माथुर के वो बोल

■ अनिरुद्ध दुबे

ठीक भानुप्रतापपुर उप चुनाव से पहले भाजपा के नये प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने छत्तीसगढ़ का अपना पहला दो दिवसीय दौरा किया। मीडिया से जुड़े लोगों का मानना है कि कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में ओम माथुर की पहली प्रेस कांफ्रेंस यादगार रही। बिना लागलपेट के अपनी बात कह देने वाले इस तरह के नेता कम ही देखने में हैं। जाते-जाते ओम माथुर कह गए कि “छत्तीसगढ़ का 2023 का विधानसभा चुनाव हमारे लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है।“ वो कैसे, पूछने पर वे यही कहते नज़र आए कि “जब मैं उत्तरप्रदेश का प्रभारी था तब वहां भाजपा के पास 47 विधानसभा सीटें ही थीं। आख़िर बाद में आंकड़ा ढाई सौ के उस पार गया और वहां भाजपा की सरकार बनी।“ कितने ही लोग यह समझने की कोशिश में लगे हुए हैं कि छत्तीसगढ़ जहां वर्तमान में भाजपा के 14 ही विधायक हैं ऐसे में ओम माथुर इतनी आसानी से बड़े बोल कैसे बोल गए कि कोई बड़ी चुनौती नहीं! अभी जो परिदृश्य सामने है उससे तो यही लगता है कि सरकार बनने के बाद कांग्रेस यहां अपना किला काफ़ी मजबूत कर चुकी है। मजबूत किले में सेंधमारी आसान नहीं होती।

चुनावी रणनीति का मुख्य

केन्द्र ठाकरे परिसर

रहेगा या एकात्म…

वैसे तो विधानसभा चुनाव को अभी साल भर का समय बचा है लेकिन राजनीति के गलियारे में प्रश्न यही उभरा हुआ है कि ‘मिशन 2023’ के लिए भाजपा की रणनीति का मुख्य केन्द्र कुशाभाऊ ठाकरे परिसर रहेगा या एकात्म परिसर? कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में वास्तु दोष है इस भाव से भाजपा के अधिकांश नेता मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। विशाल कुशाभाऊ ठाकरे परिसर का जब नक्शा बना था उसमें यही दर्शाया गया था कि मुख्य प्रवेश व्दार धमतरी रोड की तरफ होगा। निर्माण कार्य पूरा हुआ तो मुख्य प्रवेश व्दार धमतरी रोड की ही तरफ था। फिर कुछ ऐसा हुआ कि वास्तु के कुछ जानकार कहने लगे धमतरी तरफ का व्दार दक्षिण व्दार है। इसे खुला रखना ठीक नहीं। कुछ लोगों ने इसे यम व्दार कहा। यह बात भाजपा के बड़े कर्ता-धर्ताओं के मन में ऐसी बैठी कि उन्होंने तय कर दिया कि कुशाभाउ ठाकरे परिसर में प्रवेश साइड में बने व्दार से होगा। जिस तरह 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा छत्तीसगढ़ में 90 में से 15 सीटों में सिमटकर रह गई उसे ध्यान में रखते हुए पार्टी के अधिकांश लोगों का यही मत है कि ‘मिशन 2023’ की रणनीति एकात्म परिसर में ही बनना चाहिए। बाक़ी बाहर से आने-वाले दिग्गजों के आराम करने एवं पार्टी के लोगों से मेल मुलाक़ात के लिए कुशाभाऊ ठाकरे परिसर ठीक है।

गांवों के कलेक्टर हटे

जमीनों के फर्जीवाड़े से नाराज़ हो रायपुर कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भुरे ने 64 पटवारियों का तबादला कर दिया। रायपुर ऐसा कमाल का शहर है कि यहां निजी जमीन पर गॉर्डन बना दिया जाता है। नगर निगम ने 90 लाख खर्च करके बजाज कॉलोनी (राजेन्द्र नगर) के अम्बेडकर गॉर्डन का सौंदर्यीकरण कर दिया। गॉर्डन में किसी ने यह कहते हुए दीवाल खड़ी कर दी कि “यह ज़मीन मेरी है। कोई चाहे तो इस ज़मीन के कागज़ात मेरे पास आकर देख ले।“ बहरहाल बात ज़मीनों के फर्जीवाड़े की हो रही थी। लोग सरकारी ज़मीन को घेर लेते हैं और बड़ी दमदारी से न सिर्फ़ उस पर अपना नाम चढ़वा लेते हैं अपितु निर्माण भी करवा लेते हैं। फ़िल्म ‘रॉकी’ के गाने “आ देखें ज़रा, किसमें कितना है दम…” वाले अंदाज़ में। चलो रायपुर कलेक्टर ने सुध तो ली और बड़ी संख्या में पटवारियों को इधर से उधर किया। छत्तीसगढ़ में गांव के लोगों के मुख से अक्सर यह सुनने मिल जाता है कि पटवारी गांव का कलेक्टर होता है। पहले जो लोग ख़ूब पढ़ लिख लेते थे उनमें पटवारी बनने को लेकर कोई क्रेज नहीं रहता था। अब स्थिति उलट है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई किये लोग तक अब पटवारी बनने संभावनाएं तलाशने लगे हैं। न सिर्फ युवक बल्कि युवतियों में भी पटवारी पद को लेकर क्रेज नज़र आने लगा है। धारणा यही रही है कि पटवारी पद से तरक्की की राह आसान होती है। सफलता ख़ुद दरवाज़े पर आकर दस्तक देती है।

देर लगी पर ठेकेदार का

नाम सामने तो आया

राजधानी रायपुर में तेलीबांधा चौक से लेकर वीआईपी रोड तिराहा के बीच बने डिवाइडर का बिना टेंडर सौंदर्यीकरण का मामला पखवाड़े भर पहले जो गरमाना शुरु हुआ तो ठंडा होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कई दिनों तक तो यही यक्ष प्रश्न बने रहा कि बिना टेंडर फाइनल हुए दो करोड़ के इस काम को शुरु कर देने वाला ठेकेदार कौन है? इसका ज़वाब न तो कांग्रेस की तरफ से मिल पा रहा था और न ही भाजपा की तरफ से। हाल ही में भाजपा पार्षद दल इस मामले शिकायत करने जब ईओडब्लू के पास रवाना हो रहा था तब वरिष्ठ भाजपा पार्षद सूर्यकांत राठौर ने हौसला दिखाते हुए मीडिया के सामने उस ठेकेदार के नाम का खुलासा कर ही दिया। बताते हैं उस ठेकेदार का स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट से भी ‘गहरा रिश्ता’ रहा है। व्हाइट हाउस यानी नगर निगम दफ़्तर के आसपास टाइम पास करते रहने वाले लोग यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आख़िर ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है…’

वीआईपी बिल्डर का

वेब सीरीज क्रेज

काफ़ी शोर शराबे के साथ एक वेब सीरीज की शूटिंग इन दिनों रायपुर शहर एवं उसके आसपास हो रही है। बॉलीवुड की एक जानी-पहचानी एक्ट्रेस इस वेब सीरीज़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। चर्चा यही है कि इस वेब सीरीज के निर्माण के पीछे रियल स्टेट से जुड़े रायपुर के एक ऐसे क़ारोबारी का बड़ा हाथ है जिसे वीआईपी शब्द से गहरा प्रेम है। वेब सीरीज में ये एक बड़ा किरदार भी निभा रहे हैं। इन्हें अभिनय का शौक बचपन से ही रहा है। अभिनय का शौक पूरा करने इन्होंने कई साल पहले मुम्बई जाकर बड़ी रकम लगाते हुए एक फ़िल्म बनाई थी और लीड रोल भी किया था। फ़िल्म बन तो गई लेकिन प्रदर्शित नहीं हो पाई। बताते हैं वह फ़िल्म बरसों से डिब्बे में बंद पड़ी है।

राम रसायन में

घुले पत्रकार

छत्तीसगढ़ के मीडिया जगत में संदीप अखिल जाना-पहचाना नाम हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया से हैं। शिष्ट हैं। अनावश्यक चर्चाओं से दूर रहने वाले। हाल ही में उनका एक नया स्वरुप सामने आया। मुंगेली में विशाल जन समूह के बीच उन्होंने राम कथा कही। पत्रकारिता जगत से जुड़े बहुत से लोग जानने-समझने में लगे हुए हैं कि कहीं संदीप पत्रकारिता की दुनिया से दूर होकर पूरी तरह राम रसायन में रमने तो नहीं जा रहे! ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में मीडिया से जुड़े रहते हुए में प्रवचन की दिशा में आगे बढ़ने वाले संदीप पहले हैं। धर्म एवं अध्यात्म के क्षेत्र में देश-विदेश में अलग पहचान रखने वाले पंडित विजयशंकर मेहता कभी रायपुर के एक प्रतिष्ठित अख़बार में संपादक थे। रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर मिश्रा बरसों से धर्म-कर्म में रचे बसे हुए हैं और उनके व्दारा किसी दूर गांव में मंदिर निर्माण कराए जाने की चर्चा है। प्रदेश के सम्मानित पत्रकार सनत चतुर्वेदी ने भी मानो पत्रकारिता के क्षेत्र से रिटायरमेंट ले लिया है। इन दिनों वे धर्म और अध्यात्म से जुड़ी पुस्तकों का ख़ूब अध्ययन कर रहे हैं। भागवताचार्य पं. युगल शर्मा पूर्व में रायपुर के ही एक नामी अख़बार के प्रबंधन से जुड़े रहे थे। कुछ ऐसा घटा कि उनका मन परिवर्तन हो गया। पहले तो वे कुछ समय तक मुम्बई जाकर कला संसार में रमे रहे, फिर रायपुर लौटकर भागवत कथा में मग्न हो गए। रायपुर में एक पत्रकार ऐसे भी रहे जो कुछ वर्षों तक अख़बारों से जुड़े रहे थे, फिर कुछ ऐसा घटा कि वे पत्रकारिता छोड़ तंत्र-मंत्र की तऱफ चले गए।

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