■ अनिरुद्ध दुबे
सांसद विजय बघेल को भाजपा घोषणा पत्र समिति का संयोजक बनाए जाने के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने उन पर बड़ा निशाना साधा। मुख्यमंत्री ने कहा है कि “जिन्हें भाजपा की विचारधारा नहीं मालूम वो क्या घोषणा पत्र बनाएंगे। इसके उलट जिन लोगों ने भाजपा की जीवन भर सेवा की उन्हें घर बिठा दिया गया है। इसी तरह डी. पुरंदेश्वरी की आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं सुनील जाखड़ को पंजाब भाजपा अध्यक्ष बना दिया गया है। ये दोनों ही नेता पहले कांग्रेस में थे। लगता है भाजपा में नेतृत्व का अकाल पड़ गया है।“ उल्लेखनीय है कि विजय बघेल का राजनीतिक सफर कांग्रेस से शुरु हुआ था। वे राष्ट्रवादी कांग्रेस में भी रहे थे और राकांपा की टिकट पर 2003 में पाटन विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल के खिलाफ़ चुनाव लड़े थे, जिसमें उन्हें पराजय मिली थी। बाद में विजय बघेल राकांपा से भाजपा में आ गए। 2008 के चुनाव में वे भाजपा की टिकट पर पाटन से ही भूपेश बघेल के ख़िलाफ चुनाव लड़े और जीते। तब के कार्यकाल में रमन सरकार में उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया था और तत्कालीन गृह मंत्री ननकीराम कंवर से संबद्ध किया गया था। विधानसभा में कई अवसर पर जब गृह मंत्री के विभाग में कठिन प्रश्न लगे होते तो ज़वाब देने विजय बघेल ही खड़े हुआ करते थे। विजय बघेल कला प्रेमी भी हैं। उन्होंने दो छत्तीसगढ़ी फ़िल्म ‘माटी के लाल’ एवं ‘मोर मन के मीत’ में अभिनय किया है। रफ़ी साहब के गाने उन्हें पसंद हैं। मंच पर विजय जी फ़िल्म ‘गाइड’ के अज़र अमर गीत “तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं…” गाते नज़र आ चुके हैं। कभी विजय बघेल अपनों के बीच यह कहने से नहीं चूके थे कि “भूपेश बघेल को सक्रिय राजनीति में मैं ही लाया था। उन्हें कांग्रेस की सदस्यता मैंने ही दिलवाई थी।“ अब किसकी बात में कितना दम है ये तो दोनों दिग्गज नेता ही बता सकते हैं।
‘दर्द’ और ‘डर’
छत्तीसगढ़ में राजनीति इस समय पूरी तरह आदिवासी एवं पिछड़ा वर्ग पर केन्द्रित नज़र आ रही है। कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ही पार्टियों ने अपनी सबसे ज़्यादा ताकत आदिवासी बहुल क्षेत्र बस्तर एवं सरगुजा में लगा रखी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा को जहां दोनों आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पकड़ खो देने का ‘दर्द’ रहा है वहीं कांग्रेस को इन दोनों क्षेत्रों में पकड़ ढीली न हो जाए इस बात का ‘डर’ है। उल्लेखनीय है कि सरगुजा संभाग की 14 एवं बस्तर की 12 विधानसभा सीटें यानी इन सभी 26 सीटों में इस समय कांग्रेस के विधायक हैं। सरकार बनने या नहीं बन पाने के पीछे हमेशा से बस्तर और सरगुजा की अहम् भूमिका रही है। तभी तो भाजपा के राष्ट्रीय नेता जहां लगातार बस्तर एवं सरगुजा की तरफ रुख़ करते रहे हैं वहीं कांग्रेस दोनों ही तरफ संतुलन न बिगड़े इसका पूरा ध्यान रख रही है। उदाहरणार्थ सरगुजा नरेश टी.एस. सिंहदेव को जहां ठीक चुनाव से पहले उप मुख्यमंत्री पद से नवाज़ा गया है वहीं बस्तर के ताकतवर सांसद दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान दे दी गई है। बस्तर में किसी तरह का असंतोष न पनपे को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटे मोहन मरकाम को मंत्री पद देने में देर नहीं लगाई गई। वहीं प्रेमसाय सिंह टेकाम से मंत्री पद ले लिया गया तो उन्हें तत्काल कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त योजना आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। प्रेमसाय सिंह सरगुजा क्षेत्र से हैं अतः वहां का समीकरण न बिगड़ने पाए इस बात का पूरा ध्यान रखा गया है।
कुछ ठीक नहीं
चल रहा
रामविचार नेताम भाजपा के काफी सीनियर नेता हैं। भाजपा के शासनकाल में मंत्री रह चुके हैं। मीडिया कोई सवाल करे तो उनकी तरफ से ज़वाब काफ़ी चुटीला आता है। हाल ही में नेताम जब किसी विषय को लेकर मीडिया से रूबरू हुए तो किसी ने पूछ दिया कि “आप के यहां से एक बड़े आदिवासी नेता नंद कुमार साय कांग्रेस में गए हैं जहां उन्हें काफ़ी मान-सम्मान मिल रहा है। उन्हें निगम-मंडल में स्थान देकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया गया है। इस बारे में आप क्या कहेंगे? इस सवाल के ज़वाब में नेताम ने कहा कि “कल ही साय जी किसी कार्यक्रम में मुझसे मिले थे। मैंने पूछा कि क्या हाल-चाल है तो उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ ठीक नहीं चल रहा है।“ नेताम जी ने बताने को तो यह बता दिया कि ठीक नहीं चल रहा, लेकिन यह नहीं बताया कि कुछ ठीक नहीं चलने के बारे में साय जी ने किसके लिए कहा था, भाजपा के लिए या कांग्रेस के लिए!
सोनी को विधानसभा
चुनाव लड़ाने पर विचार
राजनीति के गलियारे के किसी कोने से यह बात उठती नज़र आई है कि भाजपा के कुछ मोस्ट सीनियर लीडर रायपुर सांसद सुनील सोनी को विधानसभा चुनाव लड़वाने पर विचार कर रहे हैं। रायपुर की चार सीटों में सोनी को कहां से उतारना है इस पर तो अभी कुछ नहीं सोचा गया है लेकिन उन्हें छिपा हुआ मजबूत पत्ता ज़रूर माना जा रहा है। सोनी के बारे में कहा जाता है कि वैसे तो वे कम चुनाव लड़े हैं लेकिन जब भी लड़े हैं जीते हैं। कुंडली खोज निकालने वाले तो सोनी की छात्र जीवन की कहानी तक मालूम कर चुके हैं। सब कुछ मालूम करने के बाद सार यही निकला कि सोनी 1983 में रायपुर के दुर्गा कॉलेज से छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़े और जीते। 1999 में सदर बाज़ार वार्ड से न सिर्फ़ पार्षद चुनाव जीते बल्कि रायपुर नगर निगम के सभापति भी बने। 2004 में रायपुर महापौर का चुनाव लड़े और जीते। 2019 में रायपुर से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते। इस तरह सोनी पर हमेशा से किस्मत मेहरबान रही है। ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इस न हारने वाले घोड़े पर दांव खेल भी दे तो आश्चर्य क्या…
राजनीतिक समधी
हाउसिंग बोर्ड (छत्तीसगढ़ गृह निर्माण मंडल) की कुछ कॉलोनियां नगर निगम के दायरे में आ चुकी हैं। हाउसिंग बोर्ड कॉलोनियों से जुड़े लोग यदि महापौर एजाज़ ढेबर के पास सफाई, बिजली, पानी या सड़क जैसी समस्याओं को लेकर जाते हैं तो उस पर वे चिंता तो जताते हैं लेकिन साथ ही यह कहने से भी पीछे नहीं रहते कि हाउसिंग बोर्ड तो हमें दहेज में मिला हुआ है। उल्लेखनीय है कि हाउसिंग बोर्ड के अध्यक्ष रायपुर उत्तर विधायक कुलदीप जुनेजा हैं। यानी महापौर एवं हाउसिंग बोर्ड अध्यक्ष एक ही शहर के हैं और दहेज वाली बात है तो फिर दोनों नेता राजनीतिक समधी हुए। अक्सर दोनों नेता एक मंच पर नज़र आते हैं। दोनों की तरफ से मिल-जुलकर समस्याओं का समाधान निकालने की कोशिश चलती रहती है।