■ अनिरुद्ध दुबे
कौन बनेगा मुख्यमंत्री की बात चल रही है तो पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से लेकर अरुण साव, विष्णुदेव साय, रामविचार नेताम, रेणुका सिंह, गोमती साय एवं लता उसेन्डी जैसे नाम सामने हैं। कुछ लोग महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस एवं सरोज पांडे के नाम की भी चर्चा करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ का यह पांचवां विधानसभा चुनाव था। 2003 एवं 2018 की बात करें तो दोनों बार के विधानसभा चुनाव में परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की संख्या 4 से ज़्यादा नहीं थी। 2018 में जब कांग्रेस को बहुमत मिला था तब मुख्यमंत्री पद की दौड़ में 4 ही नाम भूपेश बघेल, टी.एस. सिंहदेव, ताम्रध्वज साहू एवं डॉ. चरणदास महंत सामने थे। अब कि बार तो भाजपा के सामने बड़ा संशय यह है कि मुख्यमंत्री आदिवासी वर्ग से बनाएं या पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से। फिर सामान्य वर्ग से डॉ. रमन सिंह का दावा भी कमजोर नहीं। चुनाव परिणाम आए हफ़्ता बीत गया। हो सकता है आज या कल में रायपुर आए हुए भाजपा के 3 पर्यवेक्षक किसी नतीजे पर पहुंचते हुए अपनी रिपोर्ट दिल्ली भेज दें और दिसंबर के तीसरे हफ़्ते में मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण हो जाए।
इस बार भी सरगुजा और
बस्तर से ही
निकली सत्ता की चाबी
प्रदेश के दोनों ही आदिवासी संभागों में कांग्रेस की शत-प्रतिशत सीट थी। सरगुजा में 14 और बस्तर में बारह। अभी के चुनाव में सरगुजा की सभी 14 सीट भाजपा के खाते में चली गई और बस्तर की 12 में 8 सीट जीतने में वह क़ामयाब रही। इस तरह आदिवासी बहुल दोनों संभागों को मिलाकर भाजपा 22 सीटें हासिल करने में सफल रही। धारणा यही रही है कि सत्ता की चाबी बस्तर और सरगुजा से निकलती है। यह धारणा इस चुनाव में भी चरितार्थ होती दिखी। 90 में से भाजपा की 54, कांग्रेस की 35 एवं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की 1 सीट आई है। सरकार बनाने 46 सीट की ज़रूरत होती है। पूर्व में कई लोगों का यही अनुमान था कि बस्तर और सरगुजा आधे-आधे में बंट जाएगा। कल्पना करें आधी वाली स्थिति में यदि दोनों संभागों को मिलाकर भाजपा का आंकड़ा 13 पर होता तो 9 सीट वैसे ही कम हो जाती। 54 में 9 घटा दें तो आंकड़ा 45 पर जा बैठता है, यानी स्पष्ट बहुमत से 1 सीट कम।
भाजपा में भी तो
हारे बड़े चेहरे
राजनीति के गलियारे में लगातार इस बात की चर्चा होती आ रही है कि कांग्रेस सरकार के 13 में से 9 मंत्री हार गए। यही नहीं रामपुकार सिंह समेत धनेन्द्र साहू, अमितेष शुक्ल, देवेन्द्र बहादुर सिंह एवं अरुण वोरा जैसे सीनियर विधायक भी हार गए। जो पार्टी सत्ता से बाहर होती है स्वाभाविक रूप से उसकी समीक्षा ज़्यादा होती है। लेकिन यह भी तो सच है कि भाजपा के 13 सीटिंग विधायकों में से नारायण चंदेल, शिवरतन शर्मा, ननकीराम कंवर, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी एवं सौरभ सिंह जैसे बड़े चेहरों को हार का सामना करना पड़ा।
अब कौन किससे पूछेगा
कैसा लग रहा है…
2018 के चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में स्पष्ट बहुमत आ जाने के बाद विधानसभा का पहला दिन था। नये विधायकों की शपथ होनी थी। 90 में से 68 कांग्रेस के विधायक चुनकर आए थे, स्वाभाविक है उस तरफ भारी हर्ष था। इधर, भाजपा के मात्र 15 विधायक चुनकर आए थे। ऐसे में भाजपा विधायक दल के उत्साह में कमी नज़र आना स्वाभाविक था। उस पहले दिन एक रोचक दृश्य सामने आया था। बस्तर के चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर दोबारा विधायक चुनकर आए दीपक बैज ने भाटापारा से चुनकर आए भाजपा विधायक शिवरतन शर्मा से पूछा कि “क्यों शिवरतन भैया कैसा लग रहा है?” शिवरतन शर्मा ने पलटकर कहा कि “यह सवाल तो आप धनेन्द्र साहू जी, सत्यनाराण शर्मा जी, अमितेष शुक्ल एवं अरुण वोरा से करिये कि कैसा लग रहा है।“ शर्मा के ऐसा कहने के पीछे कारण यह था कि धनेन्द्र साहू, सत्यनारायण शर्मा, अमितेष शुक्ल एवं अरुण वोरा मंत्री पद की दौड़ में थे और इन्हें मंत्री मंडल में जगह नहीं मिल पाई थी। अब 2023 के चुनाव की बात करें। सत्यनारायण शर्मा की जगह चुनाव लड़े उनके बेटे पंकज शर्मा समेत धनेन्द्र साहू, अमितेष शुक्ल, अरुण वोरा, शिवरतन शर्मा एवं दीपक बैज ये सभी चुनावी मैदान में थे। इनमें से कोई जीत नहीं पाया। यानी एक-दूसरे से सवाल करने वाले दोनों विधायक तो इस बार हारे ही हारे और जिनके नाम की चर्चा हो रही थी वो विधायक भी हारे।
शराबियों का गुस्सा
चुनाव परिणाम आने के बाद रोचक प्रसंगों का भी दौर चल पड़ता है। कुछ वरिष्ठ चुनावी समीक्षक दावे के साथ कहते नज़र आ रहे हैं कि शराबियों का वोट कांग्रेस को नहीं मिला। पूछो क्यों, तो ज़वाब मिलता है अच्छी क्वालिटी की व्हिस्की, रम, रेड वाइन, वोदका एवं बियर- शराब दुकानों से गायब रहती है। जो मिलती भी है अन्य प्रदेशों की तुलना में यहां बहुत ज़्यादा रेट में मिला करती है। फिर मदिरा प्रेमियों की यह भी शिकायत रहती आई है कि पूर्व में कभी दो पेग चढ़ा लेने के बाद जो सुरूर आता था वह पता नहीं क्यों पिछले दो-तीन सालों से तीन से चार पेग लगा लेने के बाद भी नहीं आ पाता।
फ़िल्म बिरादरी की ख़ुशी
छत्तीसगढ़ के जाने-माने फ़िल्म अभिनेता अनुज शर्मा के विधायक बन जाने पर छत्तीसगढ़ी सिनेमा से जुड़े लोग काफ़ी खुश हैं। यह सोचकर कि चलो हमारी बिरादरी का कोई आदमी जिस पार्टी की सरकार है उसका हिस्सा तो बना। अनुज के अलावा छत्तीसगढ़ी कला एवं संस्कृति से जुड़े दो और कलाकार दिलीप लहरिया तथा कुंवर सिंह निषाद भी विधायक चुने गए हैं। ये दोनों कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने हैं। दोनों इसके पहले भी विधायक रह चुके हैं। कला एवं संस्कृति से जुड़े लोगों का कहना है कि पूर्व में विधायक रहते हुए में लहरिया व निषाद ने शायद ही हम कलाकारों से जुड़े मुद्दों को विधानसभा में उठाया हो। संस्कृति विभाग में कार्यक्रम मिलने के मापदंड काफ़ी कड़े हैं। कांग्रेस सरकार का पूरा पांच साल का समय निकल गया लेकिन फ़िल्म विकास निगम के अध्यक्ष पद पर किसी को बिठाया नहीं गया। नया रायपुर तथा महासमुन्द जिले के किसी गांव में फ़िल्म सिटी बनाने के लिए जगह देखी गई लेकिन उसका भूमि पूजन भी नहीं हो पाया। फ़िल्म नीति तो बना दी गई लेकिन छत्तीसगढ़ी फ़िल्म बनाने वालों को सब्सिडी देना अब तक शुरु नही हुआ।
सोचा न था
विधानसभा चुनाव परिणाम सामने आने के बाद बहुमत में आई भाजपा के नेतागण तो व्यस्त दिख रहे हैं, लेकिन विपक्ष में जा पहुंची कांग्रेस के अधिकांश नेता इस समय थोड़ी फ़ुरसत में हैं। हाल ही में एक कांग्रेस नेत्री से संक्षिप्त बातचीत करने का अवसर मिला। यह पूछने पर कि “इन दिनों क्या चल रहा है”, उनका ज़वाब मिला “बस कुछ नहीं एक नॉवेल पढ़ रही हूं।“ यह पूछने पर कि “कौन सा”, उन्होंने कहा- “मशहूर लेखिका शोभा डे का उपन्यास- सोचा न था।”