● कारवां (4 फरवरी 2024)-●ख़तरे में कौन… ●लोकसभा चुनाव में भी गरमाए रहेगा धर्मांतरण… ●नक्सलवाद पर विदेशी छाया…

■ अनिरुद्ध दुबे

ख़तरे में कौन…

सोमवार को ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर में एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि “2024 का लोकसभा चुनाव लोकतंत्र को बचाने का आख़री मौका है। अगर मोदी जी फिर आ गए तो चुनाव नहीं होने देंगे। देश में तानाशाही आ जाएगी।“ इसके ठीक दूसरे दिन राजधानी रायपुर में लोकसभा चुनाव के लिए केन्द्रीय चुनाव कार्यालय का उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि “कांग्रेस पार्टी डूबती हुई नाव है। वह वेंटिलेटर पर चल रही है। बहुत ज़ल्दी यह देश के राजनीतिक नक्शे से विलुप्त होने वाली है।“ भले ही लोकसभा चुनाव की तारीख़ की घोषणा होने में कुछ हफ़्ते शेष हैं, लेकिन दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों के कद्दावर नेताओं की ओर से जिस तरह के बोल सामने आ रहे हैं उससे मानो ऐसा महसूस होने लगा है कि लोकसभा चुनाव को गिनती के ही दिन शेष हैं।

लोकसभा चुनाव में भी

गरमाए रहेगा धर्मांतरण

भले ही ऊपर राख नज़र आ रही हो लेकिन नीचे धर्मांतरण के मुद्दे पर जो आग सुलगी हुई है उसे देखकर नहीं लगता कि यह हाल-फ़िलहाल बुझ पाएगी। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मीडिया के सामने कहा कि “हेल्थ के रास्ते से धर्मांतरण चल रहा है।“ उप मुख्यमंत्री अरुण साव ने भी धर्मांतरण पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। साय एवं साव का कथन सामने आने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने मुख्यमंत्री को सीधे धर्मांतरण पर श्वेत पत्र जारी करने की चुनौती दे दी। बैज की इस चुनौती पर भाजपा प्रदेश प्रवक्ता केदार गुप्ता ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि “बस्तर में जब एक आईपीएस ने अपने अधिनस्थ पुलिस अफ़सरों को पत्र जारी कर धर्मांतरण पर गहरी चिंता जताई थी तब ये कांग्रेसी नेता कहां थे?” कांग्रेस-भाजपा नेताओं के बीच जुबानी जंग को कुछ ही घंटे बीते रहे होंगे कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के गृह ग्राम बगिया के निकट दोकड़ा की करमटोली बस्ती में एक धार्मिक आयोजन की आड़ में धर्मांतरण अभियान चलने का आरोप लगाते हुए एक बड़े समूह ने जमकर हंगामा किया। मामला पुलिस तक गया। पुलिस के आयोजन स्थल पर पहुंचने से पहले ही ओड़िशा से आए जो लोग धार्मिक कार्यक्रम करा रहे थे फ़रार हो गए। माना यही जाता रहा है कि विधानसभा चुनाव के समय में बस्तर में प्रधानमंत्री आवास योजना एवं धर्मांतरण दो ऐसे मुद्दे थे, जिनका ज़बरदस्त अंडर करंट चला और उसका सीधा नुकसान कांग्रेस को हुआ था। जिस तरह धर्मांतरण पर दोनों ही दलों की तरफ से बयानबाजी रुकने का नाम नहीं ले रही है, लक्षण तो यही नज़र आ रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद अब लोकसभा चुनाव में भी धर्मांतरण का मुद्दा भीतर ही भीतर गरमाए रहेगा।

नक्सलवाद पर

विदेशी छाया

बस्तर में इंद्रावती नदी के उस पार बीजापुर-दंतेवाड़ा की सीमा पर नक्सलियों व्दारा बनाकर रखी गई 130 मीटर लंबी बंकर जैसी सुरंग तक पहुंचने में पुलिस बल क़ामयाब रहा। सुरंग 10 फुट गहरी और 3 फुट चौड़ी थी। आईजी सुंदरराज पी. का कहना है कि ‘हमास’ जैसे आतंकवादी ग्रुप के लोग इस तरह की सुरंग का इस्तेमाल करते रहे हैं। इस सुरंग का इस्तेमाल मुठभेड़ के बाद छिपने, हथियार और राशन छिपाने के लिए किया जा सकता था। इसे संयोग ही कहें कि दो ऐसे मौके आए जब भाजपा की सरकार बनते ही नक्सलवाद से जुड़े अहम् खुलासे हुए। 2004 में जब रामविचार नेताम गृह मंत्री थे तब उन्होंने खुलासा किया था कि बस्तर में नक्सलियों से मुठभेड़ में जब्त बहुत से हथियार चाइना एवं नेपाल की तरफ के निकले। तब नेताम ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की थी कि छत्तीसगढ़ में फैले नक्सलवाद के पीछे विदेशी ताकतों की भी संलग्नता है।

क्या महामंत्री बनने के

बाद टिकट की दौड़

में रह पाएंगे संजय

भाजपा ने संजय श्रीवास्तव समेत चार नये प्रदेश महामंत्रियों की घोषणा कर दी। विधानसभा चुनाव के समय संजय श्रीवास्तव के पास उस सरगुजा संभाग का प्रभार था जहां की 14 की 14 सीटें कांग्रेस के पास थीं। 2023 के चुनाव में वो सारी की सारी 14 सीटें भाजपा की झोली में आ गईं। स्वाभाविक है कि ऐसा अप्रत्याशित परिणाम आने के बाद संजय का क़द पार्टी में और बढ़ा है। हाई प्रोफाइल समझे जाने वाले नेता संजय श्रीवास्तव का समय-समय पर विधानसभा, लोकसभा एवं महापौर जैसे चुनाव के समय टिकट के लिए दावा सामने आता रहा है लेकिन उनका अधिक से अधिक इस्तेमाल संगठन में अलग-अलग पदों के लिए होते रहा। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो संजय रायपुर उत्तर से टिकट के प्रबल दावेदार थे लेकिन टिकट लाने में पुरंदर मिश्रा क़ामयाब रहे। संजय का नाम रायपुर लोकसभा सीट के लिए चलना शुरु हो चुका था। अब प्रश्न यह खड़ा हो गया है कि संगठन के बड़ा पद मिलने के बाद क्या वे लोकसभा चुनाव की टिकट की दौड़ में रह पाएंगे? कुछ लोग यह उदाहरण दे सकते हैं कि प्रदेश महामंत्री रहते हुए में जब केदार कश्यप, विजय शर्मा एवं ओ.पी. चौधरी जैसे नेताओं को विधानसभा चुनाव लड़वाया जा सकता है तो संजय को लोकसभा चुनाव क्यों नहीं? फिर दूसरी बात यह सामने आएगी कि कश्यप, शर्मा एवं चौधरी का महामंत्री पद पर लंबा समय हो चुका था जबकि संजय अभी हाल ही में बने हैं। फिर यह भी हवाला दिया जा सकता है कि विधानसभा चुनाव के समय में पार्टी विपक्ष में थी और परिस्थितियां दूसरी थीं। संभावना तो यही बनती दिख रही है कि पार्टी चुनाव लड़वाने के बजाय उनकी प्रतिभा का इस्तेमाल पूरे प्रदेश में करेगी। राजनीति में पुरुषार्थ के साथ भाग्य की भी बड़ी भूमिका होती है। हो सकता है टिकट के लिए संजय को अभी और इंतज़ार करना पड़े।

छलकाएं जाम… आइये…

आप की…

आंखों के नाम…

भीतर से ख़बर तो यही छनकर आ रही है कि नई आबकारी नीति मदिरा प्रेमियों के मन को पुलकित कर देने वाली होगी। मनपसंद ब्रांड की शराब मिलेगी। अच्छी से अच्छी क्वालिटी की बीयर मिलेगी। अब शराब के पैसे पर भैंसा गए व्यापारियों का एकाधिकार तो टूटेगा ही लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी कम होगा। लोग जोगी शासनकाल की उस शराब नीति को याद करते हैं जब छत्तीसगढ़ ब्रांड के मामले में काफ़ी समृद्ध रहा था। उस दौर में नशे की दुनिया में भी सच्चे समाजवाद के दर्शन हो जाया करते थे। उस दौर में रोज़ कमाने खाने वालों के लिए गोवा स्पेशल ब्रांड तो था ही, मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास के लिए मैक्डावल नंबर वन जिंदाबाद था। बेहद अनुभवी मदिरा प्रेमी बताते नहीं थकते कि “राज्य गठन का वह शुरुआती दौर कितना उल्लास भर देने वाला था। सदाबहार ओल्ड मंक रम तो थी ही, ओल्ड स्मलगर एवं हिमाचल रम भी अलग तरह का टेस्ट देती थी। ‘जीन’ क्या चीज़ है नये-नये शौक में उतरे यहां के लोग जानते भी नये होंगे। उस दौर में क्या ख़ूब ‘जीन’ मिला करती थी। ब्रांडी तो मानो छत्तीसगढ़ से ग़ायब ही हो गई। तब ब्रांडी भी क्या ख़ूब मिला करती थी।“ दूसरी बात यह कि जब विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आए तो कितने ही राजनीतिज्ञ विशेषज्ञ यह कहने से नहीं चूके थे कि “शराबियों ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया। जो हो, जब सहनशीनलता ज़वाब दे जाती है शराब से जुड़ा मुद्दा छलछला ही जाता है।“

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