‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ में अमलेश 100% खरा उतरा है- सतीश जैन

■ अनिरुद्ध दुबे

छत्तीसगढ़ी में सबसे ज़्यादा हिट फ़िल्म दे चुके डायरेक्टर सतीश जैन की फ़िल्म ‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ 5 मई को सिल्वर स्क्रीन पर पहुंच रही है। सतीश जैन ने इस बार यू ट्यूब के स्टार कलाकार अमलेश नागेश को हीरो की भूमिका में लेकर बड़ा दांव खेला है। सतीश जैन कहते हैं- “अमलेश को उसके यू ट्यूब के स्टारडम नहीं बल्कि टैलेंट को देखकर अपनी फ़िल्म के लिए चुना। कहानी की जो डिमांड रही उसमें अमलेश 100% खरा उतरा है।

‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ के प्रमोशन में बेहद व्यस्त चल रहे सतीश जैन को अंततः हमने किसी ठिकाने पर घेर ही लिया और कुछ खट्टे-मीठे सवाल उनके सामने रखे, जिनका जवाब उन्होंने बड़ी बेबाकी और पूरी ईमानदारी से दिया…

0 आपकी पिछली फ़िल्म ‘चल हट कोनो देख लिही’ को जो सफलता मिलनी थी वह नहीं मिल पाई। उस फ़िल्म के आने के बाद बिना देर किए आप दूसरी फ़िल्म ‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ बनाने कैसे कदम बढ़ा लिए…

00 जब ‘चल हट कोनो देख लिही’ पोस्ट प्रोडक्शन के लिए टेबल पर आई तो मुझे लगा था सब कुछ ठीक है। जब फ़िल्म थियेटर में आई पहले ही शो में लग गया था यह लंबी पारी नहीं खेल पाएगी। सिनेमा हाल में देखते समय समझ आया कि कहां-कहां बड़ी चूक हुई है, जिन्हें मैं मेकिंग के समय में समझ नहीं पाया था। मेरे भीतर से यही आवाज़ आई कि हाथ पर हाथ धरकर बैठने का वक़्त नहीं। फौरन किसी दूसरे प्रोजेक्ट पर लगना होगा। ‘चल हट कोनो देख लिही’ की रिलीजिंग के बाद दूसरे हफ्ते में ही अपनी अगली फ़िल्म के बारे में मैंने सोचना शुरु कर दिया था।

0 ‘मोर छंइहा भुंइया’ के बाद अब ऐसा हुआ है कि आपने अपनी फ़िल्म में किसी नये हीरो को लिया है। क्या इसके पीछे वज़ह यह रही कि अमलेश नागेश यू ट्यूब का बड़ा स्टार है…

00 ‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ के लिए मुझे ऐसे लड़के की ज़रूरत थी जो पूरी तरह गांव-देहात का लगे। वह बात मुझे अमलेश में नज़र आई। मैंने पहली बार अमलेश को ‘डॉर्लिंग प्यार झुकता नहीं’ में देखा था, जिसमें उसने मन कुरैशी के दोस्त की भूमिका काफ़ी अच्छी तरह निभाई। उसी समय से अमलेश कहीं न कहीं मेरे दिमाग में था। एक बात स्पष्ट कर दूं, यू ट्यूब और सिनेमा में फ़र्क है। जब मैंने अमलेश को लिया तो कहने वाले यह कहने से नहीं चूके कि क्या कॉमेडियन को लिया है। यह हीरो जैसा नहीं लगता। जब गाने और ट्रेलर सामने आए लोगों की धारणा बदली। जिन लोगों ने उंगली उठाई थी अब वही लोग अमलेश का तारीफ़ कर रहे हैं। फिर अमलेश में ख़ास बात यह है कि वह खुद लिखता है, खुद एक्ट करता है और खुद डायरेक्ट करता है। वह कमाल का नैचुरल एक्टर है।

0 क्या ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि सतीश जी को छत्तीसगढ़ से बाहर की हीरोइन लेने की ज़रूरत पड़ी…

00 इससे पहले एल्सा घोष तीन और छत्तीसगढ़ी फ़िल्में कर चुकी है। ‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ में एल्सा पूरी तरह छत्तीसगढ़ के रंग में रंगी नज़र आएगी। मैंने उसे पहली बार ‘मयारू गंगा’ में देखा था। तभी से सोच रखा था कि इसे अपनी किसी फ़िल्म में लूंगा। ‘हॅस झन पगली फॅस जबे’ के लिए पहले एल्सा को ही लेना चाह रहा था। उस समय वह साउथ की किसी फ़िल्म में व्यस्त थी। डेट की प्राब्लम की वज़ह से वह फ़िल्म हम साथ नहीं कर पाए थे।

0 चर्चा तो यही है कि ‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ की रिलीज़ से पहले यू ट्यूब पर इसके गानों की धूम मच चुकी है…

00 सभी गाने अच्छे तो बने ही हैं, इनके हिट होने के पीछे एक बड़ा कारण अमलेश का यू ट्यूब स्टार होना है। इसके अलावा इंस्टा में एल्सा का जादू चला है। फिर सारे गाने मिनिंगफुल हैं।

0 सतीश जैन का चेहरा तो इस समय यही बता रहा है कि वे भारी प्रेशर में हैं…

00 मैं ‘ले सुरू होगे मया के कहानी’ का डिस्ट्रीब्यूटर भी हूं। फ़िल्म बनाना जितना कठिन है डिस्ट्रीब्यूशन का काम उससे भी ज़्यादा कठिन है। (हॅसते हुए) फिर आप जैसे मीडिया वाले बहुत ज़ल्दी नाराज़ हो जाते हैं। सब को संभालना पड़ता है।

0 प्रोड्यूसर छोटेलाल साहू के साथ ऐसी क्या ट्यूनिंग है जो उनके साथ आपने चार साल में लगातार 3 फ़िल्में कर ली…

00 हम दोनों एक दूसरे के मिजाज़ को अच्छी तरह समझते हैं। वह प्रोड्यूसर ही रहते हैं, मालिक नहीं बनते। छोटेलाल मुझे चाचा और मेरी पत्नी सरिता को चाची कहते हैं। वहीं उनके बेटे मुझे दादा और सरिता को दादी कहते हैं। इसी से समझ लीजिए की हम लोगों का एक दूसरे के प्रति कितना मान-सम्मान है।

‘मोर छंइहा भुंइया’ से

पिता की सिनेमा

के प्रति धारणा बदली

सतीश जैन ने अपना एक दिलचस्प पारिवारिक अनुभव शेयर करते हुए बताया कि “जब मैं स्कूल-कॉलेज़ में था मेरे पिता श्री शिवदयाल जैन सिनेमा के सख़्त खिलाफ़ थे। ‘मोर छंइहा भुंइया’ के इतिहास बने जाने के बाद उन की सोच में परिवर्तन आया। अब उनके भीतर आए बदलाव को देखिए, वही मुझे बताते हैं कि कौन से गाने पर कितने व्यूस हैं। वे गानों में होने वाले कमेन्ट्स को भी ध्यान से पढ़ते हैं। बात काफ़ी पुरानी लेकिन मज़ेदार है। मैं भोजपुरी फ़िल्म ‘निरहुआ रिक्शावाला’ को छत्तीसगढ़ी में ‘टूरा रिक्शावाला’ के नाम से लाने की तैयारी कर रहा था। ‘टूरा रिक्शावाला’ की स्क्रीप्ट तैयार करने से पहले मैं घर में सीडी लगाकर ‘निरहुआ रिक्शावाला’ देख रहा था। ‘निरहुआ रिक्शावाला’ के बहुत से संवाद डबल मिनिंग वाले थे और कुछ सीन में काफ़ी खुल्लम खुल्ला था। कुछ ऐसा संयोग हुआ कि जिस कमरे में मैं ‘निरहुआ रिक्शावाला’ देखते बैठा था पिता जी आ गए। मैं खुद में असहज महसूस कर रहा था। वे कुछ देर तक ‘निरहुआ रिक्शावाला’ देखते रहे फिर बोले “इस पर छत्तीसगढ़ी में फ़िल्म बनाना चाहिए।“ मैंने कहा कि “इसमें तो बहुत कुछ वल्गर है।“ पिता जी ने कहा- “कुछ नहीं होता। सिनेमा में कई तरह का प्रयोग होते रहता है। लोग इस फ़िल्म को देखेंगे। और वही हुआ…”

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