● कारवां (26 मार्च 2023)- चुनाव और नेताओं पर केन्द्रित किताबें

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ में 2023 का यह साल चुनावी साल है। स्वाभाविक है इस चुनावी साल में राजनीति के लिहाज़ से बहुत सी नई बातें जानने और सुनने मिलेंगी। हाल ही में पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ कांग्रेस विधायक सत्यनारायण शर्मा पर आई किताब ‘एक अथक जननेता’ चर्चा में है। इसे शर्मा के निज सहायक डॉ. सुरेश शुक्ला ने लिखा है। शर्मा से जुड़े ऐसे कई प्रसंग जो उनके राजनीतिक जीवन में काफ़ी उतार चढ़ाव वाले रहे थे उनका वर्णण इस किताब में शुक्ला ने काफ़ी बेबाकी से किया है। चुनावी वर्ष में इस पुस्तक के आने के अलग-अलग मायने निकाले जा रहे हैं। माना यही जा रहा है कि इस बार का विधानसभा चुनाव सत्यनारायण शर्मा नहीं लड़ेंगे। वे अपनी राजनीतिक विरासत अपने बड़े पुत्र पंकज शर्मा को सौंपने जा रहे हैं। यानी पंकज शर्मा रायपुर ग्रामीण से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सामने आ सकते हैं। 1 अप्रैल को राम पटवा लिखित किताब ‘स्मृति शेष’ आ रही है। ‘स्मृति शेष’ में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत और उनके पिता बिसाहूदास महंत के बारे में बहुत कुछ जानने और समझने मिलेगा। डॉ. चरणदास महंत विधानसभा अध्यक्ष से पहले केन्द्र व प्रदेश सरकार दोनों जगह मंत्री रहे चुके हैं। वहीं बिसाहूदास महंत अविभाजित मध्यप्रदेश के समय में 6 बार विधायक रहे थे। वे पं. श्यामाचरण शुक्ल एवं प्रकाशचंद सेठी की सरकार में मंत्री भी रहे थे। बात करें पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की तो उन्होंने अपनी जीवन यात्रा को किताब ‘सपनों का सौदागर’ में समेटा था। जोगी की यह किताब उनके निधन के पश्चात् मरवाही उप चुनाव से पहले आई थी। उल्लेखनीय है 2018 के चुनाव में अजीत जोगी मरवाही से जनता कांग्रेस के विधायक के रूप में चुनकर आए थे। 29 मई 2020 को जोगी का निधन हुआ और नवंबर 2020 में मरवाही उप चुनाव। 2003 में वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की कमान संभाले थे। 2003 के विधानसभा चुनाव में शुक्ल विधानसभा चुनाव तो नहीं लड़े लेकिन उन्होंने राकांपा की टिकट पर कई उम्मीदवार ज़रूर मैदान में उतारे थे। 2003 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शुक्ल पर एक किताब आई थी ‘श्री विद्याचरण शुक्ल एक व्यक्तित्व।‘ इसे किताब की बजाय शुक्ल की जीवनी कहना ज़्यादा उचित होगा, क्योंकि यह मात्र 12 पेज की है। जहां पर जीवनी का समापन होता है वहां लेखक सुजय बैनर्जी ने क्रमशः लिखकर छोड़ दिया था। यानी लेखक की ओर से विद्या भैया पर कुछ और आना बाकी था, जो कि कभी नहीं आया। 2010 में पूर्व मुख्यमंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल पर किताब आई थी ‘राजनीति के संत।‘ इस किताब का विमोचन राजधानी रायपुर के शहीद स्मारक ऑडिटोरियम में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल ने किया था। यह किताब वरिष्ठ पत्रकार कौशल किशोर मिश्रा के प्रयासों का प्रतिफल थी। पिछले ही साल की बात है जब प्रीति उपाध्याय और कुणाल शुक्ला लिखित किताब ‘बस्तर टाइगर’ आई। ‘बस्तर टाइगर’ झीरम घाटी नक्सली हमले में शहीद हुए वरिष्ठ आदिवासी नेता महेन्द्र कर्मा पर केन्द्रित है। कर्मा 2003 में छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष बने थे और उससे पहले जोगी सरकार में मंत्री रहे थे। महेन्द्र कर्मा की पत्नी श्रीमती देवती कर्मा वर्तमान में दंतेवाड़ा से कांग्रेस विधायक हैं। इस बात की पूरी संभावना है कि इस साल होने जा रहे विधानसभा चुनाव में फिर कर्मा परिवार से कोई न कोई चुनाव ज़रूर लड़ेगा।

बस्तर और सरगुजा

भाजपा का लक्ष्य

केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले कोरबा और अब बस्तर का दौरा किया। कोरबा और बस्तर दोनों लोकसभा सीट हैं। यही वो दो सीट हैं जहां सांसद कांग्रेस के हैं। कोरबा से श्रीमती ज्योत्सना महंत एवं बस्तर से दीपक बैज सांसद हैं। माना जा रहा है अमित शाह ने इन दोनों क्षेत्रों का दौरा विधानसभा और लोकसभा चुनाव दोनों की तैयारियों के हिसाब से किया है। भाजपा जान रही है कि आदिवासी बहुल बस्तर एवं सरगुजा में पकड़ ढीली होने के कारण उसे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में बस्तर एवं सरगुजा दोनों ही संभागों में भाजपा का सुपड़ा साफ हो चुका था। कोई भी राजनीतिक पार्टी हो धारणा यही रहती आई है कि सत्ता में आने की चाबी बस्तर और सरगुजा में मिलती है। बस्तर और सरगुजा सध गए यानी सब सध गया।

बृजमोहन और बोधघाट

विधानसभा के बजट सत्र में पूर्व मंत्री एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने बस्तर की बरसों से लंबित पड़ी बोधघाट परियोजना का मामला उठाया। बृजमोहन ने सदन में आरोप लगाया कि “बिना टेंडर बुलाए बोधघाट परियोजना के मास्टर प्लान का काम एक कंपनी को 41 करोड़ के एवज में दे दिया गया। मास्टर प्लान आज तक पूरा नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश में अमृत जल योजना के काम में गड़बड़ी पाए जाने पर यह कंपनी ब्लेक लिस्टेड की जा चुकी है। इस संबंध में एकाउंटेंट जर्नल का पत्र मेरे पास है। बोधघाट परियोजना का सर्वे 1980 में हुआ था। बिना वजह इस कंपनी को 12-13 करोड़ का भुगतान कर दिया गया। यह कोई केन्द्र सरकार की कंपनी नहीं है। केवल केन्द्र सरकार के पास रजिस्टर्ड कंपनी है। मेरे पास इसकी पूरी रिपोर्ट है।“ वैसे बोधघाट परियोजना पर अग्रवाल व्दारा पूछे गए हर सवाल का जवाब जल संसाधन मंत्री रविन्द्र चौबे की ओर से आया। इन दोनों नेताओं के बीच डायलॉग कट टू कट चला। यानी डायलॉग के बीच एक भी बिन्दु अनावश्यक नहीं था। अग्रवाल ने बोधघाट परियोजना का मामला जो उठाया उसके पीछे बड़ी वज़ह मानी जा रही है। उल्लेखनीय है कि भाजपा के राष्ट्रीय से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेताओं ने पूरा फ़ोकस आदिवासी बहुल बस्तर एवं सरगुजा पर कर रखा है। भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं का बस्तर एवं सरगुजा दौरा अनवरत जारी है। बोधघाट परियोजना का मामला सीधे-सीधे बस्तर के आदिवासी समुदाय से जुड़ा हुआ है। आदिवासी समुदाय के बीच संदेश यही देने की कोशिश हो रही है कि उनसे जुड़े हर मसलों को लेकर भाजपा पूरी तरह गंभीर है। चाहे वह मामला बोधघाट से जुड़ा हो, आरक्षण से जुड़ा हो या फिर धर्मांतरण से।

ख़ास ‘23’

23 मार्च का दिन छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिहाज़ से ख़ास रहा। दोपहर ढलने को थी कि ख़बर आई कि राहुल गांधी के खिलाफ़ अदालत का फैसला आया है। रात में छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र के अवसान की घोषणा हो गई। शाम तक तो विधानसभा के गलियारे में यही चर्चा थी की बजट सत्र का समापन पूर्व निर्धारित तारीख़ 24 मार्च को होगा। जैसे ही सदन में सत्र समापन की तस्वीर सामने आती दिखी विपक्षी भाजपा विधायकों ने आरोप लगाया कि “आज सुबह तो यही बात हुई थी कि सत्र 24 तक चलेगा। फिर कैसे सब कुछ बदल गया।“ इसके बाद भाजपा विधायकगण विरोध दर्ज करा आगे की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेते हुए सदन से बाहर चले गए। वैसे देखा जाए तो इस सत्र में कई मुद्दों पर सार्थक चर्चाएं हुईं। विपक्ष ने हर दिन शून्यकाल का भरपूर उपयोग करते हुए एक के बाद एक गंभीर मुद्दे उठाए, जिनमें प्रधानमंत्री आवास, तेंदूपत्ता एवं प्रदेश में बढ़ते अपराध के शामिल रहे।

स्काई वॉक के रहते में

कैसे बनेगा फ्लाई ओवर

रायपुर महापौर एजाज़ ढेबर ने नगर निगम का 2023-24 का अनुमानित बजट पेश करते हुए घोषणा की कि जन सहमति से जीई रोड पर फूल चौक के पास फ्लाई ओवर बनवाएंगे। सवाल यह है कि फिर जीई रोड पर बने आधे-अधूरे स्काई वॉक का क्या होगा? फ्लाई ओवर तो तभी बन सकता है जब स्काई वॉक टूटेगा। रायपुर ग्रामीण विधायक सत्यनारायण शर्मा कह चुके हैं कि “इस आधे-अधूरे अनुपयोगी स्काई वॉक को तोड़ गिरवाते हैं तो इस काम में ही 60 करोड़ लग जाएगा।“ पूर्व मंत्री राजेश मूणत जिनकी इस स्काई वॉक बनवाने में प्रमुख भूमिका रही वो कह रहे हैं “वापस भाजपा की सरकार बनने दो, आधे-अधूरे स्काई वॉक का काम पूरा करवाएंगे।“ जिस जीई रोड पर स्काई वॉक बना है उस पर कुछ और बड़े नेताओं ने कभी बड़े सपने देखे थे। मुख्यमंत्री रहते हुए में डॉ. रमन सिंह ने संभावनाएं तलाशी थी कि क्या दुर्ग-भिलाई-रायपुर के बीच मेट्रो ट्रेन चलवाई जा सकती है। रायपुर सांसद सुनील सोनी किसी समय में जब रायपुर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष थे तो वह एक बार राविप्रा के बजट में जीई रोड पर फ्लाई ओवर के निर्माण की योजना ले आए थे। देखना यह है कि जीई रोड पर फ्लाई ओवर बनवाने का जस किसके हाथ में लिखा है।

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