अरिजीत के बाद नहीं देखने मिल रहा कोई दमदार सिंगर- उद्भव ओझा

■ अनिरुद्ध दुबे

उद्भव ओझा सीरियलों की दुनिया के बड़े संगीतकार कहलाते हैं। कभी उन्होंने ‘मोहब्बतें’ जैसी मेगा स्टारर फ़िल्म के लिए गाने गाये थे, लेकिन गायक की जगह संगीतकार बनना उन्हें बेहतर विकल्प लगा। उनका कहना है कि “हिन्दी सिनेमा की बात करें तो अरिजीत सिंग के बाद कोई दमदार सिंगर देखने में नहीं आ रहा है।“ हाल ही में उद्भव फ़िल्म फेस्टिवल में हिस्सा लेने रायपुर आए हुए थे। ‘मिसाल न्यूज़’ ने उनसे मुलाक़ात कर कुछ जानने और समझने की कोशिश की…

उद्भव ओझा बताते हैं- “मेरा जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। पिता इंजीनियर थे और सरकारी नौकरी में थे तथा मां डॉक्टर। मैं क़रीब 3 साल का था जब पापा की पोस्टिंग रतलाम जिले के जावरा में हो गई। स्कूल की पढ़ाई जावरा तथा ग्रेज्युशन इंदौर से किया। मुझे ग्वालियर, जावरा और इंदौर तीनों ही शहर अपने लगते हैं। वास्तव में मैं सितार का स्टूडेंट था। मेरे पिता सितार बजाते थे। उन्हीं के संस्कार मुझमें आए। सितार में मेरे गुरु श्री मदनलाल परिहार एवं पंडित देबु चौधरी रहे। फिर सितार वादक से सिंगर कैसे बन गए, यह पूछने पर उद्भव कहते हैं- “इसके पीछे की कहानी दिलचस्प है। इंदौर में लता मंगेशकर अवार्ड समारोह आयोजित था। मन में कुछ ऐसी इच्छा जगी की उस कॉम्पीटिशन में हिस्सा ले लिया। जाने-माने गायक एवं संगीतकार कल्याण सेन उस समारोह में जज थे। उन्होंने मेरा गाना सुनने के बाद स्टेज से कहा कि इस लड़के की आवाज़ में दम है। उसी समारोह में बॉलीवुड के जाने-माने संगीतकार लक्ष्मीकांत (प्यारेलाल) जी से मुलाक़ात हुई। उन्होंने मुझसे कहा कि तूम मूम्बई जाकर सिंगिंग में ट्राई कर सकते हो। लक्ष्मीकांत जी की इस लाइन ने मुझे मुम्बई पहुंचा दिया। मैं संगीतकार आर.डी. बर्मन साहब एवं गायक किशोर दा का फैन रहा। मुम्बई पहुंचने के बाद बर्मन साहब का सहयोगी बन गया। मुम्बई में जाने-माने म्यूज़िक अरेंजर किशोर शर्मा जी से संगीत सीखना जारी रहा। 1994 में मुम्बई में अभिनेता अन्नू कपूर जी से मुलाक़ात हुई। उन्होंने मुझसे कहा कि टीवी पर जो मेरा शो ‘अंताक्षरि’ आता है उसका हम लाइव शो शुरु करने जा रहे हैं। तूम शो की एंकरिंग करना और बीच में जहां ज़रूरत पड़े वहां अपनी गायकी का कमाल दिखाना। मैं अन्नू कपूर जी के साथ जुड़ गया। 1995 में मैंने टीवी पर आने वाले कॉम्पीटिशन शो ‘मेरी आवाज़ सुनो’ में हिस्सा लिया था, जिसमें सुनीधि चौहान वीनर रही थीं। 1997 में इसी शो में मैं वीनर रहा। यहां से मेरी पहचान थोड़ी और बड़ी हो गई तथा सीधे आदित्य चोपड़ा जी की मेगा स्टार फ़िल्म ‘मोहब्बतें’ में मुझे गाने का मौका मिला। इस फ़िल्म के 5 गाने मैंने गाए। मेरी आवाज़ उदय चोपड़ा के लिए ली गई थी। फिर कुछ और फ़िल्मों के लिए गाए, जिनका नाम यहां लेना ठीक नहीं होगा, इसलिए कि गाना तो मैंने रिक़ार्ड किया था, बाद में किसी और जाने-माने सिंगर की उस गाने पर आवाज़ ले ली गई। मुझे इस तरह डमी सिंगर बनना क़बूल नहीं था। ये सन् 2005 की बात थी। मैंने डिसाइड कर लिया कि गाने नहीं गाउंगा, केवल म्यूज़िक ही करूंगा। संगीतकार के रूप में मेरी पहली फ़िल्म आई- ‘इक जिन्द इक जान’, जो कि पंजाबी भाषा में थी। राज बब्बर एवं नगमा जैसे सितारे इस फ़िल्म में थे। बाद में एक हिन्दी मूवी ‘चेज़’ के लिए म्यूज़िक दिया। इसके बाद टीवी सीरियल के बहुत से प्रस्ताव आने लगे, बस फिर क्या था छोटे पर्दे की दुनिया में मैं रम गया। अब तक 60 से अधिक टीवी सीरियल के लिए संगीत दे चुका हूं।“

क्या ऐसा नहीं लगता कि हिन्दी सिनेमा में म्यूज़िक का अंदाज़ एकदम बदल सा गया है, इस सवाल पर उद्भव कहते हैं- “हिन्दी सिनेमा में मैं किसी आख़री जाने-माने मेल सिंगर की बात करूं तो वो अरिजीत सिंग हैं। अरिजीत सिंग ने इतने हिट दिए कि बाद के जो सिंगर आए वे अरिजीत को ही फॉलो करते दिखे। मुझे तो किशोर दा, रफ़ी साहब एवं मुकेश जी का भी दौर याद है। इनके बाद कुमार शानू, उदित नारायण, सोनू निगम, शान एवं केके जैसे सिंगर आए जिनकी आवाज़ अलग से कोई भी पहचान लेता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। किस गाने को कौन गाया है यह पहली बार में समझ पाना मुश्किल है। फिर आवाज़ ही क्यों साज़ की बात कर लें। पहले किसी गाने को तैयार करने में 60 से लेकर 200 लोग तक लगते थे। अब तो एक ही संगीतकार कम्प्यूटर में बैठकर सारे काम अकेला कर ले रहा है। माना की मशीन बेहतर और आसान विकल्प है लेकिन इसमें वो बात कहां पैदा हो पाएगी, जैसा कि “चिंगारी कोई भड़के…” (फ़िल्म-अमर प्रेम) गाने में सुप्रसिद्ध बांसूरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया जी की बांसूरी की धुन ने पैदा की थी। मुझे यह भी शिकायत है कि आजकल के कम्पोज़र 90% वेस्टर्न म्यूज़िक को फॉलो करते हैं। हमारे यहां क्या रागों की कमी है। सचिन दा (सचिन देव बर्मन) ने राग भैरवी में ख़ूब गाने बनाए, लेकिन कुछ अलग हटकर करने की इच्छा हुई तो उन्होंने राग पहाड़ी में भी गाने बनाए। जब रेडियो का ज़माना था गाने सुनकर समझते देर नहीं लगती थी कि गायक कौन है और संगीतकार कौन। कहने का मतलब वैरायटी होती थी। फिर वह शैलेन्द्र, कैफी आज़मी, हसरत जयपुरी, शकील बदायुनी, राजा मेंहदी अली खान जैसे गीतकारों का दौर था। ऐसा नहीं है कि अभी सभी गाने कमजोर आ रहे हैं। अभी अमिताभ भट्टाचार्य, प्रसून जोशी, जयदीप साहनी एवं वरूण ग्रोवर जैसे अच्छी रचनाएं लिखने वाले गीतकार हैं, लेकिन यह दौर ऐसा है कि सौ में से दस गाने ही टिक पा रहे हैं।“

चर्चित सीरियल जिनमें

उद्भव का संगीत

‘छोटी बहू’, ‘संजोग से बनी संगिनी’, ‘हिटलर दीदी’, ‘परवरिश’, ‘जीत जाएंगे हम’, ‘कुछ रंग प्यार के ऐसे भी’, ‘बानी इश्क द कलमा’, ‘ऐसे करो न विदा’, ‘मर्यादा’, ‘तमन्ना’, ‘रक्षा बंधन’, ‘इश्क में मर जांवा’

पत्नी जया ओझा सीरियलों

की जानी-मानी कलाकार

उद्भव ओझा की पत्नी जया ओझा टीवी सीरियल की जानी-मानी कलाकार हैं। 2007 में उन्होंने पहला टीवी सीरियल ‘सांई बाबा’ किया था। मशहूर डायरेक्टर रामानंद सागर जब दूसरी बार ‘रामायण’ सीरियल लेकर आए तो उसमें जया ने रावण की पत्नी मंदोदरी का रोल किया। वे लगातार सीरियल कर रही हैं।

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