कारवां (18 अगस्त 2024) ● थमने का नाम नहीं ले रहा हार का दर्द… ● नक्सलियों के दो खेमे में बंटने का दावा… ● टिकट चलकर आती है सोनी के व्दार… ● निगम के बड़े नेता का बड़ा मिशन… ● मनहूस वीआईपी रोड…

■ अनिरुद्ध दुबे

विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव को लंबा समय बीत चुका और अब नगर निगम चुनाव क़रीब है, लेकिन पिछले दोनों चुनाव में मिली करारी हार को लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं का दर्द अब भी छलक पड़ता है। विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने बिलासपुर में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि “कांग्रेस नेता एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ पाए। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को हार मिली।“ अब बात पूर्व मंत्री अमरजीत भगत की करें। अम्बिकापुर में मीडिया से बातचीत के दौरान भगत ने कहा कि “नेताओं में तालमेल का अभाव और ‘तेरा मेरा’ का जो खेल चल रहा था उसी के कारण चुनाव में कांग्रेस को ऐसी हार मिली।“ लगातार जीत का रिकॉर्ड बनाते चल रहे भगत को 2023 के चुनाव में सेना की नौकरी करके राजनीति में आए भाजपा प्रत्याशी राम कुमार टोप्पो से जो हार मिली वह अपने आप में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम रहा। बड़े नेताओं के दर्द जो रह रहकर छलक पड़ता है, लगता है वह 2024 वाला यह साल गुजर जाने के बाद ही जाकर थमेगा।

नक्सलियों के दो खेमे

में बंटने का दावा

गृह मंत्री विजय शर्मा ने दावे के साथ कहा है कि “छत्तीसगढ़ में नक्सली दो खेमों में बंट गए हैं। बाहरी और स्थानीय। उनके बीच मतभेद की स्थिति है।“ गृह मंत्री अगर यह बात कहें तो उसे गंभीरता से ही लिया जाएगा। वैसे भी माना यही जाता है कि भले ही नक्सलवाद के बीज पश्चिम बंगाल में पड़े थे लेकिन छत्तीसगढ़ में इसकी आमद आंध्र प्रदेश के रास्ते हुई। आगे चलकर महाराष्ट्र एवं ओड़िशा तरफ से भी नक्सलियों का आना जाना लगे रहा। बेहद गंभीर बात यह है कि पड़ोसी राज्यों ओड़िशा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड एवं तेलंगाना में तो नक्सलवाद का दायरा काफ़ी सिमट चुका है लेकिन छत्तीसगढ़ में अभी भी स्थिति विकराल है। बस्तर के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र पूवर्ती जहां कुछ महीनों पहले सूरक्षा केम्प भी खुल चुका है वहां हाल ही में नक्सलियों ने मुख़बिरी के शक में दो भाइयों की हत्या कर दी। हालांकि खूंखार माने जाने वाले नक्सली नेता हिड़मा के गांव पूवर्ती में सरकार ने सूरक्षा केम्प स्थापित करने के अलावा स्वास्थ्य शिविर लगाने तथा आदिवासियों के हितों से जुड़े कुछ और भी बड़े कदम उठाए हैं, लेकिन जिस तरह दो भाईयों की निर्मम हत्या का मामला सामने आया है, उसने फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है।

टिकट चलकर आती

है सोनी के व्दार

माना यही जा रहा है कि रायपुर दक्षिण के प्रत्याशी चयन को लेकर भाजपा की जो बैठक होगी उसमें ज़्यादा खींचतान वाली स्थिति नहीं रही तो पूर्व सांसद सुनील सोनी की टिकट पक्की होना तय है। आठ बार के विधायक रहे बृजमोहन अग्रवाल के लोकसभा चुनाव लड़ने के कारण यह सीट खाली हुई है। स्वाभाविक है रायपुर दक्षिण की टिकट की जब बात होगी तो बृजमोहन की राय को गंभीरता से तो लिया ही जाएगा। हालांकि खुले तौर पर बृजमोहन कभी किसी के सामने कोई  नाम लेते नहीं दिखे पर उनके क़रीब रहने वालों का यही कहना है कि मोहन भैया की पहली पसंद सुनील सोनी ही हैं। वैसे तो बृजमोहन अग्रवाल के क़रीबी समझे जाने वाले एक और नेता केदार गुप्ता की भी चुनाव लड़ने की दृढ़ इच्छा शक्ति सामने आती रही है पर अचानक सोनी के नाम की माला जपने वालों की तादाद बढ़ गई है। राजनीति का गहन अध्ययन करते रहने वाले कुछ लोगों का यही कहना है कि “सोनी किस्मत के सिकंदर हैं। महापौर से लेकर उनके लोकसभा चुनाव लड़ने तक की यात्रा का अध्ययन कर लो। पाओगे कि उनको टिकट मिलने के रास्ते खुद ब खुद बनते चले जाते हैं।“

निगम के बड़े नेता

का बड़ा मिशन

पिछले दिनों नगर निगम के नेताजी एक ऐसे मिशन में निकले थे मानो चंद्रयान मिशन में निकले हों। फिर मिशन में एक-दो नहीं कई लोगों को जाना था। दूसरे प्रदेश की हसीन वादियों को देखने निकलो तो अच्छे ख़ासे फंड की ज़रूरत होती है। जब मिशन बड़ा हो तो योगदान भी बड़े कद के लोगों से लिया जाता है, यानी जोन कमिश्नरों से। फंड की व्यवस्था कहां से कैसी करनी है यह वेताल ने विक्रम को अच्छे से समझा दिया था। मन मारकर ही सही, जोन कमिश्नरों ने बड़ा दिल जो दिखाया सो दिखाया, साथ ही स्वहित से जुड़े इस महान कार्य में स्मार्ट सिटी वालों का भी कोई कम योगदान नहीं रहा। विक्रम का आदेश सिर आंखों पर। न कहकर कौन मुसीबत मोल ले। योगदान के लिए चिन्हित लोगों को भी अलग-अलग बुलाया गया था। एक साथ बुलाए जाने पर ख़तरा था कि सब मिलकर ये न कह दें कि “सर टारगेट कुछ ज़्यादा बड़ा दे दिया जा रहा है।“ यहां पर किसी ‘शहर’ का नाम नहीं दिया गया है। ऐसा महान कार्य किस ‘शहर’ में हो सकता है और ‘कौन’ कर सकता है पढ़ने वाले स्वतः ही अनुमान लगा लें।

मनहूस वीआईपी रोड

पिछले रविवार को रायपुर एयरपोर्ट से लौट रहीं तीन कारें वीआईपी रोड में आपस में भिड़ गईं जिसमें 5 लोग घायल हो गए। तेज रफ़्तार में दौड़ रही एक कार के अचानक ब्रेक लगने से यह हादसा हुआ। हालांकि सवार लोगों को ज़्यादा चोटें नहीं आईं लेकिन तीनों कारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं। जहां यह हादसा हुआ वह रास्ता बेहद अज़ीब सा है। दो तरफ बड़े डिवाइडर और 3 रास्ते। बाहर से जो लोग रायपुर आते हैं वह कहते नज़र आते हैं कि “ऐसा रास्ता हमने दूसरे किसी और शहर में नहीं देखा।“ बेहद गैर ज़िम्मेदारी के साथ बनाई गई यह सड़क एयरपोर्ट ही नहीं, बल्कि मुर्दा शहर नया रायपुर की तरफ भी जाती है। कुलदीप जुनेजा जब रायपुर शहर से विधायक थे तब उन्होंने इस अजीबोगरीब सड़क को लेकर विधानसभा में मज़ाकिया लहज़े में यहां तक कह दिया था कि “वीआईपी रोड को तो पर्यटन स्थल घोषित कर देना चाहिए। ऐसी विचित्र बनावट वाली सड़क पूरे हिन्दुस्तान में और कहीं देखने नहीं मिलेगी।“ राजधानी रायपुर के अधिकांश जागरुक नागरिकों की यही राय है कि वीआईपी रोड की इस मनहूस शक्ल को मिटाकर नया स्वरूप देने की ज़रूरत है।

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